रासायनिक क्रिया (Chemical Action)

Submitted by Hindi on Mon, 08/22/2011 - 16:48
रासायनिक क्रिया (Chemical Action) रसायनविज्ञान को द्रव्य रूपांतरण नियमों का अध्ययन कहा जाता है। संसार के प्राय: सभी वस्तुओं का उत्पादन एवं ह्रास रासायनिक क्रिया के द्वारा ही होता है। रासायनिक क्रिया प्राकृतिक परिवर्तनों से अथवा मनुष्य द्वारा उत्प्रेरित परिस्थितियों में संपन्न होती है। रासायनिक परिवर्तनों से द्रव्य में परिवर्तन उत्पन्न होता है, परंतु किसी भी अवस्था परिवर्तन को रासायनिक परिवर्तन नहीं कहा जा सकता। रासायनिक परिवर्तन में पदार्थ की सारभूत प्रकृति में परिवर्तन हो जाता है तथा पदार्थ को निर्मित करनेवाले अणु की संरचना में भी परिवर्तन होता है। रासायनिक परिवर्तन स्थायी होता है तथा परिवर्तन उत्पन्न करनेवाले कारकों को हटाने पर भी रासायनिक परिवर्तन को उत्क्रमित नहीं किया जा सकता है। अत: इस आधार पर निम्नांकित परिवर्तनों का रासायनिक परिवर्तन कहा जाता है : अम्लमिश्रित जल में विद्युत्‌ प्रवाहित करने पर जल का हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभक्त होना, मैग्नीशियम पट्टिका के गरम करने पर चमकीले श्वेत प्रकाश का निकलना और पट्टिका के स्थान पर मैग्नीशियम ऑक्सइड का श्वेत चूर्ण प्राप्त होना।

उपयुक्त परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार के द्रव्यों के संयोग से जो स्थायी परिवर्तन होता है उसे रासायनिक क्रिया का होना कहते हैं। उदाहरणार्थ, सोडियम का क्लोरिन से संयोग होने पर सोडियम तत्काल ज्वाला के साथ जलकर सोडियम क्लोराइड बनाता है। इस रासायनिक क्रिया का कारण सोडियम में क्लोरिन के प्रति अत्यधिक बंधुता का होना है। रासायनिक क्रिया की गति मान लेनेवाले पदार्थों के सक्रिय भार की अनुपाती होती है। अनेक रासायनिक क्रियाएँ स्वतंत्र रूप में एक साथ संपन्न होती हैं। रासायनिक क्रियाएँ ठोस, द्रव तथा गैस किसी अवस्थावाले पदार्थो के बीच होती है। उत्क्रमित रासायनिक क्रिया में दो विपरीत क्रियाएँ एक साथ संपन्न होती हैं। इस प्रकार की रासायनिक क्रियाओं में दोनों विपरीत क्रियाओं में भाग लेनेवाले उत्पादों के बीच साम्यावस्था की स्थिति स्थापित हो जाती है।

रासायनिक क्रिया को संपन्न करनेवाली शक्ति, जो क्रिया के उपरांत प्राप्त होनेवाले उत्पादों को स्वतंत्र एवं विशिष्ट अवस्थाओं में बनाए रखती है, ऊष्मा, प्रकाश तथा विद्युत्‌ आदि शक्तियों से संबंधित होती है। सभी प्रकार की रासायनिक क्रियाओं में ऊर्जा लगती है। अनेक रासायनिक क्रियाओं में ऊष्मा का अवशोषण अथवा क्षेपण होता है। ऊष्मा के अन्वेषणवाली रासायनिक क्रियाओं में स्वतंत्र ऊर्जा परिवर्तन रासायनिक बंधुता का वास्तविक मापक होता है। अनेक रासायनिक क्रियाओं में ऊर्जा परिवर्तन का परिमापन करना संभव होता है। एक ही प्रकार के तथा समपरिस्थिति की रासायनिक क्रियाओं में ऊर्जा परिवर्तन का परिमापन करना संभव होता है। एक ही प्रकार के तथा समपरिस्थिति की रासायनिक क्रियाओं में ऊर्जा परिवर्तन समान होता है। विद्युत्‌धारा द्वारा जल अपघटन में ऊर्जा परिवर्तन समान होता है। विद्युत्‌धारा द्वारा जल अपघटन में ऊर्जा की वही मात्रा निकलती होती है, जा हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से जल उत्पादन के समय लगती है। सामन्य विचारधारा के अनुसार रासायनिक क्रिया का कारण सक्रियकृत अणुओं का संयोग होता है, जिनमें प्रयुक्त पदार्थ के सामान्य अणु से अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा होती है। इस विचरधारा की पुष्टि सक्रियकृत तथा नवजात रासायनिक तत्वों की सामान्य से अधिक सक्रियता के द्वारा होती है। उपर्युक्त सिद्धांत को बेली का रासायनिक क्रिया का विकिरण सिद्धांत कहा जाता है।

रासायनिक क्रियाएँ अनेक प्रकार की होती हैं। इन्हें निम्नांकित छह प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जाता है :

(1) संश्लेषण अथवा ऋतु संवेग- इस प्रकार की रासायनिक क्रियाओं में सरलतम संघटकों के सीधे संयोग से रासायनिक यौगिक का उत्पादन होता है। जब मैगनीशियम की पट्टिका हवा में जलाई जाती है, तब मैगनीशियम का हवा के ऑक्सीजन से सीधा संयोग होता है, जिससे मैग्नीशियम ऑक्साइड बनता है (2 Mg+O2=2MgO)। यहाँ मैग्नीशियम के दो परमाणु ऑक्सीजन के एक अणु से, जिसमें दो परमाणु होते हैं, संयोग करते हैं और मैग्नीशियम ऑक्साइड के दो अणु प्राप्त होते हैं।

(2) विश्लेषण अथवा सीधे विघटनवाली रासायनिक क्रिया- यहाँ रासायनिक यौगिक का सरलतम संघटकों में विघटन हो जाता है। संश्लेषण की रासायनिक क्रिया से यह क्रिया विपरीत होती है। जब पारे के लाल ऑक्साइड को गरम करते हैं, तब पारा और ऑक्सीजन अलग अलग हो जाते हैं (2 HgO=2 Hg + O2)। मरक्यूरिक ऑक्साइड का दो अणु पारे के दो परमाणु और ऑक्सीजन के एक अणु में विघटित हो जाता है।

(3) प्रतिस्थापन रासायनिक क्रिया- ऐसी रासायनिक क्रिया में किसी यौगिक का एक तत्व किसी दूसरे तत्व से प्रतिस्थापित हो जाता है, जैसे हाइड्रोक्लोरिक अम्ल पर जस्ते की क्रिया से ज़िंक क्लोराइड बनता है और हाइड्रोजन मुक्त होता है (2HCl+Zn=ZnCl2+H2)।

(4) उभय अपघटन- यहाँ दो यौगिकों के संघटकों का पारस्परिक विनिमय अथवा आदान प्रदान होता है। जब सिल्वर नाइट्रेट विलयन को पौटैशियम क्लोराइड के विलयन के संपर्क में लाया जाता है, तब सिल्वर क्लोराइड और पोटैशियम नाइट्रेट बनते हैं [Ag NO3+KCl=AgCl+KNO3]।

(5) उत्क्रमणीय रासायनिक क्रिया- यहाँ दो विपरीत क्रियाएँ एक साथ संपन्न होती है। संयोग क्रिया से बननेवाले उत्पाद का पुन: विघटन प्रारंभ हो जाता है, जिसमें फलस्वरूप संश्लेषण तथा विघटन दोनों ही क्रियाएँ साथ-साथ चलती हैं। हाइड्रोजन तथा आयोडीन को बंद पात्र में गरम करने से, सीधे संयोग से, हाइड्रोजन आयोडाइड बनता है। साथ ही हाड्रोजन आयोडाइड का विघटन भी प्रारंभ हो जाता है। ऐसी क्रिया को इस प्रकार प्रदर्शित किया जाता है : (H2+l2=2Hl)

(6) परमाणु पुनर्विन्यास अथवा समावयवता (Isomerism)- इस वर्ग की रासायनिक क्रिया में किसी यौगिक के परमाणुओं का परिवर्तित परिस्थितियों मे पुनर्विन्यास होता है, जिसके फलस्वरूप उन्हीं परमाणुओं से नए यौगिक बनते हैं। अमोनियम सायनेट के गरम करने से यूरिया बनता है। इन दोनों यौगिकों में विभिन्न तत्वों के परमाणुओं की संख्या एक ही है।

[NH4(CNO)  CO(NH2)2]

अमोनियम सायनेट यूरिया
उपर्युक्त रासायनिक क्रियाओं के अतिरिक्त कुछ अन्य रासायनिक क्रियाएँ भी हैं। ऐसी क्रियाओं में जीवजगत्‌ में होनेवाली क्रियाएँ प्रमुख हैं।

रासायनिक क्रियाओं को उपयुक्त परिस्थितियों में उत्प्रेरित किया जा सकता है। अनेक रासायनिक द्रव्यों को मिश्रित करने अथवा संपर्क कराने पर, विलयन में एक साथ रखने पर, गरम करने पर, प्रकाश के प्रभाव में रखने पर, दबाव या संपीडन की अवस्था में रखने पर, विद्युत्‌ धारा के प्रवाहित करने पर, ध्वनितरंगों के द्वारा अथवा उत्प्रेरकों के प्रयोग से उत्प्रेरण उत्पन्न किया जा सकता है। रासायनिक क्रियाओं में उत्प्रेरकों का बड़ा महत्व है और अनेक उद्योग धंधों में इनका व्यापक रूप से आज उपयोग हो रहा है। (अभय सिन्हा)

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संदर्भ
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