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साक्ष्य नदियों की आग, अक्टूबर 2004
पानी देश भर में एक महत्वपूर्ण तथा विवाद का मुद्दा बना हुआ है। लोगों को पीने का साफ पानी मुहैया कराना भी देश के अनेक भागों में एक समस्या है। जल प्रबंधन नीतियाँ इस तरह से तैयार की जाएँगी ताकि किसानों और कमजोर वर्गों, विशेष-कर महिलाओं तथा शहरों में रहने वाले लोगों की जरूरतों को पूरा किया जा सके।
एक-एक ईंट से इमारत खड़ी होती है और लाखों ईंटों को जोड़कर एक बड़ी इमारत बनती है। ठीक इसी तरह, लाखों और करोड़ों लोगों के प्रयासों से एक राष्ट्र का निर्माण होता है। राष्ट्र निर्माण का कार्य एक रचनात्मक और उत्साह से भरा कार्य है। इसके लिए जरूरी है कि हम सभी अपने देश के प्रति आदर और प्यार से मिल-जुलकर काम करें। यह प्यार हमारे हिन्दुस्तानी होने के नाते उमड़कर बाहर आता है। हमारा धर्म, प्रान्त, भाषा, जाति या संस्कृति कोई भी हो, हम सबसे पहले हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तान हमारा है।विविधता में एकता ही हमारी ताकत है। धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय हमारे राष्ट्र के प्रतीक हैं। कानून की नजर में सबकी बराबरी हमारी पहचान है। आज का दिन हमारे लिए अपने आपको फिर से समर्पित करने का दिन है- देश की सेवा में और हरेक नागरिक की सेवा में, खासकर जो उपेक्षित हैं।
यह दिन हमारे लिए बरसात के दिनों में आता है। हर साल जब हम यहाँ इकट्ठे होकर लालकिले पर तिरंगे को लहराते हुए देखते हैं, तो हमारी निगाहें आसमान की ओर उठती हैं। वे बादलों को देखती हैं कि कहीं बारिश तो नहीं आ रही। इस साल भी हम आसमान की ओर आस लगाकर देख रहे हैं।
मैं सूखे से पीड़ित किसानों की दिक्कतों को जानने के लिए आंध्र प्रदेश गया था। मैं उन परिवारों से भी मिला, जिन्होंने कर्ज के भारी बोझ के कारण अपने रोजी-रोटी कमाने वालों को खो दिया। वहाँ मीलों तक मुझे पानी दिखाई नहीं दिया। मैं असम और बिहार गया और वहाँ उन लोगों की तकलीफों को देखा, जिनका जीवन बाढ़ के कारण अस्त-व्यस्त हो गया था। वहाँ मुझे मीलों तक पानी ही पानी नज़र आ रहा था।
सूखा और बाढ़ - ये दो ऐसी मुसीबतें हैं, जो आज भी हमारे लोगों को सता रही हैं। काफी लम्बे अरसे से चली आ रही इन दिक्कतों से निपटने के लिए हमें मिल-जुलकर कार्रवाई करने की जरूरत है।
हमारी सरकार ने इनसे निपटने के लिए कुछ कदम उठाए हैं और इस दिशा में काफी कुछ करने का इरादा भी है। सूखे के प्रभाव से लोगों को बचाने के लिए हमें गाँव-गाँव में हल निकालने होंगे। इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए लोगों को संगठित करना होगा। हम सिंचाई क्षेत्र में निवेश बढ़ाएँगे और हरेक नदी घाटी की विशेषताओं पर ध्यान देंगे। ऐसा करते समय पर्यावरण तथा लोगों की जरूरतों का ख्याल भी रखा जाएगा।
जल एक राष्ट्रीय संसाधन है और हमें देश के जल संसाधनों के इस्तेमाल के बारे में एक आम राय बनानी होगी। हमें यह तय करना होगा कि सीमित जल संसाधनों के इस्तेमाल में सबको उचित हिस्सा कैसे मिल पाए।
सदियों से भारतीय सभ्यता हमारी पवित्र नदियों के जल से फली और फूली है। ये नदियाँ धागों की तरह हैं, जो हमारे राष्ट्र के ताने-बाने को बुनती हैं। हमें खास ख्याल रखना होगा कि इन नदियों के पानी के कारण हमारे बीच अलगाव पैदा न हो। मैं आपसे और सभी राजनेताओं से अनुरोध करता हूँ कि जल संसाधनों के प्रबन्धन की चुनौती से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय रुख-नजरिया अपनाएं।
पानी की समस्या से निपटना एक महत्वपूर्ण कार्य है, चाहे वह पीने के लिए हो या खेती के लिए। इसीलिए हमने इसे अपने ग्रामीण इलाकों के लिए नई पहल का एक हिस्सा बनाया है। सिंचाई के अलावा, हमने इस नई पहल में किसानों को आसानी से कर्ज मुहैया कराने के लिए भी कुछ कदम उठाए हैं। नई पहल के तहत ग्रामीण इलाकों में सिंचाई, कर्ज, बिजली, प्राथमिक शिक्षा, चिकित्सा सेवा, सड़कों का निर्माण आदि बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश करना आवश्यक है। इसके लिए हम जरूरी कदम उठाएँगे। - 15 अगस्त 2004 को राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए
पानी देश भर में एक महत्वपूर्ण तथा विवाद का मुद्दा बना हुआ है। लोगों को पीने का साफ पानी मुहैया कराना भी देश के अनेक भागों में एक समस्या है। जल प्रबंधन नीतियाँ इस तरह से तैयार की जाएँगी ताकि किसानों और कमजोर वर्गों, विशेष-कर महिलाओं तथा शहरों में रहने वाले लोगों की जरूरतों को पूरा किया जा सके। भू-जल को बढ़ाने तथा बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए सरकार, पंचायती राज संस्थाओं तथा गैर सरकारी संगठनों के बीच गहरा सहयोग जरूरी है। सिंचाई के क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश की जो अनदेखी हुई है, सरकार उसे दूर करेगी। - 24 जून 2004 को आकाशवाणी/दूरदर्शन पर राष्ट्र के नाम सम्बोधन