पदार्थवाद

Submitted by Hindi on Mon, 08/22/2011 - 07:59
पदार्थवाद की मुख्य धारणाएँ ये हैं (1) ज्ञान का विषय ज्ञाता के बाहर विद्यमान है, (2) ज्ञात होने से उसकी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता, (3) ज्ञाता उसे उसके वास्तविक रूप में देखता है। इनमें अंतिम धारणा मिथ्या ज्ञान का समाधान नहीं कर सकती, इसलिये कुछ पदार्थवादी कहते हैं कि हम पदार्थों को नहीं, अपितु उनके चित्रों को देखते हैं। यह विचार मिथ्या ज्ञान का समाधान तो कर देता है, परंतु यथार्थ ज्ञान को संदिग्ध बना देता है। इस उलझन को सुलझाने के लिये बर्ट्रेड रसेल का कहना है कि इंद्रियप्रदत्त ही पदार्थ हैं। सामान्य बोध का यह विश्वास तो प्रमाणयुक्त है कि हमारे ज्ञान का विषय प्राकृतिक है, परंतु यह विश्वास संभवत: ठीक नहीं है कि वह स्थायी है।

आधुनिक काल में नवीन पदार्थवाद और आलोचनात्मक पदार्थवाद के कुछ अमरीकी समर्थक हुए हैं। नवीन पदार्थवाद पदार्थों का स्थान गुणसमूहों को देता है और इनके साथ देश और काल को भी अंतिम सत्ता का अंश मानता है। आलोचनात्मक पदार्थवाद द्रव्यवाद और दृष्टिवाद में समन्वय करने का यत्न करता है। इसके अनुसार हम बाह्य पदार्थों को स्पष्ट नहीं देख सकते केवल उनके चित्रों को देखते हैं; परंतु ये चित्र अनिवार्य रूप में अपने से परे, अपने स्त्रोत की ही ओर संकेत करते हैं।

(दीवानचंद)

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संदर्भ
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