राई (Rye)

Submitted by Hindi on Mon, 08/22/2011 - 14:50
राई (Rye) का वानस्पतिक नाम सीकेल सीरिएल (Secalecereale) है। यह सीकेल वंश, सीरिएल जाति तथा ग्रामिनी (Gramineae) कुल का एक पौधा है, जो गेहूँ तथा जौ से बहुत मिलता जुलता है। पौधे की ऊँचाई चार से छह फुट तक होती है जिसके सिरे पर चार छह इंच लंबी सीकुरदार वाली लगती है, जो गेहूँ, या जौ की वाली के समान होती है। इसका दाना भी गेहूँ के दाने की भाँति, पर गेहूँ के दाने से कुछ छोटा, होता है। काला सागर तथा कैस्पियन सागर के पड़ोसी देश इसके उत्पत्तिस्थान हैं। इस अन्न का प्रधान उत्पादक रूस है। रासायनिक विश्लेषण से इसमें जल 11.66%, प्रोटीन 10.6%, चर्बी 1.7%, कार्बोहाइड्रेट 72.5% तथा अन्य पदार्थ 3.6% पाया गया है। इससे माल्ट तथा मदिरा तैयार की जाती है।

यह गेहूँ से अधिक दृढ़ होता है तथा ठंढे देशों में इसकी खेत रेतीली, या लाल मिट्टी में की जाती है। गेहूँ की भाँति यह मान्य तथा बहुमूल्य अन्न नहीं है, परंतु उत्तरी यूरोप में खाद्य की दृष्टि से विशेष महत्ववाले पौधों में इसकी गणना की जाती है, क्योंकि शीतल जलवायु तथा हल्की मिट्टी में इसकी उपज गेहूँ की अपेक्षा अधिक होती है। इसकी अनेक किस्में हैं, परंतु इन्हें दो प्रधान वर्गों में विभाजित किया गया है : शरद् ऋतु में बोई जानेवाली तथा बसंत ऋतु में बोई जाने वाली किस्में। इसकी बोआई छिटकवाँ या सीड ड्रील द्वारा पंक्तियों में की जाती है। प्रति एकड़ बीज की मात्रा 60 से 90 किलोग्राम होती है तथा उपज में 600 किलोग्राम से 900 किलोग्राम तक दाना और एक से दो टन भूसा होता है।

सं. ग्रं.  इन्साइक्लोपीडिया अमरीकाना, इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका, मॉडन्र साइक्लोपीडिया ऑव ऐग्रिकल्चर।
2. राई एक प्रकार का तिलहन (Brassica nigra and Brassica alba) है, जो सरसों जाति से संवंधित है। इसका पौधा उत्तर पश्चिमी भारत में अधिकता से पैदा होता है। राई तेल निकालने तथा मसाले के रूप में खाने के उपयोग में आती है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं बिहार के कुछ भागों में राई की खेती जाड़े की ऋतु में होती है। इसे अकेले, अथवा गेहूँ एवं जौ में मिलाकर, किसान बोते हैं। अकेले बोने में तीन सेर एवं मिलवाँ बोने में डेढ़ सेर बीज प्रति एकड़ बोया जाता है। बोआई अक्टूबर या शुरु नवंबर में की जाती है। खेत की तैयारी, उस प्रधान फसल के खेत की तरह, जिसमें मिलाकर इसे बोते हैं, की जाती है। अकेले बोई हुई फसल में 5-6 जुताई एवं 100 मन गोबर की खाद प्रति एकड़ काफी होती है। दिसंबर एवं जनवरी में दो सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। राई के पौधे की पत्तियाँ मामूली आरीदार होती हैं। बीज छोटा एवं गोल तथा हल्के लाल रंग का होता है। पौधे 3-4 फुट ऊँचे और फलियाँ 2 से श्इंच तक लंबी होती हैं। ये सख्त होती हैं और पाला एवं बीमारियों से कम पीड़ित होती हैं। राई का मुख्य शत्रु माहू कीड़ा है, जिससे इस फसल को जनवरी-फरवरी में विशेष हानि होती है। रोकथाम करने के लिए निकोटीन सल्फेट अथवा तंबाकूं एवं साबुन के विलयन का छिड़काव अधिक लाभप्रद होता है।

राई की फसल फरवरी के अंत से मध्य मार्च तक तैयार हो जाती है। पैदावार 8 से 10 मन प्रति एकड़ होती है। इसमें तेल 30 से 33 प्रतिशत होता है। उत्तर प्रदेश की एक प्रसिद्ध उन्नत जाति राई नं. 11 है, जो शीघ्र उगनेवाली एवं अधिक उपज देनेवाली किस्म है। बनारसी राई मसाले के रूप में बहुत प्रयुक्त होती है। इसका दाना छोटा होता है तथा वायुयिकार रोग के लिए यह अच्छी ओषधि है। (दुर्गा शंकर नागर)

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