प्लूटोनियम संकेत, 'प्लू' Pu, परमाणु क्रमांक 94, द्रव्यमान संख्या 239, का आविष्कार परमाणु बम तैयार करने के समय 1940 ई. में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की प्रयोगशालाओं में हुआ था। प्लूटो नामक ग्रह के नाम पर इसका नाम प्लूटोनियम (Plutonium) पड़ा। प्लूटोनियम के कई समस्थानिक हैं। सभी संश्लेषण से प्राप्त हुए हैं और रेडियोऐक्टिव हाते हैं। समस्थानिकों की द्रव्यमान संख्या उनकी प्राप्ति की विधि पर निर्भर करती है। सबसे अधिक समस्थानिक की द्रव्यमान संख्या 239 है। सबसे पहले जो समस्थानिम आवर्तसारणी के उस समूह में आता है जिस समूह में यूरेनियम और नेप्चूनियम हैं।
प्लूटोनियम के शुद्ध रासायनिक यौगिक की प्राप्ति 1942 ई. में हुई थी। यह पहला धात्विक तत्व है जो केवी संश्लेषण से पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हुआ था। आज भी इसकी प्राप्ति नाभिकीय रिऐक्टर में ही होती है। प्लूटानियम बड़ी अल्प मात्रा में यूरेनियम अयस्कों, पिचब्लेंड और मोनेज़ाइट, में पाया जाता है। यूरेनियम 238 पर न्यूट्रॉन द्वारा बम वर्षा से नयूट्रॉन का अवशोषण कर यह बनता है। ये न्यूट्रॉन यूरेनियम के स्वत: विखंडन से उत्सर्जित होते हैं। यह क्रिया नाभिकीय रिऐक्टर में संपन्न होती है। यूरेनियम 238 कुछ न्यूट्रॉन का अवशोषण कर यूरेनियम 239 बनता है। यह दो उत्तरोत्तर बीटाकणों के उत्सर्जन से प्लूटोनियम 239 बनाता है। प्लूटोनियम 239 के बनने पर इसे रासायनिक विधि से अन्य तत्वों से पृथक् करते हैं। यह इतनी अधिक मात्रा में प्राप्त हो गया है कि इसके यौगिकों का विस्तार से अध्ययन हुआ है।
प्लूटोनियम के अनेक यौगिक प्राप्त हुए हैं। इसके तीन ऑक्साइड, प्लूटोनियम मोनोक्साइड, प्लूटोनियम सेस्क्विऑक्साइड और प्लूटोनियम डाइऑक्सइड महत्व के हैं। इन ऑक्साइडों के सहयोग से ही प्लूटोनियम के हैलाइड और आक्सीहैलाइड प्राप्त हुए हैं। प्लूटोनियम ट्राइफ्लोराइड को छोड़कर अन्य सब हैलाइड आर्द्रताग्राही होते हैं। प्लूटोनिय के कार्बाइड, नाइट्राइड, सिलिसइड और सल्फाइड भी प्राप्त हुए हैं। ये बहुत ऊँचे ताप पर भी स्थायी होते हैं। प्लूटोनियम के यौगिकों की संख्या आज बहुत अधिक बढ़ गई है और इनके गुण का भी अध्ययन बड़े विस्तार से हुआ है।
प्लूटोनियम के उपयोग - परमाणु ऊर्जा में प्लूटोनियम 239 काम आता हे। नाभिक रिऐक्टर में यह ईधंन का कार्य करता है। ऐसे रिऐक्टर यूरेनियम 238 के साथ मिलकर ऊर्ज उत्पन्न करते हैं और साथ साथ न्यूट्रॉन के अवशोषण से प्लूटोनियम 239 भी बनता है। प्लूटोनियम 238 के विखंडन से जो ऊर्जा प्राप्त होती है वह ऊर्जा पूर्ण विखंडन में प्रति पाउंड 10,000,000 किलोवाट घंटा ऊष्मा ऊर्जा के बराबर होती है। इस ऊर्जा को ऊष्मा के रूप में, या विद्युत् के रूप में, परिणत कर सकते हैं। इससे समस्त ऊर्जा के 20 से 30 प्रतिशत तक की उपलब्धि हो सकती है। ऊर्जा की उपलब्धि वस्तुत: यंत्र की दक्षता पर निर्भर करती है। (फूलदेव सहाय वर्मा)
प्लूटोनियम के शुद्ध रासायनिक यौगिक की प्राप्ति 1942 ई. में हुई थी। यह पहला धात्विक तत्व है जो केवी संश्लेषण से पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हुआ था। आज भी इसकी प्राप्ति नाभिकीय रिऐक्टर में ही होती है। प्लूटानियम बड़ी अल्प मात्रा में यूरेनियम अयस्कों, पिचब्लेंड और मोनेज़ाइट, में पाया जाता है। यूरेनियम 238 पर न्यूट्रॉन द्वारा बम वर्षा से नयूट्रॉन का अवशोषण कर यह बनता है। ये न्यूट्रॉन यूरेनियम के स्वत: विखंडन से उत्सर्जित होते हैं। यह क्रिया नाभिकीय रिऐक्टर में संपन्न होती है। यूरेनियम 238 कुछ न्यूट्रॉन का अवशोषण कर यूरेनियम 239 बनता है। यह दो उत्तरोत्तर बीटाकणों के उत्सर्जन से प्लूटोनियम 239 बनाता है। प्लूटोनियम 239 के बनने पर इसे रासायनिक विधि से अन्य तत्वों से पृथक् करते हैं। यह इतनी अधिक मात्रा में प्राप्त हो गया है कि इसके यौगिकों का विस्तार से अध्ययन हुआ है।
प्लूटोनियम के अनेक यौगिक प्राप्त हुए हैं। इसके तीन ऑक्साइड, प्लूटोनियम मोनोक्साइड, प्लूटोनियम सेस्क्विऑक्साइड और प्लूटोनियम डाइऑक्सइड महत्व के हैं। इन ऑक्साइडों के सहयोग से ही प्लूटोनियम के हैलाइड और आक्सीहैलाइड प्राप्त हुए हैं। प्लूटोनियम ट्राइफ्लोराइड को छोड़कर अन्य सब हैलाइड आर्द्रताग्राही होते हैं। प्लूटोनिय के कार्बाइड, नाइट्राइड, सिलिसइड और सल्फाइड भी प्राप्त हुए हैं। ये बहुत ऊँचे ताप पर भी स्थायी होते हैं। प्लूटोनियम के यौगिकों की संख्या आज बहुत अधिक बढ़ गई है और इनके गुण का भी अध्ययन बड़े विस्तार से हुआ है।
प्लूटोनियम के उपयोग - परमाणु ऊर्जा में प्लूटोनियम 239 काम आता हे। नाभिक रिऐक्टर में यह ईधंन का कार्य करता है। ऐसे रिऐक्टर यूरेनियम 238 के साथ मिलकर ऊर्ज उत्पन्न करते हैं और साथ साथ न्यूट्रॉन के अवशोषण से प्लूटोनियम 239 भी बनता है। प्लूटोनियम 238 के विखंडन से जो ऊर्जा प्राप्त होती है वह ऊर्जा पूर्ण विखंडन में प्रति पाउंड 10,000,000 किलोवाट घंटा ऊष्मा ऊर्जा के बराबर होती है। इस ऊर्जा को ऊष्मा के रूप में, या विद्युत् के रूप में, परिणत कर सकते हैं। इससे समस्त ऊर्जा के 20 से 30 प्रतिशत तक की उपलब्धि हो सकती है। ऊर्जा की उपलब्धि वस्तुत: यंत्र की दक्षता पर निर्भर करती है। (फूलदेव सहाय वर्मा)
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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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