भारत के कई ग्रामीण इलाकों में पानी काफी दूर-दूर से लाना पड़ता है। घड़े, मटके और नए आए प्लास्टिक के घड़े भी महिलाओं को सिर पर उठाकर ही चलना पड़ता है। कई जगहों पर तो महिलाओं को 5-10 किलोमीटर दूर से भी जरूरत का पानी लाना पड़ता है। इस काम में उन्हें रोजमर्रा के कई-कई घंटे लगाने पड़ते हैं। घर की औरतों के अलावा बच्चियों को भी इस काम में लगाया जाता है। बच्चियों की शिक्षा-दिक्षा और स्वास्थ्य काफी प्रभावित होता है। ‘वॉटर ऑन व्हील्स’ कई-कई किलोमीटर दूर से पानी लाने वालों के लिए एक उम्मीद की किरण है। प्रस्तुत है दैनिक जागरण के अंशु सिंह की सिंथिया कोनिग से बातचीत पर आधारित लेख।
इमेजिन करें कि आप दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरें, साथ में ढेर सारा लगेज हो और बिना कनवेंस के वॉक करके अपने डेस्टिनेशन तक जाना पड़े। सोचिए कि आपकी क्या हालत होगी। इंडिया में कुछ ऐसे स्टेट्स हैं, जहां महिलाएं मीलों पैदल चलकर पीने का पानी लेकर आती हैं। ऐसी ही महिलाओं का दर्द समझा एक विदेशी महिला सिंथिया कोनिग ने, उन्होंने एक ऐसा वॉटर व्हील तैयार किया है, जिससे पानी लाने के लिए मटके की जरूरत नहीं होगी, सिर्फ एक बैरल ही काफी होगा, जिसे रोल करके महिलाएं 50 लीटर पानी घर ला सकती हैं। जबकि मटके में केवल 20 लीटर पानी ही आ पाता है। इससे हफ्ते में करीब वे 35 घंटे का टाइम बचा सकेंगी, जिसे दूसरी एक्टिविटीज में युटिलाइज कर सकेंगी।
चेंज्ड रूरल वूमन लाइफ
ट्रिनिटी कॉलेज से एंथ्रोपोलॉजी में बीए और फिर यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन से एमबीए करने वाली सिंथिया को ग्लोबल लेवल पर पीने के पानी का क्राइसिस हमेशा से परेशान करता था। उन्होंने सोशल एंटरप्रेन्योर के तौर पर करीब चार कॉन्टिनेंट्स में गरीब तबके के बीच काम किया। तभी अहसास हुआ कि साफ पीने का पानी लाने के लिए डेवलपिंग कंट्रीज की महिलाओं को कितना एफर्ट और पेन लेना पड़ता है, जबकि इस टाइम को वे दूसरे क्रिएटिव या प्रोडक्टिव कामों में लगा सकती हैं। इन्हीं सब ख्यालों के साथ उन्होंने वेलो सोशल वेंचर की शुरुआत की और फिर इंडिया में इसका पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च किया। वेलो की सीईओ सिंथिया कोनिग कहती हैं, हमारी मैनेजमेंट टीम ने लोकल एरियाज की सोशल प्रॉब्लम्स को समझा और एक ऐसी टीम तैयार की, जो वॉटर व्हील के कॉन्सेप्ट को इंप्लीमेंट करते हुए उसे एक इनोवेटिव बिज़नेस प्लान के तौर पर स्टैब्लिश कर सके। उनके मुताबिक वॉटर व्हील को जिस तरह से री-इनवेंट किया गया है, उससे यह एक इनकम जेनरेटिंग टूल बन सकता है, यानी इसकी मदद से एक फैमिली की फाइनेंशियल कंडीशन इंप्रूव हो सकती है, गरीबी मिट सकती है।
9 महीने में डिजाइनिंग
वेलो की बिजनेस डेवलपमेंट एंड सोशल इंपैक्ट मैनेजर श्रुति साधुजन ने बताया कि इंडियन कंडीशंस को देखते हुए वॉटर व्हील का प्रोटोटाइप तैयार करने में करीब नौ महीने से ज्यादा का वक्त लगा। उनकी टीम ने राजस्थान और देश के दूसरे हिस्सों में घंटों एक्सपर्ट्स के साथ बात की। करीब 1500 कम्युनिटी मेंबर्स का इंटरव्यू लिया। फिर जाकर वॉटर व्हील का प्रोटोटाइप तैयार हो सका, जो इंडियन लाइफस्टाइल और नीड्स को सूट करता हो। इसमें सैन फ्रांसिस्को बेस्ड कैटापुल्ट डिजाइंस ने भी हेल्प किया है।
बजट में वॉटर व्हील
वॉटर व्हील 50 लीटर का एक ड्रम है, जिसे रोल किया जा सकता है। राजस्थान के सैंडी या रफ-रॉकी टेरेन में इसे कैरी करना कनवीनियंट है। इसमें रखा पानी हाइजीनिक होता है। इन सबके अलावा यह बजट में भी है यानी कंप्लीट अफोर्डेबल। वॉटर व्हील की कीमत साढ़े सात सौ रुपये से शुरू होती है।
क्लीन वॉटर अवेयरनेस
श्रुति बताती हैं कि वेलो एक हाइब्रिड प्रॉफिट और नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन है, जो वॉटर व्हील की सेल के जरिए रेवेन्यू जेनरेट करना चाहती है और साथ ही ग्लोबल लेवल पर क्लीन वॉटर को लेकर अवेयरनेस भी पैदा करना चाहती है। श्रुति के मुताबिक इंडिया में वेलो का पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है और राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और एम.पी. में इसके यूनिट्स हैं।
सर्च फॉर पार्टनर
फिलहाल वेलो इंडिया में ऐसे एनजीओ और सीएसआर की तलाश में है, जिनके साथ पार्टनरशिप कर वॉटर व्हील को जरूरतमंद पॉपुलेशन तक पहुंचाया जा सके। इसके अलावा, वेलो वॉटर व्हील की तरह रूरल इंडिया के लिए नए मल्टीफंक्शनल इनोवेशंस पर काम कर रही है, जो उन्हें स्टैंडर्ड लाइफ दे सकें।