पवन

Submitted by Hindi on Mon, 08/22/2011 - 08:53
पवन (Wind) गतिशील वायु को कहते हैं। यह गति पृथ्वी की सतह के लगभग समांतर रहती है। पृथ्वी से कुछ मीटर ऊपर तक के पवन को सतही पवन और 200 मीटर या अधिक ऊँचाई के पवन को उपरितन पवन कहते हैं। जब किसी स्थान और ऊँचाई के पवन का निर्देश करना हो तब वहाँ के पवन की चाल और उसकी दिशा दोनों का उल्लेख होना चाहिए। पवन की दिशा का उल्लेख करने में जिस दिशा से पवन बह रहा है उसका उल्लेख दिक्सूचक के निम्नलिखित 16 संकेतों से करते हैं : उ (N), उ उ पू (N N E), उ पू (N E), पू उ पू (E N E), पू (E), पू द पू (E S E), द पू (S E), द द पू (S S E), द (S), द द प (S S W), द प (S W), प द प (W S W), प (W), प उ प (W N W), उ प (N W), और उ उ प (N N W), या यह दिशा अंशों में व्यक्त की जाती है। जब पवन दक्षिणावर्त (clockwise) दिशा में परिवर्तित होता है (जैसे उ से उ पू और पू), तब ऐसे परिवर्तन को पवन का दक्षिणावर्तन और वामावर्त दिश में परिवर्तन (जैसे उ से उप और प) का विपरीत पवन कहते हैं। वेधशाला में पवनदिक्सूचक नामक उपकरण हवा की दिशा बताता है। इसका नुकीला सिरा हमेशा उधर रहता है जिधर से हवा आ रही होती है। पवन का वेग मील प्रति घंटे, या मीटर प्रति सेकंड, में व्यक्त किया जाता है। सतह के पवन को मापने के लिए प्राय: प्याले के आकार का पवनमापी काम में आता है। पवनवेग का लगातार अभिलेख करने के लिए अनेक उपकरण काम में आते हैं, जिनमें दाबनली एवं पवनलेखक (Anemograph) महत्वपूर्ण एवं प्रचलित है (देखें पवन-वेग-मावन)। भिन्न भिन्न ऊँचाई के उपरितन पवन का निर्धारण करने के लिए हाइड्रोजन से भरा बैलून उड़ाया जाता है और ऊपर उठते हुए तथा पवनहित बैलून की ऊँचाई और दिगंश (azimuth) ज्ञात करने के लिए इसका निरीक्षण सामान्य थियोडोलाइट (theodolite) या रेडियो थियोडोलाइट से करते हैं। तब बैलून की उड़ान का प्रक्षेपपथ (trajectory) तैयार किया जाता है और प्राय: बैलून के ऊपर उठने के वेग की दर की कल्पना करके, प्रक्षेपपथ के विभिन्न बिंदुओं से बैलून की संगत ऊँचाई की गणना की जाती है। प्रक्षेपपथ से, इच्छित ऊँचाई पर, पवन की चाल और दिशा ज्ञात की जाती है।

बोफर्ट (Beaufort) का पवन मापक्रम  1806 ई. में जब पवनवेग मापन के सूक्ष्म उपकरण नहीं थे, तो ऐडमिरल बोफर्ट ने सामान्य प्रेक्षणों के आधार पर पवनवेग आकलन (estimate) का एक मापक्रम बनाया, जो आगे के पृष्ठ में दी हुई सारणी में दिखाया गया है।

पवन के कारण और इनकी विभिन्नता  सौर विकिरण के प्रभाव से पृथ्वी और वायुमंडल असमान रूप से गरम होते हैं, जिससे पवन के रूप में वायुमंडलीय गति के लिए आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है। परिणामी दाबप्रवणता (gradient) के कारण हवा के कण अधिक दबाव से कम दबाव की ओर जाने की प्रवृत्त होते हैं। अत: दाबप्रवणता की अधिकता हवा का प्रबल करती है। पृथ्वी के घूर्णन के कारण चलती हवा पर आभावी विचालक बल, जिसे कोरियोलिस (corioles) बल कहते हैं। कार्य करता है। यह दूसरा महत्वपूर्ण कारक है। फ ( ) अक्षांश पर कोरियोलिस बल 2 सं व ग ज्या फ (2 m v w sin  ) से व्यक्त किया जाता है, जहाँ व (v) वायुकरण का वेग, सं (m) वायुकरण की संहति, और ग (w) धरती के घूर्णन का कोणीय वेग है। यह बल स्पष्ट कारणों से उत्तरी गोलार्ध में वायुकणों को दाईं ओर और दक्षिण गोलार्ध में बाईं ओर विचलित करता है। इस बल का मान ध्रुवों पर अधिकतम और विषुवत्‌ पर शून्य होता है। पवन को प्रभावित करनेवाला तीसरा कारक

बोफर्ट का पवनवेग के आकलन का मापक्रम

बोफर्ट सं.

सामान्य विवरण

विशेषताएँ

वेग की सीमाएँ (जमीन से छह मीटर ऊपर)

किमी.घ.

नॉट्य

श्व्

प्रशांत

धुआँ सीधे ऊपर उठता है

इ 1

इ 1

1

हलकी वायु (light air)

धुएँ की दिशा से पवन की दिशा का संकेत मिलता है पर पवन दिक्सूचक से नहीं।

2- 6

1- 3

2

अल्प समीर (slightbreeze)

चेहरे पर हवा लगती है और पत्ते सरसराते हैं।

7- 12

4- 6

3

मंद समीर (gentle breeze)

पत्ते और टहनियाँ बराबर हिलती ही रहती हैं। हलका झंडा तन जाता है।

13- 18

7- 10

4

अल्पबल समीर (moderate breeze)

धूल, अबद्ध कागज एवं छोटी शाखाएँ हिलती डोलती हैं।

19- 26

10- 14

5

सबल समीर (fresh breeze)

छोटे पेड़ झूमने लगते हैं।

27- 35

15- 19

6

प्रबल समीर (strong breeze)

बड़ी शाखाएँ हिलती डोलती हैं। तार के खंभों से सीटी की ध्वनि निकलती है।

36- 44

19- 24

7

अल्पबल झंझा (moderate gale)

समूचे पेड़ झूमते हैं।

45- 55

24- 30

8

सबल झंझा (fresh gale)

टहनियाँ टूट जाती हैं।

56- 66

30- 35

9

प्रबल झंझा (strong gale)

खपड़ैल तथा छप्पर उड़ जाते हैं, भवन सामान्य क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

67- 77

36- 42

10

पूर्ण झंझा (whole gale)

पेड़ उखड़ जाते हैं, व्यापक क्षति होती है।

78- 90

42- 49

11

तूफान

बहुत कम आते हैं, व्यापक क्षति होती है।

91- 104

49- 56

12

प्रभंजन

बहुत कम आते हैं। इनमें भयंकर क्षति होती है।

> 104

> 56



अपकेंद्रीबल है, जो चक्रवातों और प्रतिचक्रवातों से उत्पन्न होता है। इन सभी कारकों को ध्यान में रखने पर उत्तरी गोलार्ध में पवन की अवणता के समीकरण निम्नलिखित होंगे :

उपर्युक्त समीकरणों में प्र (C) प्रवणता पवन  दाब प्रवणता, अ (r) परिसंचरण की वक्रता का अर्धव्यास, घ ( ) हवा का घनत्व, ग (w) पृथ्वी के घूर्णन का कोणीय वेग तथा फ ( ) प्रेक्षण के स्थान की उच्चता है।

ऊपर के समीकरणों में पृथ्वी की सतह पर स्थित रुकावटों से होनेवाले घर्षणबलों का समावेश नहीं हुआ है। अत: सतही परत के वास्तविक पवन का मान प्रवण (gradient) पवन के सैद्धांतिक मान से बहुत भिन्न होता है। उक्त समीकरणों की और एक विशेषता है। यदि वायुमंडल में चक्रवात या प्रतिचक्रवात का परिसंचरण न हो और समदाब रेखाएँ (isobars) एक दूसरे के समांतर हों, तो पवन भूविक्षेपी (geostrophic) हो जाता है और उत्तरी गोलार्ध में इसका मान निम्नलिखित समीकरण से व्यक्त किया जायगा :

यहाँ दबाव की प्रवणता पूरी तरह कोरियालिस बल से संतुलित हो जाती है। अत: भूविक्षेपी पवन समदाब रेखाओं के बीच की दूरी का विलोमानुपाती होता है और इसका अभिसरण (convergence), या अपसरण (divergence), नहीं होता।

समय एवं स्थान के अनुसार दाब, ताप, आर्द्रता तथा घनत्व वितरण में परिवर्तन, ऊँचाई के अनुसार विचालक बलों में अंतर, चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात जैसी परिवर्तनशील दबाव पद्धतियों से होनेवाले अपकेंद्री बलों में अंतर एवं घर्षणबलों में परिवर्तन आदि कारणों से पवन में अंतर हो जाता है।

पृथ्वी के वायुमंडल में वास्तविक परिसंचरण, जिससे पवन की संरचना निर्धारित होती है (1) प्राथमिक परिसंचरण, (2) अनेक गौण परिसंचरण (जैसे मानसून, स्थल और समुद्री समीर, पर्वतीय तथा घाटी पवन जो स्थानीय होते हैं), और (3) अवनमन (depression) एवं चक्रवात सदृश चलते फिरते विक्षोभ (disturbances) से होनेवाले परिसंचरण तथा आँधी, पानी एवं झक्कड़ आदि अल्पकालिक विक्षोभों से निर्धारित होता है। इनमें से हर स्थिति के अपने लक्षण हैं, जिनसे पवन का वह स्वरूप निर्धारित होता है।(किरणचंद्र चक्रवर्ती)

Hindi Title


विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)




अन्य स्रोतों से




संदर्भ
1 -

2 -

बाहरी कड़ियाँ
1 -
2 -
3 -