फसलें लहलहाएं और किसान मालामाल

Submitted by Hindi on Wed, 11/10/2010 - 10:50
Source
दैनिक ट्रिब्यून, अगस्त 2010

जैविक खेती

अमृतसर के गांव मेनिया के हरबंस सिंह के चेहरे पर खुशी के निशान साफ देखे जा सकते हैं। हरबंस सिंह भी पंजाब के उन किसानों में से एक हैं जिन्होंने ज्यादा उत्पादन के लालच में अपने खेतों में भरपूर यूरिया डाला लेकिन जब इसके विपरीत परिणाम आने शुरू हो गए और उनका उत्पादन बढऩे के बजाय घटना शुरू हो गया तो कम उत्पादन के साथ खेत के बंजर होने का भय उनके खेत से ज्यादा उनके चेहरे पर नजर आने लगा था। अब जब से उन्होंने साधारण खेती के स्थान पर जैविक पद्धति से खेती करना शुरू किया है, उनके चेहरे की रंगत फिर बदल गई है। जैविक अपनाने के बाद से उनके खेत के उत्पादन की क्वालिटी और मात्रा बढऩे के साथ-साथ लागत घट जाने से उनको बेहद फायदा मिला है।

वे कहते हैं, ‘पिछले साल जैविक खेती करने से पहले मुझे लगता था कि इससे मेरा उत्पादन कम हो जाएगा लेकिन जैविक खाद और दूसरे जैविक संसाधनों का प्रयोग करने के बाद पहले ही साल मेरा उत्पादन कुछ बढ़ गया था जबकि दूसरे साल तो यह मेरी उम्मीद के मुकाबले काफी ज्यादा हो गया है। उन्होंने बताया कि इस साल उन्होंने जो भी फसलें लगाई हैं, उसमें जैविक संसाधनों का उपयोग किया है। जैविक संसाधनों के उपयोग के बाद उनके खेत की पैदावार का रूपरंग देखते ही बनता है।

उनका कहना है कि अब वे खेती में रसायनों का बिल्कुल उपयोग नहीं करते और इस वजह से उन्हें आश्चर्य है कि फसल में इस साल कोई बीमारी नहीं लगी। उन्हें जैविक भिंडी की पैदावार उम्मीद से काफी ज्यादा मिली है। इसके अलावा जब वे अपने उत्पाद को बेचने मंडी जाते हैं तो इसके रूप रंग को देखकर उन्हें साधारण उत्पाद की अपेक्षा ज्यादा दाम मिलता है।

हसबंस सिंह ने बताया कि उन्हें जैविक खेती के लिए सरकार के साथ जैविक खेती के लिए काम करने वाली संस्था आईटीएस के प्रतिनिधियों ने प्रेरित किया और जैविक खेती के लिए सभी दिशा-निर्देश दिए। उन्होंने सबसे पहले गांव में आकर लोगों को जैविक खेती के बारे में बताया, समझाया और फिर अपने पशु और पर्याप्त जमीन वाले किसानों को जैविक कृषि अपनाने के लिए पंजीकृत किया।

इसके बाद सभी पंजीकृत किसानों को जैविक खेती के लिए प्रशिक्षण दिया गया ताकि वे कोई गलती न करें और तीन साल तक सफलतापूर्वक जैविक खेती करने के बाद उनके खेतों को जैविक का प्रमाणपत्र मिल सके। किसानों को खेतों पर ही खाद, कीटनाशक और जरूरत के सभी संसाधन तैयार करने के तरीके भी सिखाए गए। इनमें नाडेप खाद जिसे गोबर, खेतों के जैविक कूड़े और गोमूत्र को मिलाकर बनाया जाता है, पोषक केंचुआ खाद यानी वर्मीकम्पोस्ट, पौधों पर छिड़काव के लिए वर्मीवाश और सीपीपी जैसे जैविक संसाधन प्रमुख हैं।

इसके अलावा खेतों से मिट्टïी के नमूने लेकर उनकी जांच करवाई जाती है और इनसे मिट्टी के लिए लाभदायक सूक्ष्म जीवों को अलग करके उनका जैविक कल्चर तैयार किया जाता है। यह जैविक कल्चर किसानों को मुफ्त वितरित किया जाता है। किसान इस कल्चर को गोबर की सड़ी खाद के साथ खेत में इस्तेमाल करते हैं जिससे मिट्टïी और ज्यादा उपजाऊ बनती है। फसल उत्पादन भी बढ़ता है।

किसानों के प्रशिक्षण में गौपालन पर खासा जोर दिया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जैविक खेती और पालतू पशु एक-दूसरे के पर्याय होते हैं। गाय का जैविक खेती में विशेष महत्व इसलिए होता है क्योंकि गोबर और गोमूत्र मिट्टïी को उपजाऊ बनाने के लिए जरूरी नाइट्रोजन और कार्बन उपलब्ध कराते हैं।

जैविक खेती में किसान की लागत साधारण खेती के मुकाबले बहुत कम होती है। जैविक खाद की वजह से खेत की मिट्टïी की गुणवत्ता में बहुत सुधार आता है और उसका उत्पादन देखने में बेहतर, ज्यादा स्वादिष्ट और स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। जैविक खेती में अकसर किसानों को समय से पहले ही उत्पादन मिल जाता है और उन्हें सिंचाई के लिए कम पानी की जरूरत पड़ती है। इसका एक फायदा यह भी होता है कि इससे खेती की रसायनों पर निर्भरता खत्म होने के साथ-साथ पर्यावरण का संरक्षण भी होता है।

जैविक के रूप में खेतों के समूह प्रमाणीकरण के लिए करीब 50 हैक्टेयर भूमि के समूह बनाकर उनके समूह प्रभारी नियुक्त किए जाते हैं। समूह प्रभारी किसानों के खेतों को जैविक में परिवर्तित कराने के लिए किसानों की मदद करते हंर और खेतों से संबंधित हर समस्या और हर जोखिम का पता लगाकर उसका निराकरण करवाते हैं। पंजीकृत किसानों के खेतों की समय-समय पर आंतरिक नियंत्रण व्यवस्था के तहत जांच कर किसानों की सभी गतिविधियों का रिकार्ड फार्म डायरी में दर्ज किया जाता है। यह रिकार्ड आईटीएस की वेबसाइट पर देखा जा सकता है। इस रिकार्ड और उत्पाद पर लगे बार कोड के माध्यम से उसके उत्पादन स्थल और संबंधित किसान के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

जैविक खेती के तीन साल पूरे होने के बाद किसानों को जैविक के रूप में प्रमाणित करवाया जाता है। हरबंस सिंह भी अब उस दिन के इंतजार में हैं जब उनका और उनके खेतों का किसी देशी या विदेशी एजेंसी से समूह प्रमाणीकरण कराया जाएगा और उनका उत्पादन देश और विदेश के बाजारों में ज्यादा दामों में बिक सकेगा।