पवन-वेग-मापन (Anemometry) भिन्न भिन्न प्रकार के पवन-वेग-मापियों से पवन के बल एवं वेग के मापन को कहते हैं। मौसमविज्ञान के अध्ययन में पवन का वेगमापन महत्व का स्थान रखता है। जिस उपकरण से पृथ्वीतल पर के पवन का वेग नापा जाता है, उसे पवन-वेग-मापी (Anemometer) कहते हैं। सबसे अधिक प्रचलित पवन-वेग-मापी रॉबिन्सन कप ऐनिमॉमीटर है। इसमें तीन या चार गोलार्ध आकृति के प्याले एक ऊर्ध्वाधर तर्कु (spindle) से संबद्ध इस्पात की आड़ी भुजा पर चढ़े होते हैं। उपकरण के आधार पर स्थित गणित्र (counter) से तर्कु जुड़ा होता है। पवन के चलने से प्याले घूर्णन की संख्या बढ़ती जाती है। गणित्र भी मील या किलोमीटर में प्यालियों की चाल का अभिलेख प्रस्तुत करता है, जैसा टैक्सीमीटर में होता है। किसी विशेष काल में हवा का वेग ज्ञात करने के लिए छह मिनट की अवधि में मील या किलोमीटर तथा उसके प्रभागों में प्याले की चाल के अंतर को गणित्र द्वारा मालूम करते हैं। इस अंतर को दस से गुणा करने पर वेग मील या किलोमीटर प्रति घंटा में मालूम हो जाता है। अत: इस उपकरण से इच्छित मध्यांतर में कुल चाल अभिलिखित की जाती है। अत: किसी थोड़े समय में पवन के झोंकों या झक्कड़ों का वेग इससे मापना संभव नहीं है, क्योंकि इनकी प्रबलता अल्पकालिक, प्राय: एक मिनट से भी कम समय की, होती है। यह उपकरण छह मिनट या इससे अधिक समय के अंतराल में पवन का औसत वेग बतलाता है। तात्कालिक पवनवेग बतलाने के लिए यह उपकरण उपयुक्त नहीं है।
वैमानिकों को उड्डयन के समय पवन का वेग अविलंब सूचित करने के निमित्त प्रत्येक हवाई अड्डे पर प्रेक्षक रहता है। हवाई अड्डे के प्रेक्षक दूर पठन पवनमापी (Distant Reading Anemometer) का प्रयोग करते हैं। पवनमापी खुले स्थान में रखा रहता है और इसका आलेखक (recorder) प्रेक्षक के कक्ष में रहता है। आलेखक विद्युद्विधि से पवनमापी से संबद्ध होता है। दूर पठन पवनमापी का परिपथ-आरेख नीचे चित्र में प्रस्तुत है। इसका अभिकल्पन अमरीका के मौसम विभाग ने किया है। इसमें क1 (K1) और क2 (K2) क्रमश: छोटे और बड़े संघनित्र (condenser) है। दोनों में संस्पर्श होते ही छोटा संघनित्र बढ़े संघनित्र में विसर्जित (discharged) हो जाता है। किन्हीं दो लगातार संस्पर्शो के बीच छोटा संघनित्र व (V) वोल्टता से आविष्ट (देखें चित्र) हो जाता है, जिसका नियमन किया जाता है। बड़े संघनित्र का आवेश सूक्ष्म ऐंपियरमापी ऐं (A) और प्रतिरोध प्र (R) से निरंतर छीजता रहता है। यदि क2 (K2) का कालांक, प्र (R), पर्याप्त अधिक हो तो क (K2) का विभव संस्पर्शो की दर का रेखिक फलन होगा। इसके अतिरिक्त क2 (K2) का विभव सूक्ष्म ऐंपियरमापी ऐं (A) के पाठ्यांक का अनुपाती होता है। परिपथ इस प्रकर व्यवस्थित होता है कि ऐं (A) का पाठ्यांक सद्य: बीते हुए मिनट में हवा का औसत निरूपित करता है।
दाबनली पवन-वेग-लेखक यंत्र (Pressure Tube Anemograph) हवा के वेग के सतत अभिलेख के लिए डाइन दाबनली पवन-वेग-लेखक (Dines Pressure Tube Anemograph) सर्वोत्तम उपकरण है। यह उपकरण इस तथ्य पर कार्य करता है कि यदि किसी नली के मुँह में पवन जा रहा हो, तो नली में दाब की अधिकता की स्थिति होगी और यदि हवा का प्रवाह नली के मुँह के आड़े होगा तो नली में चूषण (suction) होगा। इन दोनों ही प्रभावों की सम्मिलित स्थिति से यह पवनमापी कार्य करता है। इसमें प्लवी दाबमापी (float manometer) से संबद्ध दो नलियाँ (दाब व चूषण की) होती हैं। दाबमापी कलम से एक ढोल (clock drum) पर लिपटे हुए चार्ट पर पवन का वेग अभिलिखित करता है। दाबनली को सदैव पवन के प्रवाह की ओर उन्मुख रखने के लिए उसे पवनदिक्सूचक (windvane) के नुकीले भाग की ओर खुला रखते हैं और चूषणनली को उपकरण के शीर्ष स्थान पर इस प्रकार खुला रखते हैं कि इसपर पवन के प्रवाह का असर न हो। उपकरण का शीर्ष भाग धरती या छत पर इतनी ऊँचाई पर रखा जाता है कि इसपर भंवरों (eddies) का कुप्रभाव न पड़े। प्लवी दाबमापी सहित अभिलेखक प्रेक्षक के कक्ष में स्थापित होता है, जिससे वह आवश्यकतानुसार पाठ्यांक ले ले।
पवन-वेग-मापी का अनावरण (exposure) - पवन-वेग-मापी को ऐसे स्थान पर खुला रखना चाहिए जहाँ पवन का प्रवाह निर्बाध हो और यह आसपास के भवनों, पेड़ों आदि से रुका न हो। इस प्रतिबंध को पूरा करने के लिए पवन-वेग-मापी को प्राय: ऊँचे भवनों की छत पर इस प्रकार रखा जाता है कि उपकरण तक पहुँचनेवाला पवन निकट के सर्वोच्च पदार्थ से भी बाधित न हो।(किरणचंद्र चक्रवर्ती)
वैमानिकों को उड्डयन के समय पवन का वेग अविलंब सूचित करने के निमित्त प्रत्येक हवाई अड्डे पर प्रेक्षक रहता है। हवाई अड्डे के प्रेक्षक दूर पठन पवनमापी (Distant Reading Anemometer) का प्रयोग करते हैं। पवनमापी खुले स्थान में रखा रहता है और इसका आलेखक (recorder) प्रेक्षक के कक्ष में रहता है। आलेखक विद्युद्विधि से पवनमापी से संबद्ध होता है। दूर पठन पवनमापी का परिपथ-आरेख नीचे चित्र में प्रस्तुत है। इसका अभिकल्पन अमरीका के मौसम विभाग ने किया है। इसमें क1 (K1) और क2 (K2) क्रमश: छोटे और बड़े संघनित्र (condenser) है। दोनों में संस्पर्श होते ही छोटा संघनित्र बढ़े संघनित्र में विसर्जित (discharged) हो जाता है। किन्हीं दो लगातार संस्पर्शो के बीच छोटा संघनित्र व (V) वोल्टता से आविष्ट (देखें चित्र) हो जाता है, जिसका नियमन किया जाता है। बड़े संघनित्र का आवेश सूक्ष्म ऐंपियरमापी ऐं (A) और प्रतिरोध प्र (R) से निरंतर छीजता रहता है। यदि क2 (K2) का कालांक, प्र (R), पर्याप्त अधिक हो तो क (K2) का विभव संस्पर्शो की दर का रेखिक फलन होगा। इसके अतिरिक्त क2 (K2) का विभव सूक्ष्म ऐंपियरमापी ऐं (A) के पाठ्यांक का अनुपाती होता है। परिपथ इस प्रकर व्यवस्थित होता है कि ऐं (A) का पाठ्यांक सद्य: बीते हुए मिनट में हवा का औसत निरूपित करता है।
दाबनली पवन-वेग-लेखक यंत्र (Pressure Tube Anemograph) हवा के वेग के सतत अभिलेख के लिए डाइन दाबनली पवन-वेग-लेखक (Dines Pressure Tube Anemograph) सर्वोत्तम उपकरण है। यह उपकरण इस तथ्य पर कार्य करता है कि यदि किसी नली के मुँह में पवन जा रहा हो, तो नली में दाब की अधिकता की स्थिति होगी और यदि हवा का प्रवाह नली के मुँह के आड़े होगा तो नली में चूषण (suction) होगा। इन दोनों ही प्रभावों की सम्मिलित स्थिति से यह पवनमापी कार्य करता है। इसमें प्लवी दाबमापी (float manometer) से संबद्ध दो नलियाँ (दाब व चूषण की) होती हैं। दाबमापी कलम से एक ढोल (clock drum) पर लिपटे हुए चार्ट पर पवन का वेग अभिलिखित करता है। दाबनली को सदैव पवन के प्रवाह की ओर उन्मुख रखने के लिए उसे पवनदिक्सूचक (windvane) के नुकीले भाग की ओर खुला रखते हैं और चूषणनली को उपकरण के शीर्ष स्थान पर इस प्रकार खुला रखते हैं कि इसपर पवन के प्रवाह का असर न हो। उपकरण का शीर्ष भाग धरती या छत पर इतनी ऊँचाई पर रखा जाता है कि इसपर भंवरों (eddies) का कुप्रभाव न पड़े। प्लवी दाबमापी सहित अभिलेखक प्रेक्षक के कक्ष में स्थापित होता है, जिससे वह आवश्यकतानुसार पाठ्यांक ले ले।
पवन-वेग-मापी का अनावरण (exposure) - पवन-वेग-मापी को ऐसे स्थान पर खुला रखना चाहिए जहाँ पवन का प्रवाह निर्बाध हो और यह आसपास के भवनों, पेड़ों आदि से रुका न हो। इस प्रतिबंध को पूरा करने के लिए पवन-वेग-मापी को प्राय: ऊँचे भवनों की छत पर इस प्रकार रखा जाता है कि उपकरण तक पहुँचनेवाला पवन निकट के सर्वोच्च पदार्थ से भी बाधित न हो।(किरणचंद्र चक्रवर्ती)
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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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