फॉरमोसा (ताइवान)

Submitted by Hindi on Mon, 08/22/2011 - 10:31
फॉरमोसा (ताइवान) यह पश्चिमी प्रशांत महासागर में पूर्वी एवं दक्षिणी चीन सागर के मध्य, चीने के फूक्येन प्रांत से फॉरमोसा जलडमरूमध्य द्वारा विभक्त, लगभग 90 मील चौड़ा तथा 225 मील लंबा एक महत्वपूर्ण द्वीप है। स्पेन के नाविकों ने इस द्वीप के सुंदर दृश्यों को देखकर इसका नाम फॉरमोसा रखा, परंतु जापान का आधिपत्य होने पर उन लोगों ने चीनी भाषा में इसका सरकारी नाम 'ताइवान' रखा। यह द्वीप एक बढ़े हुए अंड़े के रूप जैसा है, जो उत्तर -उत्तर-पूर्व से दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम की ओर फैला हुआ है। इसका क्षेत्रफल 13,808 वर्ग मील तथा जनसंख्या 1,15,11,728 (1962) है। इस द्वीप के मध्य एवं पूर्व में पर्वतश्रेणियाँ हैं। इन पर्वतों की ढाल धीरे धीरे पश्चिम की ओर कम होती चली गई है। पश्चिमी मैदानी भाग इस द्वीप का आर्थिक केंद्र है। यहाँ की जनसंख्या भी अधिकतर पश्चिमी और उत्तरी मैदानों में बसी है।

यह द्वीप कर्क रेखा द्वारा दो भागों में विभक्त हो जाता है और जापान की दो जलधाराओं के बीच में होने से यहाँ की जलवायु उष्ण कटिबंधीय है। मैदानी भागों में 21° सें. से कम ताप केवल जनवरी के महीने में रहता है। वर्षा का वार्षिक औसत अत्यधिक है तथा यह साल भर समान रूप से होती है, परंतु दक्षिणी भाग जाड़ों में कुछ सूखा रहता है। विभिन्न प्रकार की धरातलीय अवस्था, गरमी तथा आर्द्रता के कारण यहाँ वनस्पति अधिक उगती है। 1,000 फुट से नीचे की भूमि में अधिकतर अन्न तथा घास उत्पन्न होती है, परंतु पहाड़ी भाग अधिकतर घने जंगलों से ढके हुए हैं। वनों से भिन्न भिन्न उत्पादों की प्राप्ति होती है, परंतु सबसे महत्वपूर्ण उत्पाद कपूर है। कृषि की प्रमुख उपजें धान, चाय, गन्ना, शकरकंद, जूट, चीनी घास (ramie) एवं हलदी आदि हैं। इसके अलावा कुछ मात्रा में मक्का, तंबाकू, केला, अनन्नस, कपास तथा सोयाबीन भी उगाया जाता है। यहाँ गाय, घोड़े सुअर तथा मुर्गियाँ पाली जाती हैं।

आटा पीसने, शक्कर, तंबाकू, तेल, स्पिरिट, लोह कर्म, काच, ईटेंं तथा साबुन आदि से संबंधित उद्योग एवं ऐल्यूमिनियम, नमक, इस्पात, सीमेंट, कागज, लकड़ी, खाद आदि से संबंधित कार्य होते हैं। खनिजों में सोना, पेट्रोलियम, गैस, अभ्रक चाँदी, ताँबा तथा कोयले का स्थान प्रमुख है। यहाँ से शक्कर तथा धान का निर्यात किया जाता है। रेलों तथा सड़कों की काफी उन्नति हुई है तथा दो वायुसेवाएँ प्राप्त हैं। प्रमुख हवाई अड्डा सुंगशान है। शिक्षा का यहाँ काफी प्रसार है तथा यहाँ के बहुत से विद्यार्थी संयुक्त राज्य, अमरीका, में भी पढ़ते हैं। यहाँ के मुख्य नगर ताइपे (Taipeh, राजधानी) ताइनान, ताइचुंग एवं कीलुंग यहाँ का मुख्य व्यापारिक केंद्र एवं बंदरगाह भी हैं। फॉरमोसा से लगभग डेढ़ सौ मील दूर लाल चीन की मुख्य भूमि से सटा हुआ क्वीमाय द्वीप भी इसी के अधिकार में है, जो पूर्णत: एक सैनिक द्वीप है तथा इस द्वीप की जनसंख्या 51,000 है। यह एक उन्नतिशील द्वीप है।

2. राज्य, स्थिति : 26° 5¢ द. अ. तथा 58° 10¢ प. दे.। अर्जेंटीना के उत्तरी भाग में पैराग्वे राज्य की सीमा पर, मध्य चाको में स्थित एक राज्य है। यहाँ का क्षेत्रफल 28,778 वर्ग मील तथा जनसंख्या 2,12,300 (1960) है। यहाँ की जलवायु उपोष्णकटिबंधीय है और वर्षा की अवधि लंबी है (अक्टूबर से जून तक)। गरमी का औसत ताप 32° सें. तथा जाड़ों का औसत ताप 17 सें. रहता है। यहाँ पर खेती तथा पशुपालन धन के मुख्य स्रोत हैं, परंतु ये दोनों सूखा और बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होते रहते हैं। केब्राचो के जंगल कीमती लकड़ी के जंगल हैं। फॉरमोसा नगर इस राज्य की राजधानी है।श्श्श्श्श् (सु.प्र.सिं.)

ताइवान (चीन गणराज्य)- पश्चिमी प्रशांत महासागर में 21° 45¢ 25¢¢ से 25° 37¢ 53¢¢ अक्षांश और 119° 18¢ 13¢¢ से 122° 10¢ 25¢¢ देशांतर रेखाओं के मध्य, चीन की मुख्य भूमि से लगभग 1,000 मील दूर स्थित एक द्वीप। इसमें पेंगू समूह (Penghu Islands) के 64 द्वीप और ताइवान समूह के 13 द्वीप भी सम्मिलित हैं। ताइवान (फारमोसा) का क्षेत्रफल 13,808 वर्गमील है। इससे संबद्ध द्वीपों का क्षेत्रफल क्रमश: 28.9 वर्गमील और 49 वर्गमील (पेंगू समूह) है। राजधानी ताइपी (Taipei) है।

1962 में हुई गणना के अनुसार ताइवान की जनसंख्या 1,15,11728 है। आबादी का घनत्व 835 व्यक्ति प्रति वर्गमील है। यहाँ के निवासी मूलत: चीन के फ्यूकियन (Fukien) और क्वांगतुंग प्रदेशों से आकर बसे लोगों की संतान हैं। इनमें ताइवानी वे कहे जाते हैं, जो यहाँ द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व में बसे हुए हैं। ये ताइवानी लोग दक्षिण चीनी भाषाएँ जिनमें अमाय (Amoy), स्वातोव (Swatow) और हक्का (Hakka) सम्मिलित हैं, बोलते हैं। मंदारिन (Mandarin) राज्यकार्यों की भाषा है। 50 वर्षीय जापानी शासन के प्रभाव में लोगों ने जापानी भी सीखी है। आदिवासी मलय पोलीनेशियाई समूह की बोलियाँ बोलते हैं।

इतिहास- चीन के प्राचीन इतिहास में ताइवान का उल्लेख बहुत कम मिलता है। फिर भी प्राप्त प्रमाणों के अनुसार यह ज्ञात होता है कि तांग राजवंश (Tang Dynasty) (618-907) के समय में चीनी लोग मुख्य भूमि से निकलकर ताइवान में बसने लगे थे। कुबलई खाँ के शासनकाल (1263-94) में निकट के पेस्काडोर्स (pescadores) द्वीपों पर नागरिक प्रशासन की पद्धति आरंभ हो गई थी। ताइवान उस समय तक अवश्य मंगोलों से अछूता रहा।

जिस समय चीन में सत्ता मिंग वंश (1368-1644 ई.) के हाथ में थी, कुछ जापानी जलदस्युओं तथा निर्वासित और शरणार्थी चीनियों ने ताइवान के तटीय प्रदेशों पर, वहाँ के आदिवासियों को हटाकर बलात्‌ अधिकार कर लिया। चीनी दक्षिणी पश्चिमी और जापानी उत्तरी इलाकों में बस गए।

1517 में ताइवान में पुर्तगाली पहुँचे, और उसका नाम इला फारमोसा (Ilha Formosa) रक्खा। 1622 में व्यापांरिक प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर डचों (हालैंडवासियों) ने पेस्काडोर्स (Pescadores) पर अधिकार कर लिया। दो वर्ष पश्चात्‌ चीनियों ने डच लोगों से संधि की, जिसके अनुसार डचों ने उन द्वीपों से हटकर अपना व्यापारकेंद्र ताइवान बनाया और ताइवान के दक्षिण पश्चिम भाग में फोर्ट ज़ीलांडिया (Fort Zeelandia) और फोर्ट प्राविडेंशिया (Fort Providentia) दो स्थान निर्मित किए। धीरे धीरे राजनीतिक दावँ पेंचों से उन्होंने संपूर्ण द्वीप पर अपना अधिकार कर लिया।

17वीं शताब्दी में चीन में मिंग वंश का पतन हुआ, और मांचू लोगों ने चिंग वंश (1644-1912 ई.) की स्थापना की। सत्ताच्युत मिंग वंशीय चेंग चेंग कुंग (Cheng Cheng Kung) ने 1661-62 में डचों को हटाकर ताइवान में अपना राज्य स्थापित किया। 1682 में मांचुओं ने चेंग चेंग कुंग (Cheng Cheng Kung) के उत्तराधिकारियों से ताइवान भी छीन लया। सन्‌ 1883 से 1886 तक ताइवान फ्यूकियन (Fukien) प्रदेश के प्रशासन में था। 1886 में उसे एक प्रदेश के रूप में मान्यता मिल गई। प्रशासन की ओर भी चीनी सरकार अधिक ध्यान देने लगी।

1895 में चीन-जापान-युद्ध के बाद ताइवान पर जापानियों का झंडा गड़ गड़, किंतु द्वीपवासियों ने अपने को जापानियों द्वारा शासित नहीं माना और ताइवान गणराज्य के लिए संघर्ष करते रहे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान ने वहाँ अपने प्रसार के लिए उद्योगीकरण की योजनाएँ चलानी आरंभ कीं। इनको युद्ध की विभीषिका ने बहुत कुछ समाप्त कर दिया।

काहिरा (1946) और पोट्सडम (1945) की घोषणाओं के अनुसार सितंबर 1945 में ताइवान पर चीन का अधिकार फिर से मान लिया गया। लेकिन चीनी अधिकारियों के दुर्व्यवहारों से द्वीपवासियों में व्यापक क्षोभ उत्पन्न हुआ। विद्रोहों का दमन बड़ी नृशंसता से किया गया। जनलाभ के लिए कुछ प्रशासनिक सुधार अवश्य लागू हुए।

इधर चीन में साम्यवादी आंदोलन सफल हो रहा था। अंततोगत्वा च्यांग काई शेक (तत्कालीन राष्ट्रपति) को अपनी नेशनलिस्ट सेनाओं के साथ भागकर ताइवान जाना पड़ा। इस प्रकार 8 दिसंबर, 1949 को चीन की नेशनलिस्ट सरकार का स्थानांतरण हुआ।

1951 की सैनफ्रांसिस्को संधि के अंतर्गत जापान ने ताइवान से अपने सारे स्वत्वों की समाप्ति की घोषणा कर दी। दूसरे ही वर्ष ताइपी (Taipei) में चीन-जापान-संधि-वार्ता हुई। किंतु किसी संधि में ताइवान पर चीन के नियंत्रण का स्पष्ट संकेत नहीं किया गया। फलत: अब भी ताइवान के वैधानिक अस्तित्व पर प्राय: आपत्तियाँ होती रहती हैं।

अर्थनीति- द्वीप की अर्थव्यवस्था का मुख्य पहलू उद्योगीकरण है। कृषि में भी यंत्रों तथा वैज्ञानिक तरीकों से उत्पादन पर लाभकारी प्रभाव डाला गया है। कपूर, लकड़ी, पेट्रोलियम, अनन्नास और शक्कर मुख्य उद्योग हैं। संपूर्ण भूमि से 20% जंगल होने के कारण प्राकृतिक वस्तुएँ और साधन यहाँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। सीमेंट, खनिज और कागज उद्योग भी द्वीप की व्यापारपद्धति पर प्रभाव डालते हैं।

चर्तुवर्षीय योजनाओं द्वारा सभी क्षेत्रों में उन्नति के सफल प्रयास हो रहे हैं। तृतीय योजना (1961-64) में पूँजी विनियोग की दर उद्योगों में 45.8%, कृषि में 16.6%, और यातायात साधनों में 13.1%, थी। इनमें निर्यात, शक्ति उत्पादक, कृषि सहायक और भारी उद्योगों को प्राथमिकता दी गई थी। देश की आय के स्रोत राष्ट्रीय बचत (31%) मूल्यापकर्ष नियोजन (Depreciation Provision) (29%) विदेशी आर्थिक सहायता और व्यक्तिगत क्षेत्रों के विदेशी व्यापार (26%) और संयुक्त राज्य अमेरिका के काउंटरपार्ट फंड्स (Counterpart Funds) (14%) हैं।

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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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