पेट्रोल (Petrol)

Submitted by Hindi on Sat, 08/20/2011 - 09:39
पेट्रोल (Petrol) इसको अमरीका में 'गैसोलीन' कहते हैं। पेट्रोल हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण होता है, जो 380 से 240 सें. के बीच उबलता है। यह पेट्रोलियम, अथवा अन्या हाइड्रोकार्बन, के स्रोत से प्राप्त होता है। पेट्रोलियम का जब आसवन होता है तब 1500 सें. तक प्राप्त होनेवो प्रभाग को 'कच्चा बेंजाइन' या 'पेट्रोलियम नैफ्थ' कहते हैं। इसका घनत्व 0.75-0.77 होता है। इसके पुन: आसवन से जो प्रभाग 400-700 सें. पर प्राप्त होता है, उसे 'पेट्रोलियम ईथर' और कहीं कहीं गैसोलीन कहते हैं। दूसरा प्रभाग 700-1200 सें. पर आसुत होनेवाला 'बेंजाइन' (बेंजीन नहीं) का है। दोनों ही मिलकर पेट्रोल बनते हैं। प्राकृतिक पेट्रोलियम से इतना पेट्रोल नहीं प्राप्त होता कि पेट्रोल की माँग पूरी हो सके। अन्य स्रोतों से पेट्रोल प्राप्त करने की सफल चेष्टाएँ हुई हें।

एक ऐसा स्रोत 'प्राकृतिक गैस' है, जो पेट्रोलियम या अन्य कूपों से निकलती है। अमरीका का 10 प्रतिशत गैसोलीन स्रोत से प्राप्त होता है। अवशोषक तेल द्वारा दबाव में गैस के मार्जन से, गैस का पेट्रोल अंश अवशोषित हो जाता है। अवशोषक तेल को गरम करने से गैस निकलती है, जिसको शीतल और संपीड़ित करने से संघनीभूत हो पेट्रोल प्राप्त होता है।

ऊँचे ताप पर उबलनेवाले पेट्रोलियम के प्रभगों के भंजन से नीचे ताप पर उबलनेवाला तेल प्राप्त होता है जिसके आसवन से पर्याप्त पेट्रोल प्राप्त होता है।

बरगिउस ने बिटुमिनी कोयले को हाइड्रोजन के साथ 150-200 वायुमंडल के दबाव और लगभग 4500 सें. ताप पर गरम करने से कृत्रिम पेट्रोलियम प्राप्त किया था। ऐसे पेट्रोलियम में 50 प्रतिशत तक पेट्रोल पाया गया है। प्रभाजी आसवन से यह प्राप्त हो सकता है।

एक दूसरी रीति से भी पेट्रोल प्राप्त हुआ है। कोयले को जलाकर पहले कोक में परिणत करते, तथा फिर कोक और भाप से 'जलगैस' प्राप्त करते है। कोबाल्ट उत्प्रेरक की उपस्थिति में जलगैस को 1800-1900 से. पर गर्म करने से पेट्रोल बनता है। यह किया साधारण दबाव पर संपन्न होती है। इसे फिशर की विधि कहते हैं।

निम्न ताप पर कोयले के कार्बनीकरण से कुछ अलकतरा प्राप्त होता है। उस अलकतरे के प्रभाजी आसवन से भी पय्‌ारप्त बेंजाइन प्राप्त होता हैं। पर ऐसा कार्बनीकरण अभी बहुत बड़े पैमाने पर नहीं हो रहा है।

पेट्रोल में वसा श्रेणी के हाइड्रोकार्बन, प्रधानतया पेंटेन, हेक्सेन और हेप्टेन रहते हैं। सामान्य ताप पर ये गतिशील द्रव होते हैं और बडे जल्द जल उठते हैं। अंतर्दहन इंजन, मोटर गाड़ियों और वायुयानों के इंजनों में जलकर पेट्रोल शक्ति उत्पन्न करता है। प्रकाश उत्पन्न करने, शुष्क धावन, तेल और वसा के निष्कर्ष निकालने में पेट्रोल काम आता है।

अंतर्दहन इंजन में जब पेट्रोल जलता है तब कुछ हाइड्रोकार्बन विस्फोटन (detonation), अपस्फोटन (knock) उत्पन्न करते हैं। कुछ हाइड्रोकार्बन विस्फोटन नहीं उत्पन्न करते। साधारणतया सीधी श्रृंखलावाले हाइड्रोकार्बन अधिकतम विस्फोटन उत्पन्न करते हैं तथा सशाख हाइड्रोकार्बन, असंतृप्त हाइड्रोकार्बन और सौरभिक हाइड्रोकार्बन न्यूनतम विस्फोटन उत्पन्न करते हैं। ऐसे विस्फोटन को रोकने के लिये पेट्रोल में कुछ बाह्य द्रव्य मिलाए जाते हैं, जिनमें प्रत्यापस्फोटन (anti-knock) का गुण होता है। ऐसा एक यौगिक लेड टेट्राएथिल है। इसके व्यवहार में पहले एक दोश पाया गया था, जिसका अब निकरण हो गया है। बेंजीन में भी प्रत्यापस्फोट गुण होता है। इससे पेट्रोल में एक तृतीयांश व्यापारिक बेंजीन मिलाना अच्छा समझा जाता है।

पेट्रोल के गुणांकन के लिये पहले पहल सन्‌ 1929 'ऑक्टेन अंक' का प्रवेश हुआ। ऑक्टेन अंक से पेट्रोल के प्रत्यापस्फोटन गुण का पता लगता है। अधिकतम अपस्फोट नार्मल हेप्टेन से होता है, जिसका ऑक्टेन अंक शून्य मान लिया गया है। न्यूनतम अपस्फोट आइसो-ऑक्टेन से होता है, जिसका ऑक्टेन अंक 100 मान लिया गया है। इन दोनों अंकों की तुलना से पेट्रोल के मिश्रित हाइड्रोकार्बनों के ऑक्टेन अंकों की तुलना की जाती है। यदि किसी पेट्रोल की ऑक्टेन संख्या 70 है, तो वह साधारणतया उत्कृष्ट कोटि का पेट्रोल समझा जाता है।

अच्छे पेट्रोल में निम्नलिखित गुण होने चाहिए !
1. उसकी वाष्पशीलता ऊँची होनी चाहिए। कम से कम उसका 10 प्रतिशत जल्द वाष्प बन जाना चाहिए।

2. उसकी ऑक्टेन संख्या ऊँची होनी चाहिए ताकि जलने से विस्फोटन न हो।3. उसमें गोंद बननेवाले कोई पदार्थ नहीं होना चाहिए। गंधक की मात्रा भी 15 प्रतिशत से अधिक न होनी चाहिए।तथा 4. उसमें कोई घर्षक या संक्षारक पदार्थ न होना चाहिए। (फूलदेवसहाय वर्मा)

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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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