पर्यावरण स्थिति पर प्रतिवेदन

Submitted by admin on Wed, 12/08/2010 - 11:01
पर्यावरण की स्थिति पर प्रतिवेदन का मुख्य उद्देश्य है भारत में पर्यावरण की वस्तु-स्थिति प्रस्तुत करना जो मौलिक दस्तावेज के रूप में प्रयुक्त हों तथा युक्तिसंगत एवं सूचना आधारित निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया में सहायता करे।

पर्यावरण की दशा पर प्रतिवेदन का लक्ष्य आने वाले दशकों में संसाधन के निर्धारण हेतु पर्यावरण की दशा एवं प्रवृत्ति के विश्लेषण पर आधारित नीति-निर्देश उपलब्ध कराना तथा राष्ट्रीय पर्यावरणकारी योजना हेतु दिशा-निर्देश मुहैया कराना है।

भारत के लिए पर्यावरण स्थिति पर प्रतिवेदन के अंतर्गत पर्यावरण (भूमि, वायु, जल, जैव विविधता) की दशा एवं प्रवृत्तियाँ तथा 5 महत्त्वपूर्ण विषय, अर्थात् जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, जल सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा एवं शहरीकरण का प्रबंधन शामिल हैं।

प्रतिवेदन में पर्यावरण की वर्त्तमान दशा एवं प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण में परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी दबाव तथा इन परिवर्तनों के प्रभाव से संबंधित अनेक प्राथमिक मुद्दे शामिल हैं। यह प्रतिवेदन, भविष्य में पर्यावरण क्षरण की रोकथाम एवं निगरानी के उत्तरदायित्व के रूप में कार्यक्रमों अथवा सरकार द्वारा लागू की गई वर्त्तमान एवं प्रस्तावित नीतिगत उपायों का मूल्यांकन भी करता है, साथ ही, नीतिगत विकल्प भी प्रस्तावित करता है।

पर्यावरण स्थिति पर प्रतिवेदन 2009 के महत्त्वपूर्ण बिंदु


• भारत में भूमि का लगभग 45% अपरदन, मृदा अम्लीयता, क्षारीयता एवं लवणीयता, जल जमाव तथा वायु अपरदन के कारण निम्निकृत है। भूमि के निम्नीकरण के मुख्य कारण हैं- वनों की कटाई, अ-धारणीय (असुस्थिर) कृषि, खनन एवं भू-जल का अत्यधिक दोहन। यद्यपि, 1470 लाख हेक्टेयर निम्नीकृत भूमि की दो-तिहाई को बड़ी सरलता से सुधारा जा सकता है। भारत में वन आच्छादन क्रमिक रूप से बढ़ रहा है (वर्त्तमान में लगभग 21%)।
• भारत के सभी शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। सांस लेने योग्य वायु में छोड़ गये कणों (कार्बन एवं धूल कण जो फेफड़े के अंदर पहुंचते हैं) की मात्रा का स्तर भारत के 50 शहरों में बढ़ गया है। शहर की हवा में वायु प्रदूषण के मुख्य कारण वाहन एवं कारखाने हैं।
• भारत अपने उपयोग किये जा सकने वाले जल की मात्रा का 75% उपयोग में ला रहा है और यदि इसका उपयोग सावधानी से किया जाए तो यह भविष्य के लिए बस जरूरत भर की मात्रा है। घरेलू उपयोग हेतु जल की उचित कीमत निर्धारण की कमी, साफ-सफाई की खराब स्थिति, उद्योगों द्वारा भूमि जल का अनियंत्रित निष्कर्षण, कारखानों द्वारा विषैली तथा कार्बनिक गंदे जल का प्रवाह, अदक्ष सिंचाई व्यवस्था तथा रासायनिक ऊर्वरकों एवं कीटनाशियों का अत्यधिक प्रयोग, देश में जल संकट का मुख्य कारण है।
• यद्यपि भारत विभिन्न मानव प्रजातियों की संख्या की दृष्टि से विश्व के 17 समृद्धतम जैव विविधता वाले देशों में से एक है, किंतु इसके 10% वन्य जीव एवं वनस्पति का अस्तित्व खतरे में हैं। इसके मुख्य कारण हैं- पर्यावास का विनाश, शिकार, हमलावर प्रजाति, अत्यधिक विदोहन, प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन।
• भारत की शहरी जनसंख्या का लगभग एक-तिहाई मलिन बस्तियों में निवास करती है।
• भारत विश्व में जलवायु परिवर्तन के लिए उत्तरदायी हरित गृह गैसों के कुल उत्सर्जन का केवल 5 प्रतिशत उत्सर्जित करता है। यद्यपि 70 करोड़ भारतीय प्रत्यक्ष रूप से भूमंडलीय तापन के खतरे का सामना कर रहे हैं क्योंकि यह कृषि को प्रभावित करता है, सुखाड़, बाढ़ और तूफानों को बार-बार उत्पन्न करता है तथा समुद्र के जलस्तर में वृद्धि करता है।

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