प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) 17वीं शताब्दी के आरंभ में वैन हेल्मॉन्ट (Van Helmont) ने प्रमाणित किया था कि पौधों के पोषणतत्व केवल मिट्टी से ही नहीं प्राप्त होते वरन अन्य स्रोतों से भी प्राप्त हो सकते हैं। सौ वर्ष बाद स्टीवेन हेल्ज (Stephen Hales) ने बताया कि पौधों के पोषणतत्व वायु से भी प्राप्त होते हैं। ऑक्सीजन के आविष्कार (1771-1772 ई.) के बाद यह सिद्ध हुआ कि जीवित प्राणियों के लिये ऑक्सीजन नितांत आवश्यक है। प्राणिमात्र ऑक्सीजन को साँस द्वारा अंदर लेते और कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में साँस द्वारा बाहर निकालते हैं। इंगेनहाउस (Ingen housz) ने पीछे प्रमाणित किया कि पौधे कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण करते हैं और ऑक्सीजन को वायु में छोड़ते हैं, जिससे वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा प्राय: एक सी बनी रहती है, विशेष घटती बढ़ती नहीं है।
कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण पौधों के पत्तों की निचली सतह पर उपत्वचा (cuticle) के रध्रों (stomata) द्वारा होता है। कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण और ऑक्सीजन के बहिष्करण का मात्रात्मक संबंध द सोसुर (De Saussure) द्वारा स्थापित किया गया था। इसको श्वसन गुणांक (Respiratory quotient) कहते हैं। यह अवशोषण पत्तों पर, या निम्न श्रेणी के पौधों में तने की सतह पर होता है। क्लोरोफिल (वर्णहरित) और प्रकाश ऊर्जा की सहायता से पानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विघटित होता है। यही हाइड्रोजन कार्बन डाइऑक्साइड का अपचयन करता है, जिससे पौधों में जटिल कार्बनिक पदार्थो का संश्लेषण होता है। इस क्रिया को 'प्रकाश संश्लेषण' कहते हैं।
क्लोरोफिल हरे रंग का वर्णक है। क्लोरोफिल में कम से कम चार वर्णक पाए जाते हैं : दोहरे वर्णक, क्लोरोफिल-ए और क्लोरोफिलबी और दो पीले वर्णक, कैरोटिन और जैथोफिल। इनका संश्लेषण पौधों में सूर्य प्रकाश द्वारा होता है। क्लोरोफिल पौधों में उपस्थित क्लोरोप्लास्ट (हरितलवक, Chloroplast) में रहता है। क्लोरोफिल में प्रकाश अवशोषण की क्षमता है। क्लोरोफिल जल में अल्प विलेय या प्राय: अविलेय होता है, पर अन्य कार्बनिक द्रवों में शीघ्र घुल जाता है। ठंढे मेथाइल ऐल्कोहॉल में सामान्य विलेयपर उष्ण मेथाइल ऐल्कोहॉल में अधिक विलेय होता है (देखें पर्णहरित) क्लोरोफिल में प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण करने की क्षमता है। प्रकाश संश्लेषण का यही आधार है। यदि यह क्षमता नहीं होती तो प्रकाश संश्लेषण संभव नहीं होता। क्लोरोप्लास्ट से क्लोरोफिल के अलग करने पर प्रकाश-संश्लेषण की क्षमता नष्ट हो जाती है। वैज्ञानिकों का मत है कि क्लोरोप्लास्ट में स्थित क्लोरोफिल की अणु सरंचना में परिवर्तन होने से ही उसमें प्रकाश के अवशोषण की क्षमता आती है। पौधों के पत्तों में क्लोरोफिल के अतिरिक्त कुछ अन्य वर्णक भी रहते हैं। जैसा ऊपर कहा गया है, ये भी प्रकाश संश्लेषण में क्लोरोफिल के सहायक होते हैं।
उच्च तरंगदैर्ध्य वाले लाल और नीले रंग की किरणों का क्लोरोफिल अधिक अवशोषण करता है। इनकी सहायता से क्लोरोफिल अधिक अवशोषण करता है। इनकी सहायता से क्लोरोफिल द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड और जल से पहले कार्बोहाइड्रेट बनते हैं। फिर पौधों में उपस्थित प्रोटोप्लाज्म की सहायता से अन्य जटिल कार्बोनिक पदार्थो, जैसे प्रोटीन, तैल, सैलूलोज, ऐंजाइम आदि का सृजन होता है। यह सृजन प्रकाश की उपस्थिति और अनुपस्थिति दोनों दशाओं में हो सकता है। बिल्कुल सफेद पत्ते प्रकाश संश्लेषण नहीं करते, उनके हरे भाग में ही प्रकाश संश्लेषण होता है।
कार्बन डाइऑक्साइड- सब पेड़ पौधों और प्राणियों के भरण पोषण और वृद्धि के लिये कार्बनिक आहार की आवश्यकता पड़ती है। कार्बनिक आहार से ही जीवित कोशिकाओं को ऊर्जा प्राप्त होती है। जीवों में कार्बनिक यौगिक के रूप में आहार में संचित ऊर्जा प्राप्त होती है। जीवों में कार्बनिक यौगिक के रूप में आहार में संचित ऊर्जा, वायु के ऑक्सीजन के साथ मिलकर, शक्ति उत्पन्न करती है। कार्बन का अंश जलकर कार्बन डाइऑक्साइड बनता और हाइड्रोजन का अंश जलकर पानी बनता है तथा कार्बनडाऑक्साइड और जलवाष्प के रूप में पानी शरीर से बाहर निकलकर वायु में मिल जाता है। इस प्रकार निकले कार्बन डाइऑक्साइड को पुन: कार्बनिक यौगिकों में परिणत हो जाने का कोई साधन यदि नहीं होता तो वायुमंडल की समस्त वायु कार्बन डाइऑक्साइड से भर जाती तथा उसमें प्राणियों का जीना असंभव हो जाता। वायुमंडल के कार्बन डाइऑक्साइड को पेड़ पौधे ग्रहण कर, उससे अनेक पदार्थो का निर्माण कर स्वयं बढ़ते हैं और अन्य प्राणियों के लिये खाद्य पदार्थ तैयार करते हैं। यह कार्य पत्तों द्वारा होता है। पत्तों में स्टोमेटा होते हैं। स्टोमेटों की उपत्वचा पर रध्रं होते हैं, इन्हीं रध्रों से कार्बन डाइऑक्साइड और जल प्रविष्ट करते हैं। विसरण का एक नियम है कि गैसें अधिक सांद्रण से कम सांद्रण की ओर परिवहन करती हैं। इसी नियम के अनुसार कार्बन डाइऑक्साइड वायु से पत्तों में प्रविष्ट करता है। ऐसे कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बनिक यौगिकों में परिणत करने के लिये प्रकाश किरणों की आवश्यकता पड़ती है। इस परिणत करने के लिये प्रकाश किरणों की आवश्यकता पड़ती है। इस परिवर्तन को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। प्रकाश संश्लेषण से वायु का कार्बन डाइऑक्साइड बराबर खर्च होता रहता है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की पूर्ति लकड़ी, कोयले, पेट्रोल आदि पदार्थो के जलने, चूना पत्थर सदृश चट्टानों के विघटन, ज्वालामुखियों से गैस विसर्जन, या प्राणियों की साँस द्वारा बाहर निकली गैस से होती रहती है। इस आदान प्रदान के कारण वायुमंडल की वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा सदैव लगभग 0.03 प्रति शत ही रहती है। मक्के के एक औसत पौधे में लगभग 364 ग्राम कार्बन रहता है। इतने कार्बन के लिये 0.03 प्रति शत कार्बन डाइऑक्साइड वाली वायु के 3.1 टन की आवश्यकता पड़ेगी। जो पौधे जल से डूबे रहते हैं, उनमें स्टोमेटा नहीं होते। वे जल में घुले हुए कार्बन डाइऑक्साइड का ऊतकों द्वारा अवशोषण करते हैं। कुछ पौधों के पत्तों में स्टोमेटों की संख्या कम होती है, पर अन्य पौधों में उनकी संख्या अधिक होती है और पत्तों के तल का एक प्रति शत भाग तक स्टोमेटा रंध्रों से भरा रहता है।
कुछ प्रकार के बैक्टीरिया प्रकाश की अनुपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड से कार्बन लेकर वृद्धि पाते रहते हैं। ये फेरस लोह लवण, गंधक, थायोसल्फेट, हाइड्रोजन सल्फाइड तथा हाइड्रोजन जैसे अकार्बनिक पदार्थो से इस कार्य के लिये ऊर्जा प्राप्त करते हैं।
प्रकाश संश्लेषण का रसायन सूर्यप्रकाश की ऊर्जा से कार्बन डाइऑक्साइड का अपचयन होता है। अपचयन के लिये हाइड्रोजन जल से प्राप्त होता है। ऐसे अपचयन से पहले कार्बोहाइड्रेट बनते हैं। ऐसे संश्लेषण का सरलतम समीकरण इस प्रकार है :
न काऔ2 अ न हा2 औ (अ सूर्य प्रकाश) (काहा2 औ)न अ न औ)[ nCo2 + nH2O (+ सूर्य प्रकाश) (CH2O)n + nO2]
यदि बननेवाला कार्बोहाइड्रेट ग्लेकोज है तो यह समीकरण यह रूप धारण करता है:
6 का औ2 + 6 हा2 औ (+ सूर्य प्रकाश) का6हा12 औ6) + 6 औ[6Co2 + 6H2O (+ सूर्य प्रकाश) C6 H12 O6 + 6O2]
इस प्रकार उन्मुक्त ऑक्सीजन वायु में मिल जाता है और कार्बन प्रकाश ऊर्जा को कार्बोहाइड्रेट के रूप में संचित रखता है। यहाँ जितना आयतन कार्बन डाइऑक्साइड का खर्च होता है उतना ही आयतन ऑक्सीजन का उन्मुक्त होता है। प्रयोगों से यह बात निर्विवाद सिद्ध हो गई है पर विकिरण ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा में कैसे परिणत होती है, इस रहस्य की संतोषप्रद व्याख्या अभी तक नहीं दी जा सकी है। कौन कार्बोहाइड्रेट पहले बनता है, इस विषय में भी एकमत नहीं है। कुछ लोगों का कथन है कि ग्लूकोज पहले बनता है, और फिर वह अन्य कार्बोहाइड्रेंटों में परिणत हो जाता है, पर सूर्यमुखी के संबंध में जो अन्वेषण निम्न ताप और प्रदीप्ति में हुए हैं उनसे सिद्ध होता है कि इस रासायनिक क्रिया से अधिकांश में इक्षुशर्करा ही बनती है।
प्रकाश संश्लेषण में बाह्य कारकों का विशेष प्रभाव पड़ता है। ऐसे कारकों में ताप, प्रकाश की तीव्रता, कार्बन डाइऑक्साइड का सांद्रण और जल की प्राप्ति उल्लेखनीय है। अतिरिक कारकों का भी प्रभाव पड़ता है। ऐसे कारकों में क्लोरोफिल आदि वर्णकों के सांद्र ऐंजाइम उत्प्रेरकों की सक्रियता, श्वसन तथा अन्य उपाचयात्मक क्रियाएँ हैं। इनमें पौधों के वंशागत लक्षण भी सम्मिलित हैं। कुछ पौधे शीत क्षेत्रों में और कुछ उष्ण क्षेत्रों में अच्छे उगते हैं। सब प्रकार के पौधों में प्रकाश संश्लेषण का रसायन तो प्राय: एक सा ही है। साधारणतया प्रकाश संश्लेषण का रसायन तो प्राय: एक सा ही है। साधारणतया प्रकाश संश्लेषण में ताप 00 सें. से 270 सें. रहता है। अनुकूल ताप होने पर भी इससे अधिक वृद्धि नहीं होती है। छाया में अनेक पेड़पौधे प्रकाश संश्लेषण करते ही नहीं, अथवा बहुत कम करते हैं। पौधों पर जो सूर्यप्रकाश पड़ता है, उसका एक से तीन प्रति शत अंश ही प्रकाश संश्लेषण में हरित ऊतकों द्वारा काम में आकर स्थितिज ऊर्जा का निर्माण करता है। देखा गया है कि एक ग्राम अणु कार्बन डाइऑक्साइड का अपचयन कर, कार्बोहाइड्रेट में परिणत करने के लिये 1,50,000 से 1,80,000 कैलोरी खर्च होता है। एक ग्राम अणु कार्बोहाइड्रेट में 1,12,000 कैलोरी स्थायी रूप से उपस्थित रहती है।
लाखें करोड़ों वर्षो से सूर्यप्रकाश की ऊर्जा प्रकाश संश्लेषण द्वारा स्थितिज ऊर्जा में परिणत होती आ रही है। इसके फलस्वरूप हमें कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि पदार्थ प्राप्य हैं, जिनके उपयोग से हम वह शक्ति प्राप्त करते हैं जिनसे रेलगाड़ियाँ, मोटरगाड़ियाँ, इंजन, वायुयान आदि चलते हैं। पौधों द्वारा सूर्य ऊर्जा का संचय होकर हमें पेड़ पौधों से फल, फूल, शाक, भाजियाँ, अनाज आदि प्राप्त होते हैं, जिनके आहार से मनुष्य और अन्य प्राणी जीवित रहकर शक्ति प्राप्त करते हैं। सूर्यप्रकाश से ही शर्करा, स्टार्च, प्रोटीन, वसा आदि खाद्य सामग्रियों का सृजन होता है, जिनके आहार से समस्त प्राणी जीवित रहते हैं। साथ ही प्रकाश संश्लेषण से ऑक्सीजन की मात्रा प्राय: एक सी बनी रहती है। प्राणियों के श्वसन तथा पदार्थों के दहन से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा वह दूषित नहीं होती और साँस लेने के लिये उपयुक्त बनी रहती है। यदि वायु के ऑक्सीजन का संतुलन इस प्रकार नहीं होता तो ऑक्सीजन के अभाव में कोई प्राणी जीवित नहीं रहता। प्रकाश संश्लेषण से प्रति वर्ष 1011 टन अर्थात् एक हजार करोड़ टन कार्बनिक पदार्थो का निर्माण होता है, यद्यपि सूर्यप्रकाश की ऊर्जा का बहुत अल्प अंश ही प्रकाश संश्लेषण द्वारा स्थितिज में इस प्रकार परिणत होता है। वस्तुत: हमारी पृथ्वी की समस्त ऊर्जा का स्रोत सूर्य की प्रकाशऊर्जा ही है। यह आवश्यक है कि सूर्य ऊर्जा का अधिकाधिक अंश मानव हित में लगाया जाय। यह अधिक वैज्ञानिक अनुसंधान से ही संभव हो सकता है। (शिवनाथ प्रसाद)
कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण पौधों के पत्तों की निचली सतह पर उपत्वचा (cuticle) के रध्रों (stomata) द्वारा होता है। कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण और ऑक्सीजन के बहिष्करण का मात्रात्मक संबंध द सोसुर (De Saussure) द्वारा स्थापित किया गया था। इसको श्वसन गुणांक (Respiratory quotient) कहते हैं। यह अवशोषण पत्तों पर, या निम्न श्रेणी के पौधों में तने की सतह पर होता है। क्लोरोफिल (वर्णहरित) और प्रकाश ऊर्जा की सहायता से पानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विघटित होता है। यही हाइड्रोजन कार्बन डाइऑक्साइड का अपचयन करता है, जिससे पौधों में जटिल कार्बनिक पदार्थो का संश्लेषण होता है। इस क्रिया को 'प्रकाश संश्लेषण' कहते हैं।
क्लोरोफिल हरे रंग का वर्णक है। क्लोरोफिल में कम से कम चार वर्णक पाए जाते हैं : दोहरे वर्णक, क्लोरोफिल-ए और क्लोरोफिलबी और दो पीले वर्णक, कैरोटिन और जैथोफिल। इनका संश्लेषण पौधों में सूर्य प्रकाश द्वारा होता है। क्लोरोफिल पौधों में उपस्थित क्लोरोप्लास्ट (हरितलवक, Chloroplast) में रहता है। क्लोरोफिल में प्रकाश अवशोषण की क्षमता है। क्लोरोफिल जल में अल्प विलेय या प्राय: अविलेय होता है, पर अन्य कार्बनिक द्रवों में शीघ्र घुल जाता है। ठंढे मेथाइल ऐल्कोहॉल में सामान्य विलेयपर उष्ण मेथाइल ऐल्कोहॉल में अधिक विलेय होता है (देखें पर्णहरित) क्लोरोफिल में प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण करने की क्षमता है। प्रकाश संश्लेषण का यही आधार है। यदि यह क्षमता नहीं होती तो प्रकाश संश्लेषण संभव नहीं होता। क्लोरोप्लास्ट से क्लोरोफिल के अलग करने पर प्रकाश-संश्लेषण की क्षमता नष्ट हो जाती है। वैज्ञानिकों का मत है कि क्लोरोप्लास्ट में स्थित क्लोरोफिल की अणु सरंचना में परिवर्तन होने से ही उसमें प्रकाश के अवशोषण की क्षमता आती है। पौधों के पत्तों में क्लोरोफिल के अतिरिक्त कुछ अन्य वर्णक भी रहते हैं। जैसा ऊपर कहा गया है, ये भी प्रकाश संश्लेषण में क्लोरोफिल के सहायक होते हैं।
उच्च तरंगदैर्ध्य वाले लाल और नीले रंग की किरणों का क्लोरोफिल अधिक अवशोषण करता है। इनकी सहायता से क्लोरोफिल अधिक अवशोषण करता है। इनकी सहायता से क्लोरोफिल द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड और जल से पहले कार्बोहाइड्रेट बनते हैं। फिर पौधों में उपस्थित प्रोटोप्लाज्म की सहायता से अन्य जटिल कार्बोनिक पदार्थो, जैसे प्रोटीन, तैल, सैलूलोज, ऐंजाइम आदि का सृजन होता है। यह सृजन प्रकाश की उपस्थिति और अनुपस्थिति दोनों दशाओं में हो सकता है। बिल्कुल सफेद पत्ते प्रकाश संश्लेषण नहीं करते, उनके हरे भाग में ही प्रकाश संश्लेषण होता है।
कार्बन डाइऑक्साइड- सब पेड़ पौधों और प्राणियों के भरण पोषण और वृद्धि के लिये कार्बनिक आहार की आवश्यकता पड़ती है। कार्बनिक आहार से ही जीवित कोशिकाओं को ऊर्जा प्राप्त होती है। जीवों में कार्बनिक यौगिक के रूप में आहार में संचित ऊर्जा प्राप्त होती है। जीवों में कार्बनिक यौगिक के रूप में आहार में संचित ऊर्जा, वायु के ऑक्सीजन के साथ मिलकर, शक्ति उत्पन्न करती है। कार्बन का अंश जलकर कार्बन डाइऑक्साइड बनता और हाइड्रोजन का अंश जलकर पानी बनता है तथा कार्बनडाऑक्साइड और जलवाष्प के रूप में पानी शरीर से बाहर निकलकर वायु में मिल जाता है। इस प्रकार निकले कार्बन डाइऑक्साइड को पुन: कार्बनिक यौगिकों में परिणत हो जाने का कोई साधन यदि नहीं होता तो वायुमंडल की समस्त वायु कार्बन डाइऑक्साइड से भर जाती तथा उसमें प्राणियों का जीना असंभव हो जाता। वायुमंडल के कार्बन डाइऑक्साइड को पेड़ पौधे ग्रहण कर, उससे अनेक पदार्थो का निर्माण कर स्वयं बढ़ते हैं और अन्य प्राणियों के लिये खाद्य पदार्थ तैयार करते हैं। यह कार्य पत्तों द्वारा होता है। पत्तों में स्टोमेटा होते हैं। स्टोमेटों की उपत्वचा पर रध्रं होते हैं, इन्हीं रध्रों से कार्बन डाइऑक्साइड और जल प्रविष्ट करते हैं। विसरण का एक नियम है कि गैसें अधिक सांद्रण से कम सांद्रण की ओर परिवहन करती हैं। इसी नियम के अनुसार कार्बन डाइऑक्साइड वायु से पत्तों में प्रविष्ट करता है। ऐसे कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बनिक यौगिकों में परिणत करने के लिये प्रकाश किरणों की आवश्यकता पड़ती है। इस परिणत करने के लिये प्रकाश किरणों की आवश्यकता पड़ती है। इस परिवर्तन को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। प्रकाश संश्लेषण से वायु का कार्बन डाइऑक्साइड बराबर खर्च होता रहता है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की पूर्ति लकड़ी, कोयले, पेट्रोल आदि पदार्थो के जलने, चूना पत्थर सदृश चट्टानों के विघटन, ज्वालामुखियों से गैस विसर्जन, या प्राणियों की साँस द्वारा बाहर निकली गैस से होती रहती है। इस आदान प्रदान के कारण वायुमंडल की वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा सदैव लगभग 0.03 प्रति शत ही रहती है। मक्के के एक औसत पौधे में लगभग 364 ग्राम कार्बन रहता है। इतने कार्बन के लिये 0.03 प्रति शत कार्बन डाइऑक्साइड वाली वायु के 3.1 टन की आवश्यकता पड़ेगी। जो पौधे जल से डूबे रहते हैं, उनमें स्टोमेटा नहीं होते। वे जल में घुले हुए कार्बन डाइऑक्साइड का ऊतकों द्वारा अवशोषण करते हैं। कुछ पौधों के पत्तों में स्टोमेटों की संख्या कम होती है, पर अन्य पौधों में उनकी संख्या अधिक होती है और पत्तों के तल का एक प्रति शत भाग तक स्टोमेटा रंध्रों से भरा रहता है।
कुछ प्रकार के बैक्टीरिया प्रकाश की अनुपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड से कार्बन लेकर वृद्धि पाते रहते हैं। ये फेरस लोह लवण, गंधक, थायोसल्फेट, हाइड्रोजन सल्फाइड तथा हाइड्रोजन जैसे अकार्बनिक पदार्थो से इस कार्य के लिये ऊर्जा प्राप्त करते हैं।
प्रकाश संश्लेषण का रसायन सूर्यप्रकाश की ऊर्जा से कार्बन डाइऑक्साइड का अपचयन होता है। अपचयन के लिये हाइड्रोजन जल से प्राप्त होता है। ऐसे अपचयन से पहले कार्बोहाइड्रेट बनते हैं। ऐसे संश्लेषण का सरलतम समीकरण इस प्रकार है :
न काऔ2 अ न हा2 औ (अ सूर्य प्रकाश) (काहा2 औ)न अ न औ)[ nCo2 + nH2O (+ सूर्य प्रकाश) (CH2O)n + nO2]
यदि बननेवाला कार्बोहाइड्रेट ग्लेकोज है तो यह समीकरण यह रूप धारण करता है:
6 का औ2 + 6 हा2 औ (+ सूर्य प्रकाश) का6हा12 औ6) + 6 औ[6Co2 + 6H2O (+ सूर्य प्रकाश) C6 H12 O6 + 6O2]
इस प्रकार उन्मुक्त ऑक्सीजन वायु में मिल जाता है और कार्बन प्रकाश ऊर्जा को कार्बोहाइड्रेट के रूप में संचित रखता है। यहाँ जितना आयतन कार्बन डाइऑक्साइड का खर्च होता है उतना ही आयतन ऑक्सीजन का उन्मुक्त होता है। प्रयोगों से यह बात निर्विवाद सिद्ध हो गई है पर विकिरण ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा में कैसे परिणत होती है, इस रहस्य की संतोषप्रद व्याख्या अभी तक नहीं दी जा सकी है। कौन कार्बोहाइड्रेट पहले बनता है, इस विषय में भी एकमत नहीं है। कुछ लोगों का कथन है कि ग्लूकोज पहले बनता है, और फिर वह अन्य कार्बोहाइड्रेंटों में परिणत हो जाता है, पर सूर्यमुखी के संबंध में जो अन्वेषण निम्न ताप और प्रदीप्ति में हुए हैं उनसे सिद्ध होता है कि इस रासायनिक क्रिया से अधिकांश में इक्षुशर्करा ही बनती है।
प्रकाश संश्लेषण में बाह्य कारकों का विशेष प्रभाव पड़ता है। ऐसे कारकों में ताप, प्रकाश की तीव्रता, कार्बन डाइऑक्साइड का सांद्रण और जल की प्राप्ति उल्लेखनीय है। अतिरिक कारकों का भी प्रभाव पड़ता है। ऐसे कारकों में क्लोरोफिल आदि वर्णकों के सांद्र ऐंजाइम उत्प्रेरकों की सक्रियता, श्वसन तथा अन्य उपाचयात्मक क्रियाएँ हैं। इनमें पौधों के वंशागत लक्षण भी सम्मिलित हैं। कुछ पौधे शीत क्षेत्रों में और कुछ उष्ण क्षेत्रों में अच्छे उगते हैं। सब प्रकार के पौधों में प्रकाश संश्लेषण का रसायन तो प्राय: एक सा ही है। साधारणतया प्रकाश संश्लेषण का रसायन तो प्राय: एक सा ही है। साधारणतया प्रकाश संश्लेषण में ताप 00 सें. से 270 सें. रहता है। अनुकूल ताप होने पर भी इससे अधिक वृद्धि नहीं होती है। छाया में अनेक पेड़पौधे प्रकाश संश्लेषण करते ही नहीं, अथवा बहुत कम करते हैं। पौधों पर जो सूर्यप्रकाश पड़ता है, उसका एक से तीन प्रति शत अंश ही प्रकाश संश्लेषण में हरित ऊतकों द्वारा काम में आकर स्थितिज ऊर्जा का निर्माण करता है। देखा गया है कि एक ग्राम अणु कार्बन डाइऑक्साइड का अपचयन कर, कार्बोहाइड्रेट में परिणत करने के लिये 1,50,000 से 1,80,000 कैलोरी खर्च होता है। एक ग्राम अणु कार्बोहाइड्रेट में 1,12,000 कैलोरी स्थायी रूप से उपस्थित रहती है।
लाखें करोड़ों वर्षो से सूर्यप्रकाश की ऊर्जा प्रकाश संश्लेषण द्वारा स्थितिज ऊर्जा में परिणत होती आ रही है। इसके फलस्वरूप हमें कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि पदार्थ प्राप्य हैं, जिनके उपयोग से हम वह शक्ति प्राप्त करते हैं जिनसे रेलगाड़ियाँ, मोटरगाड़ियाँ, इंजन, वायुयान आदि चलते हैं। पौधों द्वारा सूर्य ऊर्जा का संचय होकर हमें पेड़ पौधों से फल, फूल, शाक, भाजियाँ, अनाज आदि प्राप्त होते हैं, जिनके आहार से मनुष्य और अन्य प्राणी जीवित रहकर शक्ति प्राप्त करते हैं। सूर्यप्रकाश से ही शर्करा, स्टार्च, प्रोटीन, वसा आदि खाद्य सामग्रियों का सृजन होता है, जिनके आहार से समस्त प्राणी जीवित रहते हैं। साथ ही प्रकाश संश्लेषण से ऑक्सीजन की मात्रा प्राय: एक सी बनी रहती है। प्राणियों के श्वसन तथा पदार्थों के दहन से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा वह दूषित नहीं होती और साँस लेने के लिये उपयुक्त बनी रहती है। यदि वायु के ऑक्सीजन का संतुलन इस प्रकार नहीं होता तो ऑक्सीजन के अभाव में कोई प्राणी जीवित नहीं रहता। प्रकाश संश्लेषण से प्रति वर्ष 1011 टन अर्थात् एक हजार करोड़ टन कार्बनिक पदार्थो का निर्माण होता है, यद्यपि सूर्यप्रकाश की ऊर्जा का बहुत अल्प अंश ही प्रकाश संश्लेषण द्वारा स्थितिज में इस प्रकार परिणत होता है। वस्तुत: हमारी पृथ्वी की समस्त ऊर्जा का स्रोत सूर्य की प्रकाशऊर्जा ही है। यह आवश्यक है कि सूर्य ऊर्जा का अधिकाधिक अंश मानव हित में लगाया जाय। यह अधिक वैज्ञानिक अनुसंधान से ही संभव हो सकता है। (शिवनाथ प्रसाद)
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