पृथ्वी के बाहर जीवन की वैज्ञानिक खोज

Submitted by Hindi on Wed, 09/07/2011 - 11:45

पृथ्वी के बाहर जीवन की वैज्ञानिक खोज : परग्रही जीवन श्रंखला भाग 2


अंतरिक्ष में जीवन की खोज करने वाले विज्ञानीयो के अनुसार अंतरिक्ष में जीवन के बारे में कुछ भी निश्चित कह पाना कठीन है। हम ज्ञात भौतिकी, रसायन शास्त्र और जीव विज्ञान के नियमो के अनुसार कुछ अनुमान हीं लगा सकते है।

अंतरिक्ष में जीवन की खोज से पहले यह सुनिश्चित कर लेना आवश्यक है कि किसी ग्रह पर जीवन के लिये मूलभूत आवश्यकता क्या है? पृथ्वी पर जीवन और जीवन के विकास के अध्यन तथा ज्ञात भौतिकी, रसायन शास्त्र और जीव विज्ञान के नियमो के अनुसार अंतरिक्ष में जीवन के लिये जो आवश्यक है उनमें से प्रमुख है:

• द्रव जल,
• कार्बन और
• DNA जैसे स्वयं की प्रतिकृति बनाने वाले अणु।

वैज्ञानिको का मानना है कि जीवन के लिये द्रव जल की उपस्थिती अनिवार्य है। अंतरिक्ष में जीवन की खोज के लिये पहले द्रव जल को खोजना होगा। द्रव जल अन्य द्रवो की तुलना में सार्वभौमिक विलायक (Universal Solvent) है, जिसमें अनेको प्रकार के रसायन घूल जाते है। द्रव जल जटिल अणुओ के निर्माण के लिये आदर्श है। द्रव जल के अणु सामान्य है और ब्रम्हाण्ड में हर जगह पाये जाते है जबकि बाकि विलायक दुर्लभ है।

हम जानते हैं कि जीवन के लिये कार्बन आवश्यक है क्योंकि इसकी संयोजकता (Valencies) चार है और यह चार अन्य अणुओ के साथ बंध कर असाधारण रूप से जटिल अणु बना सकता है। विशेषतः कार्बण अणु की श्रंखला बनाना आसान है जोकि हायड़्रोकार्बन और कार्बनीक रसायन का आधार है। चार संयोजकता वाले अन्य तत्व कार्बन के जैसे जटिक अणु नही बना पाते है।

1953 में स्टेनली मीलर और हैराल्ड उरे द्वारा किये गये प्रयोग ने यह सिद्ध कीया था कि सहज जीवन निर्माण यह कार्बनीक रसायन का प्राकृतिक उत्पाद है। उन्होंने अमोनिया, मीथेन और कुछ अन्य रसायन (जो पृथ्वी की प्रारंभिक अवस्था में थे) के घोल को एक फ्लास्क में लीया और उसमें से विद्युतधारा प्रवाहित की और इंतजार करते रहे। एक सप्ताह में ही उन्होंने फ्लास्क में अमीनो अम्ल (Amino Acid) को निर्मीत होते देखा। विद्युत धारा अमोनिया और मीथेन के कार्बन बंधनो को तोड़कर उन्हें अमीनो अम्ल में बदलने में सक्षम थी। अमीनो अम्ल प्रोटीन का प्राथमिक रूप है। इसके बाद में अमीनो अम्ल को उल्काओ में और गहन अंतरिक्ष के गैस के बादलो में भी पाया गया है।

जीवन का मूलभूत आधार है स्वयं की प्रतिकृति बनाने वाले अणु जिन्हें हम डी एन ए कहते है। रसायन विज्ञान में इस तरह के स्वयं की प्रतिकृति बनाने वाले अणु दूर्लभ है। पृथ्वी पर पहले डीएनए के अणु के निर्माण के लिये करोड़ो वर्ष लगे। संभवतः ये अणु सागर की गहराईयो में बने। यदि कोई मीलर-उरे के प्रयोग को करोड़ो वर्ष तक सागर में जारी रखे तो डीएनए के अणु सहज रूप से बनने लगेंगे। प्रथम डीएनए के अणु का निर्माण शायद सागर की गहराईयो में ज्वालामुखी के मुहानो हुआ होगा क्योंकि ज्वालामुखी के मुहानो की गतिविधीया इन अणुओ के निर्माण के लिये आवश्यक उर्जा देने में सक्षम है। यह प्रकाश संश्लेषण से के आने से पहले की गतिविधियां है। यह ज्ञात नही है कि डीएनए के अणुओ के अलावा अन्य कार्बन के जटिल अणु स्वयं की प्रतिकृती बना सकते है या नही लेकिन स्वयं की प्रतिकृती बना लेने वाले अणु डीएनए के जैसे ही होंगे।

जीवन के लिये संभवतः द्रव जल, हायड्रोकार्बन रसायन और डीएनए जैसे स्वयं की प्रतिकृती बनाने वाले अणु चाहीये। इन शर्तो का पालन करते हुये ब्रम्हाण्ड में जीवन की संभावना की मोटे तौर पर गणना की जा सकती है। 1961 में कार्नेल विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्री फ्रेंक ड्रेक ने सर्वप्रथम ऐसी ही एक गणना की थी। मंदाकिनी आकाशगंगा में 100 बीलीयन तारे है, इसमें से आप सूर्य के जैसे तारो का अनुमान लगा सकते है, उसके बाद उनमें से ग्रहो वाले तारो का अनुमान लगा सकते है।

ड्रेक का समिकरण बहुत सारे कारको को ध्यान में रखते हुये आकाशगंगा में जीवन की गणना करता है। इन कारको में प्रमूख है।
• आकाशगंगा में तारो की जन्मदर
• ग्रहो वाले तारो का अंश
• तारो पर जीवन की संभावना वाले ग्रहो की संख्या
• जीवन उत्पन्न करने वाले वास्तविक ग्रहो का अंश
• बुद्धीमान जीवन उत्पन्न करने वाले ग्रहो का अंश
• बुद्धिमान सभ्यता द्वारा सम्पर्क रखने की इच्छा और निपुणता का अंश
• सभ्यता का अपेक्षित जीवनकाल

उचित आकलन लगाने के बाद और इन सभी प्रायिकताओ का गुणन करने के बाद पता चलता है कि अपनी आकाशगंगा में ही 100 से 10000 ग्रह ऐसे होगें जिनपर बुद्धीमान जीवन की संभावना है। यदि यह बुद्धीमान जीवन आकाशगंगा में समान रूप में वितरित है तब हमारे कुछ सौ प्रकाश वर्ष में ही बुद्धीमान जीवन वाला ग्रह होना चाहीये। 1974 में कार्ल सागन के अनुसार हमारी आकाश गंगा में ही 10 लाख सभ्यताये होना चाहीये। (ड्रेक के समीकरण का उल्लेख कार्ल सागन ने इतनी बार किया है कि इस समिकरण को सागन का समिकरण भी कहा जाता है।)

इन गणनाओ ने सौर मंडल से बाहर जीवन की संभावनाओ की खोज के लिये नये औचित्य दिये है। पृथ्वी बाह्य जीवन पाने ही इन संभावनाओ के कारण विज्ञानीयो अब गंभीर रूप से इन ग्रहो से उत्सर्जीत रेडीयो संकेतो पर ध्यान देना शुरू किया है। आखीर ये बुद्धीमान सभ्यतायें भी हमारी तरह टीवी देखती होंगी ही या रेडीयो सुनती ही होंगी !

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