परिशिष्ट-1 - जलरूप देवता

Submitted by admin on Sat, 01/23/2010 - 16:20
Author
महेश कुमार मिश्र ‘मधुकर’

आपो ह्यायतनं विष्णोः, स च एवाम्भसां पतिः।
तस्मादप्सु स्मरेन्नित्यं, नारायणमघापहम्।।

‘जल’ विष्णु का निवास स्थान (अथवा जल ही उनका स्वरूप) है। विष्णु ही ‘जल’ के स्वामी हैं। इस कारण सदैव, जल में पापापहारी विष्णु का स्मरण करना चाहिए।

-ब्रह्मपुराण, 60/34

आपो देवगणाः प्रोक्ता, आपः पितृगणास्तथा।
तस्मादप्सु जलं देयं,पितृणां हितभिच्छता।।

सभी देवगण जलरूप हैं। पितृगण भी जलरूप ही हैं। इस कारण पितरों से अपनी भलाई की अपेक्षा करने वाले को जल में ही पितरों का ‘तर्पण’ करना चाहिए।

-यम स्मृति/95

‘शिव की जलमयी मूर्ति’ समस्त जगत् के लिए जीवनदायिनी है। ‘जल’ परमात्मा ‘भव’ की मूर्ति है, इसलिए उसे ‘भावी’ कहते हैं।

-सं.शिव पुराण/वायवीय संहिता/अ.-3

शिव की ‘वामदेव’ नामक मूर्ति ‘जलतत्व’ की स्वामिनी है।

-सं.शिव पुराण/वायवीय संहिता/अ.-3

रुद्रयामल तन्त्र के अनुसार ‘जल के अधिपति’ श्री गणेश जी हैं-

आकाशस्यथाधिपो विष्णुः, अग्नेश्चैव महेश्वरी।
वायोः सूर्यः क्षितेरीशो, जीवनस्य गणाधिपः।।