पुरी

Submitted by Hindi on Mon, 08/22/2011 - 10:08
पुरी 1. जिला, स्थिति : 19 28 से 20 26 उ. अ. तथा 84 56 से 86 25 पू. दे.। यह उड़ीसा राज्य में स्थित जिला है, जिसका क्षेत्रफल 3,999 वर्ग मील है। इसके उत्तर में कटक, दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण-पश्चिम में गंजाम जिला तथा उत्तर-पचिम में ढेंकानल एवं बौध खोंडमल जिले स्थित हैं। जिले का अधिकांश भाग मैदानी है, जिसका मध्य एवं पूर्वी भाग जलोढ़ मिट्टी से बना है। महानदी यहाँ की प्रसिद्ध नदी है। दया, भार्गवी आदि नदियाँ भी यहाँ बहती हैं। ये सभी नदियाँ चिल्का झील में गिरती हैं। चिल्का भारत की बड़ी झीलों में से एक है। यह 4 4 मील लंबी, 13 मील चौड़ी है। झील की औसत गहराई 5 फुट है। खारे पानीवाली यह झील रेतीली पट्टी द्वारा समुद्र से अलग है। धान यहाँ की प्रमुख फसल है। इसके अतिरिक्त मडुवा, गन्ना, कपास, तंबाकू, पान, सब्जियों आदि की भी फसल होती है। जिले के पुरी नगर में हिंदुओं का पवित्र जगन्नाथ मंदिर स्थित है। शिक्षा एवं यातायात का उत्तम प्रबंध है।

2. नगर, स्थिति : 19 48 उ. अ. तथा 85 49 पू. दे.। नगर में जगन्नाथ जी का मंदिर स्थित होने के कारण यह प्राय: जगन्नाथ पुरी कहलाता है। यह पुराना नगर है जिसकी गलियाँ सँकरी है। यह भारत के चार धामों में से एक है। यहाँ यात्री रेल तथा बस के अतिरिक्त पैदल भी आते हैं। नगर में व्यापार एवं दस्तकारी कम होती है। रथयात्रा नगर का प्रधान उत्सव है। यह जून के अंत या जुलाई के प्रारंभ में होता है। 192 फुट ऊँचे जगन्नाथ मंदिर में जगन्नाथ (कृष्ण) के अतिरिक्त बलराम और सुभद्रा की मूर्तियाँ हैं (दे. जगन्नाथ)। ये तीनों मूर्तियाँ चंदन काष्ठ की बनी हैं। 12वें वर्ष मूर्तियों का कलेवर बदल दिया जाता है। मुख्य मंदिर के आगे क्रमश: जगमोहन, नृत्यशाला एवं भोगमंडप हैं। जगमोहन की भित्ति पर स्त्रियों एवं पुरुषों की अनेक प्रतिमाएँ हैं। मंदिर, मुख्य सड़क के अंत में पश्चिम समुद्र से एक मील उतर नीलगिरि पर स्थित है। मंदिर का घेरा 665 फुट लंबा और इतना ही चौड़ा है। दीवारें 22 फुट ऊँची हैं जिनमें प्रत्येक ओर फाटक बने हैं। पूर्व की ओर सिंहद्वार है। मंदिर के बाहर चारों ओर 45 फुट चौड़ी सड़क है। मंदिर के अंदर पश्चिम की ओर चार फुट ऊँची 16 फुट लंब रत्नवेदी है जिसपर सुदर्शन चक्र रखा हुआ है। मंदिर के सिंहद्वार के बाहर बाजार लगता है । मंदिर के सिंहद्वार के बाहर बाजार लगता है जिसमें सूखे भात का महाप्रसाद, बेंत, तालपत्र के छाते तथा चंदन बिकता है। जगन्नाथ मंदिर की वार्षिक आमदनी कई लाख रुपए है और मंदिर के प्रबंध में कई हजार लोग लगे हुए हैं। यहाँ कबीर, चैतन्य, मलूकदास के मठ तथा नानक साहब क मंगू मठ है। संवत्‌ 1466 में श्री गुरु नानक यहाँ आए थे। (रमेशचंद्र दुबे)

इतिहास 


इसके प्राचीन नाम पुरुषोत्तमक्षेत्र और श्रीक्षेत्र भी हैं। पुरुषोतम जगन्नाथ के मंदिर से इसका महत्व बढ़ गया है। इसके निकट ही अनेक छोटे छोटे मंदिर है। विष्णु की बालप्रतिभा वहीं अक्षयवट के निकट स्थापित है। उत्तर में आधे मील की दूरी पर शिव का मंदिर है।

जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शती में कलिंग नरेश महाराज चोड़गंग द्वारा कराया गया था। कहते हैं, मंदिर बनने के पूर्व इसी स्थान पर भगवान बुद्ध का दाँत रखा हुआ था, जिससे इसका एक प्राचीन नाम दंतपुर भी है। उस समय यह कलिंग प्रदेश की राजधानी था। मारकंडेय तालाब, चंदन, तालाब, श्वेतगंगा तालाब, पार्वती सागर और 'इद्रंद्युम्न तालाब मिलकर पुरी के पंचतीर्थ कहलाते हैं। लोकनाथ, मारकंडेश्वर, कपालमोचन, नीलकंठ और रामेश्वर नाम के पंचमहादेव हैं। श्री शंकराचार्य ने यहाँ गोवर्धन मठ की स्थापना की थी। चैतन्य महाप्रभु ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में पुरी में निवास किया था।

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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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