पेयजल गुणवत्ता में जैविक प्राचल का अभिप्राय और उसके निर्मूलन हेतु उपचार

Submitted by Hindi on Sat, 03/31/2012 - 15:21
Source
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान
किसी भी जल स्रोत का उपयोग पेयजल के रूप में लाने से पूर्व उसका रासायनिक और जैविक परीक्षण आवश्यक है। रासायनिक तत्वों से पेयजल की स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य पर समस्याओं का पता चलता है तथा जैविक तत्वों की प्रचुरता से जल की योग्यता जांची जा सकती है। आगरा जल संयंत्र का अपरिष्कृत स्रोत, यमुना नदी एवं किथम तालाब है। इस स्रोतों में फाइटोप्लांकटन की आबादी पाई गई है। इसकी प्रचुरता से जल संबंध संयत्र के छन्ने अवरुद्ध होने की समस्या भी पायी गई है। आगरा जल सयंत्र के अपरिष्कृत जल में फाइटोप्लांकटन 600 से 1200 प्रति मि.ली. अनुसंधान के तहत पाए गए हैं। अपरिष्कृत जल में कुछ प्रबल फाइटोप्लांकटन जातियां जैसे कि क्लोरोफायर्स सायनोफायसी और बेसीलेरीयोफायसी पाए गए। इन जातियों के आधार पर पॉल्मर प्रदूषण सूचकांक 12 से 19 अंकित किया गया जो कि जैविक प्रदूषण दर्शाता है। प्रक्रिया किए हुए जल से फाइटोप्लांकटन की गणना को खत्म करने के लिए चिकित्सक जांच की गई। उपचार की कार्य क्षमता के अनुसार क्लोरिनेशन से इन जातियों में 87 प्रतिशत से 100 प्रतिशत कमी देखी गई।

इस लेख के अंतर्गत आगरा जल संयंत्र के जल स्रोत और प्रक्रिया किए हुए जल में प्लांकटन संयोजन एवं उसका भौतिक – रासायनिक तत्वों के परीक्षण के परिणाम तथा उपचार कार्य का विस्तृत वर्णन किया गया है।

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