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सिविल सोसाइटी
जिस समय फ़रहाद कॉंट्रेक्टर ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की, तभी उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें यूनिवर्सिटी में पुस्तकों में अपना सिर नहीं खपाना है, न ही उन्हें “अहमदाबाद” जैसे चमक-दमक वाले शहर में ऐशोआराम का जीवन बिताने का कोई शौक था। बल्कि आम युवाओं से हटकर फ़रहाद का एक स्वप्न था, गाँव में जाकर रहना और काम करना। यह सब उनके पिता फ़िरोज़ कॉण्ट्रेक्टर की शिक्षाओं और संस्कारों का ही असर था कि फ़रहाद “गाँव” से प्रेम करते थे।
लगभग 6 वर्ष तक फ़रहाद ने मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के गाँवों और राजस्थान के बाड़मेर इलाके में “जनविकास” के एक सक्रिय कार्यकर्ता के रुप में काम किया। जबकि पिछले पाँच साल से फ़रहाद एक अन्य सामाजिक संगठन “सम्भव” के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। उनके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब उन्होंने 1993 में अनुपम मिश्र की लिखी पुस्तक “आज भी खरे हैं तालाब” पढ़ी, तब से अब तक वे उसे 12 बार पूरी तरह पढ़ चुके हैं। इस पुस्तक ने उन पर गहरा असर किया और वे उसी पुस्तक में बताये गये पानी बचाने-बढ़ाने के तौर-तरीकों को ज़मीनी हकीकत में बदलने के लिये सामाजिक जीवन में खुद को झोंक दिया।
फ़रहाद का प्रिय ध्येय वाक्य है – “हम, लोगों के लिये नहीं, बल्कि लोगों के साथ काम करते हैं…”। पिछले 12 वर्षों के दौरान उनके अनथक परिश्रम और प्रेरणा से उन्होंने अब तक 8500 से अधिक पारम्परिक जलस्रोतों जैसे टंका, तालाब, नदियाँ और बेरियों का या तो निर्माण किया है, अथवा उन्हें पुनर्जीवन प्रदान किया है। फ़िर भी फ़रहाद को ऐसा लगता है कि अब तक सबसे अधिक संतोषप्रद, बड़ा और जनोपयोगी कार्य रहा, “नन्दुवालू नदी का पुनर्जीवन”। अलवर जिले के राजगढ़ तहसील में 2003 में शुरु किये गये इस महत्वाकांक्षी जन-अभियान की योजना काफ़ी पहले बनाई गई थी। इस इलाके में महिलाओं को पीने का पानी लेने के लिये रोज़ाना 7 से 12 किमी पैदल चलना पड़ता था। 17 किलोमीटर लम्बी नदी को पुनर्जीवित करने का कुल खर्च आया सिर्फ़ 31.6 लाख। इसमें से भी साढ़े तेरह लाख की राशि तो गरीब ग्रामीणों ने ही अंशदान में दी थी। इस नदी के शुरु होने से पहले इलाके के 190 कुँए पूरी तरह सूख चुके थे, जबकि आज की तारीख में 237 कुँए पूरी तरह से रीचार्ज हो चुके हैं। लगभग 30 वर्ष के बाद नन्दुवालुज नदी में पानी फ़िर से बहने लगा है। वर्ष के कुछ महीने यह नदी पूरी तरह से जीवन्त रहती है। फ़रहाद कहते हैं, “जनता में विश्वास रखना चाहिये, उनके काम करने, योजना बनाने और निर्माण करने की क्षमता पर यकीन करना चाहिये… इस मामले में मुझे आज तक किसी भी मौके पर पछताना नहीं पड़ा है…”।