पटना 1. जिला, स्थिति : से उ.अ. तथा से पू.दे.। यह बिहार राज्य का एक जिला है। इसका क्षेत्रफल 2,164 वर्ग मील है। इस जिले के उत्तर में गंगा नदी, दक्षिण में गया, पूर्व में मुंगेर तथा पश्चिम में शाहाबाद जिले हैं। यहाँ की भूमि की ढाल दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व को है। इसकी उत्तरी सीमा पर 93 मील तक गंगा नदी बहती है। यहाँ मई का औसत ताप 30रू सें. तथा अप्रैल का औसत ताप 38रू सें. रहता है। वर्षा का वार्षिक औसत 45 इंच है। यहाँ की भूमि बड़ी उपजाऊ है। गंगा के अतिरिक्त सोन तथा गंडक यहाँ की दूसरी प्रमुख नदियाँ हैं। एक पुनपुन नदी भी है, जो छोटी है। यहाँ की प्रमुख उपज धान, गेहूँ, जौ, मक्का, अरहर और चना है। इस जिले के प्रमुख स्थान राजगिर, नालंदा, पावापुरी (जैनों का महात्वपूर्ण तीर्थस्थान), बिहारशरीफ, दानापुर आदि है।
2. नगर, स्थिति : उ.अ. तथा पू.दे.। यह पटना जिले में गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। पटना बिहार राज्य की राजधानी है। यह लगभग 9 या 10 मील लंबे क्षेत्र में फैला है। चौड़ाई कुछ स्थानों पर अधिक से अधिक एक मील है। नगर के मध्य से होकर एक लंबी सड़क पूर्व से पश्चिम की ओर जाती है। इसी सड़क पर एक ओर बड़ी बड़ी दूकानें और दूसरी ओर पटना विश्वविद्यालय की इमारतें, कालेज, कचहरियाँ आदि स्थित हैं। पटना के दो प्रमुख विभाग हैं। एक को नया पटना एवं दूसरे को पुराना पटना कहते हैं। नए पटना में बिहार राज्य के विधानभवन, सचिवालय, राज्यभवन, एवं सैकड़ों बँगले हैं जिनमें बिहार के मंत्रीगण और उच्च कर्मचारी निवास करते हैं। यहाँ की सड़कें आधुनिक ढंग से चौड़ी चौड़ी बनाई गई हैं। कुछ सड़कों की चौड़ाई तो 200 फुट तक है। सबसे ऊँची इमारत छह मंजिली है जो इन्कमटैक्स विभाग द्वारा बनाई गई है। नए पटना में गरदनीबाग है जहाँ सचिवालय के हजारों कर्मचारी रहते हैं। पटने की सबसे पुरानी इमारत एक मस्जिद है जिसका आँगन चमकीले टाइल (Tiles) से बना है। इसका निर्माण 1499 ई. में बंगाल के शासक नबाब हुसेन ने कराया था। दूसरी मस्जिद शेरशाह की बनवाई है। एक मस्जिद जहाँगीर के पुत्र शाहजादा परवेज द्वारा 1626 ई. में बनवाई गई थी, जो पत्थरों से बनी है। इसे पत्थर की मस्जिद कहते हैं।
पटना, सिक्ख लोगों का भी धार्मिक स्थान है। यहाँ श्री गुरु गोविंदसिंह के जन्मस्थान पर एक गुरुद्वारा बना है। इस गुरुद्वारे में श्री गुरु गोविंदसिंह द्वारा प्रयुक्त किया गया पालना, जूते, तलवार, बाण आदि रखे हुए हैं, गुरुग्रंथ साहब की एक प्रति भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि गुरु गोविंदसिंह ने इसे स्वयं लिखा था। यहाँ 18वीं शती के प्रारंभ में अँग्रेजों ने एक कोठी बनाई थी, जिसमें शाहआलम को 1761 ई. में कैद कर रखा गया था। इसी कोठी में आजकल सरकारी छापाखाना है। 1786 ई. में अकाल पड़ने के समय अनाज रखने के लिये ईटों की 96 फुट ऊँची इमारत गोलघर बनाई गई थी, किंतु कुछ दोषों के कारण इसमें कभी अनाज नहीं रखा गया।
पटना विश्वविद्यालय की स्थापना 1917 ई. में हुई थी। यहाँ विज्ञान और कला की शिक्षा दी जाती है। इसके अंतर्गत पटना कालेज, पटना सांइस कालेज, बिहार नेशनल कालेज, पटना ट्रेनिंग कालेज, पटना ला कालेज, इंजीनियरिंग कालेज, प्रिंस ऑव वेल्स मेडिकल कालेज, पटना न्यू कालेज, मगध महिला कालेज, पटना वीमेंस कालेज एवं अन्य कालेज आते हैं। इसका वीलर सिनेट हॉल 1826 ई. में बना था। इस हॉल के पास ही विश्वविद्यालय का बड़ा पुस्तकालय है।
इतिहास - इसका प्राचीन नाम पाटलिपुत्र है। इससे और भी पहले इसका नाम पाटलिग्राम था। जब गौतम बुद्ध महानिर्वाण के पूर्व 478 ई.पू. में राजगृह और नालंदा से अपने जन्मस्थान जा रहे थे, तब राजगृह से चलकर उन्होंने पाटलिग्राम में विश्राम किया था। उस समय उन्होंने अपने शिष्य आनंद से कहा था कि यह पाटलिग्राम शीघ्र ही एक बहुत समृद्धिशाली नगर बनेगा, किंतु आग, पानी एवं आपसी वैमनस्य इन तीन वस्तुओं से इसे भय है। उस समय मगध की राजधानी राजगृह थी, जो आज राजगिर के नाम से प्रसिद्ध है। बुद्ध के समकालीन अजातशत्रु ने पाटलिपुत्र को सुदृढ़ बनाया और उनके उत्तराधिकारी उदयन ने कुसुमपुर को जोड़कर पाटलिपुत्र के क्षेत्र का विस्तार किया। अब मगध की राजधानी राजगृह से हटकर पाटलिपुत्र आ गई। 303 ई.पू. में जब मैगस्थनीज राजदूत बनकर पाटलिपुत्र आया उस समय यह बड़ा समृद्धिशाली नगर था। पालिब्थ्रोाा के नाम से मेगस्थनीज ने इसका बड़े विस्तार से वर्णन किया है। उस समय यह नगर मील के घेरे में बसा था। वहाँ का राजमहल सर्वोत्कृष्ट इमारत थी। उस समय यह हिंदूकुश से लेकर बंगाल की खाड़ी तक के देशों की राजधानी था। ई.पू. तीसरी शताब्दी में अशोक की राजधानी भी यही था। यहाँ से ही अशोक की राजाज्ञाएँ दूर दूर देशों को भेजी जाती थीं। तीसरी शती ई.पू. से तीसरी शती ई. तक भारत पर यूनानियों, कुशानों आदि के आक्रमण होते रहे, जिसके फलस्वरूप प्रदेश की स्थिति अच्छी नहीं रहीं एवं अनेक विपत्तियाँ आई। चौथी शताब्दी में मगध में गुप्त वंश का आधिपत्य हो गया। पाँचवी शती में फाहियान जब भारत आया था, तब उसने देखा था कि पटने में वहाँ के व्यक्तियों द्वारा संचालित एक बहुत अच्छा चिकित्सालय चल रहा था जिसमें देश भर के रोगी आते थे और उनकी चिकित्सा नि:शुल्क होती थी। रोगियों के खानपान का सारा खर्च चिकित्सालय की ओर से वहन किया जाता था। 7वीं शती में जब ह्वेनसांग भारत आय तो उसने पाटलिपुत्र को उजाड़ पाया था। इसके हिंदू मंदिर एवं बौद्ध स्तूप प्राय: ध्वस्त अवस्था में थे। पटने का ह्रास कैसे हुआ, इसका ठीक ठीक पता नहीं लगता। यहाँ के खंड़हरों से ज्ञात होता है कि ह्रास का कारण जलप्लावन या अग्निकांड रहा होगा जिसकी भविष्यवाणी गौतम बुद्ध ने की थी।
8वीं शती से मगध ओर पाटलिपुत्र बंगाल के अधीन हो गए। 1197 ई. में बखतियार खिलजी ने बिहार पर आक्रमण कर उसे मुसलमानी राज्य में मिला लिया। इसने हजारों बौद्ध भिक्षुओं का वध किया। केवल कुछ जो नेपाल, तिब्बत तथा दक्षिणी भारत में भाग गए थे, बचे। 1513 ई. में दाऊद खाँ ने विद्रोह कर बिहार को मुगल सूबे की राजधानी बनाया। 1541 ई. में जब शेरशाह भारत का सम्राट् बना, तब पटने की किस्मत पटली और वह पुन: हराभरा हुआ। अंग्रेजों और डच लोगों ने यहाँ अपनी कोठियाँ खोली थीं। औरंगजेब के पौत्र अजीम-उस्-शान के शासनकाल में यह भारत की राजधानी बनने जा रहा था ओर उसने इसका ना अपने नाम पर अजीमाबाद रखा। 1763 ई. में अंग्रेज कोठियों का एजेंट एलिस (Ellis) था। बंगाल के नबाब मीर कासिम अली खाँ से उसकी मुठभेड़ हो गई और एलिस ने पटने पर अधिकार कर लिया। इसके बाद मीर कासिम की सेना ने पटने पर पुन: अधिकार कर लिया। इसकी आज्ञा से समरू नामक अधिकारी द्वारा लगभग 200 अंग्रेज कैदी क्रूरता के साथ मार डाले गए। यह घटना पटने का जनसंहार (Massacro of Patna) के नाम से विख्यात है। फिर अंग्रेजी सेनाओं ने मेजर नॉक्स (Major Knox) के अधीन 1763 ई में पटने को अपने अधिकार में कर लिया। कुछ वर्षों, लगभग 1765 से 1789 ई. तक, यहाँ द्वैध शासन रहा। बाद में यह ब्रिटिश शासन में मिला लिया गया एवं बंगाल का एक अंग बना दिया गया। 1911 ई. तक यह बंगाल के साथ रहा। जब 12 दिसंबर, 1911 को बिहार अलग प्रांत घोषित किया गया, उस समय यह उड़ीसा के साथ था। 1936 ई. में उड़ीसा बिहार भी एक अलग होकर एक नया प्रांत बना। स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद बिहार भी अलग राज्य बना जिसकी राजधानी पटना है। यहाँ उच्च न्यायालय की स्थापना 1916 ई. में एवं पटना विश्वविद्यालय की स्थापना 1917 ई. में हुई थीं।(फूलदेवसहाय वर्मा)
2. नगर, स्थिति : उ.अ. तथा पू.दे.। यह पटना जिले में गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। पटना बिहार राज्य की राजधानी है। यह लगभग 9 या 10 मील लंबे क्षेत्र में फैला है। चौड़ाई कुछ स्थानों पर अधिक से अधिक एक मील है। नगर के मध्य से होकर एक लंबी सड़क पूर्व से पश्चिम की ओर जाती है। इसी सड़क पर एक ओर बड़ी बड़ी दूकानें और दूसरी ओर पटना विश्वविद्यालय की इमारतें, कालेज, कचहरियाँ आदि स्थित हैं। पटना के दो प्रमुख विभाग हैं। एक को नया पटना एवं दूसरे को पुराना पटना कहते हैं। नए पटना में बिहार राज्य के विधानभवन, सचिवालय, राज्यभवन, एवं सैकड़ों बँगले हैं जिनमें बिहार के मंत्रीगण और उच्च कर्मचारी निवास करते हैं। यहाँ की सड़कें आधुनिक ढंग से चौड़ी चौड़ी बनाई गई हैं। कुछ सड़कों की चौड़ाई तो 200 फुट तक है। सबसे ऊँची इमारत छह मंजिली है जो इन्कमटैक्स विभाग द्वारा बनाई गई है। नए पटना में गरदनीबाग है जहाँ सचिवालय के हजारों कर्मचारी रहते हैं। पटने की सबसे पुरानी इमारत एक मस्जिद है जिसका आँगन चमकीले टाइल (Tiles) से बना है। इसका निर्माण 1499 ई. में बंगाल के शासक नबाब हुसेन ने कराया था। दूसरी मस्जिद शेरशाह की बनवाई है। एक मस्जिद जहाँगीर के पुत्र शाहजादा परवेज द्वारा 1626 ई. में बनवाई गई थी, जो पत्थरों से बनी है। इसे पत्थर की मस्जिद कहते हैं।
पटना, सिक्ख लोगों का भी धार्मिक स्थान है। यहाँ श्री गुरु गोविंदसिंह के जन्मस्थान पर एक गुरुद्वारा बना है। इस गुरुद्वारे में श्री गुरु गोविंदसिंह द्वारा प्रयुक्त किया गया पालना, जूते, तलवार, बाण आदि रखे हुए हैं, गुरुग्रंथ साहब की एक प्रति भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि गुरु गोविंदसिंह ने इसे स्वयं लिखा था। यहाँ 18वीं शती के प्रारंभ में अँग्रेजों ने एक कोठी बनाई थी, जिसमें शाहआलम को 1761 ई. में कैद कर रखा गया था। इसी कोठी में आजकल सरकारी छापाखाना है। 1786 ई. में अकाल पड़ने के समय अनाज रखने के लिये ईटों की 96 फुट ऊँची इमारत गोलघर बनाई गई थी, किंतु कुछ दोषों के कारण इसमें कभी अनाज नहीं रखा गया।
पटना विश्वविद्यालय की स्थापना 1917 ई. में हुई थी। यहाँ विज्ञान और कला की शिक्षा दी जाती है। इसके अंतर्गत पटना कालेज, पटना सांइस कालेज, बिहार नेशनल कालेज, पटना ट्रेनिंग कालेज, पटना ला कालेज, इंजीनियरिंग कालेज, प्रिंस ऑव वेल्स मेडिकल कालेज, पटना न्यू कालेज, मगध महिला कालेज, पटना वीमेंस कालेज एवं अन्य कालेज आते हैं। इसका वीलर सिनेट हॉल 1826 ई. में बना था। इस हॉल के पास ही विश्वविद्यालय का बड़ा पुस्तकालय है।
इतिहास - इसका प्राचीन नाम पाटलिपुत्र है। इससे और भी पहले इसका नाम पाटलिग्राम था। जब गौतम बुद्ध महानिर्वाण के पूर्व 478 ई.पू. में राजगृह और नालंदा से अपने जन्मस्थान जा रहे थे, तब राजगृह से चलकर उन्होंने पाटलिग्राम में विश्राम किया था। उस समय उन्होंने अपने शिष्य आनंद से कहा था कि यह पाटलिग्राम शीघ्र ही एक बहुत समृद्धिशाली नगर बनेगा, किंतु आग, पानी एवं आपसी वैमनस्य इन तीन वस्तुओं से इसे भय है। उस समय मगध की राजधानी राजगृह थी, जो आज राजगिर के नाम से प्रसिद्ध है। बुद्ध के समकालीन अजातशत्रु ने पाटलिपुत्र को सुदृढ़ बनाया और उनके उत्तराधिकारी उदयन ने कुसुमपुर को जोड़कर पाटलिपुत्र के क्षेत्र का विस्तार किया। अब मगध की राजधानी राजगृह से हटकर पाटलिपुत्र आ गई। 303 ई.पू. में जब मैगस्थनीज राजदूत बनकर पाटलिपुत्र आया उस समय यह बड़ा समृद्धिशाली नगर था। पालिब्थ्रोाा के नाम से मेगस्थनीज ने इसका बड़े विस्तार से वर्णन किया है। उस समय यह नगर मील के घेरे में बसा था। वहाँ का राजमहल सर्वोत्कृष्ट इमारत थी। उस समय यह हिंदूकुश से लेकर बंगाल की खाड़ी तक के देशों की राजधानी था। ई.पू. तीसरी शताब्दी में अशोक की राजधानी भी यही था। यहाँ से ही अशोक की राजाज्ञाएँ दूर दूर देशों को भेजी जाती थीं। तीसरी शती ई.पू. से तीसरी शती ई. तक भारत पर यूनानियों, कुशानों आदि के आक्रमण होते रहे, जिसके फलस्वरूप प्रदेश की स्थिति अच्छी नहीं रहीं एवं अनेक विपत्तियाँ आई। चौथी शताब्दी में मगध में गुप्त वंश का आधिपत्य हो गया। पाँचवी शती में फाहियान जब भारत आया था, तब उसने देखा था कि पटने में वहाँ के व्यक्तियों द्वारा संचालित एक बहुत अच्छा चिकित्सालय चल रहा था जिसमें देश भर के रोगी आते थे और उनकी चिकित्सा नि:शुल्क होती थी। रोगियों के खानपान का सारा खर्च चिकित्सालय की ओर से वहन किया जाता था। 7वीं शती में जब ह्वेनसांग भारत आय तो उसने पाटलिपुत्र को उजाड़ पाया था। इसके हिंदू मंदिर एवं बौद्ध स्तूप प्राय: ध्वस्त अवस्था में थे। पटने का ह्रास कैसे हुआ, इसका ठीक ठीक पता नहीं लगता। यहाँ के खंड़हरों से ज्ञात होता है कि ह्रास का कारण जलप्लावन या अग्निकांड रहा होगा जिसकी भविष्यवाणी गौतम बुद्ध ने की थी।
8वीं शती से मगध ओर पाटलिपुत्र बंगाल के अधीन हो गए। 1197 ई. में बखतियार खिलजी ने बिहार पर आक्रमण कर उसे मुसलमानी राज्य में मिला लिया। इसने हजारों बौद्ध भिक्षुओं का वध किया। केवल कुछ जो नेपाल, तिब्बत तथा दक्षिणी भारत में भाग गए थे, बचे। 1513 ई. में दाऊद खाँ ने विद्रोह कर बिहार को मुगल सूबे की राजधानी बनाया। 1541 ई. में जब शेरशाह भारत का सम्राट् बना, तब पटने की किस्मत पटली और वह पुन: हराभरा हुआ। अंग्रेजों और डच लोगों ने यहाँ अपनी कोठियाँ खोली थीं। औरंगजेब के पौत्र अजीम-उस्-शान के शासनकाल में यह भारत की राजधानी बनने जा रहा था ओर उसने इसका ना अपने नाम पर अजीमाबाद रखा। 1763 ई. में अंग्रेज कोठियों का एजेंट एलिस (Ellis) था। बंगाल के नबाब मीर कासिम अली खाँ से उसकी मुठभेड़ हो गई और एलिस ने पटने पर अधिकार कर लिया। इसके बाद मीर कासिम की सेना ने पटने पर पुन: अधिकार कर लिया। इसकी आज्ञा से समरू नामक अधिकारी द्वारा लगभग 200 अंग्रेज कैदी क्रूरता के साथ मार डाले गए। यह घटना पटने का जनसंहार (Massacro of Patna) के नाम से विख्यात है। फिर अंग्रेजी सेनाओं ने मेजर नॉक्स (Major Knox) के अधीन 1763 ई में पटने को अपने अधिकार में कर लिया। कुछ वर्षों, लगभग 1765 से 1789 ई. तक, यहाँ द्वैध शासन रहा। बाद में यह ब्रिटिश शासन में मिला लिया गया एवं बंगाल का एक अंग बना दिया गया। 1911 ई. तक यह बंगाल के साथ रहा। जब 12 दिसंबर, 1911 को बिहार अलग प्रांत घोषित किया गया, उस समय यह उड़ीसा के साथ था। 1936 ई. में उड़ीसा बिहार भी एक अलग होकर एक नया प्रांत बना। स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद बिहार भी अलग राज्य बना जिसकी राजधानी पटना है। यहाँ उच्च न्यायालय की स्थापना 1916 ई. में एवं पटना विश्वविद्यालय की स्थापना 1917 ई. में हुई थीं।(फूलदेवसहाय वर्मा)
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विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)
अन्य स्रोतों से
संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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