Narmada river in Hindi

Submitted by Hindi on Wed, 01/19/2011 - 11:37
स्कन्द पुराण का सम्पूर्ण रेवाखण्ड नर्मदा के प्रतिपादन में पर्यावसित होता है। नर्मदा, राजा पुरुकुत्स की पत्नी थी और इनके त्रसद्दस्यु नामक एक पुत्र था। वैसे इन्हें भगवान शंकर की पत्नी कहा जाता है। रेवाखंड में स्पष्ट है कि चंद्रवंशीय राजा हिरण्यतेजा की तपस्या से नर्मदा पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। विंध्य श्रृंखला के अमरकंटक से निकलकर पश्चिम की ओर 1,200 किलोमीटर की यात्रा करके नर्मदा अरब सागर में समाहित हो जाती है। अमरकंटक अथवा पर्यकंगिरी को विंध्य पर्वत का पुत्र बताया गया है।

अरब सागर में गिरने वाले मुहाने को भृगुक्षेत्र कहते हैं। यहीं भरूच या भड़ौच में राजा बलि द्वारा दस अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान हुआ था। शंखोद्वार, दशावमेद्य, धूतपाप, कोटीश्वर, ब्रह्मतीर्थ, भास्करतीर्थ, गौतमेश्वर आदि तीर्थ नर्मदा के पचपन तीर्थों में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। करनाली और नर्मदा के संगम पर जहां चंद्रमा ने घोर तप किया था, सोमेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है। इस नदी के तट पर ओंकरेश्वर, मंडला, केदारेश्वर, ब्रह्माण्डघाट, होशंगाबाद, बागदा संगम आदि कई मुख्य तीर्थ हैं। नर्मदा के बारे में मत्स्यपुराण, अध्याय 186/11 में श्लोक हैं:-

त्रिभीः सास्वतं तोयं सप्ताहेन तुयामुनम्
सद्यः पुनीति गांगेयं दर्शनादेव नार्मदम्


अर्थात सरस्वती में तीन दिन, यमुना में सात दिन तथा गंगा में एक दिन स्नान करने से मनुष्य पावन होता है लेकिन नर्मदा के दर्शन मात्र से व्यक्ति पवित्र हो जाता है। भागवत के अनुसार श्रीकृष्ण और रुक्मणी के भ्राता रुक्मक का युद्ध-स्थल भी यहीं है। पुराणों क अनुसार राजा शर्याति का यज्ञ भी इसी तट पर हुआ था। अग्नि देव उत्पत्ति भी नर्मदा क्षेत्र से है। रत्नों की खान वैदूर्य पर्वत भी नर्मदा के उद्गम के नीचे है। मत्स्य पुराण में 186 से 194 तक के अध्याय नर्मदा महात्म्य से ही संबद्ध हैं।

नर्मदा, सोन, महानदी तथा ज्वालावती नदियों का उद्गम स्रोत अमरकंटक है। पौराणिक कथानुसार सोन नदी सम्पूर्ण नदियों की नायक है, अतएव इसे सोन नद भी कहा जाता है। जिस प्रकार नर्मदा नदी के सब पाषाण शिव तुल्य पूजनीय माने जाते हैं उसी प्रकार सोन नदी के सब पाषाण गणपति की भांति भक्तों द्वारा सम्मान प्राप्त करते हैं। महानदी के उद्गम मैकाले पर्वत का सघन वन है। अपने उद्गम स्थान पर महानदी रुद्रगंगा के नाम से जानी जाती है। भगवान रुद्र के शीश से निकलने के कारण रूद्र गंगा का मूल भी नर्मदा के समान पवित्र तीर्थ के समान है। अमरकुंड में नर्मदा माता का कुंड ही नर्मदा का उद्गम स्थल है।

नर्मदा के पावन कुंड से लगभग 4 किलोमीटर दूर सोन नदी का उद्गम स्थान है, जो सोन मूढ़ा के नाम से प्रख्यात है। जहां चट्टानों को काटकर सोन नदी एक पतली धारा के रूप में प्रवाहित होती है।

नर्मदा को शिव की पुत्री होने के कारण शांकरी भी कहा गया है। धार्मिक-पौराणिक कथानुसार तीसरे नेत्र द्वारा संसार को भस्म करते हुए शिव मैकाले पर्वत के स्थान पर पहुंचे तो उनके शरीर से निकले पसीने की कतिपय बूंद यहां गिरी। इन्हीं बूंदों से एक कुंड का प्रादुर्भाव हुआ और इस कुंड से एक बालिका प्रकट हुई जो सांकरी तथा नर्मदा कहलायी। शिवजी के आदेशानुसार वह जनहित के लिए देश के बहुत बड़े भाग से प्रवाहित होने लगी। इसका उद्गम मैकाले पर्वत पर है। इसलिए यह मैकाले सुता के नाम से भी जानी जाती है। जब ये पर्वतीय क्षेत्र में बहती है तो “रव” (आवाज) करती हुई आगे बढ़ती है इसलिए इसे रेवा के नाम से भी पुकारा गया है।

नर्मदा के साथ ही सोन नदी का उद्गम स्थल-विंध्यपर्वत पर 1,065 मीटर की ऊंचाई पर अमरकंटक नामक स्थान पर माना जाता है। वहीं नर्मदा नदी के मुहाने पर नर्मदेश्वर का मंदिर है। ज्ञातव्य हो कि उस स्थली से कुछ ऊपर जाकर सोनमुद्रा नामक स्थान ‘सोन’ नदी का उद्गम है। भारत की चार प्रमुख नदियां गंगा, यमुना, सरस्वती और नर्मदा हैं जिन्हें क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद तथा सामवेद स्वरूपा समझा जाता है। नर्मदा की तपस्या पर प्रसन्न होकर जब शंकर भगवान ने वर मांगने को कहा तो नर्मदा ने सर्वश्रेष्ठता प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की। तब शंकरजी ने उसके दर्शन मात्र से प्राणी को निष्पाप होने का वरदान दिया। शंकर भगवान ने उसके किनारे पर पड़े पत्थरों के टुकड़ों को भी शिवलिंग के समान पूज्य समझे जाने का वर दिया। उल्लेखनीय है कि तब से नर्मदा के किनारे से लाये हुए शिवलिंगों से महादेव के मंदिर की स्थापना होती है। ज्ञातव्य है कि महारानी अहिल्या देवी ने नर्मदा के लिए महेश्वर तीर्थ में कई मंदिर और घाट निर्मित कराये थे। उनकी समाधि भी इसी स्थान में हैं। मार्कण्डेय ऋषि का आश्रम अभी भी ओंकारेश्वर में नर्मदा के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। कहा जाता है। कि यहीं नर्मदा के तट पर ऋषिवर ने युधिष्ठिर को प्रणय ओंकार के प्रकट होने की कथा सुनाई थी। ओंकार क्षेत्र स्थित लिंग पांच कलाओं से पूर्ण है। यहां नर्मदा अथाह है। ऐसा लगता है कि पर्वत के भीतर तक नर्मदा बहुत गहरी चली गई है और रेवा के जल पर तैरते हुए शिवलिंग स्थिर हो गये हैं। पर्वतों के बीच नर्मदा की गोद में बसा यह क्षेत्र प्राकृतिक सुषमा में ही बेजोड़ है। यह भी गंगा आदि की तरह पापहारिणी और मोक्षदायिनी नदी है।

नर्मदा घाटी विकास योजना की प्रमुख परियोजना नर्मदा सागर से मध्य प्रदेश की सिंचाई क्षमता में एक लाख चालीस हजार हैक्टेयर और विद्युत उत्पादन में एक हजार मेगावट की वृद्धि होगी। कुल सत्तर अरब रुपयों की मध्य प्रदेश, गुजरात की इस समन्वित योजना को केंद्र सरकार ने 13 अप्रैल 1987 को स्वीकृति दी। इंदिरा गांधी द्वारा इसका शिलान्यास 23 अक्तूबर 1984 को हुआ था। बांध बनने पर खण्डवा, देवास और होशंगाबाद जिलों की 91 हजार हेक्टेयर भूमि डूब जायेगी जिससे 254 गांवों की 86572 जनता प्रभावित होगी। डूब से प्रभावित होने वालों को अन्यत्र बसाया जायेगा।

Hindi Title

नर्मदा


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संदर्भ
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