रासायनिक इंजीनियरी

Submitted by Hindi on Mon, 08/22/2011 - 16:30
रासायनिक इंजीनियरी अर्थशास्त्र और मानवसंबंधों के नियमों का पालन करते हुए भौतिकीय विज्ञानों के सिद्धांतों के उन क्षेत्रों में अनुप्रयोगों को कहते हैं जिनमें प्रक्रमों (processes) और प्रक्रम उपस्करों (equipments) की सहायता से पदार्थ की अवस्था, ऊर्जांश, या संघटन परिवर्तित किया जाता है।

जिन क्षेत्रों में रासायनिक इंजीनियरी का महत्वपूर्ण स्थान है, वे निम्नलिखित हैं : जैविकी, आहार, उच्च दाब शिल्पविज्ञान, अकार्बनिक रसायनक, नाभिकी विज्ञान कार्बनिक रसायन, प्रलेप (paints), वार्निश और लाक्षारस (lacquer), लुगदी और कागज, शैल रसायनक (petrochemicals), पेट्रोलियम उत्पादन, पैट्रोलियम शोधन, प्लास्टिक और उच्च बहुलक (polymers), काच और गतिकाशिल्प, सीमेंट, साबुन और अपमार्जक (detergents) एवं प्रक्रम अभिकल्पन और नियंत्रण के लिए यंत्रीकरण (instrumentation) और संगणक।

रासायनिक इंजीनियर उपर्युक्त क्षेत्रों में से किसी भीश् क्षेत्र में अनुसंधान, विकास, तकनीकी सेवा, निर्माण, तकनीकी विक्रय या व्यवस्था करने, या कालेज में अध्यापन के लिए नियुक्त किया जा सकता है।

प्रसार और उत्तरदायित्व- रासायनिक इंजीनियर का संबंध ऐसे प्रक्रम से होता है जिसमें अनेक कच्चे माल अलग अलग, या संयोजन में, अनेक क्रमों के समग्र रूप में उपचारित किए जाते हैं। प्रत्येक क्रम में भौतिक, या रासायनिक, या दोनों प्रकार के परिवर्तन हो सकते हैं। अंतिम उत्पादों को पूर्वनिर्धारित अभीष्ट गुणों से युक्त होना ही चाहिए। कच्चा माल प्राकृतिक स्रोतों, या निर्माण के क्रमों से प्राप्त किया जाता है।

प्रक्रम में समाविष्ट भौतिक परिवर्तनों का अभिकल्प कच्चे माल से अवांछित अंशों को अलग करने, कच्चे माल का ताप, सांद्रता या भौतिक रूप बदलने, या उसे एक स्थान से दूसरे स्थान को भेजने के लिए किया जाता है। औद्योगिक प्रक्रम को सुगमता से प्रवाह आरेख, या अनुक्रम आरेख (flow sheet diagram) द्वारा निरूपित किया जाता है। ऐसे आरेख में प्रक्रम के विविध क्रम और वे बिंदु, जहाँ कच्चे माल प्रविष्ट कराए जाते हैं और उत्पाद निकाल लिए जाते हैं, वह अनुक्रम (sequence), जिसके अनुसार पदार्थ एक क्रम में पहुँचते हैं और विभिन्न क्रमों के संबंध आदि दिखाए जाते हैं। अधिक विस्तृत और व्यापक अनुक्रम आरेख में प्रक्रम के लिए आवश्यक पदार्थों का परिमाण, ऊर्जा और श्रम, नियंत्रण बिंदु, उपकरण की महत्वपूर्ण परिमाप और अभिकल्पना की विशेषताओं का संकेत भी मिलता है।

रासायनिक इंजीनियर भौतिकी, रसायन, गणित ओर इंजीनियरी की अन्य शाखाओं से प्राप्त जानकारी पर निर्भर रहता है। अपने पेशे से संबद्ध उत्तरदायित्वों के निर्वाह के लिए उसने तत्वयोगमिति (Stoichiometry) जैसे विषयों को विकसित कर लिया है। रासायनिक इंजीनियरी के अंतर्गत आगतिक उपयोगिता के तीन नियमों के सरल सामान्यीकरण हैं। ये नियम हैं : पदार्थ संरक्षण का नियम, ऊर्जा संरक्षण का नियम और रासायनिक सूत्रों तथा समीकरणों से निरूपित संयोजी भार (combining weights) के तत्वयोगमितीय नियम। इन नियमों के महत्व का कारण यह है कि वे नियम परिमाणात्मक रूप से प्रयोज्य (applicable) हैं और तृतीय नियम का उपयोग कभी कभी प्रत्येक रासायनिक परिकलन में आवश्यक हो जाता है।

ऊष्मागतिकी के उपयोग से रासायनिक इंजीनियरी के प्रक्रम में आए हुए पदार्थों के भौतिक और रासायनिक गुणों के संबंध में महत्वपूर्ण सूचनाएँ मिलती हैं तथा एक दूसरे के संपर्क में आई हुई गैसों और द्रवों की साम्यावस्था तथा प्रत्येक क्रम की चरम दक्षता सीमा का पता लगता है। ऊष्मागतिक सिद्धांतों से उन अवस्थाओं का संकेत मिलता है जिनमें कोई रासायनिक क्रिया संभव है, या जो अवस्थाएँ क्रिया के अनुकूल नहीं पड़तीं।रासायनिक इंजीनियरी नामक मूल विज्ञान को कला, व्यवहारशास्त्र एवं क्यों और कैसे (know-how) की जानकारी पूर्णतया प्रदान करती है। इसमें विविध ज्ञानशाखाओं से उपलब्ध जानकारी को समग्र रूप में प्रयोग करने की ओर बल दिया जाता है, जिससे रासायनिक इंजीनियर अपने समाज और व्यवसाय की सेवा अधिक लाभप्रद रूप में कर सके। आधुनिक रासायनिक इंजीनियरी के विकास में यद्यपि अनेक बातों का योग रहा है, तथापि दो धारणाओं का महत्व असाधारण रहा है : (1) एकल प्रक्रम (Unit processes) और (2) एकल संक्रियाएँ (Unit operations)।

एकल प्रक्रम- इसके अंतर्गत तीन दर्जन, या इससे अधिक विधियाँ हैं, जिनकी सहायता से एक पदार्थ को दूसरे पदार्थ में परिवर्तित किया जाता है। एकल प्रकम रासायनिक परिवर्तन, जैसे दहन (combustion), वैद्युत अपघटन (electrolysis), बहुलकीकरण आदि है।

एकल संक्रियाएँ- इनमें लगभग दो दर्जन भौतिक परिवर्तन समाविष्ट है। पदार्थ की अवस्था और ऊर्जास्तर में भौतिक प्रकृति के परिवर्तन होते हैं। इन एकल प्रक्रमों को औपचारिक मान्यता मिल जाने से रसायन विज्ञान और रासायनिक इंजीनियरी में स्पष्ट अंतर करना संभव हो गया है। रसायन विज्ञान प्रक्रिया के पैमाने (scale of operation) के प्रभाव की उपेक्षा करता है और विलगित (isolated) रासायनिक प्रक्रिया पर ही ध्यान देता है। रासायनिक इंजीनियरी कच्चे मालों की खरीद और क्रिया के मौलिक बलगति विज्ञान (fundamental kinetics) से लेकर उत्पादों के पैकिंग करने और विक्रय करने तक की समग्र प्रक्रिया पर दृष्टि रखती हैं। रासायनिक इंजीनियर मौलिक वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर प्रत्येक संक्रिया का विश्लेषण करता है, जिससे वह प्रयोगशाल, आरंभिक संयंत्र (pilot plant) या उत्पादन यूनिट से प्राप्य परिणामों की अग्रिम सूचना दे सके। तकनीकी योग्यता तो आवश्यक है ही, परंतु अर्थशास्त्र, मानव संबंध, नीति और सदाचार के मूल्यों का महत्व भी इस क्षेत्र में दिनोंदिन बढ़ रहा है।

प्रधान एल प्रक्रम हैं : (1) दहन, (2) ऑक्सीकरण, (3) उदासीनीकरण, (4) वैद्युत्‌ अपघटन, (5) निस्तापन (Calcination), (6) विहाइड्रोजनीकरण, (Dehydrogenation), (7) नाइट्रोजनीकरण, (8) ऐमोनी अपघटन (Ammonolysis), (9) हैलोजनीकरण, (10) सल्फ़ोनीकरण, (11) जलअपघटन (Hydrolysis), (12) ऐल्किलीकरण (13) संघनन, (14) बहुलकीकरण, (15) किण्वन, (16) ताप अपघटन (pyrolysis), (17) भंजन (Cracking) तथा (18) आयन विनिमय (Ion exchange)।

एकल संक्रियाएँ हैं : (1) तरल गतिकी (Fluid dynamics), (2) ऊष्मा स्थानांतरण, (3) वाष्पीकरण, (4) आर्द्रीकरण, (5) गैस अवशोषण, (6) विलायक निष्कर्षण (Solvent extraction), (7) अधिशोषण (Adsorption), (8) आसवन (Distillation) और ऊर्ध्वपातन (Sublimation), (9) शुष्कन, (10) मिश्रण, (11) वर्गीकरण, (12) अवसादन (Sedimentation), (13) निस्यंदन (Filtration), (14) आवरण (Screening), (15) क्रिस्टलन, (16) अपकेंद्रण (Centrifuging), (17) आकार अवनमन, (18) पदार्थ प्रबंध तथा (19) तरलीकरण।

अन्य विज्ञानों की भाँति रासायनिक इंजीनियरी में भी क्रांतिकारी नहीं तो मौलिक परिवर्तन अवश्य हो रहे हैं। 1950 ई. से एकल संक्रिया धारणा इंजीनियरी विज्ञान के रूप में धीरे-धीरे विकसित हो रही है। इस विज्ञान में सभी भौतिक प्रक्रमों की संहति, ताप और संवेग (momentum) के पदों में गणितीय विवेचन पर सर्वाधिक बल दिया जा रहा है। इन सबसे नई पीढ़ी को अवगत कराने के लिए स्नातक स्तर के पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की गई है।

आरंभिक संयंत्र (Pilot plant)- रसायनज्ञ, या शिल्पवैज्ञानिक (technologist) द्वारा इस बात के निर्धारित कर लेने पर कि अमुक रासायनिक, या जैविक अभिक्रिया होगी। प्रयोगशाला में छोटे पैमाने पर नए प्रक्रम का विकास किया जाता है। उपलब्ध सूचना रासायनिक इंजीनियर को दे दी जाती है कि वह इस प्रक्रम का व्यापारिक पैमाने पर चालू करे। जानकारियाँ प्राय: बहुत महत्व की नहीं होती। अत: परख अभिकल्प (trial design) का परीक्षण करना पड़ता है। सबसे आशाजनक अभिकल्प को अपेक्षाकृत छोटे पैमाने पर ही बनाया जाता है, जिससे यह बात मालूम हो जाए कि कोई ऐसी गंभीर समस्या नहीं उत्पन्न हो जाती है जिसका पूर्वानुमान प्राप्त जानकारी के आधार पर नहीं किया जा सकता है। ऐसे छोटे पैमाने पर बने संयंत्र को आरंभिक संयंत्र कहते हैं। आरंभिक संयंत्र के प्रचालन से जो सूचना प्राप्त होती है, वह पूर्ण दक्षता के संयंत्र के अभिकल्प का आधार बनती है। आरंभिक संयंत्र के अभिकल्प में पूरे पैमाने पर बननेवाले संयंत्र की समस्याओं को ध्यान में रखना आवश्यक है।

प्रक्रम नियंत्रण और यंत्रीकरण- रसायन उद्योग श्रम बचानेवाले ऐसे यंत्रों के उपयोग में अग्रणी है, जिनसे उत्कृष्ट गुणों के उत्पादों को कम से कम लागत द्वारा तैयार करने के लिए आवश्यक अवस्थाओं का अनुरक्षण (maintenance) हो सके। अब अविरत प्रक्रमों (continuous process) का प्रचालन प्राय: यंत्रों के नियंत्रण में होता है। समुचित प्रचालन अवस्थाओं में आए हुए अंतर, या तो स्वचालित रूप से सुधार लिए जाते हैं, या प्रचालक को संकेत पद्धति से चेतावनी मिल जाती है।

शैक्षिक कार्यक्रम- रासायनिक इंजीनियरी की शिक्षा 1890-1922 ई. काल में अत्यंत वैयक्तिक और विविध प्रकार की थी। औद्योगिक रसायन की शिक्षा लियो बेकेलैंड और ए.डी. लिटिल जैसे सफल रसायनज्ञ उद्योगपति देते थे। 1922 ई. में अमरीकन इंस्टिट्यूट ऑव इंजीनियर्स ने इसे आधुनिक रासायनिक इंजीनियरी का रूप दिया।

आजकल विश्व के सभी विश्वविद्यालयों में रासायनिक इंजीनियरी की शिक्षा दी जाती है। अमरीका, इंग्लैड, फ्रांस, रूस और जर्मनी के पाठ्यक्रम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। भारत में इसकी शिक्षा यद्यपि 1922 ई. से ही दी जा रही है, तथापि इधर के 15 वर्षों में ही यह विश्व के प्रगतिशील राष्ट्रों के स्तर की शिक्षा हो सकी है।

पाठ्यक्रम के विवरण विभिन्न विश्वविद्यालयों में भिन्न भिन्न हैं। प्राय: बी.एस.सी. (केमिकल इंजीनियरिंग) के पाठ्यक्रमों में निम्नलिखित विषयों का समावेश होता है : (1) भौतिकी, (2) रसायन, (3) गणित, (4) वैद्युत और यांत्रिक इंजीनियरी, (5) एकल प्रक्रिया, (6) एकल प्रचालन, (7) ऊष्मागतिकी, (8) बलगतिकी और उत्प्रेरण, (9) रासायनिक संयंत्र अभिकल्पना, (10) अनुसंधान और विकास तथा (11) अर्थशास्त्र।

व्यावसायिक संघ (Professional Soeicties)- ऐसे अनेक व्यावसायिक संघ है जिनके द्वारा रासायनिक इंजीनियरी का शिल्पवैज्ञानिक और व्यावसायिक विकास, शिक्ष के उच्च स्तर का अनुरक्षण और व्यवसाय के लिए महत्वपूर्ण सूचनाओं का विनिमय हो सका। ऐसे संघों में अमरीकन इंस्टिट्यूट ऑव केमिकल इंजीनियर्स (1908), दि इंस्टिट्यूट, ऑव केमिकल इंजीनियर्स ऑव लंडन (1922) और दि इंडियन इंस्टिट्यूट ऑव केमिकल इंजीनियर्स (1947) उल्लेखनीय हैं।

इंजीनियरी की नई शाखा के रूप में विकसित हो रही रासायनिक इंजीनियरी में अभिरुचि रखनेवाले मुट्ठी भर लोगों ने रासायनिक इंजीनियरों का संघ बनाने का प्रयास किया। 1887 ई. में मैनचेस्टर टेकनिकल स्कूल में हुए जार्ज ई. डेविस के भाषणों को संकलित किया गया, जो आधुनिक रासायनिक इंजीनियरों की आधारशिला बना। इसमें डेविस ने उन बातों पर जोर दिया था और रासायनिक उद्योगों में उनके महत्व को सिद्ध किया था जिन्हें आगे चलकर एकल प्रचालन नाम से अभिहित किया गया।

अमरीका में रासायनिक इंजीनियरी में पहला पाठ्यक्रम मासाचूसेट्स इन्स्टिट्यूट ऑव टेक्नॉलोजी, केंब्रिज (मासाचूसेट्स), में 1888 ई. में निर्धारित हुआ। बाद में इस इंजीनियरी को महत्वपूर्ण गतिशक्ति देनेवाले हुए : एच.वॉकर, वारेन के.ल्युइस और डब्लू. एच. मैकादासा। इनकी पुस्तक का प्रथम प्रकाशन 1927 ई. में और संशोधित रूप के प्रकाशन 1923 ई. और 1927 ई. में हुए। इसमें उन मौलिक सिद्धांतों की स्थापना कर दी गई है जिनपर रासायनिक इंजीनियरी आधारित है और इस प्रकार इसके इंजीनियरी का यथार्थ और परिमाणात्मक विभाग बनाने में महत्वपूर्ण योग दिया।

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संदर्भ
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