परग्रही सभ्यता से संपर्क

Submitted by Hindi on Wed, 09/07/2011 - 12:21

परग्रही सभ्यता से संपर्क :परग्रही जीवन श्रंखला भाग 3


यदि पृथ्वी के बाहर जीवन है, तो उसकी खोज कैसे हो? उसके साथ संपर्क कैसे हो ? एक उपाय अंतरिक्षयान के द्वारा विभिन्न ग्रहो की यात्रा का है । लेकिन वर्तमान में हमारे अंतरिक्ष यान इतने सक्षम नहीं है कि अपने सौर मंडल से बाहर जा कर जीवन की खोज कर सके।

दूसरा उपाय संचार माध्यमो का है जैसे रेडीयो तरंगे। पृथ्वी के बाहर यदि कोई बुद्धिमान सभ्यता निवास करती है और विज्ञान में मानव सभ्यता से ज्यादा विकसित या मानव सभ्यता के तुल्य विकसित है तब वह संचार माध्यमो के लिये रेडीयो तरंगो का प्रयोग अवश्य करती होगी। इसी धारणा को लेकर पृथ्वी से बाहर सभ्यता की खोज प्रारंभ हुयी है।

सेटी


सर्च फ़ार एक्स्ट्राटेरेस्ट्रीयल इन्टेलीजेन्स (SETI) सौर मंडल के बाहर बुद्धिमान जीवन की खोज में लगे एक समूह का नाम है। सेटी प्रोजेक्ट वैज्ञानिक विधीयो से दूरस्थ ग्रहो की सभ्यताओ से हो रहे विद्युत चुंबकिय संचार की खोज में लगा हुआ है। संयुक्त राज्य अमरीका सरकार ने इस प्रोजेक्ट की शुरुवात में इसे अनुदान दिया था लेकिन अब यह निजी श्रोतो से प्राप्त धन पर निर्भर है।

1959 में भौतिकि विज्ञानीयो गीयुसेप्पे कोकोनी और फिलीप मारीशन ने एक शोधपत्र में परग्रही सभ्यता के विद्युत चुंबकिय विकिरणो को 1 और 10 गीगा हर्ट्ज पर सुनने की सलाह दी थी। 1 गीगाहर्टज से नीचे के संकेत तेजी से गति करते इलेक्ट्रान के द्वारा उत्सर्जित विकिरण से प्रभावित रहेंगे तथा 10 गीगाहर्टज से उपर के संकेत हमारे वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन और पानी के अणुओ द्वारा उत्पन्न शोर से प्रभावित रहेंगे। उन्होने 1420 गीगाहर्टज की आवृत्ति (Frequency) को बाह्य अंतरिक्ष के संकेतो को सुनने के लिये चूना क्योंकि यह साधारण हायड्रोजन गैस की उत्सर्जन आवृत्ति है और हायड़ोजन गैस सारे ब्रम्हाण्ड में बहुतायत से है। इस श्रेणी की आवृत्तियों को ‘जल विवर’(Watering Hole) का नाम दिया गया क्योंकि यह परग्रही संचार के उपयुक्त थी।

’जल विवर’ के आस-पास बुद्धिमान संकेतो को सुनने का प्रयास निराशाजनक रहा। 1960 में फ्रेंक ड्रेक ने संकेतो की खोज के लिये ग्रीन बैंक पश्चिम वर्जीनिया में 25 मीटर के रेडीयो दूरबीन से प्रोजेक्ट ओझ्मा की शुरूवात की। प्रोजेक्ट ओझ्मा और किसी भी अन्य प्रोजेक्ट को; जो रात्री के आकाश को संकेतो के लिए छान मारते है आजतक कोई भी सफलता नहीं मिली है।

अरेसीबो संदेश


1971 में नासा में SETI खोज पर धन लगाने का एक महात्वाकांक्षी प्रस्ताव दिया। उसे प्रोजेक्ट सायक्लोप्स नाम दिया गया, जिसमें 10 अरब डॉलर की लागत से पन्द्रह सौ रेडीयो दूरबीन लगाये गये। कोई आश्चर्य नहीं था इस खोज का भी कोई परिणाम नहीं निकला। इसके बावजूद अंतरिक्ष में परग्रही सभ्यताओ को एक संदेश भेजने वाले एक और छोटे प्रोजेक्ट को मंजूरी मीली।

यह संदेश फ़्रेंक ड्रेक ने कार्ल सागान और कुछ अन्य वैज्ञानिको के साथ लिखा था। इस संदेश में निम्नलिखित सात भाग थे।
1. एक (1) से लेकर दस (10) तक के अंक
2. डी एन ए को बनाने वाले तत्व हायड्रोजन, कार्बन, नायट्रोजन, आक्सीजन और फास्फोरस के परमाणु क्रमांक
3. डी एन ए के न्युक्लेटाईड के शर्करा और क्षारो के रासायनिक सूत्र
4. डी एन ए के न्युक्लेटाईडो की संख्या और डी एन ए की संरचना का चित्रांकन
5. मानव के शरीर की आकृति का चित्रांकन तथा मानव जनसंख्या
6. सौर मंडल का चित्रांकन
7. अरेसीबो रेडीयो दूरबीन का चित्रांकन तथा आकार

1974 में 1679 बाईट के इस संदेश को पोर्ट रीको स्थित महाकाय अरेसीबो रेडीयो दूरबीन से ग्लोबुलर क्लस्टर एम 13 की ओर प्रक्षेपित किया गया जो कि 25,100 प्रकाशवर्ष दूरी पर है। यह संदेश एक 23 गुणा 73 की सारणी में था। अंतरिक्ष इतना विशाल है कि इस संदेश का उत्तर आने में कम से कम 52,200 वर्ष लगेंगे।

Wow संदेश


15 अगस्त 1977 को सेटी में कार्यरत डॉ जेरी एहमन ने ओहीयो विश्वविद्यालय के बीग इयर रेडीयो दूरबीन पर एक रहस्यमयी संदेश प्राप्त किया। इस संदेश ने परग्रही जीवन से संपर्क की आशा में नवजीवन का संचार कर दिया था।

यह संदेश 72 सेकंड तक प्राप्त हुआ लेकिन उसके बाद यह दूबारा प्राप्त नही हुआ। इस रहस्यमय संदेश में अंग्रेजी अक्षरो और अंको की एक श्रंखला थी जो कि अनियमित सी थी और किसी बुद्धिमान सभ्यता द्वारा भेजे गये संदेश के जैसे थी।

डॉ एहमन इस संदेश के परग्रही सभ्यता के संदेश के अनुमानित गुणो से समानता देख कर हैरान रह गये और उन्होंने कम्प्युटर के प्रिंट आउट पर “Wow!” लिख दिया जो इस संदेश का नाम बन गया।

यह संकेत धनु तारामंडल के समीप के तारा समूह चाई सगीट्टारी के तारे टाऊ सगीट्टारी से आया था। इसके बाद इस संदेश के श्रोत की खोज के ढेरो प्रयासो के बाद भी यह दूबारा प्राप्त नही हुआ। इतना तय है कि यह संदेश पृथ्वी से उत्पन्न नही था और अंतरिक्ष से हीं आया था। लेकिन कुछ विज्ञानी जिन्होने ’Wow’ संदेश देखा था इस निष्कर्श से सहमत नहीं थे।

अमरीकी कांग्रेस इन प्रोजेक्टो के महत्व से प्रभावित नही हुयी, 1977 में प्राप्त इस रहस्यमयी संदेश ‘Wow’ से भी नहीं।

सेटी संस्थान


1995 में सरकारी धन की कमी से परेशान विज्ञानीयो ने धन के निजी श्रोतो की ओर ध्यान देना शुरू किया। उन्होंने माउन्टेन विउ कैलीफोर्निया में केन्द्रित SETI संस्थान की स्थापना की। सेटी ने 1200 से 3000 मेंगाहर्टज आवृत्ती पर हमारे पास के एक हजार सूर्य जैसे तारो के अध्यन के लिये के प्रोजेक्ट फिनिक्स का प्रारंभ किया। डॉक्टर जील टार्टर को इस प्रोजेक्ट का निदेशक बनाया गया। इस प्रोजेक्ट के उपकरण 200 प्रकाशवर्ष दूर किसी हवाई अड्डे के राडॉर प्रणाली से उत्सर्जित विकिरण को पकड़ने में सक्षम है।

1995 से अब तह सेटी संस्थान ने 50 लाख डॉलर प्रतिवर्ष के बजट से एक हजार से ज्यादा तारो का अध्यन किया है लेकिन कोई परिणाम प्राप्त नहीं हुआ है। हार ना मानते हुये सेटी के वरिष्ठ खगोलज्ञ सेठ शोस्तक के अनुसार सैन फ्रांसिस्को से 250 मील उत्तरपूर्व में बन रहे 350 एन्टीना वाले एलन दूरबीनो के समूह से सन 2025 तक परग्रही संकेतो के पकड़ पाने की आशा है।

सेटी@होम


एक नूतन उपाय के रूप में बार्कले स्थित कैलीफोर्निया विश्व विद्यालय के खगोलज्ञ ने 1999 में सेटी@होम प्रोजेक्ट की शुरूवात की है। वे ऐसे लाखो घरेलु कम्प्युटर का उपयोग करना चाहते है जो अपने अधिकतर समय खाली रहते है। जो भी इस प्रोजेक्ट में भाग लेना चाहता है उसे अपने कम्प्युटर में एक साफ्टवेयर डाउनलोड कर लेना होता है। यह साफ्टवेयर जब आपका कम्युटर खाली होता है और स्क्रीन सेवर सक्रिय होता है तब सेटी के किसी रेडीयो दूरबीन से प्राप्त संकेतो को समझना शुरू करता है। इस साफ्टवेयर से कम्युटर प्रयोक्ता को कोई परेशानी नहीं होती है। अब तक पूरे विश्व में 200 से ज्यादा देशो के 50 लाख से ज्यादा प्रयोक्ता इस साफ्टवेयर को चला रहे हैं। यह मानव इतिहास का सबसे बड़ा सामूहिक कम्प्युटर प्रोजेक्ट है और यह ऐसे प्रोजेक्टो के लिये एक आदर्श बन सकता है जिन्हें गणना के लिये अत्याधिक कम्युटर शक्ति की आवश्यकता होती है। अब तक इस प्रोजेक्ट को भी निराशा हाथ लगी है, इस प्रोजेक्ट ने भी अभी तक कोई भी परग्रही संकेत नहीं पकड़े है।

दशको के कड़ी मेंहनत के बाद भी असफलता ने सेटी के प्रस्तावको के सामने कठीन प्रश्न खड़े कर दिये है।

सेटी की अब तक की असफलता के संभावित कारण


1. एक साक्षात त्रुटि तो एक विशेष आवृत्ती पर रेडीयो संकेतो का प्रयोग है। कुछ विज्ञानियो के अनुसार परग्रही सभ्यता रेडीयो संकेतो की बजाय लेजर संकेतो का प्रयोग करती, हो सकती है क्योंकि लेजर संकेत रेडीयो संकेतो से कहीं बेहतर है। लेजर संकेतो का कम तरंगदैर्ध्य उन्हें कम जगह में ज्यादा संकेत भेजने में सक्षम बनाता है लेकिन लेजर किसी विशेष दिशा में ही भेजी जा सकती है इसलिये उसे किसी विशेष आवृत्ती पर प्राप्त कर पाना अत्याधिक कठीन है।
2. दूसरी त्रुटि एक सेटी के शोधकर्ताओ का एक विशेष रेडीयो स्पेक्ट्रम पर निर्भर होना है। परग्रही सभ्यता संपिड़ण तकनिक का प्रयोग कर या संकेतो को छोटे पेकेजो में बांटकर भी भेज सकती है। यह वही तरिके है जो आज इंटरनेट पर प्रयोग किये जाते है। संपिड़ित संकेतो को यदि एकाधिक आवृत्ती पर भेजा जाये तो उन्हे समझना मुश्किल है, क्योंकि हम नहीं जानते की वे संपिड़ित है; ये हमें मात्र शोर के रूप में सुनायी देंगी।
3. मानव इतिहास कुछ सौ हजार वर्ष पूराना है। इस कालखण्ड में मानव सभ्यता रेडीयो संकेतो का प्रयोग पिछले 100 वर्षो से ही कर रही है। यह भी संभव है कि भविष्य में हमें इससे बेहतर तकनिक मिल जाये। यदि ऐसा होता है तो पृथ्वी पर रेडीयो संकेतो के प्रयोग का काल खंड खगोलिय संदर्भ में एक क्षण से भी कम का होगा। परग्रही जीवन यदि हम से पिछड़ा है तो उसके पास रेडीयो संकेतो की तकनिक नहीं होगी, यदि विकसित है तो उसके पास बेहतर तकनिक हो सकती है। शायद हम अंधेरे में ही हाथ पैर मार रहे हों?

4. अंतरिक्ष की विशालता। अंतरिक्ष हमारी कल्पना से ज्यादा विशाल है। हमारा (सौर मंडल का) सबसे नजदिकी तारा प्राक्सीमा सेंटारी 4 प्रकाश वर्ष दूर है। इससे रेडीयो संकेत पृथ्वी तक आने में 4 वर्ष लगेंगे। हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी 100,000 प्रकाश वर्ष चौड़ी है जो कि एक साधारण आकार की आकाशगंगा है। हमारी पड़ोसी आकाशगंगा एंड़्रोमिडॉ 250 लाख प्रकाशवर्ष दूर है। हमारी आकाशगंगा और एन्ड्रोमीडॉ एक ही आकाशगंगा समूह में है। यह आकाशगंगा समूह 100 लाख प्रकाशवर्ष चौड़ा है जो कि एक वर्गो सुपरक्लस्टर (आकाशगंगाओ के समुहो का समुह) जिसकी चौड़ाई 1100 लाख प्रकाशवर्ष है। ब्रम्हाण्ड में ऐसे अरबो सुपरक्लस्टर है जिनके मध्य लाखो प्रकाशवर्ष की दूरी है। अर्थात यदि हमें कोई संदेश प्राप्त हुआ भी तो वह लाखो वर्ष पूराना हो सकता है, अगर हम उसका प्रत्युत्तर दे तब वह उत्तर लाखो वर्ष बाद पहुंचेगा।

सेटी के सम्मुख इन सभी समस्याओं के बावजूद आशा है कि इस शताब्दि में हम किसी परग्रही सभ्यता के संकेत पकड़ने में सक्षम हो जायेंगे। जब भी यह होगा मानव इतिहास में एक मील का पत्त्थर होगा।

वायेजर गोल्डन रीकार्ड


वायेजर गोल्डन रीकार्ड दोनो वायेजर (I तथा II) अंतरिक्ष यानो पर रखे गये फोनोग्राफ रीकार्ड है। इन रिकार्डो पर पृथ्वी के विभिन्न प्राणीयों की आवाजे और चित्र है। यह रीकार्ड परग्रही प्राणीयो के लिये है जो इन यानो कभी भविष्य में देख सकते है। ये दोनो वायेजर यान विस्तृत अंतरिक्ष की तुलना में बहुत छोटे है, किसी बुद्धिमान सभ्यता के द्वारा इन यानो को पाने की संभावना न्युनतम है क्योंकि ये दोनो यान कुछ वर्षो बाद कोई भी विद्युत चुंबकिय संकेत उत्सर्जन बंद कर देंगे। यदि कोई परग्रही सभ्यता इन्हे खोज निकालेगी तब कम से कम 40000 वर्ष बीत चूके होंगे जब वायेजर 1 यान किसी तारे के समीप से गुजरेगा।

वायेजर गोल्डन रीकार्ड पर स. रा. अमरिका के राष्ट्रपति का संदेश है
यह एक लघु, दूरस्थ विश्व का उपहार है जिसमें हमारी ध्वनी, हमारे विज्ञान, हमारे चित्र, हमारे संगित, हमारे विचार और हमारी भावनाये सम्मिलित है। हम हमारे समय से सुरक्षित रहकर आपके समय में जीने का प्रयास कर रहे है।

इस वायेजर गोल्डन रीकार्ड में पहले ध्वनी संदेश में हिंदी, उर्दू सहित 55 भाषाओ में परग्रहीयों के लिये अभिनंदन संदेश है। दूसरे ध्वनी संदेश में पृथ्वी की विभिन्न ध्वनियों का समावेश है जिसमें प्रमुख है : ज्वालामुखी, भूकंप , बिजली की ध्वनी; वायू, वर्षा की ध्वनी; पक्षियो, हाथी की ध्वनी; व्हेल का गीत, मां द्वारा बच्चे के चुंबन; दिल की धड़कन।

अगले संदेश में विभिन्न संस्कृतियो के संगीत का समावेश है जिसमें प्रमुख है : सुश्री केसरबाई केरकर का राग भैरवी में “जात कहां हो” गायन; मोजार्ट का संगीत। इस वायेजर गोल्डन रीकार्ड के अगले भाग में कार्ल सागन की पत्नि एन्न ड्रुयन के मष्तिष्क तरंगे की रीकार्डींग है। उसके अगले भाग में 116 चित्रो का समावेश है जिसमें प्रमुख है : सौर मंडल का मानचित्र, पृथ्वी का चित्र, सूर्य का चित्र, गणितिय और भौतिकि परिभाषायें, मानव शरीर के चित्र।

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संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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