अधिधारण
किसी वायुमंडलीय अवदाब में शीत वाताग्र का कोष्ण वाताग्र से मिल जाना, जिसके कारण कोष्ण वायु पृथ्वी सतह से उपर उठ जाती है, तथा अधिधारित वाताग्र की उत्पत्ति हो जाती है। इस प्रकार अवदाब के पिछले भाग की ठंडी वायु उस ठंडी वायु से मिलने लगती है, जो कोष्ण वाताग्र के आगे पाई जाती है। यदि चारों ओर से घेरने वाली वायु, वाताग्र की वायु से अधिक ठंडी होती है, तो शीत अधिधारण कहलाता है, और यदि कोष्ण क्षेत्र कोष्ण वाताग्र के कारण ऊपर उठता है तो ऐसी स्थिति में इसे कोष्ण अधिधारण की संज्ञा दी जाती है। यदि तापमान में कोई विशेष अंतर न हो, तो ऐसी दशा में उदासीन (neutral) अधिधारण कहा जाता है।