नवरात्र

Submitted by Hindi on Thu, 08/18/2011 - 09:08
नवरात्र वसंत और शरदृतु में चैत्र तथा आश्विन के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से नवमी तक सारे भारत में मनाया जानेवाला पर्व। यह बंगाल, बिहार तथा आसाम में बड़ी धूमधाम से दुर्गापूजा के नाम से मनाया जाता है। मार्कंडेय पुराण (अध्याय 72-90 वेंकटेश्वर प्रेस संस्करण) के चंडी या दुर्गासप्तशती के वर्णनानुसार महिषासुर के अत्याचारों से रक्षा के लिए विष्णु आदि देवताओं के सम्मिलित तेज से समुत्पन्न, विभिन्न देवताओं के त्रिशूल, चक्र, वज्रादि आयुधों से संपन्न देवी ने इस समय महिषासुर आदि दैत्यों का संहार किया था।

देवी की पूजा के तीन भेद हैं। सात्विक पूजा, जप, चंडी के पाठ तथा मांसरहित नैवेद्य चढ़ाने से, राजस पूजा समांस नैवेद्य की बलि देने से तथा तामस पूजा मद्यमांस की बलि से बिना जप और मंत्रों के होती है। यह किरात आदि वन्य जातियों के लिए है। कालिका पुराण में कहा गया है कि बकरा, भैंसा आदि नरपशु ही बलि योग्य है। रक्तरंजित दारुण पशुबलि के स्थान पर कालिका पुराण (71/23-24) में कुम्हड़ा, गन्ना, मादक द्रव्य और शराब की बलि देने का विधान है। आटे के बनाए पशुओं से तथा नारियल, बिल्व, नीबू आदि को काट कर अहिंसक बलि दी जाती है।

पंजाब, उत्तर प्रदेश, गुजरात, सौराष्ट्र तथा दक्षिण में नवरात्र के दिनों में कलशस्थापन और जौ बोने की विधि संपन्न की जाती है। इस पर्व के शुरू में वैदिक युग से समृद्धि का प्रतीक माने जानेवाले (आपूर्णों अस्य कलश: ऋ. 3/32/15) सोने, चाँदी या मिट्टी के घड़े को पवित्र वेदी पर स्थापित करके 'इमंमे गंगे' (ऋ. 10/75/5) के मंत्र से इसमें जल भरा जाता है, इसके पास दूर्व रखी जाती है और पवित्र मिट्टी में जौ तथा गेहूँ के दाने बोए जाते हैं। आषाढ़ी और सवनी दोनों फसलों के पकने के समय इस पर्व के मनाए जाने से तथा उपर्युक्त विधियों से यह प्रतीत होता है कि नत्ररात्र मुख्य रूप से ऋतुसंबंधी पर्व है।

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संदर्भ
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