पूर्व प्रतिबलित कंक्रीट (Prestressed Concrete) किसी संरचना को पूर्व प्रतिबलित करने का अर्थ उसमें ऐसे प्रतिबल उत्पन्न करना है जिनकी प्रकृति चल (live) और अचल (dead) भार से उत्पन्न प्रतिबलों के विपरीत हो। यह तकनीक कंक्रीट के लिये जो तनाव की स्थिति में स्वभावत: दुर्बल होता है और भी अधिक महत्व की है। यदि कंक्रीट खंड के तनाव क्षेत्र (tension zone) में भार प्रयोग करने के साथ या पहले संपीडन (compression) उत्पन्न किया जाय, तो तनाव प्रतिबल दूर या अत्यंत कम हो जाता है। इससे कंक्रीट में दरार नहीं पड़ती और समूचा खंड प्रतिरोधी घूर्ण (resisting moment) में भाग ले पाता है। इस रीति से खंड का आकार छोटा किया जा सकता है, जिससे कंक्रीट की बचत और अचल भार की कमी होती है। अचल भार को कम करना बड़े पाट के पुलों के निर्माण में विशेष महत्व का है, क्योंकि इससे ऊपरी ढाँचे और नींव के निर्माण में आर्थिक बचत होती है।
दरार न पड़ने से एक लाभ ओर होता है। प्रबलित कंक्रीट चिटकने पर वायुमंडलीय प्रभावों को ग्रहण करती है, जिससे संरचना का जीवन घटता है। दरारों के अभाव में प्रत्यावर्ती भार (alternating loads) संघट्टन, स्पंदन और आघात आदि का प्रतिरोध करने में कंक्रीट अधिक सक्षम होता है। इसीलिये प्रबलित कंक्रीट की अपेक्षा पूर्व प्रतिबलित कंक्रीट अधिक टिकाऊ होता है।
पूर्व प्रतिबलित कंक्रीट से संरचना प्रबलित कंक्रीट सरंचना की अपेक्षा एक तिहाई कंक्रीट से तैयार हो सकती है। यद्यपि पूर्व प्रतिबलित कक्रीट की संरचना में उच्च तनाव का इस्पात प्रयुक्त होता है, तथापि समान भार वहन करनेवाली प्रबलित कंक्रीट संरचना का एक चौथाई इस्पात ही पर्याप्त होता है। यद्यपि सामग्री की बचत होने पर उल्लेखनीय आर्थिक बचत नहीं होती, फिर भी अचल भार की कमी के कारण नींव की लागत कम हो जाती है ओर इस प्रकार थोड़ी बहुत आर्थिक बचत हो जाती है।
द्रव के संचय के लिये निर्मित संरचनाओं पर पूर्व प्रतिबलीकरण का क्रांतिकारी प्रभाव पड़ता है। बृहद जलकुंडों का निर्माण किसी दूसरी पद्धति से संभव नहीं है। इस विधि से आर्थिक बचत होती है और कुंडों में दरार पड़ने और द्रव के टपकने का भय नहीं रहता। यह तकनीक पुल और बड़े पाट के छतों के अतिरिक्त तनाव उत्पन्न होने वाली सभी संरचनाओं, जेसे प्रत्यंधा गर्डर का तान और आलंबक (tie and suspender), बाँध का प्रतिस्रोत (upstream) पाश्व्र, रेलवे स्लीपर आदि, में काम आती है।
कंक्रीट को पूर्व प्रतिबलित करने के असफल प्रयास 1888 ई. में ही होने लगे थे। इन प्रयासों में इस बात का विचार नहीं हुआ कि साधारण इस्पात के अधिकतम प्रसार से विकृति का जितना ्ह्रास होता है उतना ही कंक्रीट की सिकुड़न और सरकन से भी होता है। 1928 ई. में फ्रेज़िने (Freyssinet) ने इन हानियों के कारणों की जाँच की ओर प्रयोग द्वारा उच्च तनाव इस्पात और उच्च कोटि के कंक्रीट का प्रयोग करने की आवश्यकता सिद्ध की। पश्चात् तनाव पद्धति में कुल हानि 12 से 15 प्रतिशत और पूर्वतनाव पद्धति में 20 से 25 प्रति शत होती है।
धरनखंड के प्रतिबलों के प्रतिरूप- धरनखंड के पूर्वप्रतिबलीकरण और भारप्रयुक्ति का विभिन्न अवस्थाओं में प्रतिबल वितरण चित्र. 1 में प्रदर्शित है। खंड को पूर्व प्रतिबलित करने वाले बलों से उत्पन्न प्रतिबल चित्र 1 (ब) में दिखाए गए हैं। इन बलों के प्रयोग के साथ ही धरन ऊपर की ओर विचलित होने लगती है और आकृति (forms) के ऊपर उठकर यह आकृति के छोरों पर टिकी रहती है। वे प्रतिबल जो धरन के भार के कारण, या पूर्वप्रतिबलन के समय मौज़ूद अचल भार से, उत्पन्न होते हैं, पूर्वप्रतिबल से उत्पन्न प्रतिबलों पर अध्यारोपित (superimposed) हो जाते हैं। परिणामी प्रतिबल चित्र 1 (द) में दिखाए गए हैं। अनुवर्ती भारों के कारण उत्पन्न प्रतिबल भी चित्र 1 (फ) की भाँति अध्यारोपित हो जाते है। अभिकल्पन के विचार से 1 (द) और 1 (फ) की भाँति अध्यारोपित हो जाते है। अभिकल्पन के विचार से 1 (द) ओर (फ) पर संपीडन और तनाव बलों को अनुमेय सीमाओं में होना चाहिए।
पूर्वप्रतिबलन के प्रकार- पूर्वप्रतिबलन की दो मुख्य विधियाँ हैं : (1) पूर्व तनाव तथा (2) पश्च तनाव।
पहली विधि में उच्च तनाव के तारों को अभीष्ट तनाव पर खींचकर कंक्रीट को साँचे में उड़ेला जाता है। ज्योंही कंक्रीट कठोर होता और इस्पात को जकड़ लेता है, तारों को मुक्त कर देते हैं। कंक्रीट से जकड़े होने के कारण तार अपनी सामान्य लंबाई पर नहीं आ सकते और कंक्रीट पर संपीडन बल उत्पन्न करते हैं। एक घूर्णमान पीपे द्वारा तार वैसे ही खींचे जाते हें जैसे टेनिस कोर्ट में जाल खींचा जाता है। यह विधि फैक्टरी में कंक्रीट के निर्माण के लिये उपर्युक्त है भवन आदि के निर्माणस्थल पर कंक्रीट बनाने के लिये यह विधि उपयुक्त नहीं है, क्योंकि तार के छोरों को कंक्रीट के कड़े होने तक पकड़ने के लिये अनम्य, दृढ़ अत्याधार (abutments) चाहिए, जो व्ययसाध्य हैं। अनम्य टेक की रचना के लिये पुल के स्थलों का उपयुक्त होना प्राय: आवश्यक भी नहीं है। छोटी धरने, नींव स्तंभ, रेलवे स्लीपर, बिजली के खंभों आदि के अधिक मात्रा में निर्माण के लिये यह विधि अधिक उपयुक्त है। अंत्याधारों का अंतराल इतना होता है कि कई धरनों को एक साथ कंक्रीट किया जा सके। इससे भारी अंत्याधारों के प्रति ईकाई पूर्वप्रतिबलन में आर्थिक बचत होती है।
पश्च तनावविधि में कंक्रीट के कठोर होने के बाद इस्पात के तारों को खींचा जाता है। तनाववाले इस्पात के तारों को कठोर हुई कंक्रीट से चिपकने नहीं दिया जाता। तनाववाले इस्पात के तारों को कठोर हुई कंक्रीट से चिपकने नहीं दिया जाता। खिंचाव काल में तनाव उत्पन्न करनेवाला साधन उसी समय संपीडित हुई कंक्रीट पर प्रतिक्रिया करता है। क्रिया पूरी होने पर उपयुक्त जकड़ों (anchorage) के प्रयोग से तार को उनकी सामान्य लंबाई धारण करने से रोका जाता है।
व्यवहार में पश्च तनाव की अनेक एकस्व (patent) विधियाँ हैं। इन सब एकस्वों का सिद्धांत एक है, किंतु इनके जकड़ के तरीके भिन्न हैं। ई. फ्रेज़िने (E. Freyssinet), मैग्नेल ब्लैटन (Magnel Elaton) और ली मैकाल (Lee Macall) को विधियाँ प्राचीन एकस्व के उदाहरण स्वरूप हैं।
फ्रज़िने विधि- 8, 12, या 16 के समूह में .2 इंच या 0.276 इंच व्यास के इस्पात की तार के केवल कुंडलीदार कमानी (helical spirinhg) के चारों ओर, जो उनकी स्थिति उचित दूरी पर व्यवस्थित रखती है, रखे जाते हैं। अब इन्हें चित्र 2. में प्रदर्शित क. 3/4 इंच अंतराल की कुंडलिनी कमानी, च. उच्च तनाव वाले तार तथा ग. धातु की चद्दर। रीति से इस्पात के आवरण में रखा जाता है। कंक्रीट का बेलन, जिसका बाहरी भाग नालीदार होता है। इसके केंद्र में एक शंक्वाकार छेद और एक भारी चक्र (ण्दृदृद्र) प्रबलन होता है। इस बेलन को कंक्रीट युक्ति से पहले उचित स्थिति में रखा जाता है। शंक्वाकार प्लग को ऐसी स्थिति में ढकेला जाता है जिससे बलों के तनाव के बाद वह टेक (wedge) का काम करता है। शंक्वाकार प्लग के छेद में से तार, कमानी और आवरण के अंतराल को सीमेंट के मासले से भर दिया जाता है।
मैग्नेज ब्लैटन विधि- इसमें धरन में छेद छोड़ने के लिये रबर क्रीड़ का प्रयोग किया जाता है। कंक्रीट प्रयुक्ति के दो से चार घंटों के बाद रबर क्रोड़ निकाल दिया जाता है। जैसा चित्र 4. में प्रदर्शित है अंत्याधार टेक शकल के होते हैं।
लीमैकाल विधि- इसमें उच्च तनाव के इस्पात के मोटे मोटे छड़ प्रयुक्त किए जाते हैं। छड़ों के किनारों पर चूड़ियाँ होती हैं और छड़ को अभीष्ट लंबाई तक खींचने के बाद प्रारंभिक स्थिति पर न आने देने के लिये नट कस देते हैं। धरन में मैग्नेल ब्लैटन विधि के समान क्रीड से छेद किया जाता है।
सामग्रियाँ- निम्नलिखित सामग्रियों की आवश्यकता होती है :
(अ) उच्च तनाव का इस्पात- इसमें 3/4 प्रतिशत कार्बन की अधिकता से तनाव क्षमता बढ़ जाती है और तन्यता कम हो जाती है। उच्च तनाव के इस्पात को उष्ण वेल्लित (hot rolled) करके 1.5 प्रति शत मैंग्नीज के साथ ऊष्मा उपचार करते हैं, जिससे तन्यता और तनाव क्षमता की वृद्धि होती है। यह 0.2 इंच ओर 0.276 इंच के आकार में मिलता है। इसकी चरम क्षमता 110 टी (T) प्रति वर्ग इंच और 0.2 प्रतिशत प्रमाण-प्रतिबल (proof stress) 95 टी प्रति वर्ग इंच है। 0.2 प्रतिशत प्रमाण प्रतिबल, वह प्रतिबल है जो बोझ उतारने पर 0.2 प्रतिशत अवशिष्ट विकृति उत्पन्न करता है। कार्यकारी प्रतिबल 70 टी प्रति वर्ग इंच के होते हैं। पूर्व तनाव के कामों में बंधन की दृढ़ता के लिये दाँतेदार तार का प्रयोग लाभप्रद है।
उच्च तनाव इस्पात सरकनशील होता है। सरकन आरंभिक तनाव का 16 प्रति शत होता है। तारों को दो मिनट तक कार्यकारी भार का 1.32 गुना खींचकर और पुन: कार्यकारी भार में लानेपर यह 7 प्रतिशत तक घटाया जा सकता है।
(ब) कंक्रीट- 1,500 से 2,500 पी. एस. आइ. (p.s.i.) तक के उच्च कार्यकारी प्रतिबलों के लिये उत्कृष्ट कोटि का कंक्रीट काम में आता है। इस कंक्रीट का प्रत्यास्थता मापांक 4X106 से 6X106 पी. एस. आई. तक होता है। इस उच्च कोटि के कंक्रीट का प्रत्यास्थता तनाव, सिकुड़न और सुघट्य प्रवाह निम्न होता है। कंक्रीट के ये गुण पूर्वप्रतिबल में सिकुड़न और सरकन द्वारा होनेवाली हानियों को कम करते हैं।
पूर्वनिर्मित अंग- पूर्वप्रतिबलन की विधियाँ बड़े पैमाने में उत्पादन में सहायक हैं। उपर्युक्त विधियों में से किसी भी विधि से फेक्टरी में निर्मित छोटे छोटे पूर्वनिर्मित अंगों का उपयोग हम कर सकते हैं। पहले से ढाले हुए अवयवों से निर्माण कार्य शीघ्र होता है। भारत में अनेक फैक्टरियाँ पहले से ढाली हुई पूर्वप्रतिबलित स्लीपर, धरन और कैंची छत आदि का निर्माण करती है। (जयकृष्ण)
दरार न पड़ने से एक लाभ ओर होता है। प्रबलित कंक्रीट चिटकने पर वायुमंडलीय प्रभावों को ग्रहण करती है, जिससे संरचना का जीवन घटता है। दरारों के अभाव में प्रत्यावर्ती भार (alternating loads) संघट्टन, स्पंदन और आघात आदि का प्रतिरोध करने में कंक्रीट अधिक सक्षम होता है। इसीलिये प्रबलित कंक्रीट की अपेक्षा पूर्व प्रतिबलित कंक्रीट अधिक टिकाऊ होता है।
पूर्व प्रतिबलित कंक्रीट से संरचना प्रबलित कंक्रीट सरंचना की अपेक्षा एक तिहाई कंक्रीट से तैयार हो सकती है। यद्यपि पूर्व प्रतिबलित कक्रीट की संरचना में उच्च तनाव का इस्पात प्रयुक्त होता है, तथापि समान भार वहन करनेवाली प्रबलित कंक्रीट संरचना का एक चौथाई इस्पात ही पर्याप्त होता है। यद्यपि सामग्री की बचत होने पर उल्लेखनीय आर्थिक बचत नहीं होती, फिर भी अचल भार की कमी के कारण नींव की लागत कम हो जाती है ओर इस प्रकार थोड़ी बहुत आर्थिक बचत हो जाती है।
द्रव के संचय के लिये निर्मित संरचनाओं पर पूर्व प्रतिबलीकरण का क्रांतिकारी प्रभाव पड़ता है। बृहद जलकुंडों का निर्माण किसी दूसरी पद्धति से संभव नहीं है। इस विधि से आर्थिक बचत होती है और कुंडों में दरार पड़ने और द्रव के टपकने का भय नहीं रहता। यह तकनीक पुल और बड़े पाट के छतों के अतिरिक्त तनाव उत्पन्न होने वाली सभी संरचनाओं, जेसे प्रत्यंधा गर्डर का तान और आलंबक (tie and suspender), बाँध का प्रतिस्रोत (upstream) पाश्व्र, रेलवे स्लीपर आदि, में काम आती है।
कंक्रीट को पूर्व प्रतिबलित करने के असफल प्रयास 1888 ई. में ही होने लगे थे। इन प्रयासों में इस बात का विचार नहीं हुआ कि साधारण इस्पात के अधिकतम प्रसार से विकृति का जितना ्ह्रास होता है उतना ही कंक्रीट की सिकुड़न और सरकन से भी होता है। 1928 ई. में फ्रेज़िने (Freyssinet) ने इन हानियों के कारणों की जाँच की ओर प्रयोग द्वारा उच्च तनाव इस्पात और उच्च कोटि के कंक्रीट का प्रयोग करने की आवश्यकता सिद्ध की। पश्चात् तनाव पद्धति में कुल हानि 12 से 15 प्रतिशत और पूर्वतनाव पद्धति में 20 से 25 प्रति शत होती है।
धरनखंड के प्रतिबलों के प्रतिरूप- धरनखंड के पूर्वप्रतिबलीकरण और भारप्रयुक्ति का विभिन्न अवस्थाओं में प्रतिबल वितरण चित्र. 1 में प्रदर्शित है। खंड को पूर्व प्रतिबलित करने वाले बलों से उत्पन्न प्रतिबल चित्र 1 (ब) में दिखाए गए हैं। इन बलों के प्रयोग के साथ ही धरन ऊपर की ओर विचलित होने लगती है और आकृति (forms) के ऊपर उठकर यह आकृति के छोरों पर टिकी रहती है। वे प्रतिबल जो धरन के भार के कारण, या पूर्वप्रतिबलन के समय मौज़ूद अचल भार से, उत्पन्न होते हैं, पूर्वप्रतिबल से उत्पन्न प्रतिबलों पर अध्यारोपित (superimposed) हो जाते हैं। परिणामी प्रतिबल चित्र 1 (द) में दिखाए गए हैं। अनुवर्ती भारों के कारण उत्पन्न प्रतिबल भी चित्र 1 (फ) की भाँति अध्यारोपित हो जाते है। अभिकल्पन के विचार से 1 (द) और 1 (फ) की भाँति अध्यारोपित हो जाते है। अभिकल्पन के विचार से 1 (द) ओर (फ) पर संपीडन और तनाव बलों को अनुमेय सीमाओं में होना चाहिए।
पूर्वप्रतिबलन के प्रकार- पूर्वप्रतिबलन की दो मुख्य विधियाँ हैं : (1) पूर्व तनाव तथा (2) पश्च तनाव।
पहली विधि में उच्च तनाव के तारों को अभीष्ट तनाव पर खींचकर कंक्रीट को साँचे में उड़ेला जाता है। ज्योंही कंक्रीट कठोर होता और इस्पात को जकड़ लेता है, तारों को मुक्त कर देते हैं। कंक्रीट से जकड़े होने के कारण तार अपनी सामान्य लंबाई पर नहीं आ सकते और कंक्रीट पर संपीडन बल उत्पन्न करते हैं। एक घूर्णमान पीपे द्वारा तार वैसे ही खींचे जाते हें जैसे टेनिस कोर्ट में जाल खींचा जाता है। यह विधि फैक्टरी में कंक्रीट के निर्माण के लिये उपर्युक्त है भवन आदि के निर्माणस्थल पर कंक्रीट बनाने के लिये यह विधि उपयुक्त नहीं है, क्योंकि तार के छोरों को कंक्रीट के कड़े होने तक पकड़ने के लिये अनम्य, दृढ़ अत्याधार (abutments) चाहिए, जो व्ययसाध्य हैं। अनम्य टेक की रचना के लिये पुल के स्थलों का उपयुक्त होना प्राय: आवश्यक भी नहीं है। छोटी धरने, नींव स्तंभ, रेलवे स्लीपर, बिजली के खंभों आदि के अधिक मात्रा में निर्माण के लिये यह विधि अधिक उपयुक्त है। अंत्याधारों का अंतराल इतना होता है कि कई धरनों को एक साथ कंक्रीट किया जा सके। इससे भारी अंत्याधारों के प्रति ईकाई पूर्वप्रतिबलन में आर्थिक बचत होती है।
पश्च तनावविधि में कंक्रीट के कठोर होने के बाद इस्पात के तारों को खींचा जाता है। तनाववाले इस्पात के तारों को कठोर हुई कंक्रीट से चिपकने नहीं दिया जाता। तनाववाले इस्पात के तारों को कठोर हुई कंक्रीट से चिपकने नहीं दिया जाता। खिंचाव काल में तनाव उत्पन्न करनेवाला साधन उसी समय संपीडित हुई कंक्रीट पर प्रतिक्रिया करता है। क्रिया पूरी होने पर उपयुक्त जकड़ों (anchorage) के प्रयोग से तार को उनकी सामान्य लंबाई धारण करने से रोका जाता है।
व्यवहार में पश्च तनाव की अनेक एकस्व (patent) विधियाँ हैं। इन सब एकस्वों का सिद्धांत एक है, किंतु इनके जकड़ के तरीके भिन्न हैं। ई. फ्रेज़िने (E. Freyssinet), मैग्नेल ब्लैटन (Magnel Elaton) और ली मैकाल (Lee Macall) को विधियाँ प्राचीन एकस्व के उदाहरण स्वरूप हैं।
फ्रज़िने विधि- 8, 12, या 16 के समूह में .2 इंच या 0.276 इंच व्यास के इस्पात की तार के केवल कुंडलीदार कमानी (helical spirinhg) के चारों ओर, जो उनकी स्थिति उचित दूरी पर व्यवस्थित रखती है, रखे जाते हैं। अब इन्हें चित्र 2. में प्रदर्शित क. 3/4 इंच अंतराल की कुंडलिनी कमानी, च. उच्च तनाव वाले तार तथा ग. धातु की चद्दर। रीति से इस्पात के आवरण में रखा जाता है। कंक्रीट का बेलन, जिसका बाहरी भाग नालीदार होता है। इसके केंद्र में एक शंक्वाकार छेद और एक भारी चक्र (ण्दृदृद्र) प्रबलन होता है। इस बेलन को कंक्रीट युक्ति से पहले उचित स्थिति में रखा जाता है। शंक्वाकार प्लग को ऐसी स्थिति में ढकेला जाता है जिससे बलों के तनाव के बाद वह टेक (wedge) का काम करता है। शंक्वाकार प्लग के छेद में से तार, कमानी और आवरण के अंतराल को सीमेंट के मासले से भर दिया जाता है।
मैग्नेज ब्लैटन विधि- इसमें धरन में छेद छोड़ने के लिये रबर क्रीड़ का प्रयोग किया जाता है। कंक्रीट प्रयुक्ति के दो से चार घंटों के बाद रबर क्रोड़ निकाल दिया जाता है। जैसा चित्र 4. में प्रदर्शित है अंत्याधार टेक शकल के होते हैं।
लीमैकाल विधि- इसमें उच्च तनाव के इस्पात के मोटे मोटे छड़ प्रयुक्त किए जाते हैं। छड़ों के किनारों पर चूड़ियाँ होती हैं और छड़ को अभीष्ट लंबाई तक खींचने के बाद प्रारंभिक स्थिति पर न आने देने के लिये नट कस देते हैं। धरन में मैग्नेल ब्लैटन विधि के समान क्रीड से छेद किया जाता है।
सामग्रियाँ- निम्नलिखित सामग्रियों की आवश्यकता होती है :
(अ) उच्च तनाव का इस्पात- इसमें 3/4 प्रतिशत कार्बन की अधिकता से तनाव क्षमता बढ़ जाती है और तन्यता कम हो जाती है। उच्च तनाव के इस्पात को उष्ण वेल्लित (hot rolled) करके 1.5 प्रति शत मैंग्नीज के साथ ऊष्मा उपचार करते हैं, जिससे तन्यता और तनाव क्षमता की वृद्धि होती है। यह 0.2 इंच ओर 0.276 इंच के आकार में मिलता है। इसकी चरम क्षमता 110 टी (T) प्रति वर्ग इंच और 0.2 प्रतिशत प्रमाण-प्रतिबल (proof stress) 95 टी प्रति वर्ग इंच है। 0.2 प्रतिशत प्रमाण प्रतिबल, वह प्रतिबल है जो बोझ उतारने पर 0.2 प्रतिशत अवशिष्ट विकृति उत्पन्न करता है। कार्यकारी प्रतिबल 70 टी प्रति वर्ग इंच के होते हैं। पूर्व तनाव के कामों में बंधन की दृढ़ता के लिये दाँतेदार तार का प्रयोग लाभप्रद है।
उच्च तनाव इस्पात सरकनशील होता है। सरकन आरंभिक तनाव का 16 प्रति शत होता है। तारों को दो मिनट तक कार्यकारी भार का 1.32 गुना खींचकर और पुन: कार्यकारी भार में लानेपर यह 7 प्रतिशत तक घटाया जा सकता है।
(ब) कंक्रीट- 1,500 से 2,500 पी. एस. आइ. (p.s.i.) तक के उच्च कार्यकारी प्रतिबलों के लिये उत्कृष्ट कोटि का कंक्रीट काम में आता है। इस कंक्रीट का प्रत्यास्थता मापांक 4X106 से 6X106 पी. एस. आई. तक होता है। इस उच्च कोटि के कंक्रीट का प्रत्यास्थता तनाव, सिकुड़न और सुघट्य प्रवाह निम्न होता है। कंक्रीट के ये गुण पूर्वप्रतिबल में सिकुड़न और सरकन द्वारा होनेवाली हानियों को कम करते हैं।
पूर्वनिर्मित अंग- पूर्वप्रतिबलन की विधियाँ बड़े पैमाने में उत्पादन में सहायक हैं। उपर्युक्त विधियों में से किसी भी विधि से फेक्टरी में निर्मित छोटे छोटे पूर्वनिर्मित अंगों का उपयोग हम कर सकते हैं। पहले से ढाले हुए अवयवों से निर्माण कार्य शीघ्र होता है। भारत में अनेक फैक्टरियाँ पहले से ढाली हुई पूर्वप्रतिबलित स्लीपर, धरन और कैंची छत आदि का निर्माण करती है। (जयकृष्ण)
Hindi Title
विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)
अन्य स्रोतों से
संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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