पूर्व चेतावनी तंत्र (Early warning system in Hindi)

Submitted by Editorial Team on Fri, 03/04/2022 - 12:52

ऐसे व्यक्तियों, समुदायों और संगठनों को जिनके किसी आपदा सेप्रभावित होने की संभावना हैं, उन्हें पर्याप्त समय पूर्व और अर्थपूर्ण चेतावनी देने या प्रसारित करने वाला एक क्षमतावानतंत्र हैं। पूर्व सूचना से तैयारी तथा आवश्यक कार्यवाही के लिए तथा जोखिम व हानिकी संभावना को कम करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।

टिप्पणी:

इस परिभाषा के अन्तर्गत वे सभी तत्व सम्मिलित किये जाते हैं जो चेतावनी के लिएप्रभावशाली जिम्मेवारी निभाने के लिए आवश्यक है, व्यक्ति केन्द्रीत पूर्व चेतावनी तंत्र में चार प्रमुख तत्व सम्मिलितहोते हैं- जोखिम का ज्ञान,खतरों की निगरानी, विश्लेषण और पूर्वानुमान, सावधान करने की चेतावनी का प्रसारण, चेतावनी प्राप्त करने के बाद उसके प्रतिप्रतिक्रिया हेतु स्थानीय क्षमता का विकास। लक्ष्य से लक्ष्य तक चेतावनी तंत्र‘ का प्रयोग करने पर बल दिया जाना चाहिए ताकिचेतावनी तंत्र के अन्तर्गत आपदा के पता लगाने से लेकर समुदाय की प्रतिक्रिया तकसभी चरण को पर्याप्त समय मिल सके।

उदाहरण  - 

सिक्किम में भूस्खलन की रियल टाइम निगरानी के लिए पहली बार चेतावनी तंत्र स्थापित किया गया है। भूस्खलन के लिए संवेदनशील माने जाने वाले उत्तर-पूर्वी हिमालय क्षेत्र में स्थापित यह प्रणाली समय रहते भूस्खलन के खतरे की जानकारी दे सकती है, जिससे जान-माल के नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है। 

उत्तर-पूर्वी हिमालय क्षेत्र की सिक्किम-दार्जिलिंग पट्टी में स्थापित इस चेतावनी प्रणाली में 200 से अधिक सेंसर लगाए गए हैं। ये सेंसर वर्षा, भूमि की सतह के भीतर छिद्र दबाव और भूकंपीय गतिविधियों समेत विभिन्न भूगर्भीय एवं हाइड्रोलॉजिकल मापदंडों की निगरानी करते हैं। यह प्रणाली भूस्खलन से पहले ही सचेत कर देती है, जिससे स्थानीय लोगों को आपदा से पहले उस स्थान से सुरक्षित हटाया जा सकता है।

सिक्किम की राजधानी गंगतोक के चांदमरी गांव में यह प्रणाली 150 एकड़ में स्थापित की गई है जो आसपास के 10 किलोमीटर के दायरे में भूस्खलन की निगरानी कर सकती है। चांदमरी के आसपास का क्षेत्र जमीन खिसकने के प्रति काफी संवेदनशील है और पहले भी यहां भूस्खलन की घटनाएं हो चुकी हैं। हिमालय के भूविज्ञान को केंद्र में रखकर विकसित की गई यह चेतावनी प्रणाली इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) पर आधारित है। सिक्किम आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की पहल पर केरल के अमृता विश्वविद्यापीठम के शोधकर्ताओं द्वारा इस प्रणाली को विकसित किया गया है। (1)