प्राकृतिक छंटा से छलकता जबलपुर

Submitted by Hindi on Fri, 08/12/2011 - 09:25
कुमारी अचरज
धुआंधार प्रपातधुआंधार प्रपातजबलपुर की मनोहारी प्राकृतिक सुन्दरता की वजह से 12शताब्दी में गोंड राजाओं की राजधानी रहा, उसके बाद कालाचूड़ी राज्य के हाथ रहा और अन्तत: इसे मराठाओं ने जीत लिया और तब तक उनके पास रहा जब तक कि ब्रिटिशर्स ने 1817 में उनसे ले न लिया। जबलपुर में ब्रिटिश काल के चिन्ह आज भी मौजूद हैं, कैन्टोनमेण्ट, उनके बंगले और अन्य ब्रिटिश कालीन इमारतें। जबलपुर विश्वप्रसिद्ध मार्बलरॉक्स के लिए प्रसिद्ध है, जो कि यहाँ से 23 किमी दूर भेड़ाघाट में हैं।

मार्बलरॉक्समार्बलरॉक्सनर्मदा के दोनों दूर तक ओर 100-100 फीट ऊंची ये संगमरमरी चट्टानें बहुत सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करती हैं। इस दृश्य के लिये कैप्टन जे फोरसिथ ने अपनी किताब हाई लैण्डस ऑफ सैण्ट्रल इंडिया में लिखा है कि ऐसा सुन्दर दृश्य देख आँखे थकती नहीं जब इन शफ्फाक चट्टानों से सूर्य की किरणें छनछन कर, टकरा कर पानी पर पडती हैं। इन सफेद चट्टानों की ऊँची नुकीली पंक्तियां नीले आकाश और गहरे नीले पानी के बीच अपनी रूपहली आभा लिए दूर तक दिखाई देती हैं। कहीं धूप, कहीं छांव का यह मोहक खेल और दूर तक फैली शान्ति आपको अलग ही दुनिया में ले जाती है। इन चट्टानों में बहती नर्मदा नदी का पाट इन चट्टानों के अनुरूप घटता बढ़ता रहता है। कहीं संकरी तो कहीं चौड़ी। यहाँ नौका विहार की सुविधा नवम्बर माह से मई तक होती है। यहाँ भेड़ाघाट में धुंआधार फाल्स एक और देखने योग्य स्थान है।

कान्हा नेशनल पार्क (जबलपुर से 165 किमी) -


कान्हा नेशनल पार्ककान्हा नेशनल पार्ककान्हा के जंगल साल और बांस के जंगल हैं। दूर तक फैले समतल घास के मैदान और उनके बीच से लहरा कर गुजरती जलधाराएं, लगभग नौ सौ वर्ग किलोमीटर तक नैसर्गिक सुन्दरता का रमणीय दृश्य प्रस्तुत करते हैं। यह रुडयार्ड किपलिंग की वही प्रेरणा स्थली है जिसे देख अति प्रसिद्ध जंगलबुक लिखी गई। वन्यजीवन की वही विविधता आज भी कान्हा टाईगर रिर्जव में विद्यमान है। कान्हा नेशनल पार्क को 1974 प्रोजेक्ट टाईगर के अन्तर्गत कान्हा टाईगर रिर्जव के रूप में स्थापित किया गया था। यह पार्क दुर्लभ हार्डगाउण्ड बारहसिंघा का एकमात्र प्राकृतिक निवास है। टाईगर को आप यहाँ मुक्त विचरण करते हुए देख सकते हैं। अन्य जानवरों में यहाँ तेन्दुआ, जंगली भैंसे, चीतल, सांबर, भालू, नीलगाय और कृष्ण मृग भी स्वतन्त्र विचरते दिख जाते हैं। बर्ड वॉचिंग के शौकीन लोगों के लिए ये उत्तम स्थान है, क्योंकि यहाँ 200 किस्म के पक्षी पाये जाते हैं। कान्हा नेशनल पार्क बरसात के दिनों में बन्द रहता है, जुलाई से अक्टूबर तक।

बांधवगढ़ नेशनल पार्क( जबलपुर से 164 किमी, खजुराहो से 237 किमी)


बांधवगट एकमात्र ऐसा टाईगर रिजर्व जहां पहली ही विजिट में टाईगर उसके प्राकृतिक निवास में विचरते देख पाना लगभग निश्चित होता है। यह पार्क उस घाटी में स्थित है जहां रीवा के महाराजा ने पहली बार सफेद टाईगर देखा था। बांधवगट नेशनल पार्क 448 वर्ग किमी में फैला है। यहाँ का वन्य जीवन भरा-पूरा है। यहाँ तेन्दुए, हिरण, सांबर, जंगली सुअर और बाईसन (जंगली भैंसे की एक दुर्लभ प्रजाति)। यहाँ भी पक्षियों की 200 प्रजातियां पाई जाती हैं। इस पार्क के अन्दर ही बांधवगढ़ का किला आता है, जिसके परकोटे इस पार्क की एक ओर को घेरते हैं। इस पार्क में प्रागैतिहासिक युग की आदि गुफाएं भी हैं जिनमें प्रागैतिहासिक मानव द्वारा बनाए चित्र स्पष्टत: देखे जा सकते हैं। यह पार्क भी मानसून की वजह से जुलाई से अक्टूबर तक बन्द रहता है। जबलपुर और उसके आस-पास के स्थानों में देखने योग्य स्थानों की कमी नहीं है, जबलपुर जिले के शाहपुरा कस्बे के पास एक नेशनल फॉसिल पार्क भी है।

मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक यात्रा


इन्दौर -


रानी अहिल्या बाई के राज्य में इस शहर की योजना बनी और निर्माण हुआ। रानी अहिल्या बाई जो कि बहादुर होल्कर रानी थीं। इस शहर का नाम 18वीं शदी के इन्द्रेश्वर मन्दिर के नाम से पड़ा। यह शहर सरस्वती और खान नदी के किनारे बसा है। मध्यकालीन होल्कर राज्य से संबद्ध होने की वजह से इस शहर में कई मध्यकालीन ऐतिहासिक इमारतें हैं। यहाँ देखने योग्य स्थान र्हैं लालबाग पैलेस, बड़ा गणपति, कांच मन्दिर, सेन्ट्रल म्यूजियम, गीता भवन, राजवाड़ा, छतरियां, कस्तूरबा ग्राम आदि।

उज्जैन -


उज्जैन इन्दौर से 55 किमी की दूरी पर स्थित है। प्राचीन ऐतिहासिक नगरी उज्जैयिनी ही आज का उज्जैन है। यह शिव नाम के राजा की राजधानी अवन्ति था पहले लेकिन राजा ने नर्मदा के तट पर त्रिपुरा राजा से विजित हो अवन्ति का नया नामकरण किया उज्जैयिनी। आधुनिक उज्जैन आज शिप्रा के तट पर स्थित है। शिप्रा नदी की पावनता के पीछे वही विश्वास है कि जब समुद्र मंथन हुआ और अमृत घट लेकर देवता भागे तो राक्षसों ने स्वर्ग तक उनका पीछा किया इस दौरान घट से जो बूंदें छलकीं वो हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैयिनी में गिरीं इसलिये कुंभ स्नान इन चारों स्थानों की पावन नदियों में किया जाता है।

उज्जैन में मन्दिरों की भरमार है, इनमें से अधिकांश प्राचीन काल के और ऐतिहासिक हैं। इन मन्दिरों का जीर्णोद्धार समय-समय पर होता रहता है। महाकालेश्वर का प्रसिद्ध शिवमंदिर हर समय भक्तों की भीड़ से अटा रहता है। इस मन्दिर का विशाल शिवलिंग और मन्दिर का स्थापत्य और माहौल आपको किसी रहस्यमय लोक में पहुंचा देता है। भारत के पूजनीय कवि कालिदास की ये रचनास्थली भी है। यहाँ देखने योग्य स्थानों में महाकालेश्वर, बडे़ गणेश जी का मंदिर, चिन्तामन गणेश, पीर मत्स्येन्द्रनाथ, भर्तहरी की गुफाएं, कालियादेह महल, काल भैरव, वेधशाला, नवग्रह मन्दिर, कालिदास अकादमी आदि प्रमुख हैं।

माण्डू के महल -


माण्डू के महलमाण्डू के महल(इन्दौर से 99 किमी दूर) माण्डू पत्थरों पर रचा जीवन और आनन्द के उत्सव का प्रतिरूप है। यह स्थान कवि और राजा बाजबहादुर और उसकी सुन्दर प्रियतमा रानी रूपमती के प्रेम का स्मृति चिन्ह है। मालवा के लोग अपने लोक गीतों में उनके प्रेम की गाथाएं बड़े चाव से गाते हैं। रानी रूपमती का महल एक पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ है और यहाँ नीचे स्थित से बाजबहादुर के महल का दृश्य बड़ा ही विहंगम दिखता है, जो कि अफगानी वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है। माण्डू विंध्य की पहाड़ियों में 2000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मूलत: मालवा के परमार राजाओं की राजधानी रहा था। तेरहवीं शदी में मालवा के सुलतानों ने इसका नाम शादियाबाद यानि खुशियों का शहर रख दिया था। वास्तव में यह नाम इस जगह को सार्थक करता है। यहाँ के दर्शनीय स्थलों में जहाज महल, हिन्डोला महल, शाही हमाम और आकर्षक नक्काशीदार गुम्बद वास्तुकला के उत्कृष्टतम रूप हैं।

यहाँ के जामी मस्जिद और होशंगशाह के मकबरे से प्रेरणा लेकर ही शताब्दियों बाद ताजमहल बनाया गया। मुगलकाल में माण्डू आमोद-प्रमोद का स्थल था। यहाँ की झीलों और महलों की वजह से इस स्थान पर हमेशा उत्सव जैसा वातावरण बना रहता है।

मध्यभारत का मध्य


भोपाल -


भोपाल मध्यप्रदेश की राजधानी तो है ही साथ ही यह शहर प्राकृतिक सुन्दरता और सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ आधुनिक शहर के सभी आयाम प्रस्तुत करता है। यह शहर जहां स्थित है उस जगह को 11वीं शदी में राजा भोज द्वारा बसाया गया था, तब इसे भोजपाल के नाम से जाना जाता था। किन्तु आज जो भोपाल है उसकी स्थापना 1708-1740 के बीच एक अफगान सिपहसालार दोस्त मोहम्मद ने की थी।

औरंगजेब की मृत्यु के बाद जब दिल्ली में अशान्ति और अनिश्चितता का माहौल था तब दोस्त मोहम्मद पलायन कर यहाँ आया और उस समय की गोण्ड रानी कमलापति की सहायता की और उसका हृदय भी जीत लिया। भोपाल की जुड़वा झीलों के बारे में किवदन्ती है कि यह रानी कमल के आकार की नाव में इन झीलों में सैर किया करती थी। ये झीलें आज भी शहर का केन्द्र हैं।

भोपाल का जामा मस्जिदभोपाल का जामा मस्जिदभोपाल पुरातन और नवीन का एक सुन्दर मिश्रण है। पुराने शहर में स्थित पुराने बाजार, मस्जिदें और महल आज भी उस काल के शासकों के भव्य अतीत की याद दिलाते हैं। सुन्दर पार्क और गार्डन, लम्बी चौड़ी सडक़ें, आधुनिक इमारतों के कारण आधुनिक भोपाल भी बड़ा प्रभावशाली है।

दर्शनीय स्थल -


ताज उल मस्जिद, जामा मस्जिद, मोती मस्जिद, शौकत महल, सदर मंजिल, गौहर महल, भारत भवन, स्टेट म्यूजियम, गाँधी भवन, वन विहार और लक्ष्मी नारायण मन्दिर। अपर और लोअर लेक तथा मछली घर भी दर्शनीय हैं।

सांची -


सांची का स्तूपसांची का स्तूपसांची भोपाल से 46 किमी की दूरी पर है। जैसा कि आप जानते ही हैं कि सांची अपने स्तूपों और बौद्ध स्थानकों तथा उन स्तम्भों के लिये प्रसिद्ध है जो कि पुराशास्त्रियों द्वारा ईसापूर्व की तीसरी शताब्दि से लेकर बारहवीं शताब्दी(ए डी) पुराने माने गए हैं। सांची का प्रसिद्ध स्तूप मौर्य सम्राट अशोक ने बनवाया था। अशोक ने बौद्ध धर्म को प्रश्रय दिया और इसके प्रचार प्रसार हेतु अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को सिंहल द्वीप( श्री लंका) भेजा। प्रथम स्तूप के निकट एक स्तम्भ है सेन्डस्टोन का जो मौर्य युगीन चमक से आज भी चमकता है, उस पर स्पष्ट शब्दों में बौद्ध धर्म के नियमों को लिखा है। यह स्तूप भारत की सबसे पुरानी पत्थर की इमारत है।

सांची पहाड़ी खण्डों में बँटी है। सबसे नीचे के खण्ड में दूसरा स्तूप स्थित है जबकि पहला और तीसरा स्तूप और पाँचवी शदी में निर्मित गुप्त कालीन मंदिर न. 17 और सातवीं शदी में निर्मित मन्दिर न 18 बीच के हिस्से में स्थित हैं और बाद में बनी बौद्ध मॉनेस्ट्री शिखर पर स्थित है। दूसरा स्तूप बौद्धकालीन मूर्तिकला का प्रतिनिधित्व करता है, इसमें बुद्ध के जीवन और उस काल की प्रमुख घटनाओं पर आधारित कलाकारी की गई है। इन स्तूपों के प्रवेश द्वार देखने योग्य हैं। दर्शनीय स्थलों में स्तूप प्रथम, चार प्रवेश द्वार, स्तूप द्वितीय, स्तूप तृतीय, अशोक स्तम्भ, बौद्ध विहार, विशाल पात्र, गुप्त कालीन मन्दिर और संग्रहालय प्रमुख हैं।

भीमबेटका -


भीमबेटका विंध्याचल पहाड़ियों के उत्तरीय छोर पर स्थित एक गाँव है। यह स्थान बड़ी-बड़ी चट्टानों से घिरा है। हाल ही में इन चट्टानों में बने पूर्व पाषाण युग की गुफाओं में बने हुए छह सौ से भी ज्यादार भित्तिचित्रों का पता चला है। संसार में अब तक पाये जाने वाले पूर्व पाषाण युगीन भित्तिचित्रों का सबसे बड़ा संग्रह इन्हीं गुफाओं में है। मध्यप्रदेश में पर्यटन की संभावनाएं अथाह हैं, अब भी बहुत कुछ ऐसा है जो इस सीमित लेख के दायरों में नहीं समा पा रहा। इस सत्य का अनुभव आप यहाँ आकर ही कर सकते हैं, अनेकों अनछुए, अव्यवसायिक पर्यटन स्थल हैं जिन्हें खोज आप रोमांचित हो सकते हैं।

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संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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