प्रशांत महासागरीय द्वीपपुंज

Submitted by Hindi on Sat, 08/20/2011 - 15:17
प्रशांत महासागरीय द्वीपपुंज ओशिएनियाया प्रशांत महासागर के लगभग 80,00,000 वर्ग मील के क्षेत्र में लगभग 30,000 से भी अधिक द्वीप इधर उधर बिखरे हैं। यहाँ पर समुद्र की सतह के ऊपर अनेक बड़े बड़े पहाड़, पठार एवं पर्वतश्रेणियाँ निकली हुई हैं। इनमें से कितने ही द्वीप एक शृंखला में अर्धचंद्राकर फैले हुए हैं। कहीं कहीं ये सभी समुद्रतल से हजारों फुट ऊपर निकले हुए हैं। उत्तर-पूर्वी प्रशांत महासागर की गहराई अधिक तथा समान होने से इसमें बहुत कम द्वीप हैं।

इन द्वीपसमूहों का सम्मिलित क्षेत्रफल लगभग 4,00,000 वर्गमील है, जो संयुक्त राज्य, अमरीका, का है। बहुत से द्वीप निकटवर्ती महाद्वीपों के अवशेष मात्र हैं। यह संभव है कि ये उन महाद्वीपों से किसी भूवैज्ञानिक काल (geological age) में अलग हुए हों, जिसके उदाहरण जावा, सुमात्रा, बोर्नियो आदि कहे जा सकते हैं। यह भी कहा जाता है कि न्यूगिनी अभी हाल ही में आस्ट्रेलिया महाद्वीप से अलग हुआ है। ज्वालामुखी उद्गारों से प्रभावित होकर ये द्वीप समुद्र की सतह के ऊपर आ गए हैं। इनकी लंबी श्रृंखलाएँ कहीं कहीं एक हजार मील या इससे भी अधिक हैं। बहुत से द्वीपपुज प्रवाल (मूँगे) के बने हैं। न्यूगिनी से आस्ट्रेलिया महाद्वीप के उत्तर में, प्रशांत महासागर का भीतरी भाग बहुत ही उथला है, जिसमें अंतर्निहित पर्वतश्रेणियाँ हैं। इनकी चोटियाँ समुद्रतल से बाहर निकलकर द्वीप बन गई हें। ये प्रशांत द्वीपपुंज ओशिएनिया (Oceania) कहे जाते हैं। धरातल की बनावट, द्वीपों के प्रकार तथा निवासियों के आधार पर मेलानीशिया, माइक्रोनेशिया तथा पॉलिनीशिया नामक तीन भागों में विभक्त किया गया है।

भूगोलवेत्ता आस्ट्रेलिया तथा अन्य द्वीपसमूहों, जैसे हिंदेशिया, फॉरमोसा, फिलिपीन द्वीपसमूह, जावा आदि, को ओशिएनिया के अंतर्गत नहीं लेते। ऐतिहासिक विद्वानों का मत है कि सर्वप्रथम यहाँ आनेवाले निवासी, एशिया से अथवा हिंदोशिया से आए। बाद में इन लोगों ने यहाँ के प्राचीन आदिवासियों को द्वीप के पूर्व और दक्षिण दिशाओं में भगा दिया। वे सभी अच्छे तथा कुशल नाविक थे, अत: नावों द्वारा भागकर खाली द्वीपों में पहुँच गए और इस तरह मध्यवर्ती पूर्वी प्रशांत महासागर के द्वीपों में जा बसे।

इन द्वीपों की प्राकृतिक वनस्पतियों की विविधता तथा समानता वहाँ की ऊँचाई, वर्षा, मिट्टी तथा अक्षांश के ऊपर निर्भर करती है, जैसे विरल वनस्पतियाँ गरम, नीचे, मूँगे के द्वीपों पर पाई जाती हैं। इसके विपरीत ऊँचे तथा अधिक वर्षावाले द्वीपों पर सघन प्राकृतिक वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। दलदल में उगनेवाले आम के वृक्ष मुख्यतया इन द्वीपों के समुद्रतटों पर पाए जाते हैं। नदियों की घाटियों में कृषियोग्य भूमि के छोटे छोटे भूभागों पर कचालू (taro) तथा गन्ना की खेती होती है। विषुवतरेखीय वन तेज ढालों पर तथा अधिक ऊँचाइयों पर ही देखने को मिलते हैं। नारियल के वृक्षों के समूह समुद्रतट पर ही दिखाई देते हैं। इस वृक्षों से तेल, रेशे, गरी (कोपरा) तथा फल प्राप्त होते हैं। अधिक ऊँचाई पर अंगूर के उद्यान भी हैं कुछ द्वीप कंकड़ के ऊपर बालू के ढेर के समान हैं। इनमें से कुछ प्रवालभित्ति अथवा लैगून (lagoon) के चारों ओर बिखरे हुए हैं, जिनको प्रवाल-द्वीप-वलय (atolls) कहा जाता है। ये ज्वालामुखी उद्गार से उत्पन्न उथल पुथल के समय पानी की सतह के ऊपर आ गए हैं। इनकी ढालें सीढ़ीनुमा हैं तथा ये विभिन्न ऊँचाइयों में पाए जाते हैं। जो बहुत अधिक ऊँचाई वाले द्वीप हैं, उनपर चूने के पत्थर तथा इनसे बनी गुफाओं एवं गड्ढों के अंदर घने छोटे वृक्षों के जंगल एवं अंगूर की लताएँ पाई जाती हैं। वर्षा का पानी शीघ्र ही चूने के पत्थरों में विलीन हो जाता है, जिससे इन पर नदियाँ नहीं मिलतीं। बहुत से द्वीप ज्वालामुखी उद्गार के लावा तथा राख द्वारा निर्मित हैं। ये नुकीलो चोटियों तथा पहाड़ों से पूरिपूर्ण हैं। इनमें अनेक नदियाँ पाई जाती हैं, जिनकी घाटियों में उपजाऊ भूमि तथा घने जंगल पाए जाते हैं। दक्षिण-पश्चिम में बसे द्वीप प्राचीन चट्टानों द्वारा निर्मित हैं। बहुत से भूवैज्ञानिकों का कहना है कि ये मेलानीशियन महाद्वीप (Melanesian continent) के अवशेष हैं, जो एक समय में एशिया, ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी भाग, फीजी द्वीप आदि से मिले हुए थे, परंतु जैसे जैसे क्षरण आरंभ हुआ तथा पृथ्वी की भीतरी सतह पर शक्तियों का प्रभाव पड़ा, ये एक दूसरे से अलग होते चले गए और इनकी ऊँची ऊँची चोटियाँ बन गई।

यहाँ पर वर्षा की मात्रा में काफी अंतर मिलता है। अधिकतर स्वच्छ वायुमंडल तथा सूर्य के तीव्र प्रकाश के बाद, तीव्रता के साथ वर्षा होती है। तूफान (typhoon) तथा उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (cyclone) मई से दिसंबर महीने तक पश्चिमी द्वीपों को अत्याधिक हानि पहुँचाते हैं। इन द्वीपों की रमणीकता तथा सुंदरता से मुग्ध होकर बड़े बड़े कलाकार तथा लेखक इन द्वीपों का विविध प्रकार से वर्णन करते हैं।

मेलानीशिया- इसके अंतर्गत दक्षिण तथा पश्चिम दिशा में बिखरे समस्त द्वीप आते हैं, जो लगभग 3,70,00 वर्गमील से अधिक क्षेत्र में फैले हैं। इसमें न्यूगिनी, सॉलोमन द्वीप एवं उसके साथ अन्य द्वीपगण सम्मिलित हैं। प्रशांत सागरीय द्वीपों में न्यूगिनी सबसे बड़ा द्वीप हैं, जो 91,000 वर्ग मील में फैला हुआ है। यह कैलिफॉनिया के विस्तार का दुगुना है। मेलानीशिया का अर्थ काला द्वीप (black island) है, क्योंकि यहाँ के निवासी काले रंग के होते हैं।

यह द्वीपसमूह ऑस्ट्रेलिया के उत्तर तथा उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है। इसमें प्रशांत महासागर का अधिकांश दक्षिण-पश्चिमी भाग आता है। इनमें से कुछ द्वीप प्रवाल द्वीपवलय के बने हैं, जो चारों ओर से प्रवाल भित्ति से घिरे हुए हैं। बहुत से द्वीप गरम, नम जलवायु वाले तथा घने जंगलों से युक्त हैं, जहाँ पर थोड़ो बहुत कृषि भी होती है। न्यूगिनी की पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी समुद्रतट से 600 फुट ऊँची है। इन द्वीपों के निचले मैदानी भागों का ताप 210 सें. से 280 सें. के भीतर घटता बढ़ता रहता है। वर्षा ऋतु जनवरी से मार्च मास तक होती है, जो कभी कभी 24 घंटे के भीतर 10 इंच तक हो जाती है। इस तरह की वर्षा बाढ़ ला देती है, जो मकानों और कृषि को नष्ट कर देती है।

यहाँ पर विभिन्न सभ्यताएँ साथ साथ पाई जाती हैं, लोगों के रीति रिवाज तथा बोल चाल में अंतर है। यह एक द्वीप से दूसरे द्वीप तक ओर एक जाति से दूसरी जाति में बदलती रहती हैं। यहाँ के अधिकांश निवासी हबशी जाति की तरह लंबे, तथा घुँघराले बालोंवाले होते हैं। अंग्रेजों, ऑस्ट्रेलिया वासियों एवं अमरीका निवासियों के साथ संपर्क में आने के कारण ये अंग्रेजी भाषा भी जानते हैं। बहुत से मेलानीशिया निवासी छोटी छोटी छिटकी बस्तियों में रहते हैं। न्यूगिनी के मध्यवर्ती भागों के लोग खाल, घास तथा पेड़ों की छालों द्वारा निर्मित कपड़े पहनते हैं। बहुत से लोग अब भी नंगे रहते हैं। यहाँ के निवासी, स्त्री एवं पुरुष, बालों में कंघी करते हैं और अपने आपको खूब सजाते हें।

अधिकांश फीजी निवासी तथा न्यूकैलेडोनिया निवासी ईसाई मत को माननेवाले हैं। बहुत से निवासी कचालू (taro) खेती खाद्य पदार्थ के रूप में करते हैं। कुछ निवासी मुर्गे मुर्गियों, सूअर आदि पालते हैं। न्यूगिनी निवासी कुछ उड़ती चिडियाँ का शिकार करते हैं, जो खाने के लिये तथा उनकी हड्डियाँ औजार आदि बनने के काम में आती हैं। जो निवासी घने जंगलों में रहते हैं, वे अपना लालन पालन शिकर द्वारा अथवा गोंद और रेतिन इकट्ठा करके करते हैं। ये भाले, तीर तथा धनुष द्वारा शिकार करते हैं। नयूकैलेडोनिया के निवासी कहवा के बगीचों में काम करते हैं, कुछ गाय बैल पालते हैं तथा उन्हें पठारों पर चराते हैं। फीजी निवासी ईख, धान, कोको, कहवा, रबर, कपास तथा रसदार फलों की खेती करते हैं। न्यूगिनी के समुद्रतटों के निवासी मछली मारकर अपना निर्वाह करते हैं। ये सूखी मछलियों का व्यापार भी करते हैं। मेलानीशियाई लोग निकल, क्रोमाइट, ताँबा, सोना, राँगा, जस्ता आदि की खानों में काम करते हैं। न्यूकैलेडोनिया में कच्चा लोहा, ऐंटिमनी तथा पारा की खानें हैं।

माइक्रोनेशिया- इसका अर्थ है छोटे छोटे द्वीपों का पुंज। इसके अंतर्गत मुख्यतया बोनिन (Bonin), कैरोलाइना (Carolina), गिल्बर्ट (Gilbert), मेयरिऐना (Mariana), मार्शेल (Marshall) नाऊरू (Nauru), वॉलकैनो (Volcano) तथा वेक (Wake) आदि द्वीप आते हैं। ये सभी द्वीप मेलानीशिया के पूर्व तथा उत्तर में बिखरे हैं। इनका सम्मिलित विस्तार लगभग 1,400 वर्ग मील है।

यह लगभग 2,500 द्वीपों का समूह, फिलिपीन द्वीपसमूह से 500 मील उत्तर की ओर हैं। इनमें से अधिकांश निचले प्रदेशवाले प्रवाल द्वीप है, जैसे पूर्व में गिल्बर्ट तथा मार्शेल। मेयरिऐना अत्यधिक ऊँचे ज्वालामुखी उद्गार से बने पत्थरों द्वारा निर्मित है।

माइक्रोनेशिया द्वीपपुंज में सबसे अधिक वर्षा तथा नम प्रदेश पोनापे (Ponape) की घाटियाँ हैं, जहाँ पर हर वर्ष औसतन 180 इंच वर्षा होती है। यह उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के क्षेत्र में स्थित समतापवाला द्वीप है। यहाँ का औसत ताप 210 सें. तथा 280 सें. के मध्य में रहता है। यहाँ पर वर्षा ऋतु मई मास से लेकर दिसंबर मास तक रहती है। तूफान हर वर्ष यहाँ जन, धन, कृषि, मकान आदि का विनाश करते रहते हैं।

इस द्वीपपुंज के पूर्वी भागों में रहनेवाली लोग पॉलिनेशिया निवासियों से मिलते जुलते हैं। ये लंबे तथा भूरे रंगवाले होते हैं। इस द्वीप के पश्चिमी भागों में रहनेवाले मंगोल आकृति की जन जातियों से मिलते जुलते हैं। यहाँ लोग दूर दूर बसे हैं, पर कहीं कहीं जनसंख्या 1,000 मनुष्य प्रति वर्ग मील भी है। यहाँ के लोग अमरीका तथा यूरोप निवासियों की तरह वस्त्र पहनते हैं। स्त्रियाँ प्राय: घुटने तक नारियल के रेशे अथवा पत्तों से बने लँहगे (skirt) पहनती हैं। पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों अपने बालों में लकड़ी के बने कंघे लगाते हैं।

यहाँ के लोग मछलियों तथा समुद्र से प्राप्त खाद्य समाग्री पर अपना जीवननिर्वाह करते हैं। इसके पूर्वी एवं दक्षिणी द्वीपों के निवासी बहुत अच्छे नाविक होते हैं। द्वीप के मध्यवर्ती भागों के लोग अधिकांशकृषि पर निर्भर रहते हैं। ये कंद, कचालू केला, नारियल आदि की खेती करते हैं। यहाँ का मुख्य व्यापार सहकारी संघों द्वारा होता है।

पॉलिनीशिया- इसका अर्थ है, असंख्य द्वीपों का पुंज। ओशिएनिया के हवाई तथा न्यूजीलैंड द्वीपसमूहों में ही बड़े बड़े नगर निहित हैं। ये नगर आधुनिक साजसज्जा से परिपूर्ण तथा व्यापारिक, औद्योगिक एवं विद्या के बड़े बड़े संस्थानों से पूर्ण हैं। ये द्वीप मुख्यतया अंतरराष्ट्रीय तिथिरेखा के पूर्व में स्थित हैं। (देखें पॉलिनिशिया)।

अधिकतर द्वीप ज्वालामुखी पर्वतों की चोटियाँ रहे हैं। इसके अतिरिक्त कुछ ऊँची उठी हुई प्रवालभित्ति (coral reef) से तथा प्रवालवलय (atolls) से बने हैं। कितने ही द्वीप चूने अथवा लावा द्वारा बने पत्थरों से ढके हैं। लावा से बनी मिट्टियों पर उष्णकटिबंधीय वन पाए जाते हैं। यहाँ के निवासी सुगठित शरीरवाले लंबे तगड़े तथा घुँघराले बालोंवाले होते हैं। हवाई, सेमोआ (Samoa), टोंगा (Tonga) तथा न्यूजीलैंड में रहनेवाले माओरी इसके उदाहरण हैं।

इनके मकान मिट्टी अथवा पत्थर के चबूतरों पर बने होते हैं। लकड़ी के बने मकानों को नारियल के पत्तों से छाते हैं। पुरुष एवं स्त्रियों का पहनावा कमर तक ही सीमित होता है, जिसे लावालावा (lava lava) या परेन (paren) कहते हैं। अधिकांश निवासी ईसाई हो गए हैं, पर इसके पहले वे अपने पितामह आदि के भूतों को पूजते थे। इनकी पूजा में कभी कभी मानव बलि भी दी जाती थी। यहाँ का प्राचीन धर्म माना (Mana, जादू की ताकत) तथा टैबू (Taboo) पर आश्रित था। पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों ही हस्तकला में निपुण होते हैं। (विजयराम सिंह)

Hindi Title


विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)




अन्य स्रोतों से




संदर्भ
1 -

2 -

बाहरी कड़ियाँ
1 -
2 -
3 -