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पर्यावरण विज्ञान उच्चतर माध्यमिक पाठ्यक्रम
हम एक बहुत ही सुंदर ग्रह पर रहते हैं, जो पृथ्वी के नाम से जाना जाता है। यह ग्रह पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों तथा अन्य जीवों का भी निवास है। हमारी पृथ्वी एक विशाल ब्रह्मांड का एक भाग है। यह ब्रह्मांड लगभग पंद्रह से बीस अरब वर्ष पुराना है। पृथ्वी की आयु लगभग 4 से 5 अरब वर्ष है, जबकि मानव का आविर्भाव कोई 20 लाख वर्ष पहले हुआ था। इस पाठ का अध्ययन करने के बाद आप जानेंगे कि पृथ्वी का उद्गम कैसे हुआ, उसे अपना पर्यावरण कैसे प्राप्त हुआ और मानव अपने कल्याण और विकास के लिये इस पर्यावरण के संसाधनों का उपयोग कैसे करता रहा।
उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात, आपः
- पृथ्वी के उद्भव की खोज कर सकेंगे;
- पृथ्वी पर पायी जाने वाली उन परिस्थितियों की सूची बना सकेंगे, जो जीवन को सहारा देती हैं और इसलिए पृथ्वी को विलक्षण बनाती हैं;
- मानव का उद्भव होने से पहले जीवन के उद्भव और विकास की घटनाओं का क्रमवार वर्णन कर सकेंगे;
- पर्यावरण शब्द का अर्थ समझा सकेंगे;
- पर्यावरण के जैविक और अजैविक घटकों का वर्णन कर सकेंगे।
1.1 पृथ्वी-ब्रह्मांड और सौर मंडल का भाग
हमारी पृथ्वी और उसकी विविधता, अन्य ग्रह तथा उनके उपग्रह, सूर्य, चंद्रमा तथा अनेक गैलैक्सी (लाखों तारों का विशाल समूह) इन सबसे ब्रह्मांड का गठन हुआ है। सूर्य के चारों ओर के घेरे में भी असंख्य क्षुद्र ग्रह (Asteroid एस्ट्रॉइड) तथा धूमकेतु (comets) हैं। ये सभी ब्रह्मांड के ही भाग हैं। ये इतनी दूर-दूर फैले हुए हैं कि इनका फैलाव सबसे शक्तिशाली दूरबीन से भी दिखाई नहीं पड़ता। किसी को भी पता नहीं है कि ब्रह्मांड का अंत कहाँ है।
जब आप किसी बादल विहीन रात्रि में आकाश की ओर देखते हैं तब आपको बहुत से चमकदार-बिंदु दिखाई देते हैं जिनमें से अधिसंख्य तारे होते हैं। तारे चमकदार, गर्म उज्ज्वल गैसों के बड़े-बड़े गोले हैं। ‘सूर्य’ भी एक तारा ही है। यह तारा पृथ्वी के सबसे नजदीक का तारा है जो लगभग 150 लाख किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सौरमंडल में एक तारा बीच में होता है और कई ग्रह उसके चारों तरफ परिक्रमा करते रहते हैं। पृथ्वी इस सौरमंडल का ही भाग है। यह सौर मंडल के उन आठ ग्रहों में से एक है जिसमें मध्य में सूर्य स्थापित है और ये आठों ग्रह उसके चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं। कुछ समय पहले तक सौरमंडल में नौ ग्रहों की उपस्थिति मानी जाती रही फिर भी आधुनिक वैज्ञानिक मान्यता के आधार पर प्लूटो को नवां ग्रह माना जाता था, अब ग्रह का दर्जा नहीं दिया जाता।
1.2 ब्रह्मांड तथा पृथ्वी का उद्गम
ब्रह्मांड के उद्गम के बारे में सबसे अधिक मान्यता ‘‘बिग बैंग’’ के सिद्धांत को मिली है। इस सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड एक विशाल विस्फोट के साथ शुरू हुआ। जब द्रव्यों (धूल-मिट्टी और गैस) से पूरा स्थान भर गया, उस समय पृथ्वी का तापमान लगभग सौ खरब बिलियन डिग्री सेल्सियस के आस-पास था। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह विशाल घर्षण लगभग 15 से 20 खरब वर्ष पहले हुआ था। तब वहाँ एकत्रित धूल और गैस गोल-गोल घूमने लगे जैसे-जैसे वह तेज-तेज घूमने लगा, केंद्रीय स्थान बहुत गर्म हो गया, उससे सूर्य की उत्पत्ति हुई। इस धूल और गैस के गोले के किनारों से धूल के बड़े-बड़े टुकड़े टूट-टूटकर गिरने लगे और उनसे गेंद की आकार के आठ ग्रहों का निर्माण हुआ।
इससे हमारे सौरमंडल की नींव पड़ी। 4.5 खरब वर्ष पहले एक विस्फोट के साथ पृथ्वी अलग हुई। वह एक जलते हुए, गर्म सफेद रंग का गैस और धूल के समूह के रूप में थी। समय बीतने के साथ बहुत दिनों के बाद धूल और गैस ने संघनित होते-होते, ठोस चट्टान का रूप धारण किया। इस संघनन और सिकुड़न ने पृथ्वी को इतना गर्म बना दिया कि चट्टान एक चिपचिपे तरल पदार्थ की तरह पिघलने लगी। लाखों वर्षों के बाद पृथ्वी की बाहरी सतह या पृथ्वी की परत ठंडी हुई और ठोस चट्टान बनी, बिल्कुल उसी तरह जैसे गली हुई चॉकलेट या मोम ठंडी होने पर ठोस बन जाती है। पृथ्वी का भीतरी हिस्सा अब भी बहुत गर्म है।
पिघले हुए पदार्थ के और गर्म गैसों के ठंडे होकर ठोस होने से पृथ्वी के परत का निर्माण हुआ। पृथ्वी के ठंडे होने पर उसकी परत सख्त हो गयी और भूमि का निर्माण हुआ। पृथ्वी के ठंडे होने से संघनित हुई जलीय वाष्प तरल पानी में परिवर्तित हुई, जिससे गड्ढे भरे और समुद्र बने।
1.2.1 पृथ्वी
पृथ्वी अपने नीले आकाश, विशाल महासागर और हरे-भरे जंगलों सहित अनेकों प्रकार के जीवों का निवास स्थल बनी। पृथ्वी का एक अपना अनूठा वातावरण है। यह वातावरण आस-पास के तापमान को नियंत्रित करने में सहायता करता है, जो जीवन को सहारा देने के लिये उपयुक्त है।
जब आप पृथ्वी में गहरा गड्ढा खोदते हैं तो जितना नीचे जाते हैं, गर्मी बढ़ती जाती है। आठ किलोमीटर की गहराई तक पहुँचने पर वहाँ इतनी गर्मी हो जाती है, कि वह मानव शरीर को झुलसाने के लिये काफी होती है। 32 कि.मी. की गहराई तक पहुँचने पर आप पृथ्वी के उस भाग तक पहुँच जाएँगे जिसे प्रावार (mantal) कहते हैं। यह ठोस चट्टान की बनी है। पृथ्वी के केन्द्र या क्रोड भाग अथवा सतह (core) से लगभग 9,400 कि-मी- की दूरी पर है, जहाँ का तापमान 50000 सेल्सियस के आस-पास है। पृथ्वी का अधिकांश क्रोड भाग गर्म और तरल है। जैसा कि आप जानते हैं पृथ्वी 24 घंटों में एक बार घूमते हुए लटटू की तरह अपनी धुरी पर घूमती है। इसलिए दिन और रात का चक्र 24 घंटों का होता है। ग्रह की धुरी एक काल्पनिक रेखा है, जो ग्रह के बीच से गुजरती है पृथ्वी न केवल अपनी धुरी पर घूमती है, बल्कि सूर्य के चारों ओर भी चक्कर लगाती हैं। पृथ्वी सूर्य के इर्द गिर्द चक्कर लगाने में या इस चक्र को पूरा करने में 3651⁄4 दिन लगाती हैं। ग्रह जिस पथ से सूर्य का चक्कर लगाते हैं, उसे ग्रहपथ (कक्ष) कहते हैं।
जहाँ एक तरफ पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, वहीं चंद्रमा भी पृथ्वी का चक्कर लगाता है। चंद्रमा एक चक्कर 27-33 दिनों में पूरा करता है। जैसा कि अब हम जानते हैं कि चंद्रमा पर पानी, हवा और जीवन नहीं पाया जाता है। अंतरिक्ष से पृथ्वी, अपने नीचे महासागरों के कारण, एक सुंदर उज्ज्वल नीला ग्रह जैसी दिखाई देती है।
पाठगत प्रश्न 1.1
1. पृथ्वी लगभग कितने वर्ष पुरानी है?
2. उस तारे का नाम बताइए जिसके चारों ओर सौरमंडल के अन्य ग्रहों के साथ, पृथ्वी चक्कर लगाती है?
3. सौरमंडल से आप क्या समझते हैं?
4. दिन और रात्रि का चक्र केवल 24 घंटों का ही क्यों होता है?
5. यदि आप अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखें तो पृथ्वी का कौन सा रंग दिखाई देगा?
1.3 पृथ्वी-एक अद्वितीय ग्रह जो जीवन को बनाये रखता है
हमारे सौरमंडल में पृथ्वी ही एक मात्र ऐसा ग्रह है जहाँ जीव-जन्तु पाए जाते हैं, केवल पृथ्वी पर ही वायु और पानी है, जो जीवित रहने के लिये आवश्यक है।
हम यहाँ संक्षेप में सौरमंडल के अन्य सात ग्रहों की परिस्थितियों का विश्लेषण करते हैं:
- बुध (Mercury) सूर्य के सबसे नजदीक है व इसका जो हिस्सा सूर्य के सामने आता है उसका तापमान 427° सेल्सियस और अंधकार वाले हिस्से का तापमान -270° सेल्सियस होता है। वहाँ वायुमंडल नहीं पाया जाता है।
- शुक्र (Venus) पृथ्वी का सबसे नजदीक का ग्रह है। वह लगभग 40 लाख किमी मील की दूरी पर है। यह एक अत्यंत गर्म ग्रह है जिसका तापमान 480° सेल्सियस है। उसके वायुमंडल में 96% कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड तथा कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी विषैली गैसें पायी जाती हैं।
- मंगल (Mars) भी पृथ्वी के काफी नजदीक है। यह लाल ग्रह कहलाता है। इसमें 85% कार्बन मोनोऑक्साइड और लाल धूल है। यह अन्य ग्रहों की तुलना में बहुत ठंडा ग्रह है और अब तक वहाँ जीवन के होने की बात को अंततः मान्यता नहीं मिल पायी है।
- बृहस्पति (Jupiter) सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह मुख्यतः तेज-तेज घूमने वाला गैस विशेषकर अमोनिया के बादलों का गोला है और उसकी सतह ठोस नहीं है।
- शनि (Saturn) में मुख्यतः हाइड्रोजन और हीलियम होते हैं। उसके वायुमंडल में 90 प्रतिशत नाइट्रोजन होती है इसका तापमान 187° सेल्सियस रहता है। यह हाइड्रोजन सायनाइड जैसे अत्यंत विषैली गैस से भी बना है। इसके चारों ओर एक घेरे का होना इसकी विशेषता है।
- अरुण (Uranus) भी बहुत ठंडा ग्रह है। अरुण सौरमंडल का एक बहुत दूर का ग्रह है और सौरमंडल से दूरी की दृष्टि से वह सातवें स्थान पर है। अरुण और वरुण सौरमंडल के सबसे बाहरी भाग पर स्थित ग्रह है। इसकी घूमने वाली धुरी बहुत ही झुकी हुई है।
- वरुण (Neptune) पृथ्वी के मुकाबले बहुत छोटा, ठंडा और अंधकारपूर्ण है जिसकी सतह जमी हुई मीथेन से ढकी हुई है।
- पृथ्वी एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहाँ जीव-जंतु पाए जाते हैं।
वैज्ञानिक पृथ्वी के अलावा ब्रह्मांड के किसी अन्य ग्रह को नहीं जानते जहाँ जीवन पाया जाता है। ब्रह्मांड में सैकड़ों तारे हैं और उनके चारों तरफ ग्रह चक्कर लगाते रहते हैं, लेकिन वहाँ जीवन धारण करने के लिये आवश्यक परिस्थितियां पायी जाती हैं, या नहीं, यह मालूम नहीं है।
ऊपर उल्लेखित अन्य ग्रहों की तुलना मे पृथ्वी में निम्न विशिष्ट परिस्थितियां होती है, जिनके कारण यहाँ जीवन धारण करना संभव होता है।
1.3.1 जीवन धारण करने के लिये आवश्यक परिस्थितियां
क. पानी का पाया जाना
जैसा कि पहले वर्णन किया जा चुका है, पृथ्वी के उद्गम के समय आदिम काल के वायुमंडल की जलीय वाष्प तरल पानी के रूप में संघनित हो गयी। इससे महासागरों, नदियों तथा अन्य अलवण जलीय पिंड बन गए। पृथ्वी की तीन चौथाई सतह पानी से ढकी हुई है।
जल एक सार्वत्रिक विलायक है और जीवन का उद्गम जल में ही हुआ। एक जीवित जीव में लगभग दो तिहाई भाग पानी होता है और कोशिकाओं में भी 90% पानी होता है। जीवधारियों में जैविक रसायन अभिक्रियाओं के लिये भी जलीय माध्यम की आवश्यकता होती है। इसलिए जीवधारियों के जीवित बने रहने में पानी का बहुत महत्त्व है।
ख. वायुमंडल
पृथ्वी गैसीय वायुमंडल से आच्छादित है, जो जीवन को बनाये रखता है। पृथ्वी के वायुमंडल में नाइट्रोजन (78%) तथा ऑक्सीजन (21%), थोड़ी सी मात्र में कार्बन डाइऑक्साइड, जल-वाष्प, ओजोन तथा दुर्लभ गैस आर्गन, नियोन आदि हैं।
सांस लेते समय जीवधारी वायुमंडल से ऑक्सीजन लेते हैं। जीवधारियों के विभिन्न क्रियाकलापों के लिये आवश्यक ऊर्जा को मुक्त करने के लिये भोजन के ऑक्सीकरण के लिये ऑक्सीजन जरूरी है। हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण के दौरान वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करते हैं।
ग. तापमान
पृथ्वी का औसत तापमान 16° सेल्सियस होता है। जीवित प्राणियों के जीवित रहने के लिये यही सबसे सुलभ तापमान है।
घ. पृथ्वी की प्रतिरोधक क्षमता
पृथ्वी की सबसे अनूठी विशिष्टता है उसकी प्रतिरोधक गतिविधियां जिनके कारण मिट्टी और जलाशयों में उदासीन (pH-7) की स्थिति बनी रहती है। जीवित रहने और जीवधारियों के जीवित बने रहने के लिये उदासीन pH उपयुक्त है।
पृथ्वी को सूर्य से प्रकाश मिलता है, जो पृथ्वी से सबसे निकट का तारा है और लगभग 150 किलोमीटर दूर है। यह ऊर्जा का चरम स्रोत है।
पाठगत प्रश्न 1.2
1- उन स्थितियों की सूची बनाएँ, जो पृथ्वी को एक विशिष्ट ग्रह बनाती हैं।
2. पृथ्वी को ऊर्जा कहाँ से मिलती है?
3. ऑक्सीजन जीवन के लिये क्यों अनिवार्य है?
1.4 मानव के उद्भव से पूर्व जीवन का उद्भव और विकास
आरम्भ में पृथ्वी की स्थिति ऐसी नहीं थी कि यहाँ जीवन पनप सके। आदि वायुमण्डल में मूलतः मीथेन, अमोनिया, कार्बन डाइऑक्साइड तथा हाइड्रोजन जैसी गैसें थीं। जलीय वाष्प से वायुमण्डल भरा पड़ा था। लेकिन यहाँ मुक्त ऑक्सीजन नहीं थी। इसलिए आदि पृथ्वी का वायुमंडल अपचयनकारी था और जीवन का कोई चिन्ह भी नहीं था।
जैविक विकास-सरल जीवों से लेकर जटिल जीवों तक
जैसे-जैसे पृथ्वी ठंडी होती गयी, जलीय वाष्प संघनित होकर तरल पानी में बदल गयी। वर्षा होने लगी, जिससे पृथ्वी पर जलाशय बनते गये। पानी में जीवन के अणु उत्पन्न हुए।
जीवन के अणुओं से जीवाणुओं का विकास हुआ। ये सबसे पहले और सबसे सरल जीव थे। सबसे पुराने जीवाणुओं के जीवाश्म 3-5 अरब वर्ष पुरानी चट्टानों में पाये गये हैं।
लगभग 2 अरब वर्षों तक पृथ्वी पर भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवाणुओं का निवास था। इनमें से एक से क्लोरोफिल नामक हरे रंग के रंजक का विकास हुआ। ये क्लोरोफिलयुक्त जीवाणु कार्बन डॉइआक्साइड तथा पानी का उपयोग करते थे और प्रकाश संश्लेषण के द्वारा ऑक्सीजन छोड़ते थे तथा यह ऑक्सीजन वायुमंडल में एकत्रित होना शुरू हो गयी।
इस प्रकार के जीवाणुओं द्वारा लगातार प्रकाश संश्लेषण से वायुमंडल में ऑक्सीजन एकत्रित होती चली गयी। इससे वायुमंडल धीरे-धीरे अपचयित होने के स्थान पर ऑक्सीकारी होता गया। एक समय पर वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्र 21% हो गयी।
इस तरह के बदलाव होते रहने से जैविक विकास की शुरुआत होने और उसके आगे बढ़ते रहने को भारी प्रोत्साहन मिला और जीवित जीवाणुओं को पृथ्वी पर आकर बसने का मौका मिला।
समय गुजरने के साथ जीवाणुओं से प्रजीव (Protists प्रोटिस्ट) विकसित हुए। जीवाणु और प्रजीव दोनों ही एककोशिक हैं। उसके बाद बहुकोशिकीय फफूंदों का उद्भव हुआ। तत्पश्चात पौधे और जंतु आये। आज जीवधारियों के पाँच जगत - मांनेरा, प्रोटोक्टिस्टा, फफूंद, प्लांटी और ऐनीमेलिया शामिल हैं।
पाठगत प्रश्न 1.3
1. आदिवायुमंडल में पायी जाने वाली गैसों के नाम लिखिए।
2. पृथ्वी पर पाये जाने वाले सर्वप्रथम जीवाणु कौन से थे?
3. वायुमण्डल में ऑक्सीजन कैसे आयी?
4. पाँच प्राणी जगतों के नाम बताइए।
1.5 पर्यावरण क्या है
प्रत्येक जीवित प्राणी वायु, प्रकाश, पानी, भूमि या अधःस्तर तथा विभिन्न प्रकार के जीवधारियों से बने अपने पर्यावरण के साथ सतत रूप से अन्योन्यक्रिया करता रहता है।
पर्यावरण की परिभाषा करें तो यह आस-पास की परिस्थितियां या परिवेश है। जहाँ कोई जीव रहता है अथवा कार्यरत रहता है। मोटे तौर पर इसमें वे सजीव या निर्जीव घटक शामिल हैं जिनकी सूची नीचे दी गयी है।
तालिका 1.1: वातावरण के घटक | |
निर्जीव | सजीव |
प्रकाश, जलवायु (आर्द्रता, तथा तापमान) वायुमंडलीय गैसें, पानी, अधःस्तर, (मृदा/ नदी/समुद्र की तली) | जीवधारी, जिनमें पौधे, जंतु, सूक्ष्म जीव (जीवाणु, फफूंद, कवक, प्रोटोजोआ) तथा मानव शामिल हैं। |
क) निर्जीव घटक
i. प्रकाशः सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा मिलती है। हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण के लिये सूर्य के प्रकाश का उपयोग करते हैं, जिससे वे स्वयं तथा अन्य जीवधारियों के लिये भोजन का संश्लेषण करते हैं।
ii. वर्षाः प्रत्येक जीवधारी के लिये पानी जरूरी होता है। अधिकतर जैव रासायनिक अभिक्रियाएँ जलीय माध्यम में ही होती है। जल शरीर के तापमान का नियमन करने में सहायक होता है। इसके अतिरिक्त, जलाशय कई प्रकार के जलीय पौधों और जंतुओं के पर्यावास होते हैं।
iii. तापमानः तापमान पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण घटक होता है, जिसका जीवों की उत्तरजीविता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जीव तापमान और आर्द्रता के केवल एक निश्चित परास तक ही सहन कर सकते हैं।
iv. वायुमंडलः पृथ्वी का वायुमंडल 21% ऑक्सीजन, 78% नाइट्रोजन और 0.03% कार्बन डाइऑक्साइड से बना होता है। कुछ अन्य निष्क्रिय गैस (0.03% आर्गन, निऑन आदि) भी होती है।
v. अधःस्तरः जीव स्थलीय या जलीय हो सकते हैं। भूमि मिट्टी से ढकी होती है और विभिन्न तरह के सूक्ष्मजीवों, प्रोटोजोआ, फफूंद तथा छोटे जंतु (अकशेरुकी) इस पर पनपते हैं। पौधों की जड़ें जमीन में घुसकर, पानी तथा पोषक तत्वों की तलाश में मिट्टी से बाहर आ जाती हैं। स्थलीय जंतु भूमि पर रहते हैं। जलीय जीव-जंतु तथा सूक्ष्मजीव अलवणीय जल तथा समुद्र में भी रहते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव समुद्र के नीचे गर्म पानी के निकास-रंध्रों में भी रहते हैं।
ख) सजीव घटक
1. हरे पौधेः प्रकाश संश्लेषण के द्वारा सभी जीवधारियों के लिये भोजन तैयार करते हैं।
2. जंतुः एक ही स्पीशीज़ के प्राणी किसी विशेष प्रकार के पर्यावास पर ही पाये जाते हैं। वे अन्य स्पीशीजों के साथ भी रहते हैं। एक स्पीशीज दूसरी के लिये आहार बनाती है। सूक्ष्मजीव और फफूंद मरे हुऐ पौधों और जंतुओं में सड़न पैदा करते हैं जिससे मृत जीवाणुओं के शरीरों के भीतर विद्यमान पोषक तत्व बाहर आ जाते हैं जिन्हें पनपते पौधे दोबारा उपयोग में ले लेते हैं।
इसीलिए जीवधारी की उत्तरजीविता के लिये पर्यावरण के सजीव और निर्जीव दोनों प्रकार के घटकों की आवश्यकता रहती है। इसलिए जीवधारियों की उत्तरजीविता के लिये अपने वातावरण के साथ एक अत्यंत नाजुक संतुलित संबंध बनाये रखना अत्यंत जरूरी है।
पाठगत प्रश्न 1.4
1. पर्यावरण को परिभाषित कीजिए।
2. उसके सजीव घटकों के नाम लिखिए।
3. उसके निर्जीव घटकों की सूची बनाइए।
4. पर्यावरण के अपघटन को क्यों रोकना चाहिए? एक वाक्य में उत्तर दीजिए।
आपने क्या सीखा
- ब्रह्मांड तारों की आकाश गंगा से बनता है।
- तारे गर्म चमकती हुई गैसों के विशाल गोले होते हैं। सूर्य भी एक तारा है।
- हमारे सौरमंडल में शामिल सूर्य और उसके चारों ओर चक्कर काटने वाले आठ ग्रहों से बना है।
- पृथ्वी हमारे सौरमंडल का एक ग्रह है।
- एक विशाल विस्फोट से जब सारा अंतरिक्ष धूल तथा गैसों से भर गया तो ब्रह्मांड अस्तित्व में आया।
- धूल और गैसों का गोल तेज-तेज घूमने लगा, जिससे बहुत ज्यादा गर्मी हो गयी और अत्यधिक गर्म केंद्र सूर्य बन कर अलग हो गया।
- पृथ्वी के तीन भाग हैं क्रोड, प्रावार और बाहरी पर्पटी।
- पृथ्वी सूर्य के चारों ओर और अपनी धुरी पर घूमती है। इस घूमने से दिन और रात के चक्र बनते हैं।
- पृथ्वी सौरमंडल एकमात्र ऐसा स्रोत है, जिस पर जीवन बना रह सकता है क्योंकि यहाँ पानी वायुमंडल, उपयुक्त तापमान है तथा सूर्य से उसे पर्याप्त मात्र में प्रकाश मिलता है।
- पृथ्वी की आयु 4 से 5 करोड़ वर्ष है तथा सर्वप्रथम पृथ्वी पर ही 3.5 करोड़ वर्ष पहले जीवन का उद्गम हुआ, जिसके प्रमाण अब तक पाये जाने वाले सबसे पुराने जीवाश्म हैं।
- आदि पृथ्वी का वायुमंडल बहुत अलग प्रकार का था- गर्म और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें, जल-वाष्प, मीथेन, अमोनिया तथा हाइड्रोजन से भरा और ऑक्सीजनरहित। जब पृथ्वी ठंडी हुई तो जल वाष्प तरल पानी के रूप में संघनित हुई और वर्षा बनकर पृथ्वी पर गिरी।
- पहली कोशिका कैसे बनी, उसका पता अभी तक चल नहीं पाया है, शायद एक कोशिका वाला जीवाणु सबसे पहले के जीवों में था। तत्पश्चात जीवविज्ञान के विकास से लाखों प्रकार के जीवों का उद्भव होने लगा।
- सभी जीव अपनी उत्तरजीविता के लिये अपने पर्यावरण पर निर्भर होते हैं।
- सभी जीव अपने पर्यावरण के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखते हैं।
- पर्यावरण को जीव के आस-पास के वातावरण के रूप में परिभाषित किया गया है।
- पर्यावरण में तापमान, प्रकाश, जल, आर्द्रता, आदि जैसे निर्जीव घटक होते हैं तथा सजीव घटकों (जैसे अन्य जीव) के साथ मिलजुल कर रहते हैं।
पाठांत प्रश्न
1. पृथ्वी के उद्भव की खोज कीजिए।
2. संक्षेप में सौरमंडल का वर्णन कीजिए जिसमें पृथ्वी शामिल है।
3. ब्रह्मांड के उद्भव के बिगबैंग सिद्धांत का वर्णन कीजिए।
4. केवल पृथ्वी पर ही जीवन धारण क्यों किया जा सकता है, जबकि अन्य ग्रहों पर जीवन होने का पता नहीं चला है?
5. जीवधारियों के पाँच जगतों के नाम लिखिए और प्रत्येक की एक विशेषता बताइए।
6. पर्यावरण की परिभाषा लिखिए। पर्यावरण के विभिन्न घटकों की सूची बनाइए।
पाठगत प्रश्नों के उत्तर
1-1
1. 4.5 करोड़ वर्ष।
2. तारा।
3. केंद्रीय तारे के चारों ओर चक्कर लगाते हुए ग्रह।
4. क्योंकि पृथ्वी अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करने में 24 घंटे लेती है।
5. नीला।
1.2
1. पानी की उपस्थिति, हवा की उपस्थिति, उपयुक्त तापमान, प्रतिरोधक क्षमता।
2. सूर्य।
3. ऑक्सीजन का उपयोग श्वसन में खाद्य पदार्थों का ऑक्सीकरण करके ऊर्जा को मुक्त करना है।
1.3
1. मीथेन, अमोनिया, कार्बन डॉइऑक्साइड तथा हाइड्रोजन।
2. जीवाणु।
3. प्रकाश संश्लेषण के कारण।
4. मोनेरा, प्रोटोक्टिस्टा, कवक, प्लांटी तथा एनिमेली।
1.4
1. आस-पास का वातावरण या परिस्थिति जिसमें जीव रहते हैं और सक्रिय रहते हैं।
2. सूक्ष्मजीवों सहित हर प्रकार के जैविक-प्राणधारी जीव।
3. अजैविक-प्रकाश, आर्द्रता, तापमान, वायुमंडल तथा अधःस्तर।
4. क्योंकि यह मानव सहित प्राणधारी जीवों के बने रहने के लिये खतरा पैदा करता है।