फल एवं सब्जियों के उपोत्पादों का करें सदुपयोग

Submitted by Hindi on Tue, 11/01/2016 - 14:26
Source
विज्ञान गंगा, जुलाई-अगस्त, 2015

Fig-1विकासशील देशों में तुड़ाई उपरांत कुप्रबंधन से फल एवं सब्जियों के उत्पादन का काफी हिस्सा यों ही क्षतिग्रस्त हो जाता है। विभिन्न संस्थानों, संस्थाओं एवं वैज्ञानिकों द्वारा तैयार आंकड़ों के अनुसार यह बात सामने आई है कि फल एवं सब्जियों में तुड़ाई के उपरांत क्षति 20-40 प्रतिशत के बीच है (सारणी-1)। कहने का तात्पर्य है कि इतने कड़े परिश्रम से पैदा किए गए फल एवं सब्ज़ियाँ तुड़ाई उपरांत कुप्रबंधन के कारण व्यर्थ ही चले जाते हैं।

 

सारणी -1 : विकासशील देशों में फलों एवं सब्जियों में अनुमानित तुड़ाई के उपरांत क्षति का ब्यौरा

फल

अनुमानित क्षति (प्रतिशत)

सब्‍जी

अनुमानित क्षति (प्रतिशत)

सेब

14

प्‍याज

16-35

आम

17-37

टमाटर

5-50

केला

20-80

बंदगोभी

37

पपीता

70-100

फूलगोभी

49

एवोकेडो

43

सलाद

62

खुबानी

28

गाजर

44

नींबू वर्गीय फल

20-85

आलू

5-40

अंगूर

27

 

 

 

 
परन्तु, अब इस दिशा में वैज्ञानिकों के प्रयास निरन्तर जारी हैं और आए दिन शोधकार्यों से तुड़ाई/कटाई के उपरांत प्रौद्योगिकी दिन-दूनी व रात चौगुनी तरक्की कर रही है। अब ऐसी फल एवं सब्जियों जिन्हें ताजा न बेचा जा सके, उनसे कई मूल्यवर्धित उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं जो देश व विदेशों में काफी लोकप्रिय भी हो रहे हैं। फल एवं सब्जियों का प्रसंस्करण कर जैम, जैली, जूस, नेक्टर, सुरा, अचार, मुरब्बे एवं डिब्बाबंदी आदि उत्पाद बनाए जाते हैं, लेकिन जब फलों एवं सब्जियों से ऐसे उत्पाद बनाए जाते हैं तो उनसे भारी मात्रा में व्यर्थ अपशिष्ट सामग्री निकलती है (सारणी-2)।

Fig-2Fig-3
 

सारणी-2 : भारत में फलों एवं सब्जियों के प्रसंस्‍करण के उपोत्‍पाद

फल/सब्‍जी

व्‍यर्थ सामग्री

व्‍यर्थ सामग्री का उत्‍पादन (हजार टन)

अनुमानित व्‍यर्थ की मात्रा (प्रतिशत)

आम

छिलका एवं गुठली

6,988

45

केला

छिलका

2,378

35

नींबू वर्गीय फल

छिलका, रैग व बीज

1,212

50

अंगूर

छिलका व बीज

20

20

अमरूद

छिलका, क्रोड, बीज

656

10

सेब

छिलका, पोमेस, बीज

1,376

35

 

 
Fig-4Fig-5प्रसंस्करण उद्योगों से इस तरह से भारी मात्रा में निकली सामग्री को ठिकाने लगाना एक बहुत बड़ी चुनौती है। अक्सर यह देखा गया है कि यह सामग्री इन उद्योगों के आस-पास ही रखी जाती है जो वहाँ सड़कर वातावरण को दूषित करके जन साधारण के स्वास्थ्य को कुप्रभावित करती है। कभी-कभी कुछ प्रसंस्करण उद्योग इसे नदियों या नालों में बहा देते हैं, जो जल को प्रदूषित करती हैं। अत: प्रसंस्करण उद्योग मानव के जीवन के लिये अति आवश्यक वायु एवं जल को प्रदूषित करते हैं। हालाँकि जल संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण नियमावली (1974) एवं पर्यावरण संरक्षण एक्ट (1986) के अनुसार प्रसंस्करण उद्योगों को ऐसी सामग्री को समुचित एवं मानकीकृत ठिकाने लगाना होता है या कुछ मानकीकृत प्रौद्योगिकियों को अपनाकर प्रयोग करना होता है। क्योंकि यह सामग्री जिसे हम व्यर्थ समझकर नदियों या नालों में बहा देते हैं, कई चीजों के प्रचुर स्रोत होती हैं (सारणी-3)।

 

सारणी-3 : फल एवं सब्जियों के प्रसंस्‍करण के कुछ उपोत्‍पादों का संघटनमान (प्रति 100 ग्राम)

व्‍यर्थ सामग्री

नमी (ग्राम)

प्रोटीन (ग्राम)

वसा (ग्राम)

कार्बोहाइड्रेट्स (ग्राम)

रेशा (ग्राम)

पोषक तत्‍व (ग्राम)

सेब की पोमेस

12

3.0

1.7

17.4

16.2

1.7

आम की गुठली

8.2

8.5

8.9

74.5

-

3.7

कटहल की गुठली

8.5

7.5

11.8

30.8

14.2

6.5

केले का छिलका

79.2

0.8

0.8

1.7

5.0

2.1

मौसम्‍बी के बीज

4.0

15.8

36.9

14.0

-

4.0

तरबूज के बीज

4.3

34.1

52.6

0.8

4.5

3.7

खरबूज के बीज

6.8

21.0

33.0

30.0

-

4.0

कद्दू के बीज

6.0

29.5

35.4

12.0

12.5

4.6

 

कटाई/तुड़ाई उपरान्त प्रौद्योगिकी के संबंध में आए दिन हुए अनुसंधान कार्यों से अब यह संभव है कि फलों एवं सब्जियों के अवशेषों एवं प्रसंस्करण उद्योगों से उत्पन्न हुई व्यर्थ सामग्री का समुचित उपयोग कर कई प्रकार के मूल्यवर्धित उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। ऐसे ही कुछ प्रमुख उत्पादों का वर्णन निम्नलिखित है:

Figg-6

प्रसंस्करण-उपोत्पादों के मूल्यवर्धित उत्पाद
बहुमूल्य तेल


हमारे देश में विभिन्न प्रकार के नींबू वर्गीय फल जैसे नारंगी, संतरा, नींबू, लेमन, चकोतरा आदि पैदा किए जाते हैं। इन फलों का उपयोग मुख्यत: ताजे फल के रूप में करते हैं, परन्तु इन फलों से रस, स्क्वैश आदि उत्पाद भी तैयार किए जाते हैं। ऐसी प्रसंस्करण यूनिटों से भारी मात्रा में ऐसी सामग्री निकलती हैं जो साधारणत: व्यर्थ हो जाती हैं। लेकिन इस सामग्री में पैक्टिन एवं तेल काफी मात्रा में पाए जाते हैं। हमारे देश में भी नींबू वर्गीय फलों की इस व्यर्थ सामग्री से बंगलुरु, नागपुर, अबोहर एवं सिक्किम में तेल निकाला जाता है (सारणी-4)। परन्तु अन्य जगहों पर ऐसी बहुमूल्य सामग्री व्यर्थ ही चली जाती है।

पैक्टिन


संसार भर में पैक्टिन नींबू वर्गीय फलों के छिलके से निकाली जाती है। हमारे देश में भी इसकी बहुत माँग है और हम इसे विदेशों से आयतित करते हैं। पैक्टिन को जैम, जैली, मार्मेलेड़ एवं कई अन्य औद्योगिक उपयोग हैं। हमारे देश में प्रतिवर्ष लगभग 180 टन (15 करोड़ रुपए) पैक्टिन का आयात करता है। अत: हमें नींबू वर्गीय फलों के छिलकों से पैक्टिन निकालने हेतु उद्योग लगाने चाहिए। इसके अतिरिक्त आम, सेब एवं अमरूद के छिलके से भी पैक्टिन निकाली जा सकती है, परन्तु अफसोस की इन सभी फलों के छिलके हमारे देश में व्यर्थ सामग्री हैं। हालाँकि, उतरायन एवं कोडूर में जरूर कुछ मात्रा में संतरे के छिलके से पैक्टिन निकाली जाती है।

स्टार्च


केले का तना स्टार्च का बहुत अच्छा स्रोत माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि केले के 1000 पौधों से लगभग 20-25 टन तना ही होता है जिससे लगभग 5 प्रतिशत खाद्य स्टार्च मिलती है। इसी प्रकार आम की गुठलियों से अच्छी मात्रा में स्टार्च मिलती है। आम पर आधारित भारत की विभिन्न प्रसंस्करण फ़ैक्टरियों से कई टन गुठलियाँ यों ही व्यर्थ चली जाती हैं एवं सड़कर वातावरण को दूषित करती हैं जिनका प्रयोग स्टार्च निकालने हेतु कर सकते हैं। केले के तने एवं आम की गुठलियों से स्टार्च निकालने की विधियाँ मानकीकृत कर ली गई हैं जिन्हें व्यावसायिकतौर पर अपनाने की आवश्यकता है।

Fig-7

कुदरती रंग


विभिन्न प्रकार के प्रसंस्कृत उत्पादों में आकर्षक रंग हेतु विभिन्न प्रकार के बनावटी रंग प्रयोग किए जाते हैं। ऐसे रंग स्वास्थ्य हेतु काफी हानिकारक होते हैं। अब यह सिद्ध हो चुका है कि ये रंग मनुष्य में कैंसर स्टार्च आदि रोगों के जनक हैं। अत: अनुसंधान कार्य फलों में व्याप्त कुदरती रंगों के प्रयोग पर केन्द्रित हैं। कई फलों जैसे जामुन, अंगूर, कोकुम, फालसा एवं काली गाजर आदि में कुदरती तौर पर व्याप्त रंग को निकालने एवं उनके प्रयोग की विधियाँ एवं प्रौद्योगिकियाँ मानकीकृत कर ली गई हैं। अब भारत सरकार कोकुम एवं साफोलर से पीले रंग के खाद्य उत्पादों में प्रयोग की अनुमति देने पर विचार कर रही है।

 

सारणी-4 : कुछ अल्‍पदोहित फलों एवं सब्जियों के अवशेषों से मूल्‍यवर्धित उत्‍पाद

फल/सब्‍जी

उत्‍पादन क्षेत्र

उत्‍पाद जो तैयार किए जा सकते हैं

जंगली आंवला, हरड़ व बहेडा

उत्‍तर, प्रदेश, मध्‍य प्रदेश, महाराष्ट्र

आर्युवेदिक औषधियां जैसे चयवनप्राश, त्रिफला आदि

कैशू एपल

महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा

जूस, सीरप, कैंडी, फैनी, गोंद आदि।

जंगली खुबानी (चूली)

जम्‍मू एवं कश्‍मीर, हिमाचल प्रदेश

बेकरी हेतु टूटी फ्रूटी एवं आईसक्रीम आदि।

जंगली अनार के बीज

जम्‍मू, हिमाचल प्रदेश

मसाला।

इमली के बीज

आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक

स्‍टार्च जिसे कपड़ा उद्योग में प्रयोग करते हैं।

कुकुरबिटेसी कुल की सब्जियों के बीज

उत्‍त्‍र प्रदेश, गुजरात

मगज, जिसे दुग्‍ध पेय एवं बेकरी में प्रयोग करते हैं।

तरबूज के छिलके

लखनऊ (उत्‍तर प्रदेश)

टूटी फ्रूटी हेतु।

 

साईड़र


साईड़र एक ऐसा उत्पाद है जिसे सेब के रस को किण्वन द्वारा तैयार किया जाता है। इसमें 1-8 प्रतिशत तक एल्कोहल होती है। विदेशों में साईडर काफी लोकप्रिय है। हमारे देश में सेब से जूस निकालने के कई कारखाने हैं। इन कारखानों से लगभग 10,000 टन ‘पोमेस’ पैदा होती है। यह पोमेस कुछ दिनों में सड़ जाती है जिससे वातावरण में विशेष प्रकार की दुर्गंध फैलती है। इसके अतिरिक्त इसे नदियों में बहा दिया जाता है जो पहाड़ों में वायु एवं जल प्रदूषण का प्रमुख स्रोत है; जबकि इस पोमेस से विदेशों में कई उद्योग हैं जो तरह-तरह के अनेक बहुमूल्य उत्पाद तैयार करते हैं। अत: सेब पर आधारित प्रसंस्करण उद्योगों से उत्पादित ‘पोमेस’ का प्रयोग ‘साईड़र’ तैयार करने हेतु किया जा सकता है।

सिरका


सिरके को भी फलों की व्यर्थ सामग्री से तैयार किया जाता है। यह कई उद्योगों में प्रयोग होता है परन्तु अचार, सॉस आदि में इसका भरपूर उपयोग होता है। अनानास, सेब, संतरे आदि के अपशिष्टों से सिरका तैयार करने की विधियाँ विकसित कर ली गई हैं, जिनका प्रयोग व्यापारिक स्तर पर होना चाहिए।

इथेनॉल


फल एवं सब्जियों के प्रसंस्करण उद्योगों से निकली व्यर्थ सामग्री में सेलूलोज, हेमीसेलूलोस एवं लिग्निन आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं जिनसे किण्वन द्वारा इथेनॉल तैयार किया जा सकता है। इथेनॉल के कई प्रयोग हैं परन्तु इसे र्इंधन या प्रयोगशालाओं में मुख्यत: प्रयोग किया जाता है। सेब जिसे हम मुख्यत: विदेशों से आयात करते हैं। नाशपाती एवं चेरी की पोमेस से इथेनॉल तैयार करने की विधि मानकीकृत कर ली गई है। इसी प्रकार संतरे एवं अंगूर की व्यर्थ सामग्री से भी इथेनॉल तैयार किया जा सकता है, जिससे भारत विदेशी मुद्रा बचा सकता है।

एन्‍जाइम


प्रसंस्करण उद्योग, बेकरी, औषधियों एवं प्रयोगशालाओं में एन्जाएमों की भारी आवश्यकता होती है। इस माँग की पूर्ति हेतु हम इन्हें विदेशों से आयात करते हैं जिससे काफी मुद्रा व्यर्थ चली जाती है। जबकि इस मुद्रा को आसानी से बचाया जा सकता है यदि हम फल एवं सब्जियों के प्रसंस्करण उद्योगों से निकली व्यर्थ सामग्री को किण्वन द्वारा सड़ाकर एन्जाएम तैयार करें। किण्वन द्वारा ऐसी सामग्री से कई प्रकार के एन्जाएम तैयार किए जा सकते हैं (सारणी-5)।

सिट्रिक अम्ल


सिट्रिक अम्ल का प्रयोग प्रसंस्करण उद्योग में जैम, जैली, स्क्वैश, नेक्टर आदि तैयार करने में होता है। इसे हम प्रसंस्करण उद्योग से प्राप्त व्यर्थ सामग्री से किण्वन द्वारा तैयार कर सकते हैं। सेब की पोमेस को एस्‍परजिलस नाइजर से किण्वन द्वारा तैयार करने की विधि व्यावहारिकतौर पर अपनाई जा रही है। इसके अतिरिक्त अनानास के जूस, गन्ने के बैगास एवं शकरकंदी, अंगूर एवं संतरे की व्यर्थ सामग्री से किण्वन द्वारा सिट्रिक अम्ल तैयार कर सकते हैं।

किण्‍वनी सुस्‍वाद एवं गोंद


सूक्ष्मजीवों द्वारा किण्वन करा के फलों एवं सब्जियों की व्यर्थ सामग्री से कुदरती सुस्वाद एवं गोंद प्राप्त किया जा सकता है जिसे प्रसंस्कृत उत्पादों (जूस, जैम, जैली आदि) में विशेष आकर्षक स्वाद एवं उन्हें टिकाऊ बनाने हेतु प्रयोग किया जा सकता है। अब सूक्ष्मजीवों का प्रयोग ‘वैनीलिन’ (वेनिला सुस्वाद) तैयार करने हेतु किया जा रहा है। इसी प्रकार किण्वनी गोंद, ‘जैंथिन’ को तैयार करने हेतु जेंथोमोनास कंपेस्ट्रिस नामक जीवाणु को बंदगोभी एवं नींबू वर्गीय फलों के अवशेषों से प्राप्त करने की प्रौद्योगिकी विकसित की गई है, जिसे व्यावसायिक स्तर पर अपनाने की आवश्यकता है।

 

सारणी-5 : खाद्य प्रसंस्‍करण से प्राप्‍त व्‍यर्थ सामग्री से किण्‍वन द्वारा तैयार एन्‍जाइम

व्‍यर्थ सामग्री

किण्‍वन में प्रयुक्‍त सूक्ष्‍मजीव

एन्‍जाइम जो तैयार हुआ

सेब की पोमेस

ट्राईकोडर्मा विरड़ी

सेलूलेज

 

एस्‍परजिलस जाति

जाइलानेज

गन्‍ने का बैगास

ट्राईकोडर्मा रीसई

सैलूलोज

अंगूर के सोमरस से बची करतने

सेरीना यूनिकलर

सैलूलोज, लाइनानेज, लिग्‍नीनेज

बंदगोभी के अचार से प्राप्‍त व्‍यर्थ सामग्री

कैंडिडा यूटिलिस

इंवरटेज

चुकुंदर का गूदा

एस्‍परजिलस फीनीसिस

बीटा-ग्‍लूकोसीडेज

चायपत्‍ती के अवशेष

सेरीना यूनिकलर, प्‍लूरोटस ओस्ट्रीऐटस

जाइलानेज

बंदगोभी से प्राप्‍त व्‍यर्थ सामग्री

स्‍यूडोमोनास जाति

एमाईलेज, प्रोटीएज, सेलूलोज

 

अमीनो अम्‍ल


फल एवं सब्जियों की व्यर्थ सामग्री पर सूक्ष्मजीवों के प्रयोग से किण्वन द्वारा अमीनो अम्ल भी तैयार किए जा सकते हैं। ये अम्ल फलों से तैयार प्रसंस्कृत उत्पादों के मूल्यवर्धन हेतु डाले जाते हैं। फल एवं सब्जियों के अवशेषों से ‘ग्लूटेमिक अम्ल’ एवं ‘लाईसीन’ आदि एमीनो अम्ल को तैयार किया जा सकता है।

विटामिन


हमारे भोजन में विटामिन की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए क्योंकि इनकी कमी से हमें कई रोग लग सकते हैं। फलों एवं सब्जियों के अवशेषों से हमें कई प्रकार के विटामिन मिल सकते हैं। विटामिन बी12 का व्यावसायिक उत्पादन सोयाबीन एवं मक्का के आटे से सूक्ष्मजीवों के उपयोग द्वारा किया जा रहा है। इसी प्रकार विटामिन बी1, बी2 व बीटा कैरोटीन का उत्पादन मक्का की व्यर्थ सामग्री से ऐशवया गोसीपी नामक सूक्ष्मजीव द्वारा किण्वन से व्यापारिक स्तर पर किया जा रहा है।

आयुर्वेदिक औषधियां


हमारे देश में कई ऐसे फल जैसे जामुन, आंवला, हरड़ एवं बहेड़ा आदि उगाए जाते हैं, जिनके अवशेषों को कई औषधियों को तैयार करने में प्रयोग किया जा सकता है। जैसे जामुन से रस निकालने के बाद बचे बीजों एवं अन्य सामग्री को ‘शुगर’ के रोगियों हेतु औषधि बनाने में प्रयोग किया जाता है। हरड़, बहेड़ा एवं आँवला के अवशेषों से त्रिफला, च्यवनप्राश, आरोग्यवर्धनी एवं अशोकारिष्ट आदि बहुमूल्य औषधियाँ तैयार की जाती हैं।

हमारे देश में काजू के प्रसंस्करण के बाद ‘कैशू एपल’ का उत्पादन लगभग 3 लाख टन के लगभग होता है। इसे व्यर्थ समझकर बर्बाद कर दिया जाता है जो हमारे वातावरण को प्रदूषित करता है। परन्तु इस व्यर्थ सामग्री से वैज्ञानिकों ने कई बहुमूल्य उत्पादों को तैयार करने की प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं। इस सामग्री से जूस, सीरप एवं कैंडी आदि उत्पादों के अतिरिक्त ‘फैनी’ सुरा एवं ‘ब्रांडी’ (सुरा) आदि तैयार कर सकते हैं (सारणी-4)। जंगली खुबानी (चूली) के बीजों से तेल एवं गूदे से सुरा एवं ‘ब्रांडी’ सुरा तैयार की जाती हैं पपीते के कच्चे फलों से पपेन तैयार किया जाता है। शेष बचे फलों को ना बेचा जा सकता है और ना ही ताजा खाया जा सकता है। अत: ऐसे फलों को सीरप में डालकर इनसे ‘टूटी फ्रूटी’ तैयार की जा सकती है। हमारे देश में लगभग 5-6 हजार टन ‘टूटी फ्रूटी’ तैयार की जाती है जिसमें मुख्य हिस्सा पपीते का होता है।

बायोगैस


हमारे देश में बायोगैस मुख्यत: पशुओं के गोबर से तैयार की जाती है, परन्तु कुछ फलों के ठोस एवं तरल सामग्री से बायोगैस एवं गुणों से भरपूर देशी खाद तैयार की जा सकती है। फलों की सामग्री को सड़ाने हेतु चूने की कुछ मात्रा भी डालनी पड़ती है क्योंकि फलों के अवशेषों में अम्ल होते हैं जो सड़ाने वाले सूक्ष्मजीवों को मार देते हैं। परन्तु सब्जियों के अवशेषों को आसानी से बायोगैस व देशी खाद तैयार करने हेतु प्रयोग कर सकते हैं।

पशुओं के चारे की सामग्री, सेब की पोमेस एवं नींबू वर्गीय फलों के छिलकों को सुखाकर पशुओं हेतु चारे की सामग्री में प्रयोग किया जा सकता है। ये सूखे उत्पाद प्रोटीन की मात्रा, रेशे व वसा से भले ही कम हों परन्तु कार्बोहाईड्रेट्स में भरपूर होते हैं।

उपरोक्त उदाहरणों से पता चलता है कि जिस सामग्री को हम व्यर्थ समझकर ना केवल फेंक देते हैं अपितु, पर्यावरण को दूषित करते हैं, उसी सामग्री के समुचित उपयोग से कई बहुमूल्य उत्पाद तैयार कर सकते हैं जिससे स्वयं ना केवल हम, अपितु अपने देश की आर्थिक समृद्धि में भारी योगदान कर सकते हैं और ‘आम के आम गुठलियों के दाम’ नामक कहावत को सच सिद्ध कर सकते हैं।