नवादा का ककोलत जलप्रपात प्रकृति का अनमोल तोहफा

Submitted by Hindi on Tue, 08/16/2011 - 10:22
शीतांशु कुमार सहाय
ककोलत जल प्रपातककोलत जल प्रपातयह जलप्रपात नवादा ज़िला मुख्यालय से 35 किलोमीटर पूरब-दक्षिण गोविंदपुर प्रखंड में स्थित है। सात पर्वत श्रृंखलाओं से प्रवाहित ककोलत जलप्रपात और इसकी प्राकृतिक छटा बहुत सारे कोतुहलों को जन्म देता है। धार्मिक मान्यता है कि पाषाण काल में दुर्गा सप्तशती के रचयिता ऋषि मार्कंडेय का ककोलत में निवास था। मान्यता यह भी है कि ककोलत जलप्रपात में वैशाखी के अवसर पर स्नान करने मात्र से सांप योनि में जन्म लेने से प्राणी मुक्त हो जाता है। यह जलप्रपात प्राचीन काल से प्रकृति प्रेमियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। आज़ादी से पूर्व घने जंगल और दुर्गम रास्तों के बावजूद यह जलप्रपात अंग्रेजों के लिए गर्मी में प्रमुख पर्यटक केंद्र हुआ करता था। प्रति वर्ष 14 अप्रैल को यहां पांच दिवसीय सतुआनी मेला पर लोगों का जमावड़ा लगता है। भारत सरकार के डाक एवं तार विभाग ने इस जलप्रपात की ऐतिहासिक महता को देखते हुए ककोलत जलप्रपात पर पांच रुपये मूल्य का डाक टिकट भी जारी किया है। इसका लोकार्पण भी डाक तार विभाग ने 2003 में ककोलत विकास परिषद के अध्यक्ष मसीहउद्दीन से पटना में कराया। 1995 में गया के तत्कालीन डीएफओ बाईके सिंह चौहान, नवादा के तत्कालीन ज़िलापदाधिकारी रामवृक्ष महतो तथा ककोलत विकास परिषद के अध्यक्ष मसीहउद्दीन की तिकड़ी ने इसका कायाकल्प कर दिया। ज़िलापदाधिकारी ने पचास लाख रुपये की राशि मुहैया कराई तो डीएफओ ने वन विभाग के तमाम नियमों में शिथिलता बरतते हुए ककोलत जलप्रपात को पूरी तरह एक अच्छे पर्यटन स्थल का रूप दे दिया। वहां वन विभाग की ओर से आकर्षक गेस्ट हाउस और दुकानों का निर्माण कराया। ककोलत विकास परिषद की ओर से विसुआ मेला को ककोलत महोत्सव के रूप में विस्तृत रूप देकर आयोजन किया जाता है। 1997 में ककोलत महोत्सव की शुरुआत बिहार के प्रसिद्ध माउंटेनमैन दशरथ मांझी के हाथों कराया गया था।अंग्रेजों के शासनकाल में फ्रांसिस बुकानन ने 1811 ई में इस जलप्रपात को देखा और कहा कि जलप्रपात के नीचे का तालाब काफी गहरा है। इसकी गहराई को भरने के उद्देश्य से एक अंग्रेज अधिकारी के आदेश पर स्नान करने वालों को स्नान करने से पहले तालाब में एक पत्थर फेंकने का नियम बनाया था। इस तालाब में सैकड़ों लोगों की जानें जा चुकी है। 1994 में इस जलप्रपात के नीचे के तालाब को भर दिया गया, जिससे लोग इसमें आराम से स्नान कर सके। तब से इसका आकर्षण और बढ़ गया।

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