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राजस्थान पत्रिका, 17, अप्रैल 2016
बलरामपुर जिले के बीजाडीह गाँव के लोगों ने कर दिखाया कमाल, जलस्रोत से गांव तक बिना सरकारी मदद के एक किलोमीटर बिछाई पाइप लाइन
पत्थर मुश्किल का सीढ़ी बन जाये,
खुद को जरा हुनरमंद कर लो।
सितारे तेरे बुलंदी पर,
इरादे भी बुलंद कर लो।
कुछ ऐसे ही जज्बे से लबरेज बलरामपुर के शंकरगढ़ ब्लाक में बीजाडीह गाँव के लोगों ने पहाड़ पर बसे होने के बावजूद बूँद-बूँद पानी को पूरी शिद्दत से सहेजने में कामयाबी हासिल की है। कभी यहाँ के लोग पानी के लिये मोहताज रहे। अब आलम यह है कि हर घर तक पानी पहुँच रहा है। ग्रामीणों ने एकजुट होकर दिन-रात पसीना बहाया और पत्थरों को काटते हुए बिना किसी सरकारी मदद से जलस्रोत से अपने घरों तक पाइप लाइन बिछा ली है।
सूखे की मार झेल रहे प्रदेश में बलरामपुर का नाम भी है, लेकिन बीते बीजाडीह के लोगों को उनकी मेहनत का पानी मिल रहा है। कई सालों से पानी की समस्या झेलने के बाद इसका रोना-रोने की बजाय उसका हल ढूँढने की ठानी। इन लोगों को एक किलोमीटर पहाड़ के ऊपर या फिर नीचे से पानी ढोकर लाना पड़ता था। ग्रामीणों ने पहाड़ के ऊपरी हिस्से में बने एक छोटे से जलस्रोत से गाँव तक पाइपलाइन बिछा ली है।
बूँद-बूँद पानी के लिये तरसते ग्रामीणों हमारे गाँव में पानी की समस्या ने करीब दो साल पहले पाइप लाइन बिछाने का काम शुरू किया था और इस काम को छह महीने में पूरा कर लिया था। ग्रामीणों ने जिस तकनीक और कुशलता से इस काम को किया है, वह काबिले तारीफ है। पहाड़ से पहुँचे पानी को गाँव में अलग-अलग टंकियों में एकत्र कर रखा जाता है।
सरपंच हरिनाथ ने बताया, ‘गाँव वालों ने पाइप बिछाने के लिये ढाई हजार रुपए का चंदा किया था। इसके बाद उन्होंने पंचायत की राशि से काम कराया। टंकी भी गाँववालों ने चंदा कर बनवाया है। लगातार बहते पानी को रोकने के लिये वे अब इंजीनियर की मदद से ड्राइंग बनवाकर नई स्थायी टंकियाँ बनवाने की तैयारी कर रहे हैं। सरपंच का कहना है, ऊपरी हिस्से में वे एक बाँध बनवाने की भी तैयारी में हैं।
पेयजल के लिये हम सालों परेशान रहे हैं। पानी बचाने का प्रयास पूरे गाँव में मिलकर किया है... सरस्वती
पानी की वजह से हम शादी-पार्टी के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। पहाड़ से उतरने वाला पानी अब आसानी से मिल रहा है। हमारे गाँव में भी शादी-पार्टियाँ होने लगी हैं... उसैन
मेरी नाती-पोतों की भी शादी हो गई है। हमने पानी के लिये काफी मशक्कत की है। अब ऐसा नहीं है... ठुनी, बुजुर्ग महिला
पत्थर मुश्किल का सीढ़ी बन जाये,
खुद को जरा हुनरमंद कर लो।
सितारे तेरे बुलंदी पर,
इरादे भी बुलंद कर लो।
इरादों से निकली पानी की कहानी
जज्बे से लबरेज बलरामपुर के शंकरगढ़ ब्लाक में बीजाडीह गाँव के लोगों ने पहाड़ पर बसे होने के बावजूद बूँद-बूँद पानी को पूरी शिद्दत से सहेजने में कामयाबी हासिल की है। कभी यहाँ के लोग पानी के लिये मोहताज रहे। अब आलम यह है कि हर घर तक पानी पहुँच रहा है। ग्रामीणों ने एकजुट होकर दिन-रात पसीना बहाया और पत्थरों को काटते हुए बिना किसी सरकारी मदद से जलस्रोत से अपने घरों तक पाइप लाइन बिछा ली है।
सूखे की मार से प्रभावित प्रदेश में गर्मीके प्रचंड होते ही पानी की किल्लत जगह-जगह विकराल रूप लेती नजर आ रही है, वहीं यहाँ कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने इस समस्या का रोना रोने की बजाय खुद कुछ करने की ठानी और बूँद-बूँद सहेजकर उदाहरण पेश किया है। ऐसे ही उम्दा लोगों की पत्रिका ने पड़ताल की। पेश है, इस शृंखला की पहली मिसाल।कुछ ऐसे ही जज्बे से लबरेज बलरामपुर के शंकरगढ़ ब्लाक में बीजाडीह गाँव के लोगों ने पहाड़ पर बसे होने के बावजूद बूँद-बूँद पानी को पूरी शिद्दत से सहेजने में कामयाबी हासिल की है। कभी यहाँ के लोग पानी के लिये मोहताज रहे। अब आलम यह है कि हर घर तक पानी पहुँच रहा है। ग्रामीणों ने एकजुट होकर दिन-रात पसीना बहाया और पत्थरों को काटते हुए बिना किसी सरकारी मदद से जलस्रोत से अपने घरों तक पाइप लाइन बिछा ली है।
सूखे की मार झेल रहे प्रदेश में बलरामपुर का नाम भी है, लेकिन बीते बीजाडीह के लोगों को उनकी मेहनत का पानी मिल रहा है। कई सालों से पानी की समस्या झेलने के बाद इसका रोना-रोने की बजाय उसका हल ढूँढने की ठानी। इन लोगों को एक किलोमीटर पहाड़ के ऊपर या फिर नीचे से पानी ढोकर लाना पड़ता था। ग्रामीणों ने पहाड़ के ऊपरी हिस्से में बने एक छोटे से जलस्रोत से गाँव तक पाइपलाइन बिछा ली है।
दो साल पहले शुरुआत
बूँद-बूँद पानी के लिये तरसते ग्रामीणों हमारे गाँव में पानी की समस्या ने करीब दो साल पहले पाइप लाइन बिछाने का काम शुरू किया था और इस काम को छह महीने में पूरा कर लिया था। ग्रामीणों ने जिस तकनीक और कुशलता से इस काम को किया है, वह काबिले तारीफ है। पहाड़ से पहुँचे पानी को गाँव में अलग-अलग टंकियों में एकत्र कर रखा जाता है।
पैसों के लिये किया चंदा
सरपंच हरिनाथ ने बताया, ‘गाँव वालों ने पाइप बिछाने के लिये ढाई हजार रुपए का चंदा किया था। इसके बाद उन्होंने पंचायत की राशि से काम कराया। टंकी भी गाँववालों ने चंदा कर बनवाया है। लगातार बहते पानी को रोकने के लिये वे अब इंजीनियर की मदद से ड्राइंग बनवाकर नई स्थायी टंकियाँ बनवाने की तैयारी कर रहे हैं। सरपंच का कहना है, ऊपरी हिस्से में वे एक बाँध बनवाने की भी तैयारी में हैं।
पेयजल के लिये हम सालों परेशान रहे हैं। पानी बचाने का प्रयास पूरे गाँव में मिलकर किया है... सरस्वती
पानी की वजह से हम शादी-पार्टी के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। पहाड़ से उतरने वाला पानी अब आसानी से मिल रहा है। हमारे गाँव में भी शादी-पार्टियाँ होने लगी हैं... उसैन
मेरी नाती-पोतों की भी शादी हो गई है। हमने पानी के लिये काफी मशक्कत की है। अब ऐसा नहीं है... ठुनी, बुजुर्ग महिला