प्लांटीबॉडी जैवप्रौद्योगिकी अनुसन्धान की नई दिशा

Submitted by Hindi on Mon, 12/11/2017 - 11:48
Source
विज्ञान प्रगति, दिसम्बर 2017

शायद बहुत कम लोगों ने ही प्लांटीबॉडी का नाम सुना होगा। प्लांटीबॉडी पादप द्वारा निर्मित एंटीबॉडी है। साधारणतः सामान्य पादप एंटीबॉडी का निर्माण नहीं करते हैं। प्लांटीबॉडी का निर्माण ट्रांसजेनिक (जी.एम.) पादप के द्वारा होता है। हम सभी जानते हैं एंटीबॉडी एक प्रकार की ग्लाइकोप्रोटीन होती है, जो हम मनुष्यों एवं अन्य जानवरों में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का मुख्य भाग है। जैव प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत रिकॉम्बिनेन्ट डी.एन.ए. टेक्नोलॉजी (आर.डी.टी.) के माध्यम से एंटीबॉडी उत्पन्न करने वाले जीन को पौधों में स्थानान्तरित करना सम्भव हो सका है। ऐसे पौधे जो वांछित जीन के प्रभावों को प्रदर्शित करते हैं, ‘ट्रांसजेनिक पादप’ कहे जाते हैं और स्थानान्तरित जीन को ‘ट्रांसजीन’ कहा जाता है। सर्वप्रथम 1989 में तम्बाकू के पौधे में चूहे, एवं खरगोश के जीनों को डाला गया और कैरोआरएक्स (CaroRx) का उत्पादन किया गया जिससे जैव प्रौद्योगिकी की विकास एवं अनुसन्धान में एक नई विमा का विकास हुआ। शब्द प्लांटीबॉडी एवं इसकी संकल्पना संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित बायोटेक कम्पनी बायोलेक्स थेरोप्यूटिक्स इन्कॉर्पोरेशन के द्वारा दिया गया।

पौधों और फसल की प्लांटीबॉडी

सामान्य एंटीबॉडी एवं पादप एंटीबॉडी में अन्तर


सामान्य एंटीबॉडी हमारे शरीर एवं अन्य जानवरों में एंटीजन के प्रभाव से बनते हैं। ये एंटीजन कुछ भी हो सकते हैं, जो हमारी इम्यून सिस्टम के विरुद्ध कार्य करते हैं। मनुष्यों में सामान्य एंटीबॉडी पाँच प्रकार के होते हैं- ये हैं आई.जी.एम., आई.जी.जी., आई.जी.डी., आई.जी.ए. एवं आई.जी.ई.। ये एंटीबॉडी हमें रोगकारक सूक्ष्मजीवों से बचाते हैं जैसे- बैक्टीरिया, वायरस, फंगस इत्यादि। लेकिन यही एंटीबॉडी पौधों में बनने लगे तो ऐसे एंटीबॉडी को प्लांटीबॉडी कहते हैं। पौधों में वांछित एंटीबॉडी ट्रांसजीन को वेक्टर के माध्यम से पौधों में डाला जाता है। ट्रांसजेनिक पादप से कई प्रकार के उत्पाद एवं प्रोटीन का निर्माण करना सम्भव है। लेकिन उनमें से एंटीबॉडी (ग्लाइकोप्रोटीन) का निर्माण सम्भव है। पादप एंटीबॉडी एवं सामान्य एंटीबॉडी में ज्यादा का अन्तर नहीं होता है।

प्लांटीबॉडी उत्पादन के प्रमुख कारण


1. रोग कारक सूक्ष्मजीवों से होने वाली बीमारियों को दूर करने में।
2. सामान्य एंटीबॉडी उत्पादन में लगी कीमत को कम करने में।
3. कैंसर के उपचार में।
4. रोगप्रतिरोधक एवं कीटप्रतिरोधक फसलों के निर्माण में।
5. इबोला बीमारी के इबोला विषाणुओं के प्रभाव को कम करने में।
6. अन्य कृषि सम्बन्धी समस्याओं को दूर करने में।

पौधों का ही चुनाव क्यों?


अब तक हम सब यही जानते हैं कि पेड़-पौधे हमें ऑक्सीजन, फल, फूल, जलावन, औषधियाँ, छाया इत्यादि प्रदान करते हैं। लेकिन पौधों को अब ग्रीन बायोरिएक्टर की तरह प्रयोग करना अब आसान हो गया है। इस जैव रिएक्टर के माध्यम से औद्योगिक स्तर पर प्रोटीन एवं अन्य वांछित उत्पादों (सेकेन्डरी मेटाबोलाइट) का उत्पादन सम्भव है। इस समय एंटीबॉडी एवं प्रोटीन का उत्पादन हाइब्रिडोमा टेक्नोलॉजी एवं ट्रान्सजेनिक जानवरों के माध्यम से होता आ रहा है। इस माध्यम से प्रोटीन एवं एंटीबॉडी के निर्माण में लगने वाले संसाधनों का खर्च ज्यादा होता है। लेकिन अगर टान्सजीन (एंटीबॉडी या प्रोटीन) को प्लास्टिड या क्रोमोसोमल डी.एन.ए. में स्थानान्तरित कर दें तो जीन का प्रभाव अभिव्यक्ति होता है। पादप, जीवाणु से लेकर उच्च स्तर के जीवों के जीन को प्रभावशाली बनाने में सक्षम है। इसके अलावा कुछ प्रमुख कारण भी हैं।

1. पेड़-पौधे खुले वातावरण में वृद्धि करते हैं एवं मिट्टी सबस्ट्रेट की तरह कार्य करती है।
2. पादप वातावरण के हिसाब से स्वयं को नियंत्रित कर लेता है।
3. पादप पर सूक्ष्मजीवों के संक्रमण से प्लांटीबॉडी की संरचना में बदलाव की सम्भावना कम होती है।
4. जितने ज्यादा पौधों की बायोमास होगी, वांछित प्लांटीबॉडी का निर्माण ज्यादा होने की सम्भावना होगी।
5. बिजली एवं अन्य संसाधनों की आवश्यकता पर खर्च कम आएगी।

क्योंकि पौधे खुले वातावरण में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करता है।

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प्लांटीबॉडी के उपयोग


प्लांटीबॉडी के निर्माण से कई प्रकार की समस्याओं को दूर करने की सम्भावना है, मुख्यतः प्लांटीबॉडी के दो प्रमुख उपयोग हैं :
प्लांटीबॉडी के निर्माण से कई प्रकार की समस्याओं को दूर करने की सम्भावनाएँ हैं। मुख्यतः प्लांटीबॉडी के दो मुख्य उपयोग हैं-

1. एक्स-प्लांटा उपयोग (Ex-Planta Application) - इसमें प्लांटीबॉडी का उपयोग मनुष्यों एवं अन्य जानवरों के कई तरह की सूक्ष्म जीवों से होने वाली रोगों की पहचान एवं इलाज से है।

2. इन-प्लांटा उपयोग (In-Planta Application) - इसमें प्लांटीबॉडी का उपयोग स्वयं पादप के लिये होता है। जैसे पौधों को रोगप्रतिरोधक एवं कीट प्रतिरोधक का बनना। बहुत सारे विषाणु, जीवाणु, फंजाई, नीमेटोड, कीट, खेतों में लगे फसलों को बर्बाद कर आर्थिक नुकसान पहुँचाते हैं। इन आर्थिक हानियों से बचने के लिये प्लांटीबॉडी का उपयोग करना इन प्लांटा उपयोग कहलाता है। ऐसे प्रक्रिया जिनमें पौधों और फसल को प्लांटीबॉडी का निर्माण कर प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत कर लेता है इम्युनोमोडुलेशन (Immunomodulation) कहलाता है।

प्लांटीबॉडी - अनुसन्धान एवं विकास की वर्तमान स्थिति


इस समय विश्व की बड़ी-बड़ी फार्मास्यूटिकल कम्पनियाँ एवं रिसर्च इंस्टीट्यूट प्लांटीबॉडी के निर्माण में प्रयासरत हैं, इन प्लांटीबॉडी का प्रयोग कई असाध्य बीमारियों जैसे कैंसर पर हो रहे हैं और प्रयास यह भी है कि विषाणुजनित बीमारियाँ खत्म हो।

विश्व की कुछ प्रमुख कम्पनियाँ


1. बायोलोक्स थेराप्यूटिक्स इन्कॉर्पोरेशन
2. प्लानेट बायोटेक्नोलॉजी इन्कॉर्पोरेशन
3. मेप बायोफार्मास्यूटिकल्स इन्कॉर्पोरेशन
4. लीफ बायो
5. आइकॉन जेनेटिक्स

इनमें से प्लेनेट बायोटेक्नोलॉजी विश्व की पहल कम्पनी है जिसने प्लांटीबॉडी का निर्माण किया है और CaroRxTm विश्व की पहली पादप द्वारा निर्मित प्लांटीबॉडी है जो डेंटल कैरिस रोग फैलाने वाले जीवाणु स्ट्रेप्टोकोकट्स म्यूटेंस को मारता है।

इस समय मेप बायोफार्मास्यूटिकल्स इन्कॉर्पोरेशन एवं लीफ बायो वर्ष 2016 से काफी अधिक चर्चे में रहे हैं। इन्हीं दो वैश्विक कम्पनियों ने इबोला रोग के विषाणुओं को खत्म करने एवं समाधान के लिये प्रभावशाली प्लांटीबॉडी का निर्माण किया है। उस प्लांटीबॉडी का नाम ‘जेडमैप’ है।

इस बात की पुष्टि एवं प्रमाण न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में वर्ष 2016 में छपी है। इबोला वायरस का खत्म करने वाला पहली दवा जेडमैप है।

प्लांटीबॉडी निर्माण एवं उपयोग के असीम खतरे


प्लांटीबॉडी के निर्माण से असाध्य रोगों से लड़ने के लिये जितने सम्भावनाएँ उससे ज्यादा खतरे भी हैं। ऐसे विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रांसजेनिक पौधे भी पॉलेनग्रेन बनाते हैं, फूल बनते हैं लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ट्रांसजेनिक पादप वाइल्ड पादप को जेनेटिकली संक्रमित कर सकते हैं। जीन का स्थानान्तरण ट्रांसजेनिक से वाइल्ड पादप में कई माध्यमों से सम्भव है। अतः इनसे पर्यावरणीय समस्याओं से सम्बन्धित मुद्दे उठ सकते हैं और खतरे भी हैं। अभी तक दुनिया का कोई भी प्लांटीबॉडी औद्योगिक स्तर पर खरी नहीं उतरी है। इनके पीछे कई कारण हैं। हालांकि जेडमैप, प्लांटीबॉडी इबोला वायरस पर असरदार प्रभावशाली साबित हुआ है।

सामान्य एंटीबॉडी एवं पादप एंटीबॉडी में थोड़ी भिन्नता जरूर है। यह भिन्नता मेटाबोलिक पाथवे में कार्बोहाइड्रेट संघटक के कारण है। अगर सामान्य व्यक्ति में प्लांटीबॉडी का इस्तेमाल करें तो प्रतिकुल असर हो सकता है क्योंकि प्लांटीबॉडी एंटीजन की तरह व्यवहार कर सकता है जो हमारे लिये घातक साबित हो सकता है। फिलहाल यह किसी को पता नहीं कि कितना असर कर सकता है। वैज्ञानिक इस समस्याओं को सुधार करने में लगे हुए हैं। विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी में सुधार से कई तरह की समस्याओं को दूर किया जा सकता है। वह दिन दूर नहीं जब औद्योगिक स्तर या उच्च स्तर पर प्लांटीबॉडी का निर्माण होने लगेंगे और बाजारों में मिलेंगे एवं काफी सस्ती होगी।

लेखक परिचय


श्री सिम्पल कुमार सुमन
ग्राम-जानकी नगर, अभयराम चकलाए, वार्ड-15, जिला-पूर्णिया 854 102 (बिहार), मो. : 07903178128; ई-मेल : simpalsuman14@gmail.com