हमारे गाँव बहुत तेजी से उन्नति कर रहे हैं। आधुनिक तरीके खेती, साफ-सफाई और स्वच्छता के प्रति जागरुकता सहित आज हर गाँव को प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत हर राष्ट्रीय मार्ग से जोड़ा जा रहा है जिससे उनको हर बुनियादी सुविधा का लाभ मिल सके। साथ ही हर गरीब एवं वंचित को आवास और हर गाँव और हर घर में बिजली पहुँचाने के लक्ष्य पर तेजी से काम हो रहा है।
9 अगस्त 2017 को माननीय प्रधानमंत्री जी ने वर्ष 2022 में 75वाँ स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने तक गरीबी उन्मूलन की बात कहीं थी। ‘मिशन अन्त्योदय’ का कार्यान्वयन इसी का परिणाम है। ग्रामीण विकास से तात्पर्य केवल लोगों के आर्थिक विकास से नहीं बल्कि विशाल सामाजिक परिवर्तन से है।
भारत के आर्थिक विकास के लिये भी ग्रामीण विकास सबसे जरूरी है। किसानों की समृद्धि और पंचायती राज को मजबूत बनाने और गरीबों एवं वंचितों के कल्याण, युवाओं को रोजगार और सभी को शिक्षा के उद्देश्य के साथ ही गाँवों का विकास सम्भव है। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, गाँव के कमजोर वर्गों के लिये घर बनवाना, पीने के पानी की व्यवस्था करना, पानी की निकासी की सही व्यवस्था करना, गाँवों में बिजली उपलब्ध कराना एवं लोगों को जागरूक करना ग्रामीण विकास के ही पहलू हैं।
भारत मूल रूप से एक कृषि निर्भर देश है। भारत में सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का बहुत बड़ा योगदान होता है। कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिये सरकार ने ग्रामीण विकास के लिये अनेक कार्यक्रम चलाए हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत में ग्रामीण क्षेत्र के लिये नीतियाँ बनाने और लागू करवाने वाला शीर्ष निकाय है। जिस देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी मिट्टी से जुड़ी हो, उस देश का विकास निश्चित रूप से मिट्टी से जुड़कर ही होगा।
ग्रामीण भारत में कृषि और पशुपालन से जुड़ी गतिविधियाँ आजिविका का प्रमुख साधन है। भारत सरकार के इस दिशा में किये जा रहे किसान हितकारी प्रयास अत्यन्त सराहनीय हैं। लेकिन आज पानी की कमी के चलते सूखी धरती खेती के लिये समस्या बनी हुई है। हाल ही में सरकार ने खेती से जुड़ी अनेक कृषि विकास योजनाओं की घोषणा की है जैसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, मृदा परीक्षण कार्ड, पशुपालन और मछली पालन, बूँद-बूँद सिंचाई के महत्त्व, नीम कोटेड यूरिया आदि। इतना ही नहीं किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी कैसे हो, इस पर भी विचार किया जा रहा है।
सरकार लम्बे समय से अधूरी पड़ी सिंचाई योजनाओं को पूरा करने को प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना से सूखे की समस्या से निजात मिल जाएगी। ‘हर खेत को पानी’ पहुँचाने के लिये यह योजना शुरू की गई है। इतना ही नहीं, मनरेगा के तहत वर्षापोषित क्षेत्रों में पाँच लाख फार्म तालाबों और कुओं की व्यवस्था की जाएगी। प्र
धानमंत्री कृषि सिंचाई योजना को मिशन मोड में लागू किया जाना है और ज्यादा-से-ज्यादा खेतों को सिंचित क्षेत्र में लाया जाएगा। सिर्फ सिंचाई ही नहीं मृदा स्वास्थ्य कार्ड और मृदा स्वास्थ्य प्रबन्धन ऐसी स्कीमें हैं जिन पर सरकार विशेष ध्यान दे रही है। अच्छी फसल के लिये मिट्टी अच्छी होनी चाहिए। अगर मिट्टी की जाँच कराके, उसकी जरूरत के हिसाब से खाद डाली जाय तो खर्चा भी कम होगा और फसल भी अच्छी होगी। सरकार जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। इससे जैविक कचरे का उपयोग खाद की तरह करने से खाद का खर्च भी बचेगा और जमीन भी ज्यादा उपजाऊ बनेगी और उपज ज्यादा पौष्टिक होगी।
सरकार ने अनेक किसान सेंटर खोले हैं, जहाँ से बहुत कुछ पता लगाया जा सकता है। वहाँ बहुत-सी फसलों के अच्छी किस्मों के बीज भी मिलते हैं। नई-नई किस्मों को महाराष्ट्र, गुजरात, केरल, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के किसान अपने खेतों में उगाकर फसलों की अधिक पैदावार ले रहे हैं। जो किसान केवल खेती करते हैं, वो फसल खराब हो जाने पर या फिर मुनाफा कम होने पर टूट जाते हैं लेकिन अगर वो खेती के साथ पशुपालन भी करें तो पोषण का, आमदनी का साधन बना रहता है। भूखे मरने की नौबत नहीं आती है। केवल खेती पर निर्भर न रहकर साथ में मछलीपालन, मवेशी पालन जैसे खेती से सम्बद्ध कार्य करने चाहिए। सरकार ऐसे व्यवसायों को प्रोत्साहन देने हेतु व्यापक कदम उठा रही है। गोपशुओं की देशी नस्लों के विकास और संरक्षण के लिये राष्ट्रीय गोकुल मिशन परियोजना भी शुरू की गई है।
पशुपालन करने वालों के लिये भी बहुत-सी योजनाएँ हैं जैसे कि पशुधन संजीवनी, नकुल स्वास्थ्य पत्र, ई-पशुधन हाट। स्वास्थ्य पत्र से किसानों को अपने पशुओं के स्वास्थ्य का रिकॉर्ड रखने में आसानी होगा। इसकी मदद ये वो रिकॉर्ड रख पाएँगे कि उन्हें कब किस गाय या भैंस का टीका लगवाना है। इस पत्र में पशुओं की बीमारियों की भी जानकारी होगी।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
यह योजना इस सरकार की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। फसल बीमा सरकार की अब तक की सबसे बड़ी मदद है। अब सबको सब जगह एक-सी मदद। अब जिलेवार और फसलवार अलग-अलग बीमा नहीं होगा। अगर कोई किसान 30,000 की फसल उगाता है तो उसकी फसल का बीमा भी 30,000 का होगा और अगर कल को उसकी फसल खराब हो जाय तो उसे बीमे का पूरा पैसा मिलना चाहिए। लेकिन ऐसी होता नहीं था। सरकार अपना हिस्सा उसमें से काट लेती थी। अब फसल खराब होते ही बीमे की रकम का 25 फीसदी तो तुरन्त मिल जाएगा और बाकी का नुकसान का ठीक-ठीक पता लगाने के बाद मिलेगा। अब प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, बारिश से फसल को होने वाले नुकसान का पता ड्रोन और उपग्रहों के जरिए लगाय जाएगा। इससे बीमा योजना में मौजूद भ्रष्टाचार भी दूर होगा। उससे फसल को होने वाले नुकसान का बिल्कुल सही-सही पता चलेगा और बीमा कम्पनियाँ किसानों को गुमराह नहीं कर पाएँगी और किसानों को सही-सही मुआवजा मिलेगा।
राष्ट्रीय कृषि बाजार
किसानों की एक बड़ी समस्या यह है कि किसानों द्वारा उत्पादित काफी मात्रा में फलों एवं सब्जियों का या तो उचित मूल्य नहीं मिल पाता या फिर वे बाजार में नहीं पहुँचते। इससे किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। इसके लिये ई-नाम पोर्टल एक बहुत बड़ी सुविधा बनने वाला है। इस पोर्टल पर सारी मंडिया आएँगी। ई-नाम के इस पोर्टल को एक अखिल भारतीय व्यापार पोर्टल राष्ट्रीय कृषि बाजार और कृषि उत्पादों के लिये एक बाजार के रूप में डिजाइन किया गया, 14 अप्रैल, 2016 को 8 राज्यों की 21 मंडियाँ ई-नाम से जुड़ गई।
1 फरवरी, 2018 तक यह संख्या 479 मंडियों तक पहुँच गई जो कि 14 राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेश में है। ई-नाम वेबसाइट अब 8 विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध है। जबकि अॉनलाइन व्यापार की सुविधा 6 भाषाओं में उपलब्ध है। अब किसाल मोल-भाव कर सकता है। सीधी-सी बात है-उत्तम फसल उत्तम ईनाम। किसानों की सुविधा के लिये कई मोबाइल एप भी उपलब्ध हैं। किसान सुविधा, पूसा कृषि, एग्री मार्केट और फसल बीमा कुछ प्रमुख एप हैं।
अटल पेंशन योजना
अटल पेंशन योजना (एपीवाई) 9 मई, 2015 से शुरू इस योजना के 3 साल पूरे होने पर इस स्कीम के सदस्यों की संख्या एक करोड़ का अाँकड़ा पार कर गई है। वर्तमान में इस योजना के सदस्यों की संख्या कुल मिलाकर 1.10 करोड़ है।
भारत सरकार द्वारा देश के नागरिकों के लिये घोषित की गई गारंटीड पेंशन वाली इस स्कीम अर्थात अटल पेंशन योजना के तहत किसानों सहित असंगठित क्षेत्र के उन कामगारों पर फोकस किया जाता है, जिनकी हिस्सेदारी कुल श्रमबल में 85 प्रतिशत से भी अधिक है। अटल पेंशन योजना के तहत 60 साल की उम्र पूरी होने पर प्रति माह 1000 रुपए/ 2000 रुपए / 3000 रुपए/ 4000 रुपए अथवा 5000 रुपए की गारंटीड न्यूनतम पेंशन मिलेगी जो सदस्यों द्वारा किये जाने वाले अंशदान पर निर्भर करेगी। सम्बन्धित सदस्य की पत्नी/पति भी पेंशन पाने के हकदार हैं और नामित व्यक्ति को संचित पेंशन राशि दी जाएगी।
एपीवाई के तहत ग्राहक आधार कई गुना बढ़कर वर्तमान-स्तर पर पहुँचा है और एपीवाई की पेशकश सभी बैंकों और डाकघरों द्वारा की जाती है। अब तक अटल पेंशन योजना के तहत 3950 करोड़ रुपए का अंशदान एकत्र हुआ है। इस योजना ने अपने शुभारम्भ से लेकर मार्च 2018 तक लगभग 9.10 प्रतिशत का सीएजीआर सृजित किया है।
प्रधानमंत्री आवास योजना
गाँवों में समस्या सिर्फ खेती की ही नहीं है बल्कि आवास की भी है जहाँ लोगों के पास आज भी रहने को पक्के घर नहीं हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने 1985 में गाँवों में गरीबों को आवास प्रदान करने के उद्देश्य से इन्दिरा आवास योजना का आरम्भ किया था। इस आवास योजना के अन्तर्गत शौचालय एलपीजी, कनेक्शन, बिजली के कनेक्शन और पीने के पानी की सुविधाओं से युक्त घरों के साथ-साथ मैदानी भागों में रहने वालों को 70,000 रुपए और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वालों को 75,000 रुपए की वित्तीय सहायता देने का भी प्रावधान था।
एनडीए सरकार ने 1 जून, 2015 में इस योजना का विस्तार प्रधानमंत्री आवास योजना के रूप में किया। इस आवास योजना के अन्तर्गत ग्रामीण एवं शहरी सभी बेघर गरीबों को 2022 तक घर प्रदान करने की योजना है। इसके अन्तर्गत तीन प्रकार के आवासों की व्यवस्था हैः आर्थिक रूप से पिछड़ा अर्थात ईडब्ल्यूएस वर्ग, निम्न आय वर्ग अर्थात एलआईजी और मध्य आय वर्ग यानी एमआईजी के आवास। इस योजना का मुख्य उद्देश्य स्लम में रहने वाले गरीब लोगों के लिये पर्यावरण-सह्य तकनीकों का प्रयोग कर सस्ते घर बनाना है। घरों के आवंटन के समय वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों का विशेष ध्यान रखा जाएगा। इस योजना को तीन प्रावस्थाओं में पूरा किया जाएगा।
आवास योजना को दो संघटकों-शहरी और ग्रामीण-में बाँटा गया है। ग्रामीण आवास योजना में मार्च 2019 के अन्त तक एक करोड़ नए घर बनाए जाने हैं जिनमें से 51 लाख घर मार्च 2018 तक बनाए जाने थे। सरकार ने ऐसा ही कुछ लक्ष्य शहरी आवासों के लिये भी रखा है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये ग्रामीण विकास मंत्रालय, राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम कर रहा है।
प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना
अभी भी बहुत से गाँव सड़कों से अच्छी तरह से जुड़े नहीं हैं और वहाँ बिजली की उचित आपूर्ति भी नहीं है। गाँवो में रहने वालों को शहरों या अपने गन्तव्य से जोड़ने के लिये और गरीबी हटाने की रणनीती के अन्तर्गत भारत सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना आरम्भ की है। इससे न केवल यातायात की सुविधा बढ़ेगी बल्कि आने-जाने में लगने वाले समय और पैसे की भी बचत होगी।
राज्य सरकारों द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों के अनुसार लगभग 1.67 लाख बसावटों को बारहमासी सड़कों से जोड़ना इस योजना का लक्ष्य है। इसके लिये लगभग 3.71 लाख किलोमीटर लम्बी नई सड़कों का निर्माण किया जाएगा और 3.68 लाख किलोमीटर सड़कों को अपग्रेड करने की योजना है। लगभग 500 की जनसंख्या वाले मैदानी इलाकों और लगभग 250 की आबादी वाले पहाड़ी इलाकों के 1,78,000 बसावटों को बारहमासी सड़कों से जोड़ा जाना है जिसमें से लगभग 82 प्रतिशत को अब तक जोड़ा जा चुका है और शेष 47,000 निवासों को जोड़ने का काम भी प्रगति पर है। इस योजना के अन्तर्गत 2004 से 2014 तक सड़क निर्माण की औसत गति 98.5 किलोमीटर प्रतिदिन थी जिसे 2016-17 में बढ़ाकर 130 किलोमीटर प्रतिदिन किया गया।
मनरेगा-पूर्ण पारदर्शिता के साथ आजीविका सुरक्षा
मनरेगा ने पूर्ण पारदर्शिता के साथ दीर्घावधि सम्पदा निर्माण करते हुए आजीविका प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। कार्यक्रम के अन्तर्गत निर्मित प्रत्येक सम्पदा की भौगोलिक टैगिंग की गई। इसे लिये आईटी/डीबीटी का उपयोग किया गया। मनरेगा के तहत 15 दिनों के अन्दर होने वाले भुगतान में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।
2014-15 में यह 26.85 प्रतिशत था जो 2017-18 में बढ़कर 85.75 प्रतिशत हो गया। 2017-18 का कुल परिव्यय 63,887 करोड़ रुपए है, जो 2013-14 में व्यय की गई कुल धनराशि से लगभग 25,000 करोड़ रुपए अधिक है। इसी तरह आजीविका सुरक्षा और दीर्घावधि सम्पदा निर्माण के लिये कृषि तथा अन्य सम्बन्धित क्षेत्रों पर विशेष जोर दिया गया। यह परिव्यय 2013-14 के 48.7 प्रतिशत से बढ़कर इस वर्ष 68.46 प्रतिशत हो गया।
दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना
किसी गाँव को तब ही बिजलीयुक्त कहा जा सकता है जब उस गाँव के स्कूल, पंचायत घर, स्वास्थ्य केन्द्रों, डिस्पेंसरी, सामुदायिक केन्द्रों के साथ-साथ कम-से-कम 10 प्रतिशत घरों में भी बिजली की सुविधा हो। ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत ऊर्जा मंत्रालय से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, 2015 में विद्युतीकरण के लिये चुने गए 18,452 गाँवों में से 73 प्रतिशत में अब विद्युत आपूर्ति की जा चुकी है, लेकिन इन गाँवों में से अभी केवल 8 प्रतिशत गाँवों में हर घर में बिजली पहुँचाई गई है।
देश के 25 प्रतिशत ग्रामीण घरों में आज भी बिजली नहीं है। उत्तर प्रदेश, नागालैण्ड, झारखण्ड और बिहार के 50 प्रतिशत से भी कम घरों में बिजली है। दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के अन्तर्गत बिजली का कनेक्शन मुफ्त देने के लिये गरीबी-रेखा के नीचे रहने वाले 435 लाख घरों की पहचान की गई है। इनमें से लगभग 235 करोड़ (59 प्रतिशत) को बिजली पहुँचाई जा चुकी है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री ने 25 सितम्बर, 2017 को प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य) की घोषणा भी की है।
इस योजना के तहत देश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के सभी निर्धन परिवारों को निशुल्क तथा अन्य परिवारों को 500 रुपए के भुगतान पर बिजली कनेक्शन दिया जाएगा। दूरदराज के भौगोलिक रूप से दुर्गम अनेक क्षेत्रों में बिजली पहुँचाने के लिये बिजली के अॉफ-ग्रिड संसाधनों का उपयोग किया जा रहा है। गाँवों में रोशनी लाने के लिये पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा जैसे गैर-पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों का बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है। वह दिन दूर नहीं जब गाँव-गाँव में उजाला फैलेगा।
दीनदयाल अन्त्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन
मिशन का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को आत्मविश्वासी, जागरूक और आत्मनिर्भर बनाना है। आजीविका मिशन ग्रामीण महिलाओं के जीवन में बड़ा सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन ला रहा है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ग्रामीण गरीब विशेषकर स्वयंसहायता समूह की महिला सदस्यों का आर्थिक और सामाजिक दर्जा सुधारने के लिये उन्हें अपने उत्पाद बेचने के लिये प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराने के लिये ग्रामीण हाटों को प्रोत्साहित करता है।
मंत्रालय की योजना वित्तवर्ष 2018-19 में पूरे देश में 22,000 ग्रामीण हाट स्थापित करने की है। मिशन 2011 में लांच किया गया था और अब इसका विस्तार 29 राज्यों और पाँच केन्द्र शासित प्रदेशों के 584 जिलों के 4456 ब्लॉकों तक हो गया है। मिशन ने 39.9 लाख स्वयंसहायता समूह को सक्रिय किया है, जो आगे 2.20 लाख ग्राम संगठनों और 19,000 क्लस्टर स्तर के फेडरेशन हो गए हैं।
आज भी औरतें खेतों में काम करती हैं लेकिन अब महिलाओं को जागरूक करने का समय आ गया है। इसीलिये उन्हें भी समय-समय पर उनकी पसन्द के हिसाब से काम सिखाए जाएँगे जैसे जैविक खेती करना, डेरी उद्योग और केंचुआ पालन वगैरह। जब वो कुछ अपना रोजगार करेंगी तो परिवार की आमदनी बढ़ेगी। तब भूखे मरने की नौबत नहीं आएगी। भारत का विकास अगर हमें सच्चे अर्थों में करना है और लगातार लम्बे समय तक करना है तो गाँव की नींव को मजबूत करना होगा तब जाकर विकास की इमारत मजबूत होगी।
मनरेगा की प्रगति रिपोर्ट |
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प्रगति |
वित्तवर्ष 2017-18* |
वित्तवर्ष 2016-171 |
वित्तवर्ष 2015-16 |
वित्तवर्ष 2014-151 |
वित्तवर्ष 2013-14 |
अब तक सर्जित कुल कार्य दिवस (करोड़ में) |
231.60(श्रम बजट का 100 प्रतिशत) |
235.6458 |
235.1465 |
166.21 |
220.37 |
रोजगार के औसत दिन प्रति परिवार |
45.44 |
46 |
48.85 |
40.17 |
45.97 |
परिवारों द्वारा किया गया कुल कार्य (करोड़ मेें) |
5.10 |
5.1224 |
4.8134 |
4.14 |
4.79 |
दिव्यांगजनों के द्वारा किया गया कार्य |
4,69,393 |
4,71,819 |
4,59,597 |
4,13,316 |
4,86,495 |
पूर्ण किये गए कार्यों की संख्या (करोड़ में) |
54.22 |
65.46 |
36.18 |
29.44 |
27.42 |
कृषि तथा कृषि सम्बन्धित अन्य कार्यों पर परिव्यय का प्रतिशत |
68.46 |
66 |
62.85 |
52.81 |
48.7 |
कुल परिव्यय (करोड़ मेें) |
63,887.35 |
50,062.92 |
44,002.59 |
36,025.04 |
38,552.62 |
ईएफएमएस के जरिए कुल परिव्यय प्रतिशत में |
96.31 |
92.33 |
91.19 |
77.35 |
37.17 |
15 दिनों में दिये गए भुगतान का प्रतिशत |
85.75 |
43.43 |
36.92 |
26.85 |
50.09 |
वित्तवर्ष 2017-18 के आँकड़े अस्थायी हैं। |
गाँवों के अन्धेरे को दूर करती सौर ऊर्जा
वर्ष 2019 तक घर-घर में बिजली पहुँचाने के प्रधानमंत्री के संकल्प को पूरा करना एक चुनौती है जिसे पूरा करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा सबसे महत्त्वपूर्ण विकल्प है। भारत की विद्युतीकरण योजना का मुख्य साधन है सौर ऊर्जा और इसमें 10 से 500 किलोवाट की क्षमता वाली मिनी ग्रिड महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। मिनी ग्रिड नवीकरणीय ऊर्जा की सम्भावनाओं का उपयोग करती है और बिजली की माँग को पूरा करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इनकी काफी माँग है।
आज भी ग्रामीण भारत के लगभग 30 करोड़ लोग ऊर्जा के लिये सदियों पुराने तरीकों जैसे कि मिट्टी का तेल, डीजल या लकड़ी से जलाए जाने वाले चूल्हों आदि का प्रयोग कर रहे हैं। सौर ऊर्जा न केवल इस वृहद अवसंरचनात्मक कमी को पूरा करने का एक अवसर प्रदान करती है बल्कि सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरण और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का भी साधन है। पिछले चार वर्षों में सौर संयंत्रों की स्थापना की कीमतों में आई 70 प्रतिशत तक कमी ने निजी कम्पनियों और उद्यमियों को आकर्षित किया है और यह वास्तव में अन्धेरे में जी रहे लाखों लोगों के जीवन में रोशनी की किरण लेकर आई है।
सौर ऊर्जा की विकेन्द्रित एवं मॉड्यूलर प्रकृति का होने के कारण, इसे विभिन्न ग्रामीण उपयोगों के लिये स्थापित करना सरल है जिसका प्रभाव ग्रामीण लोगों की उत्पादकता, सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा, पेयजल उपलब्धता और जीवनशैली पर होगा। सौर ऊर्जा का एक महत्त्वपूर्ण उपयोग है- एग्री पम्प जिसमें भारतीय किसानों की उत्पादकता काफी बढ़ाने की सम्भावनाएँ हैं। भारत में लगे लगभग 2.6 करोड़ एग्री पम्प में से लगभग एक करोड़ पम्प डीजल से चलते हैं जबकि सौर एग्री पम्प सस्ते और पर्यावरण मित्र होते हैं। भारत के गाँवों में स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता भी एक चुनौती है। जल को उपचारित करने के लिये भी बिजली की जरूरत होती है। सौर ऊर्जा का उपयोग इस क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण है। जैसे कि कोहिमा के निकट एक-एक गाँव में सौर ऊर्जा चालित जल उपचार संयंत्र लगाया गया है जो उन्नत मेम्ब्रेन फिल्टेरेशन पद्धति पर काम करता है और पीने के लिये शुद्ध पानी उपलब्ध कराता है।
सौर ऊर्जा के उपयोग से न केवल ग्रामीण रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं बल्कि इंटरनेट और टेलीविजन के जरिए सौर-ऊर्जा आधारित स्वास्थ्य सुरक्षा केन्द्रों, सौर चालित टेबलेट, जैसे कि एडजिला द्वारा विकसित टैबलेट जिसने कर्नाटक में शिक्षा के परिदृश्य को ही बदल दिया और सौर टेलीकॉम टॉवर्स तक पहुँच बनाई जा सकती है और ऊर्जा की आपूर्ति की कमी के कारण बन्द पड़े 150,000 टेलीकॉम टॉवर्स को चालू करना भी सम्भव होगा। दूसरी और सौर संयंत्रों को लगाने और उसके बाद उनकी देखरेख के लिये बड़ी संख्या में युवाओं की आवश्यकता होगा। इस प्रकार यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि ऊर्जा का यह वैकल्पिक स्रोत, सामाजिक और आर्थिक रूप से गाँवों के नक्शे को ही बदल देगा। केन्द्र के दिशा-निर्देशों पर राज्यों द्वारा की गई इस पहल में निजी क्षेत्रों को भी भागीदारी निभानी होगी। जैन इरीगेशन, टाटा सोलर, ग्रीनलाइट प्लेनेट जैसी कम्पनियाँ गाँवों में सौर ऊर्जा के विकास के लिये आगे आई हैं।
प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण
ग्रामीण विकास मंत्रालय प्रत्येक घर के निर्माण की भू-टैगिंग तथा सम्पूर्ण निर्माण प्रक्रिया की निगरानी के लिये अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहा है। पीएमएवाई-जी के तहत बनने वाले प्रत्येक पक्के घर में शौचालय, गैस कनेक्शन, बिजली आपूर्ति, पेयजल आपूर्ति आदि सुविधाओं से ग्रामीण भारत की तस्वीर बहुत तेजी से बदल रही है। प्रधानमंत्री ने 20 नवम्बर, 2016 को आगरा में प्रधानमंत्री आवास योजना- (ग्रामीण) का शुभारम्भ किया था। इन्दिरा आवास योजना (आईएवाई) की पुनर्संरचना करके पीएमएवाई-जी तैयार किया गया है। 2022 तक ‘सबके लिये आवास’ लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये पीएमएवाई-जी के अन्तर्गत 31 मार्च, 2019 तक एक करोड़ तथा 2022 तक 2.95 करोड़ पक्के आवासों के निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इनमें से 51 लाख घरों का निर्माण 31 मार्च, 2018 तक पूरा कर लिया जाएगा। इसके अन्तर्गत आईएवाई के तहत बनने वाले 2 लाख निर्माणाधीन आवास भी शामिल हैं।
ग्रामीण आवास योजना के प्रदर्शन में पिछले 4 वर्षों के दौरान 4 गुना वृद्धि हुई है। यह वृद्धि तब है जब 20 नवम्बर, 2016 को योजना के लांच होने के बाद से लाभार्थी का निबन्धन, भूटैगिंग, खाते की जाँच आदि प्रक्रियाओं के पूरा होने में कई महीने लग जाते हैं।
पीएमएवाई-जी के तहत निर्मित होने वाले एक करोड़ आवासों में से 76 लाख लाभार्थियों को आवास आवंटित किये जा चुके हैं तथा लगभग 63 लाख लाभार्थियों ने धनराशि की पहली किस्त प्राप्त कर ली है। वर्ष 2017-18 के दौरान उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक आवासों का निर्माण हुआ है। मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।
लाभार्थी के खाते में प्रत्यक्ष लाभ हस्तान्तरण से अच्छी गुणवत्ता वाले आवासों का तेजी से निर्माण सम्भव हुआ है। प्रत्यक्ष लाभ हस्तान्तरण से कार्यक्रम का पारदर्शितापूर्ण और निर्बाध तथा बेहतर कार्यान्वयन सुनिश्चित हुआ है। प्रत्यक्ष लाभ हस्तान्तरण के लिये राज्य-स्तर पर एक ही नोडल खाते का संचालन किया जाता है। पीएमएवाई-जी के तहत लाभार्थियों को लोक वित्त प्रबन्धन प्रमाली (पीएफएमएस) के तहत भुगतान किया जाता है। प्रत्यक्ष लाभ हस्तान्तरण से निम्न लाभ हुए हैः
1. आवास निर्माण में समय और लागत में कमी
2. पारदर्शिता के कारण धनराशि के दुरुपयोग में कमी।
3. लाभार्थियों को धन आवंटन प्रक्रिया की निगरानी में आसानी।
4. आवास निर्माण की बेहतर गुणवत्ता।
ग्रामीण आवास योजना के तहत 2013-14 से 2017-18 तक निर्मित होने वाले आवासों की संख्या (लाख में) |
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2013-14 (आईएवाई) |
2014-15 (आईएवाई) |
2015-16 (आईएवाई) |
2016-17 (आईएवाई पीएमएवाई-जी) |
2017-18 (आईएवाई पीएमएवाई-जी) |
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निर्मित आवास |
10.51 |
11.91 |
18.22 |
32.23 |
44.54* |
आवास के गुणवत्ता पूर्ण निर्माण के लिये प्रशिक्षित राजमिस्त्री की आवश्यकता होती है। इसके लिये ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण राजमिस्त्री प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किये गए हैं। मार्च, 2019 तक एक लाख ग्रामीण राजमिस्त्रियों को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य रखा गया है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छी गुणवत्ता वाले आवासों का निर्माण सम्भव होगा- देश में कुशलता प्राप्त कर्मियों की उपलब्धता बढ़ेगी और प्रशिक्षित राजमिस्त्रियों को आजीविका के बेहतर अवसर मिलेंगे।
साथ ही, प्रौद्योगिकी का उपयोग गरीबों को सक्षम तथा सशक्त बनाने के लिये किया जा रहा है। यूएनडीपी-आईआईटी दिल्ली ने आवासों के विभिन्न डिजाइन तैयार किये हैं। 15 राज्यों के लिये स्थानीय जलवायु तथा स्थानीय निर्माण सामग्री को ध्यान में रखते हुए आवासों के 168 डिजाइन तैयार किये गए हैं। लाभार्थी इनमें से किसी भी डिजाइन का चयन कर सकता है। इन आवास डिजाइनों को केन्द्रीय आवास शोध संस्थान, रुड़की ने भी मंजूरी दी है। इन आवास डिजाइनों में लागत कम आती है तथा ये आपदा प्रतिरोधी भी हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न डिजाइन वाले आवासों का निर्माण हो रहा है। इससे ग्रामीण परिदृश्य से सुखद बदलाव हो रहा है। गरीब लोगों को रहने के लिये सुरक्षित आवास प्राप्त हो रहे हैं जहाँ वे सम्मान के साथ जीवनयापन कर सकते हैं।
(लेखिका सीएसआईआर में साइंस रिपोर्टर में सम्पादक रह चुकी हैं।) ई-मेलःvineeta_niscom@yhoo.com
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