पंजाब

Submitted by Hindi on Sat, 08/20/2011 - 14:52
पंजाब स्वतंत्रताप्राप्ति के पहले भारत का एक प्रांत था जिासमें पूर्वी और पश्चिमी पंजाब सम्मिलित थे। पंजाब 'पंज' और 'आब' दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ पाँच नदियोंवाला प्रदेश है। इस प्रदेश में जेहलम, चनाव, व्यास, रावी एवं सतलुज ये पाँच नदियाँ बहती थीं। ये नदियाँ हिमालय से निकलकर एवं सिंध नदी में मिलकर फारस की खाड़ी में गिरती हैं। पहले पंजाब में 35 रिसायतें थीं जिनमें बहावलपुर रियासत सबसे बड़ी थी। सन्‌ 1947 में भारत के विभाजन के पूर्व पंजाब पाँच विभागों अंबाला, जालंधर, लाहौर, रावलपिंडी एवं मुल्तान में बँटा था। स्वतंत्रताप्राप्ति के समय इसके विभाजन से पाकिस्तन बना तथा अंबाला और जालंघर विभाग भारत में आए एवं रावलपिंडी तथा मुल्तान पाकिस्तान में चले गए। लाहौर विभाग का कुछ भाग भारत में आया, तथा कुछ भाग पाकिस्तान में गया। इस प्रकार पंजाब दो भागों में, पूर्वी पंजाब (भारत) तथा पश्चिमी पंजाब (पश्चिमी पाकिस्तान) में, बँट गया।

पंजाब  स्थिति : 31 उ.अ. तथा 76 पू.दे.। यह भारत का एक राज्य है। इसके उत्तर-पूर्वी भाग में हिमालय की शिवालिक श्रेणियों का क्रम फैला है, जो दिल्ली में यमुना के पास जाकर समाप्त हो जाता है। पश्चिम का मैदान सुलैमान पर्वत तक जाता है जब कि उत्तर-पश्चिमी मैदान नमक की पहाड़ी द्वारा अलग होता है। नदियों के जल द्वारा यहाँ का रेतीला मैदान मुख्यत: गेहूँ उत्पादक क्षेत्र में बदल जाता है। यहाँ पर जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। इस राज्य का क्षेत्रफल 47,205 वर्ग मील है। इसके पूर्व में उत्तर प्रदेश तथा हिमाचल प्रदेश, उत्तर में कश्मीर, दक्षिण में राजस्थान एवं पश्चिम में पश्चिमी पाकिस्तान स्थित है। यह राज्य 19 जिलों में बँटा है। 26 जनवरी, सन्‌ 1950 को भारत सरकार ने पूर्वी पंजाब से बदलकर इसका नाम 'पंजाब' कर दिया है। प्राकृतिक आधार पर इसे निम्नलिखित तीन भागों मं बाँटा जा सकता है :

1. उत्तरी पर्वतीय भाग  बृहत्‌, लघु एवं बाह्य हिमालय की श्रेणियाँ इस भाग में समांतर पूर्व से पश्चिम को फैली हैं। इनके पूर्व से पश्चिम को फैली हैं। इनके पूर्व में कुछ सँकरी घाटियाँ तथा निचले मैदान भी हैं। यह भाग 2,000 तक ऊँचा है। इसकी ढाल उत्तर से दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम की ओर है। यह प्रदेश ऊँचा नीचा है। यहाँ भूक्षरण के कारण बहुत सी गहरी घाटियाँ बन गई हैं।

2. तलहटी प्रदेश  पूर्व में दिल्ली से लेकर पश्चिम में रावी तक फैला एक सँकरा मैदानी प्रदेश है। यह भाग उपजाऊ है। इसका विस्तार अंबाला, होशियारपुर, जालंधर, अमृतसर तथा लुधियाना आदि जिलों में है।

3. दक्षिणी मैदान  यह भाग गंगा-सिंध के मैदान का उत्तरी पश्चिमी भाग है। इसका विस्तार यमुना से सतुलुज घाटी तक है। यह मैदान समतल है। इसके पूर्वी भाग में 25  तथा पश्चिमी भाग में 20  तक वर्षा होती है।

जलवायु 


यहाँ की जलवायु शुष्क तथा आकाश साफ रहता है। गरमियों में यहाँ गरमी तथा जाड़ों में ठंड पड़ा करती है। जनवरी महीने में यहाँ पर कुहरा पड़ता है। मानसून का प्रभाव मध्य जून से सितंबर तक रहता है। वर्षा बंगाल की खाड़ी के मानसून से (पहाड़ी क्षेत्र में 32  से 36  तक) होती है। पूर्व में वर्षा का औसत 14  से 20  तक रहता है तथा पश्चिम में केवल 5  से 10  तक रहता है। शीतकाल में यहाँ पर कुछ शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात उत्तर-पश्चिम की ओर से आते हैं, इनसे पर्वतों पर तुषारपात तथा मैदानों में थोड़ी वर्षा हो जाती है।

कृषि 


यह कृषिप्रधान राज्य है, यहाँ की अधिकांश भूमि जलोढ़ एवं बलुई जलोढ़ है। यहाँ के 66 प्रति शत लोग कृषि में संलग्न हैं। कृषि की दृष्टि से पंजाब संपूर्ण भारत में प्रमुख है। यहाँ के जाट लोग बड़े परिश्रमी होते हैं। अन्य राज्यों की भाँति यहाँ भी साल में दो फसरलें उगाई जाती हैं1 जाड़े में रबी का फसलों में गेहूँ, जौ, चना, तिलहन, सब्जियाँ एवं तंबाकू प्रमुख हैं तथा गरमी की खरीफ की फसलों में धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, दलहन, कपास, गन्ना आदि प्रमुख हैं। गेहूँ बड़ी मात्रा में राज्य के बाहर भी भेजा जाता है। काबुल के अंगूर से घटिया किस्म का अंगूर यहाँ की घाटियों में उगाया जाता है। पहाड़ी ढालों पर चाय एवं फलों के बगीचे हैं। यहाँ के आर्द्र तथा उष्ण भागों में धान पैदा किया जाता है। काँगड़ा की घाटी चाय तथा कुलू की घाटी फलों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।

पशुपालन 


यहाँ पर पशुपालन उद्योग प्रमुख है अत: दूध की यहाँ अधिकता रहती है। यहाँ भैंस की अच्छी दुधारू किस्में मिलती हैं। गाएँ भी यहाँ अच्छी किस्म की होती हैं। ग्वालों का काम जाट लोग अधिक करते हैं। शुष्क भागों में ऊँट तथा पर्वतीय ढालों पर भेड़ बकरियाँ पाली जाती हैं।

उद्योग तथा व्यापार 


यहाँ के उद्योगों में काफी अधिक उन्नति का श्रेय यहाँ के सिख लोगों को है। यहाँ के उद्योग में ऊनी कपड़े, गलीचे, शाल, रेशमी कपड़े, गहने बनाना, लकड़ी के काम, शस्त्र, वाद्ययंत्र आदि का निर्माण प्रमुख हैं। कुछ विशेष स्थानों पर विशेष वस्तुएँ बनाई जाती है; जैसे अमृतसर में ऊनी कपड़े की मिलें तथा लुधियाना में अन्य मशीनरी का काम अधिक होता है। जालंधर हॉकी, गेंद, फुटबाल, बल्ले आदि खेल के समान बनाने के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ का व्यापार मुख्यतया कृषि द्वारा उत्पन्न वस्तुओं पर निर्भर हैं। बाहर जानेवाली वस्तुओं में गेहूँ का स्थान प्रथम तथा दालों एवं कपास का स्थान द्वितीय है। यहाँ पशुओं का व्यापार भी किया जाता है एवं ऊनी तथा सूती वस्त्रों का व्यापार भी पर्याप्त मात्रा में होता है।

सिंचाई 


वर्षा अनिश्चित होने के कारण सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। सिंचाई के लिए यहाँ नहरों आदि का उत्तम प्रबंध है। यहाँ की नहरें दो प्रकार की हैं, प्रथम सदावाहिनी नहरें एवं द्वितीय केवल आवश्यकता पड़ने पर चालू होनेवाली। गुरुदासपुर, जालंधर, लुधियाना और होशियारपुर में नलकूपों से सिंचाई की जाती है। भाखड़ा नंगल योजना पूर्ण हो जाने से सिंचाई की सुविधा अधिक हो गई है। यहाँ की नहर व्यवस्था विश्व में सबसे उत्तम समझी जाती है। कुएँ भी सिंचाई के प्रमुख साधन हैं।

यातायात 


यहाँ पर यातायात के साधनों का काफी विकास हुआ है। यहाँ के मुख्य नगर रेलों और सड़कों के द्वारा एक दूसरे से जुड़े है। यहाँ की मुख्य सड़क ग्रांड ट्रंक रोड है। सन्‌ 1962 में पक्की सड़कों की कुल लंबाई 6,762 मील थी एवं कच्ची सड़कों की लंबाई सन्‌ 1961 में 6,047 मील थी। यहाँ पर उत्तरी रेलवे अपनी सेवाएँ प्रदान करती है।

जनसंख्या 


यहाँ की जनसंख्या 2,03,06,812 (1961) थी। इसमें 1,08,91,576 पुरुष तथा 94,15,236 स्त्रियाँ थीं। यहाँ की जनसंख्या का घनत्व 430 मनुष्य प्रति वर्ग मील है। राज्य का जालंधर जिला सबसे घना तथा लाहुल सबसे विरल बस्तीवाला क्षेत्र है। यहाँ सिख धर्म का अधिक प्रचार है तथा अमृतसर इस धर्म का केंद्र और सबसे प्रमुख तीर्थस्थल है। यहाँ के प्रमुख नगर अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, गुडगाँव, रोहतक, हिसार, अंबाला, होशियारपुर, चंडीगढ़, पटियाला आदि हैं। यहाँ की राजकीय भाषाएँ हिंदी तथा पंजाबी हैं। हिंदी का यहाँ काफी प्रचार है।

जंगल 


यहाँ देवदार एवं शीशम के वृक्ष अधिक पाए जाते हैं जिनसे व्यापारिक महत्व की लकड़ी प्राप्त होती है। यहाँ के जंगलों से बांस, गोंद, चारा, लकड़ी, (टिंबर) एवं रेजिन आदि प्राप्त किया जाता है। सन्‌ 1961 में बन विभाग के अंतर्गत 5,815 वर्ग मील भूमि थी। (र.चं.दु.)

इतिहास 


प्रसिद्ध फ्रांसीसी पर्यटक बर्निए ने सन्‌ 1665 ई. के आरंभ में लाहौर से अपने देश को भेजे गए एक पत्र में लिखा था कि लाहौर 'पंजे-आब' (पंजाब) की राजधानी है। संभवत: उसका आशय लाहौर के सूबेदार के निवासस्थान से होगा। मुल्तान में दूसरा सूबेदार रहता था और पूर्वी पंजाब का शासन देहली से होता था। यद्यपि सन्‌ 1947 में पाकिस्तान के जन्म के साथ ही इस नाम की सार्थकता जाती रही, भारत की उत्तर-पश्चिम सीमा पर स्थित होने के कारण पंजाब के ऐतिहासिक एवं राजनीतिक महत्व में कमी नहीं हुई। इसकी भौगोलिक सीमाओं में समय समय पर हेर फेर होते रहे।

सिंधु घाटी की सभ्यता (लगभग 3000 ई.पू.) का एक प्रमुख केंद्र पंजाब में रावी नदी के तट पर हड़प्पा था। मैक्समूलर (Max Muller), वेबर (Weber) और मुहर (Muir) इत्यादि विद्वानों के मतानुसार ऋग्वेद के मंत्रों की रचना पंजाब में ही की गई थी। छठी शताब्दी ई.पू. में फारस के दारा ने पंजाब तथा सिंधु का बहुत सा भाग अपने अधिकार में कर लिया था। 327 ई. पू. में यूनानी सम्राट् सिकंदर ने हिंदूकुश पार किया, और तक्षशिला के राजा आंभी को मित्र बनाकर पोरस को पराजित किया। 11वीं शताब्दी के प्रारंभ में महमूद गजनवी ने पंजाब पर कोई आक्रमण किए और लाहौर में अपना अड्डा स्थापित कर लिया। सन्‌ 1184 में लाहौर पर दूसरी बार आक्रमण कर उसने वहाँ के शासक खुसरु मलिक को उसके पुत्र सहित बंदी बना लिया और बाद में दोनों को मरवाकर लाहौर पर अपना अधिकार जमा लिया। 1526 में बाबर ने पानीपत के मैदान में इब्राहीम लोदी को हराकर मुगल साम्राज्य की नींव डाली। मुगलवंश की दो शताब्दियों के दौरान सिक्खों को भी उभरने पर अवसर मिला। 1738 के अंत में नादिरशाह ने पंजाब में प्रवेश किया और 1739 में दिल्ली तक का प्रदेश रौंद डाला। 1748 में पहली बार और उसके बाद कई बार अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण किया। इस बीच 1758 में रघुनाथराव ने लाहौर पर अधिकार कर लिया।

पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761) में मराठे दुर्रानी (अब्दाली) से पराजित हुए, अत: पंजाब में सिक्खों को 'मिसलों' के रूप में संगठित होने का अवसर मिल गया। रणजीतसिंह के नेतृत्व में उन्होंने 1799 में लाहौर ले लिया और पंजाब में सिक्ख राज्य की स्थापना करने में लग गए। 1809 ई. में हुई अमृतसर की संधि के अनुसार रणजीतसिंह ने अंग्रेजों को आश्वासन दिया कि दक्षिण में उसके राज्य की सीमा सतलज तक ही रहेगी। 1831 में रणजीसिंह और बैंटिक में रोपड़ में हुई भेंट में भी अंग्रेजों और सिक्खों के बीच मैत्री भाव बनाए रखने पर जोर दिया गया। उत्तर में सिक्ख राज्य की सीमा का विस्तार पेशावर तक बढ़ गया था। रणजीत सिंह का देहांत 1839 में हुआ। तत्पश्चात्‌ योग्य उत्तराधिकारियों के अभाव तथा स्वार्थपूर्ण राजनीतिक दलबंदी के कारण पंजाब की राजनीतिक स्थिति बिगड़ती गई। सिक्खों और अंग्रेजों में युद्ध छिड़ गया। 1846 में लाहौर की संधि हुई किंतु स्थिति में विशेष सुधार नहीं हुआ। कश्मीर तथा हिमालय के निकटवर्ती प्रदेशों पर राजा गुलाबसिंह का शासन रहा। मुल्तान के शासक मूलराज के पास भेजे गए दो अंग्रेज अधिकारी मार डाले गए। अंग्रेजों और सिक्खों में पुन: युद्ध छिड़ा जिसके परिणामस्वरूप 1849 में पंजाब अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया। 1847 के सिपाही विद्रोह में सिक्खों ने अंग्रेजी शासन का साथ दिया। 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ और देश के विभाजन में पंजाब के दो टुकड़े कर दिए गए। मुस्लिम बहुत पश्चिमी भाग पाकिस्तान में चला गया।

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अन्य स्रोतों से




संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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