प्रभावितों को सामाजिक-आर्थिक व कानूनी सुरक्षा की दरकार

Submitted by Shivendra on Sat, 12/14/2019 - 17:21

विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना 444 मेगावाट अलकनंदा नदी जिला चमोली उत्तराखंड के संबंध में आए उच्च न्यायालय नैनीताल के आदेश का (टीएचडीसी बनाम उत्तराखंड सरकार रिट पिटिशन (क्रिमिनल) नंबर 2122/ 2019 में 5 दिसंबर 2019) स्थानीय लोगों ने स्वागत किया है। 

बांध प्रभावितों के मुद्दे सुलझाने की बजाय टीएचडीसी ने नैनीताल उच्च न्यायालय में एक आपराधिक प्रकरण दायर किया। किंतु अदालत ने उसे स्वीकार करने से साफ मना किया और टीएचडीसी को अन्य प्रभावी सिविल अदालत में जाने को कहा। साथ ही अदालत ने कहा कि जिलाधिकारी चमोली दोनों पक्षों को बुलाकर मुद्दे का मैत्रीपूर्ण समाधान करें। हम जिलाधिकारी से अपेक्षा करते हैं कि वह वर्षों से चली आ रही समस्याओं का निदान करेंगे

विश्व बैंक एक तरफ दावा कर रहा है कि विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना  में अलकनंदा नदी को जिस सुरंग में डाला जाना है। उस सुरंग का काम बहुत तेजी से चालू है।

पर्यावरण और पुनर्वास की अपनी ही बनाई नीतियों को दरकिनार करते हुए बांध काम आगे बढ़ाए जाने की रिपोर्ट तैयार करना हो रहा है। हाल ही में केंद्र सरकार ने टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड का विनिवेश करने की घोषणा की है। इस परिस्थिति में ठंडे मौसम की शुरुआत के साथ जब उत्तराखंड में बर्फबारी की भी शुरुआत हो गई है लोग 25 नवंबर से बांध का काम रोक कर धरने पर बैठे हैं।

बर्फबारी के बीच आज 19वें दिन लोग  विश्व बैंक वापस जाओ, विश्व बैंक और टीएसडीसी ने गंगा को बर्बाद किया जैसे नारे लगा रहे हैं। ज्ञातव्य है की हॉट गांव के नीचे विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना का विद्युत गृह बन रहा है। 

प्रभावितों ने संदर्भ में अधिकारियों को 17 साल से लगातार पत्र भेजे है। किन्तु कोई नतीजा नही निकला उनका जीवन दूभर हो गया है। न तो हाट गांव का पुनर्वास स्थल सही बन पाया। आसपास के पर्यावरण व संस्कृति पर कभी ना ठीक होने वाला असर पड़ रहा है। जिसमें शिवनगरी छोटी काशी नगरी व मठ मंदिर भी आते है। हाट गांव के हरसारी तोक के बाशिंदों की समस्याएं भी वैसी ही है। प्रभावितों ने परेशान होकर 25 नवंबर से विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना का काम रोककर धरने पर बैठे है। जिसकी सूचना उन्होने 21 नवंबर 2019 को विष्णुगाड.पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना के प्रयोक्ता टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड के महाप्रबंधक को भेजी थी। 

ज्ञातव्य है कि हाट गांव के पुनर्वास के लिये टीएचडीसी ने जो विकल्प सुझाये थे उसमें से एक लाख प्रति नाली भूमि का मुआवजा और दस लाख रुपये 3 किस्तों में पुर्नवास सहायता के रुप में मंजूर कराया गया। परिस्थितियंा ही ऐसी थी की ग्रामीणों ने  स्वंय हाट गांव के सामने नदी पार की अपनी खेतीवाली जमीन पर ही बिना किसी योजना के मकान बनाये। बेहतर होता कि लोगो को योजनाबद्ध रुप से बसाया जाता। एक ऐसी रिहायशी बस्ती बनाई जाती जिसमें पानी, बिजली, स्कूल, मंदिर, अस्पताल, डाकघर, बैंक व अन्य जरुरत की सुविधायें उपलब्ध होती। पुनर्वास नीति में लिखा है कि विस्थापन, विस्थापितों के जीवन स्तर को उंचा उठायेगा। किन्तु ऐसा हाट गांव के विस्थापन में नही हुआ। लोग अपनी खेतीहर भूमि पर जगह-जगह बिखरकर रह गये है। इन सुविधाओं के अभाव के कारण लोगो का जीवन स्तर उपर नही उठा। पानी आदि जैसी मूलभूत सुविधायें जो सहज ही उपलब्ध थी उनके लिये भी प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता है। मानसिक पीड़ा पहुंची है। शारीरिक श्रम तो बड़ा है हीे। विश्व बैंक द्वारा लोगो के बनाये मकानों को ष्ष्सुन्दर पुनर्वासष्ष् के रुप में प्रचारित किया गया है। जबकि असलियत यह है कि ज्यादातर मकान कर्जा लेकर बनाये गये है। कुछ अभी अधूरे भी है। 

प्रभावितों को शुरु से कहना है कि तत्कालीन हाट ग्राम प्रधान व उनके साथ 9 अन्य लोगों ने 26.6.2009 पूरे गांव के विस्थापन का निर्णय बिना गांव की आम सहमति के निर्णय ले लिया था।

हाट गांव से अलग हरसारी तोक में रहने वाले लोगो को कहना है कि यहां एचसीसी कंपनी के अधिकारी व कर्मचारी और उनके ठेकेदार के लोग अलग-अलग तरह से आते हैं। जिससे हमारे गांव की बहनों के मान सम्मान का खतरा बराबर बना रहता है। वे हमकों अलग.अलग तरह से धमकाते है। जिससे हमारे जान व महिलाओं के सम्मान का खतरा बराबर होता है। हम यहां डर के साए में जीते है। कंपनी के लोग हम पर झूठे और गलत मुकदमें लगाने की कोशिश करते है उन्होनें हम को धमकी दी है कि अदालत से एक मुकदमा खारिज हुआ है। हम तुम पर ढेर सारे मुकदमें लगा कर तम्हारा जीना हराम कर देंगे।

27.3.2019 को जिला चमोली न्यायालय ने टीएचडीसी कंपनी द्वारा  डाले गए एक मुकदमें को खारिज किया है। न्यायालय का आदेश बताता है कि किस तरह कंपनी लोगो की उचित मांगों को दबाने के लिए हर अन्याय पूर्ण तरीका इस्तेमाल कर रही है।

जब से उक्त बांध की शुरूआत हुई है। तब से हरसारी तोक की खेती, पानी, शांत जीवन खराब हो गया है। अत्यधिक ब्लास्ंिटग के कारण तो सोना भी मुश्किल हो चुका है। भविष्य में मकान व आजीविका भी कैसे बचेंगे? 

जब कही सुनवाई नही हुई तो फिर बांध का कार्य रोकना लोगों के पास आखिरी तरीका बचा।

प्रभावितों की मांग है किः-

  1. हाट गांव व हरसारी तोक के लोगों को सम्मानपूर्वक जीने का हक मिले।
  2. गैर कानूनी रूप से हो रही अत्यधिक मात्रा की ब्लास्टिंग रोकी जाए ताकि हमारे घरों, जल स्त्रोतों व खेती आदि पर कोई नुकसान न हो। 
  3. हमेें आज तक किये हुऐ नुकसानों का मुआवजा फसल मुआवजा सूखें जलस्त्रोतो और मकानों की दरारों की भरपाई टीएचडीसी द्वारा तुरंत की जाय। 
  4. हमें इस बात की गारंटी दी जाये कि परियोजना से हमारे जीवन व आजिविका पर किसी भी तरह जैसे कि धूल विस्फोटकों से कंपन जल स्त्रोतो का सूखना जैसे असर नही पडेगे। 
  5. विस्थापित हाट गांव में रहने वालों के लिये पानीए बिजलीए स्कूलए मंदिरए अस्पतालए डाकघरए बैंकए पहुंच मार्ग व अन्य जरुरत की सुविधायें उपलब्ध करायी जायें।
  6. हमें प्रति परिवार योग्यता अनुसार रोजगार उपलब्ध करायें जाये।
  7. विस्थापित हाट गांव में आयवृद्धि व कृषि सुधार कार्यक्रम चलाये जाये।
  8. विस्थापित हाट गांव में बाल व युवा खेलकूद के लिये एक छोटा स्टेडियम बनाया जाये। कंप्यूटर सेंटर व पुस्तकालय बनाया जाये।
  9. इस बात की लिखित में गारंटी पर जिलाधीश महोदय अपनी मुहर लगाऐं इस पूरे समझौते के पालन के लिऐ एक निगरानी समिति बने जिसमें ग्रामीणों जिलाधिकारी जी या उनके प्रतिनिधि  और टीएचडीसी के प्रतिनिधि हो।
  10. कंपनी द्वारा भविष्य में किये जाने वाले झूठे मुकदमों की स्थिति में हमें अदालत कानूनी सुरक्षा प्रदान करें।


राजेंद्र हटवाल, पंकज हटवाल, नरेंद्र पोखरियाल, तारेन्द्र जोशी, आनंद लाल, पीतांबरी देवी, नर्मदा देवी हटवाल, गुप्ता प्रसाद पंत व विमलभाई