राजस्थान की पुष्कर झील भी काफी प्रसिद्ध है। गोवा और धर्मशाला की तरह पुष्कर में भारत आए पर्यटक मानसिक शांति और सुकून प्राप्त करते हैं। इस रमणीक स्थल को पर्यटकों ने अपना केंद्र बिन्दु मान रखा है। पुष्कर के अनेक अर्थ होते हैं, पर झील और नीलकमल कहना अधिक सार्थक होगा। दूर-दूर तक फैले-बिखरे राजस्थान के इस रेगिस्तान में ब्रह्माजी की पावनता से शोभायमान नीले जल की झील पुष्कर एक कमल के समान है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन तो पुष्कर का सौंदर्य देखते ही बनता है। पुष्कर का विराट मेला भी काफी प्रसिद्ध है। श्रद्धालु आस्थावान लोगों के लिए तो यह पुष्कर राज है। ऊंट-घोड़ों पर सवार तीर्थयात्रियों का तांता तो खतम होते नहीं लगता। पैदल और वाहनों से भी बेशुमार तीर्थ यात्री पुष्कर मेले की शोभा बढ़ाते हैं।
अनुमान है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस पशु मेले में दो लाख यात्री और 50 हजार पशुओं की भीड़ जुटती है। यात्री पुष्कर झील में आचमन करके ब्रह्मा के मंदिर में भक्ति भावना से पूजा –अर्चना करते हैं। राजस्थान पर्यटन केंद्र द्वारा आयोजित यहां के सांस्कृतिक कार्यक्रम में राजस्थानी नृत्यों की बहार रहती है। बड़ी तादाद में मगरों भरी इस झील में राजा-महाराजाओं द्वारा बनवाए गये 52 घाटों में गऊघाट और ब्रह्मघाट प्रमुख हैं। 16 कि.मी. तक फैले पुष्कर में 400 मंदिर हैं। जिनमें ब्रह्मा रघुनाथ, अटपटेश्वर महादेव, गायत्री, वराह, राम बैकुंठ, सावित्री तथा अजगधेश्वर प्रमुख हैं। अक्तूबर से मार्च तक पुष्कर का मौसम बड़ा सुहाना रहता है। इस दर्शनीय झील के पास बीस इंच तक वर्षा का रिकार्ड है।
पुष्कर झील के बारे में पुराणों से पता चलता है कि ब्रह्माजी बड़े चिंतित थे कि अन्य देवताओं के समान उनका पृथ्वी पर कोई भी धाम नहीं है। शिवजी की सलाह पर उन्होंने अपने कमल की पंखुड़ी गिरा कर स्थल का चयन किया। वे अपने हंस पर बैठ कर पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करने लगे। संयोग से पुष्कर क्षेत्र में उनके कमल की तीन पंखुड़ियां तीन स्थलों पर गिरीं। उन तीनों स्थानों से तीन जल-स्रोत फूट पड़े, जो ज्येष्ठ, मध्य और कनिष्ठ पुष्करों के नाम से जाने जाते हैं। ब्रह्मा ने भी वहीं साधना प्रारम्भ कर दी। 10 वर्ष तक जप करने के बाद जब वे ब्रह्मलोक को प्रस्थान करने लगे तो देवताओं ने अनुरोध किया कि वे यज्ञ करके उस स्थान को पवित्र करके अनुगृहीत करें। कार्तिक प्रथम पक्ष के अंतिम पांच दिन निश्चित तौर पर तैंतीस करोड़ देवता एवं ऋषि-महर्षि इस यज्ञ की तैयारी में जुट गए। विश्वकर्मा ने सुंदर यज्ञ मंडप तैयार कर दिया।
अब यज्ञ होने से पूर्व पत्नी की मौजूदगी होना आवश्यक था, इसीलिये नारदजी ने ब्रह्म लोक से उनकी पत्नी सावित्री देवी को बुलाने भेजा गया। सावित्री देवी को अपनी सखी-सहेलियों को साथ लाने के कारण विलम्ब हो गया। इधर यज्ञ मुहूर्त की घड़ी न टलने के कारण ब्रह्माजी के अनुरोध पर इंद्र ने एक पत्नी की व्यवस्था शीघ्र कर दी। गायत्री नामक एक सुंदर गोप कन्या से ब्रह्माजी का विधिवत् विवाह करके उसे यज्ञ में बैठा दिया गया। यज्ञ पूर्ण नहीं हो पाया था कि सावित्री देवी यज्ञ-मंडप में आ पहुंची और अपने स्थान पर दूसरी स्त्री की पत्नी के रूप में देखकर ब्रह्माजी पर क्रोधित हो उठीं। उन्होंने तभी ब्रह्माजी को शाप दिया कि वर्ष में केवल एक दिन इसी स्थान के अतिरिक्त ब्रह्माजी की पूजा कहीं अन्यत्र नहीं होगी तथा पुष्कर झील के सामने वाली पहाड़ी पर कठोर तप करने लगीं। उस पहाड़ी पर आज भी सावित्री का मंदिर मौजूद है तब से पुष्कर में कार्तिक शुक्ल पक्ष के अंतिम पांच दिनों में हजारों श्रद्धालु मोक्ष पाने के लिए ब्रह्माजी की इस साधना स्थली पर प्रतिवर्ष उपस्थित होते हैं।
पुष्कर क्षेत्र इतना नयनाभिराम है कि मुगल सम्राट जहांगीर का प्रिय आखेट स्थल बन गया था। तुजुके जहांगीर में लिखा है कि बादशाह अजमेर में ख्वाजा की दरगाह पर नौ बार गया था और पुष्कर झील पर 15 बार। पुष्कर झील अजमेर के उत्तर-पश्चिम में मात्र 11 कि.मी. दूरी पर नागपहाड़ की दूसरी ओर स्थित है। जयपुर हवाई-अड्डा ही इसके सबसे अधिक निकट है। समुद्र तल से 1,580 फुट की ऊंचाई पर स्थित पुष्कर झील एक अद्भुत पावन धार्मिक झील है। यहां की पुष्कर राज की आरती के बाद सायंकाल में पवित्र जल में कमल के पत्तों पर दीपक तैरने का दृश्य बड़ा लुभावना लगता है। अरावली पर्वत श्रृंखला के मध्य इस पर्वतीय झील के आसपास निर्मित देवालयों की शोभा दर्शनीय है। पुष्कर झील तीर्थ स्थली के रूप में राजस्थान के सौंदर्य में सर्वोपरि है।
• राजस्थान के शहर अजमेर में कई पर्यटन स्थल है जिनमें से पुष्कर झील एक है।
• पुष्कर झील राजस्थान के अजमेर नगर से ग्यारह किमी. उत्तर में स्थित है।
• पुष्कर झील भारतवर्ष में पवित्रतम स्थानों में से एक है।
• मान्यता के अनुसार पुष्कर झील का निर्माण भगवान ब्रह्मा ने करवाया था।
• इसमें बावन स्नान घाट हैं। इन घाटों में वराह, ब्रह्म व गव घाट महत्वपूर्ण हैं।
• प्राचीनकाल से लोग यहाँ पर प्रतिवर्ष कार्तिक मास में एकत्रित हो भगवान ब्रह्मा की पूजा उपासना करते हैं।
• पुष्कर में आने वाले लोग अपने को पवित्र करने के लिए पुष्कर झील में स्नान करते हैं।
अनुमान है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस पशु मेले में दो लाख यात्री और 50 हजार पशुओं की भीड़ जुटती है। यात्री पुष्कर झील में आचमन करके ब्रह्मा के मंदिर में भक्ति भावना से पूजा –अर्चना करते हैं। राजस्थान पर्यटन केंद्र द्वारा आयोजित यहां के सांस्कृतिक कार्यक्रम में राजस्थानी नृत्यों की बहार रहती है। बड़ी तादाद में मगरों भरी इस झील में राजा-महाराजाओं द्वारा बनवाए गये 52 घाटों में गऊघाट और ब्रह्मघाट प्रमुख हैं। 16 कि.मी. तक फैले पुष्कर में 400 मंदिर हैं। जिनमें ब्रह्मा रघुनाथ, अटपटेश्वर महादेव, गायत्री, वराह, राम बैकुंठ, सावित्री तथा अजगधेश्वर प्रमुख हैं। अक्तूबर से मार्च तक पुष्कर का मौसम बड़ा सुहाना रहता है। इस दर्शनीय झील के पास बीस इंच तक वर्षा का रिकार्ड है।
पुष्कर झील के बारे में पुराणों से पता चलता है कि ब्रह्माजी बड़े चिंतित थे कि अन्य देवताओं के समान उनका पृथ्वी पर कोई भी धाम नहीं है। शिवजी की सलाह पर उन्होंने अपने कमल की पंखुड़ी गिरा कर स्थल का चयन किया। वे अपने हंस पर बैठ कर पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करने लगे। संयोग से पुष्कर क्षेत्र में उनके कमल की तीन पंखुड़ियां तीन स्थलों पर गिरीं। उन तीनों स्थानों से तीन जल-स्रोत फूट पड़े, जो ज्येष्ठ, मध्य और कनिष्ठ पुष्करों के नाम से जाने जाते हैं। ब्रह्मा ने भी वहीं साधना प्रारम्भ कर दी। 10 वर्ष तक जप करने के बाद जब वे ब्रह्मलोक को प्रस्थान करने लगे तो देवताओं ने अनुरोध किया कि वे यज्ञ करके उस स्थान को पवित्र करके अनुगृहीत करें। कार्तिक प्रथम पक्ष के अंतिम पांच दिन निश्चित तौर पर तैंतीस करोड़ देवता एवं ऋषि-महर्षि इस यज्ञ की तैयारी में जुट गए। विश्वकर्मा ने सुंदर यज्ञ मंडप तैयार कर दिया।
अब यज्ञ होने से पूर्व पत्नी की मौजूदगी होना आवश्यक था, इसीलिये नारदजी ने ब्रह्म लोक से उनकी पत्नी सावित्री देवी को बुलाने भेजा गया। सावित्री देवी को अपनी सखी-सहेलियों को साथ लाने के कारण विलम्ब हो गया। इधर यज्ञ मुहूर्त की घड़ी न टलने के कारण ब्रह्माजी के अनुरोध पर इंद्र ने एक पत्नी की व्यवस्था शीघ्र कर दी। गायत्री नामक एक सुंदर गोप कन्या से ब्रह्माजी का विधिवत् विवाह करके उसे यज्ञ में बैठा दिया गया। यज्ञ पूर्ण नहीं हो पाया था कि सावित्री देवी यज्ञ-मंडप में आ पहुंची और अपने स्थान पर दूसरी स्त्री की पत्नी के रूप में देखकर ब्रह्माजी पर क्रोधित हो उठीं। उन्होंने तभी ब्रह्माजी को शाप दिया कि वर्ष में केवल एक दिन इसी स्थान के अतिरिक्त ब्रह्माजी की पूजा कहीं अन्यत्र नहीं होगी तथा पुष्कर झील के सामने वाली पहाड़ी पर कठोर तप करने लगीं। उस पहाड़ी पर आज भी सावित्री का मंदिर मौजूद है तब से पुष्कर में कार्तिक शुक्ल पक्ष के अंतिम पांच दिनों में हजारों श्रद्धालु मोक्ष पाने के लिए ब्रह्माजी की इस साधना स्थली पर प्रतिवर्ष उपस्थित होते हैं।
पुष्कर क्षेत्र इतना नयनाभिराम है कि मुगल सम्राट जहांगीर का प्रिय आखेट स्थल बन गया था। तुजुके जहांगीर में लिखा है कि बादशाह अजमेर में ख्वाजा की दरगाह पर नौ बार गया था और पुष्कर झील पर 15 बार। पुष्कर झील अजमेर के उत्तर-पश्चिम में मात्र 11 कि.मी. दूरी पर नागपहाड़ की दूसरी ओर स्थित है। जयपुर हवाई-अड्डा ही इसके सबसे अधिक निकट है। समुद्र तल से 1,580 फुट की ऊंचाई पर स्थित पुष्कर झील एक अद्भुत पावन धार्मिक झील है। यहां की पुष्कर राज की आरती के बाद सायंकाल में पवित्र जल में कमल के पत्तों पर दीपक तैरने का दृश्य बड़ा लुभावना लगता है। अरावली पर्वत श्रृंखला के मध्य इस पर्वतीय झील के आसपास निर्मित देवालयों की शोभा दर्शनीय है। पुष्कर झील तीर्थ स्थली के रूप में राजस्थान के सौंदर्य में सर्वोपरि है।
पुष्कर झील (भारतकोश से )
• राजस्थान के शहर अजमेर में कई पर्यटन स्थल है जिनमें से पुष्कर झील एक है।
• पुष्कर झील राजस्थान के अजमेर नगर से ग्यारह किमी. उत्तर में स्थित है।
• पुष्कर झील भारतवर्ष में पवित्रतम स्थानों में से एक है।
• मान्यता के अनुसार पुष्कर झील का निर्माण भगवान ब्रह्मा ने करवाया था।
• इसमें बावन स्नान घाट हैं। इन घाटों में वराह, ब्रह्म व गव घाट महत्वपूर्ण हैं।
• प्राचीनकाल से लोग यहाँ पर प्रतिवर्ष कार्तिक मास में एकत्रित हो भगवान ब्रह्मा की पूजा उपासना करते हैं।
• पुष्कर में आने वाले लोग अपने को पवित्र करने के लिए पुष्कर झील में स्नान करते हैं।
Hindi Title
पुष्कर झील
गुगल मैप (Google Map)
अन्य स्रोतों से
पुष्कर लेक (लाइव हिन्दुस्तान से)
ब्राहा के कमल से बनी पुष्कर लेक
राजस्थान में किले और ऐतिहासिक इमारतें तो बहुत हैं, एक ऐसी धार्मिक झील भी है, जिसे हर टूरिस्ट देखना चाहता है। पुष्कर में स्थित इस लेक को पर्यटक पुष्कर लेक के नाम से तो जानते ही हैं, इसे ब्राहा लेक भी कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि यह लेक ब्राहामाजी के कमल फूल से बनी है। राजस्थान के पुष्कर में हर वर्ष नवम्बर में लगने वाले मेले में जहां तरह तरह के सजे-संवरे ऊंटों की बड़ी संख्या होती है, वहीं सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं।
एक तरफ प्रसिद्ध मंदिर है, जिस कारण इस लेक का नाम ब्राहा लेक पड़ा। लगभग दो किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली इस लेक की सुंदरता इन पहाड़ियों से घिरे होने के कारण और बढ़ गई है। यहां का पूरा नजारा बड़ा ही मनोरम लगता है। दिल्ली से लगभग 400 किमी और अजमेर से 11 किमी की दूरी पर स्थित इस धार्मिक लेक के बारे मान्यता है कि ब्राहामाजी के हाथ से यहां कमल गिरने के कारण इसका निर्माण हुआ। इस लेक के किनारे 52 स्नान घाट हैं। नागा कुंड, कपिल व्यापी कुंड समेत कई कुंड भी हैं, जिनकी अपनी-अपनी महत्ताएं हैं। पुष्कर जाने के लिए दिल्ली से अजमेर के लिए रेल बस सेवाओं की कमी नहीं। अजमेर से यातायात के और भी साधन मिल जाते हैं और वहां ठहरने के लिए भी राजस्थान टूरिज्म की ओर से काफी व्यवस्था की गई है।
पुष्कर लेक (वेबदुनिया से)
झील की उत्पत्ति के बारे में किंवदंती है कि ब्रह्माजी के हाथ से यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ जिससे इस झील का उद्भव हुआ। यह मान्यता भी है कि इस झील में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है। झील के चारों ओर 52 घाट व अनेक मंदिर बने हैं। इनमें गऊघाट, वराहघाट, ब्रह्मघाट, जयपुर घाट प्रमुख हैं। जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा अत्यंत अद्भुत लगता है।