पोलोनियम

Submitted by Hindi on Sat, 08/20/2011 - 11:54
पोलोनियम आर्वत सारणी के छठे मुख्य समूह का अंमि सदस्य है। यह अस्थिर रेडियोऐक्टिव गुणवाला तत्व है। इस कारण इसका कोई स्थिर समस्थानिक प्राप्त नहीं है। पोलोनियम के मुख्य समस्थानिक की द्रव्यमान संख्या 210 है, परंतु इसके 10 अन्य समस्थानिक भी ज्ञात हैं।

पोलोनियम का आविष्कार सन्‌ 1898 में पीरी (Pierre) एवं मेरी क्यूरी (Curie) के संयुक्त अनुसंधानों द्वारा हुआ। यूरेनियम और थोरियम के अयस्कों में रेडियोऐक्टिवता का गुण था, परंतु उसी समय यह भी ज्ञात हुआ कि इस अयस्कों में पूर्वानुमेय यूरेनियम और रेडियम की मात्रा से अधिक रेडियो ऐक्टिवता वर्तमान थी। इससे यह अनुमान हुआ कि इस अयस्कों में कई नया तत्व उपस्थित है, जिसमें उन तत्वों से कहीं अधिक रेडियोऐक्टिवता होनी चाहिए। इन्हीं विचारों से पथप्रदर्शन पाकर क्यूरी ने यूरेनियम अयस्क, पिचब्लेंड, का रासायनिक विश्लेषण प्रारंभ किया। उन्होंने इस क्रिया में रेडियो ऐक्टिवता की माप को विशेष महत्ता दी, जिसके द्वारा यह ज्ञात हुआ कि यूरेनियम के अतिरिक्त दो स्थानों पर रेडियोऐक्टिवता संकेंद्रित हुई  एक बिस्मथ सल्फाइड के अवक्षेप के साथ और दूसरी क्षारीय मुदा तत्वों के साथ। बिस्मथ सल्फाइड के अवक्षेप को एक नलिका में गरम करने पर रेडियोऐक्टिव भाग शीघ्र वाष्प बनकर शीतल स्थानों में जमा हो गया। इस भाग की रेडियोऐक्टिवता विशुद्ध यूरेनियम की अपेक्षा 400 गुना अधिक थी। यह रेडियोऐक्टिव पदार्थ एक नए तत्व का यौगिक था, जिसकी खोज की घोषणा पीरी एवं मेरी क्यूरी ने पैरिस की विज्ञान अकादमी की 18 जुलाई, 1898 ई. की बैठक में की थी। इसका नाम मेरी क्यूरी की जन्म भूमि पोलैंड के सम्मान में पोलोनियम रखा गया।

उपस्थिति  पोलोनियम तत्व रेडियोऐक्टिव अयस्कों में सूक्ष्म मात्रा में पाया जाता है। एक सहस्र किलोग्राम पिचब्लैंड अयस्क में लगभग 0.05 मिलीग्राम पोलोनियम उपस्थित होता है। पोलोनियम रेडियोऐक्टिव होने के कारण सदैव विघटित होकर अन्य तत्व बनाता रहता है, परंतु अयस्क में यूरेनियम विघटन श्रृंखला द्वारा कुछ मात्रा में नए पोलोनियम का निर्माण भी होता रहता है। इस कारण इस तत्व की एक स्थिर मात्रा सदैव अयस्क में रहती है। पिचब्लेंड अयस्क में 218, 214 और 210 द्रव्यमानवाले समस्थानिक मिलते हैं। थोरियम अयस्क में 216 और 212 द्रव्यमानवाले समस्थानिक रहते हैं। परंतु इनकी अर्ध-जीवन-अवधि बहुत कम होने के कारण इन्हें अलग नहीं किया जा सकता। केवल 210 द्रव्यमान संख्यावाला समस्थानिक यूरेनियम अयस्क से, अथवा रेडियम के पुराने नमूनों से, रासायनिक विधि द्वारा निकाला जा सकता है, क्योंकि उसकी अर्धजीवन अवधि 140 दिन है।

सामान्यत: पोलोनियम को रेडियो-लेड अथवा रेडियम की पुरानी नलिकाओं के धोवन द्वारा प्राप्त करते हैं। नलिकाओं को नाइट्रिक अथवा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल द्वारा धोकर प्राप्त विलयन में विद्युत्प्रवाह करने से, रजत अथवा निकेल विद्युत पर, पोलोनियम की परत जम जाती है। पोलोनियम को सीस पर ऐल्फा कण के आक्रमण और बिस्मथ पर प्रोटॉन के आक्रमण द्वारा, तत्वांतरण क्रिया से, भी बनाया जा सकता है। (रमेशचंद्र कपूर)

82पोलोनियम204  2ऐल्फाकण4  84पोलोनियम206  0न्यूट्रान1

[82 Pb204  2He4  84 Po206  20n1]

83 बिस्मथ209  1प्रोटान1  84पोलोनियम208  20न्यूट्रान1

83Bi209  1H1  84Po208  20n1

गुणधर्म  पोलोनियम का संकेत पो3 (Po), परमाणु संख्या 84, परमाणु भार (मुख्य समस्थानिक) 210, गलनांक 2540 सें. घनत्व 9.4 ग्रा. प्रति घ. सेंमी. तथा विद्युत्‌ प्रतिरोधकता 42 माइक्रोओह्म प्रति सेंमी. है।

इसके सभी ज्ञात समस्थानिकों की अर्धजीवन अवधि निम्नांकित हैं :

द्रव्यमान संख्या

अर्धजीवन अवधि

206

9 दिन

207

5.7 घंटे

208

3 वर्ष (लगभग)

210

140 दिन

211

5´ 10-3 सेकंड

212

3´ 10-7 सेकंड

213

4.2´ 10-6 सेकंड

214

1.5´ 10-4 सेकंड

215

1.8´ 10-3 सेकंड

216

0.158 सेकेंड

218

3.05 मिनट

पोलोनियम तत्व (210 द्रव्य संख्या) के तत्वांतरण द्वारा ऐल्फा कण स्वतंत्र होता है, जिसका वायु में परास (rage) सेंमी. है। इसके द्वारा वायुमंडल, में आयनीकरण हो जाता है।

पोलोनियम के नाइट्रिक अम्ल, ऐसीटिक अम्ल अथवा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के विलयन में यदि रजत, टेल्यूरियम की भाँति यह उभयधर्मी (amphoteric) तत्व है। बिस्मथ की भाँति यह उभयधर्मी (amphoteric) तत्व है। बिस्मथ की भाँति इसके सल्फाइड अमोनियम सल्फाइड में नहीं घुलते और हाइड्रोजन या सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) द्वारा अम्लीय विलयन से पोलोनियम का अवक्षेप नहीं होता है।

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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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