तालिका-1 - क्षेत्रवार प्रस्तावित निवेश
क्षेत्र | ग्यारहवीं योजना (प्रस्तावित निवेश) | ||
| $ करोड़
| करोड़ डॉलर ($ 40/ डॉलर के आधार पर)
| अंश% |
विद्युत (एनसीई सहित)* | 6,66,525 | 16663.13 | 32.42 |
सड़कें एवं पुल | 3,14,152 | 7853.80 | 15.28 |
दूरसंचार | 2,58,439 | 6460.98 | 12.57 |
रेल्वे (एमआरटीएस सहित | 2,61,808 | 6545.20 | 12.73 |
सिंचाई (वाटरशेड सहित) | 2,53,301 | 6332.53 | 12.32 |
जलप्रदाय एवं स्वच्छता | 1,43,730 | 3593.25 | 6.99 |
बंदरगाह | 87,995 | 2199.88 | 4.28 |
हवाई अड्डे | 30,968 | 774.20 | 1.51 |
भण्डारण | 22,378 | 559.45 | 1.09 |
गैस | 16,855 | 421.38 | 0.82 |
योग | 20,56,150 | 51403.75 | 100.00 |
तालिका-2, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र का निवेश
क्षेत्र | दसवीं योजना (प्रस्तावित खर्च) | कुल ग्यारहवीं योजना | अंश% |
केन्द्र सरकार | 13,617 | 24,759 | 9.77 |
राज्य सरकार | 97,886 | 2,28,543 | 90.23 |
कुल सिंचाई (वाटरशेड सहित) | 1,11,503 | 2,53,307 | 100.00 |
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|
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केन्द्र सरकार | 42,316 | 42,003 | 29.22 |
राज्य सरकार | 21,465 | 96,306 | 67.00 |
निजी क्षेत्र | 1,022 | 5,421 | 3.77 |
कुल जलप्रदाय एवं स्वच्छता | 64,803 | 1,43,730 | 100.00 |
‘‘यह जानते हुए कि अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा तेज वृद्धि और समग्र विकास में महत्त्वपूर्ण बाधा है, योजना काल में बुनियादी ढाँचे के कुल खर्च के बढ़ने का अनुमान लगाया गया है जो जीडीपी का लगभग 7.65% है। योजना में उपयोग की गई विनिमय दर ($ 40 प्रति डॉलर) के हिसाब से यह धनराशि कुल 515 अरब डॉलर होती है जिसमें से 155 अरब डॉलर या 30% निजी क्षेत्र से आने की संभावना है। ग्यारहवीं योजना विश्व की अर्थव्यवस्था में मंदी की एक खतरे के रूप में पहचान करती है। यह मंदी अब वास्तविक रूप में आ चुकी है और वृद्धि तथा निवेश के संशोधित अनुमान नीचे गिर गए हैं।’’22
वैश्विक मंदी के बावजूद योजना आयोग सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के निवेश को लेकर आशावादी23 है-
‘‘ग्यारहवीं योजना में बुनियादी ढाँचे के लिए कुल अनुमानित निवेश में सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र की भागीदारी क्रमश 70% और 30% होगी, जबकि दसवीं योजना में यह निवेश क्रमशः 82% और 18% था। हालांकि, यदि हम दसवीं योजना की तुलना में ग्यारहवीं योजना के खर्च की बढ़ोत्तरी पर ध्यान दे तो इस बढ़ोत्तरी का 38.3% निजी क्षेत्र के निवेश से आने की संभावना है और कुल खर्च में निजी क्षेत्र का अंश 18.5% से बढ़कर 29.7% हो जायेगा।’’ इसमें आगे कहा गया है कि ‘‘अगर यह प्रयास सफल रहते हैं तो भारत जन-निजी भागीदारी के बहुत बड़े कार्यक्रम का संचालन करेगा’’।24
इन परियोजनाओं में शहरी क्षेत्र के विकास के लिए जो क्षेत्र शामिल किए गए हैं वे बिजली, सड़क, शहरी यातायात, जलप्रदाय, मल निकासी, ठोस अपशिष्ठ प्रबंधन और दूसरी भौतिक बुनियादी ढाँचे से संबंधित परियोजनाएँ हैं।25 ये क्षेत्र वे हैं जो वर्तमान में कम कार्यक्षमता के कारण उत्पन्न समस्याओं को और कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए आवश्यक संसाधनों की प्राप्ति में भी कठिनाईयाँ झेल रहे हैं। उदाहरणार्थ, विश्व बैंक की टिप्पणी कि ‘‘पिछले पाँच वर्षों में जब सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर औसतन 8% रही तब बिजली उत्पादन और वितरण में वृद्धि मात्र 4.9% प्रतिवर्ष रही। राष्ट्रीय और प्रांतीय राजमार्गों का जाल (नेटवर्क) यातायात की अप्रत्याशित माँग वृद्धि के साथ तालमेल बैठाने में असफल रहा हैः प्रान्तीय राजमार्गो में मात्र 30% दो लेन वाले हैं, 50% से अधिक की हालत बहुत खस्ता है........ केवल आधी आबादी को शुद्ध पेयजल उपलब्ध है, एक तिहाई से भी कम लोगों को स्वच्छता सुविधाएँ प्राप्त हैं और भारत के 6 लाख गाँवों में से 40% सड़कों से जुड़े हुए नहीं हैं’’।26
मौजूदा चलन और अनुमान यह सुझाते हैं कि भारत सरकार और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान (आईएफआई) बुनियादी ढाँचा विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु पीपीपी के माध्यम से निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना चाहते हैं।
परंतु पीपीपी द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में कई कठिन प्रश्न पूछे जाने की आवश्यकता है। क्या विकासशील देशों की अधिक जोखिम वाली परियोजनाओं में निजी क्षेत्र रुचि लेगा और निवेश करना चाहेगा? क्या सरकारें पीपीपी के संबंध में आने वाली जटिल तकनीकी, आर्थिक और ढाँचागत समस्याओं को सुलझाने के लिए तैयार है? और, पानी तथा स्वच्छता जैसे क्षेत्रों से जुड़े व्यापक अभिशासकीय और सामाजिक सरोकारों का होगा?बाद के कुछ खण्डों में हम इन समस्याओं पर विचार करेंगें।
फिलवक्त हम देखेंगें कि कछु एजेसियों ने पीपीपी की किस पक्रार व्याख्या की है।