फ्लोराइड हो सकता है एनीमिया का कारण

Submitted by editorial on Fri, 10/12/2018 - 18:06

बच्चों में बढ़ती एनीमिया की समस्याबच्चों में बढ़ती एनीमिया की समस्या (फोटो साभार - पंजाब केसरी-नारी)भारत में खासकर बच्चों और महिलाओं में एनीमिया की शिकायत एक बड़ी समस्या है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (National Family and Health Survey, NFHS-4) के अनुसार देश के 5 वर्ष से कम उम्र के 58 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से ग्रसित हैं। खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होने के कारण वे जल्दी थक जाते हैं साथ ही उनके संक्रमित होने का खतरा भी काफी बढ़ जाता है। एनीमिया दिमागी विकास में भी बाधक होता है। सर्वे में यह भी पाया गया कि इसी उम्र के 38 प्रतिशत बच्चों की लम्बाई उम्र की तुलना में कम थी। वहीं 21 प्रतिशत बच्चों की लम्बाई की तुलना में वजन कम था।

ये आँकड़े चौकाने वाले थे। समस्या की गम्भीरता को देखते हुए भारत सरकार ने 2012 में स्कूलों में 12 करोड़ बच्चों को हर सप्ताह आयरन और फोलिक एसिड की गोलियाँ देने के साथ ही आयरनयुक्त भोजन वाली मिड डे मिल की व्यवस्था को अपनाया। लेकिन यह व्यवस्था भी समस्या को कम करने में कोई खास प्रभावी नहीं हुई। दरअसल, भारत में पानी और भोजन के अन्य स्रोतों से व्यक्ति के शरीर में फ्लोराइड की मात्रा के बढ़ने का खतरा बहुत ज्यादा है।

शरीर में फ्लोराइड की अधिक मात्रा एनीमिया का एक बड़ा कारण है। फ्लोराइड की अधिक मात्रा के कारण आयरन और फोलिक एसिड का डोज जठरतंत्र श्लेष्मझिल्ली (gastrointestinal mucosa) की संरचना को पूरी तरह प्रभावित कर देता है। इसीलिये यह कहना अनुचित नहीं होगा कि एनीमिया से लड़ने के लिये आयरन, फोलिक एसिड की डोज और आयरनयुक्त भोजन काफी नहीं है।

गर्भावस्था के दौरान, शरीर में फ्लोराइड की अधिक मात्रा, एनीमिया का बड़ा कारण माना जाता है जिसकी वजह से गर्भस्थ शिशु का पर्याप्त विकास नहीं हो पाता है और महिलाएँ कम वजन वाले बच्चों को जन्म देती हैं। फ्लोराइड की अधिकता से शरीर की जैव-रासायनिक संरचना पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है क्योंकि फ्लोरीन बॉडी में एंजाइम को जाने से रोकता है और यह हार्मोन के रिसाव में बाधा पहुँचाने के साथ ही दिमाग पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है।

1979 हिलमैन एट अल (Hillman et al) में प्रकाशित एक लेख में यह बताया गया है कि फ्लोराइड की अधिकता के कारण जानवरों में भी हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है। उनमें सीरम फोलिक एसिड और विटामिन बी12 की मात्रा भी कम हो जाती है जो हीमोग्लोबिन की शरीर में उचित मात्रा के लिये आवश्यक है। इसके कारण थायराइड से टी3 और टी4 हार्मोन के स्राव में भी कमी आ जाती है जो खून में आरबीसी की मात्रा को कम कर देता है। इसीलिये फ्लोराइड की समस्या का निदान बेहद ही जरूरी है।

फ्लोरोसिस फाउंडेशन ऑफ इण्डिया द्वारा दिल्ली के वैसे स्कूलों में जहाँ कम आय वाले लोगों के बच्चे पढ़ते थे उनसे 2420 बच्चों को चुना गया। इनकी उम्र 10 से 19 वर्ष के बीच थी। इनमें लड़के और लड़कियाँ, दोनों शामिल थीं। बच्चों में एनीमिया के प्रभाव का पता लगाने के लिये विधिवत प्रक्रिया अपनाई गई। पहले स्कूलों के प्रधानाचार्यों से अनुमति ली गई और बच्चों और उनके अभिभावकों को इस कार्यक्रम के उद्देश्य के बारे में बताया गया और उनकी भी अनुमति ली गई।

इन प्रक्रियाओं के पूरा हो जाने के बाद हीमोग्लोबिन की जाँच करने के लिये बच्चों के खून के नमूने लिये गए और उनकी जाँच की गई। ठीक इसी तरह बच्चों के निवास स्थानों से सप्लाई वाटर के सैम्पल लिये गए और उनकी जाँच की गई। इसके अलावा बच्चों के पेशाब का भी नमूना लिया गया और उनकी भी जाँच की गई।

इसके बाद बच्चों की माताओं को आहार की सम्पूर्ण जानकारी दी गई। उनसे यह कहा गया कि वे अपने बच्चों को बाजार में सस्ते मूल्य पर उपलब्ध हरी पत्तेदार सब्जियों एवं गाजर, मूली और कद्दू आदि के रस से बनाया गया जूस दें। उन्हें पौष्टिक और घर पर आसानी से तैयार होने वाले व्यंजनों के बारे में जानकारी दी गई। आहार में एक कप दूध को शामिल करने की भी सलाह दी गई। इसके साथ ही बच्चों को भी यह हिदायत दी गई कि वे बाहर के चीजों का सेवन न करें।

फिर शिक्षकों, अभिभावकों के साथ ही बच्चों को बताया गया कि वे अधिक फ्लोराइड वाला पानी न पीएँ क्योंकि पानी के लगभग सभी सैम्पल में फ्लोराइड की अधिकता पाई गई थी। उन्हें समझाया गया कि 1 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम फ्लोराइड की मात्रा वाला पानी ही पीने योग्य होता है। उन्हें ऐसे किसी भी पदार्थ को न खाने की सलाह दी गई जिनमें सेंधा नमक होता है जिसमें फ्लोराइड की मात्रा काफी अधिक होती है।

बच्चों को हर्बल पेस्ट इस्तेमाल करने के लिये भी प्रेरित किया गया क्योंकि अन्य में फ्लोराइड की मात्रा अधिक हो सकती थी। उन्हें यह भी बताया गया कि फ्लोराइड की अधिकता से हीमोग्लोबिन की मात्रा पर असर पड़ सकता है जो कई रोगों का कारण बन सकता है। उन्हें 12.0 ग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा हीमोग्लोबिन के महत्त्व को समझाया गया और इसके लिये प्रेरित किया गया।

इसके बाद बच्चों पर इन सलाहों का क्या असर हुआ इसकी परख के लिये एक महीने, तीन महीने और छह महीने के अन्तराल पर उनके खून और पेशाब के नमूने लिये गए। हर बार उनके खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा में वृद्धि दर्ज की गई और पेशाब में फ्लोराइड की कमी। बच्चों के बॉडी मास इंडेक्स में आये बदलाव को भी रिकॉर्ड किया गया।

शुरुआत में बच्चों के खून के नमूनों की जाँच के बाद एक भी बच्चा ऐसा नहीं मिला था जो एनीमिया से पीड़ित न हो। 98 प्रतिशत बच्चे सीमित रूप में एनीमिया से पीड़ित पाये गए थे जबकि 2 प्रतिशत की स्थिति ज्यादा गम्भीर थी। एक महीने, तीन और छह महीने के अन्तराल पर लिये गए खून के नमूनों के परीक्षण से यह पता चला कि एनीमिया से नहीं पीड़ित होने वाले बच्चों के प्रतिशत में क्रमशः 29.5, 35.8 और 45.3 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई। इस तरह यह बात स्थापित होती है कि आहार में बदलाव से एनीमिया को नियंत्रित किया जा सकता है।

एनीमिया के बाद जब बच्चों में फ्लोराइड की मात्रा से सम्बन्धित परिणाम सामने आये तो उनमें भी गुणात्मक परिवर्तन देखने को मिला। छठे महीने में बच्चों के पेशाब के नमूनों की जब जाँच की गई तो 64 प्रतिशत से ज्यादा सैम्पल में 1 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम फ्लोराइड की मात्रा पाई गई। इस तरह यह साफ होता है कि आहार के नियंत्रण से फ्लोरोसिस को भी नियंत्रित किया जा सकता।

इतना ही नहीं जब 10 वर्ष के लड़के और लड़कियों के बॉडी मास इंडेक्स का परीक्षण किया गया तो लड़कियाँ, लड़कों पर भारी पड़ी। जब 14 से 16 वर्ष के लड़कों के बॉडी मास इंडेक्स का परीक्षण किया गया तो उनमें गुणात्मक वृद्धि दर्ज की गई। ठीक इसी तरह 16 से 17 साल की लड़कियों के भी बॉडी मास इंडेक्स में वृद्धि दर्ज की गई। इस तरह यह भी मालूम पड़ता है कि सही आहार का प्रभाव बॉडी मास इंडेक्स पर भी पड़ता है।

दिल्ली में एक अस्पताल के द्वारा किये गए अध्ययन में यह बात सामने आई कि 68 प्रतिशत स्कूली बच्चों में एनीमिया की वजह आयरन की कमी है। वहीं, अन्य 28 प्रतिशत बच्चों में इसकी वजह विटामिन बी12 की कमी। विटामिन बी12 हीमोग्लोबिन के निर्माण के लिये बहुत जरूरी है लेकिन इसे हमेशा नजरअन्दाज किया जाता है।

मानक के अनुसार प्रतिदिन 1 से 1.5 माइक्रोमिलीग्राम विटामिन बी12 मनुष्य के शरीर के लिये आवश्यक होता है। इसीलिये यह जरूरी है कि आहार में सब्जियों और फल को पर्याप्त मात्रा में शामिल किया जाये जिससे विटामिन सी की आवश्यकता पूरी हो सके।

आहार तथा अन्य माध्यम से खासकर गर्भवती महिलाओं और युवा लड़कियों में फ्लोराइड की मात्रा का बढ़ना उनके स्वास्थ्य के लिये काफी हानिकारक है। यह खून में हीमोग्लोबिन के स्तर को कम कर देता है। भारत में इस समस्या से लड़ने के लिये आयरन और फोलिक एसिड की डोज दी जाती है लेकिन यह कारगर नहीं है। यह समस्या को ठीक करने के बजाय नई समस्याएँ पैदा करने का कारण बन सकता है।

यही वजह है कि भारत में शिशु मृत्यु दर और प्रसव के दौरान महिलाओं की मृत्यु की दर में कोई खास कमी नहीं आई है। अतः भारत में इन समस्याओं से निपटने के लिये आहार नियंत्रण की पद्धति पर जोर दिया जा रहा है। भारत सरकार ने सतत विकास लक्ष्य 2030 के तहत शिशु और मातृ मृत्यु दर को पूर्णतः नियंत्रित करने का लक्ष्य रखा है।

ए के सुशीला और अन्य के सहयोग से तैयार किये गए इस समीक्षा आलेख का उद्देश्य है आहार और पानी में फ्लोराइड की मात्रा के नियंत्रण हेतु साधारण तरीकों को उजागर करना जिससे लोग एनीमिया से मुक्त हो सकें।

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