रेत के टीलों पर उगा दिए पेड़

Submitted by Hindi on Sat, 04/23/2011 - 10:10
Source
दैनिक भास्कर, 22 अप्रैल 2011

राणाराम राणाराम जोधपुर. रेत के धोरों (टीलों) पर रेत ही नहीं थमती। पेड़ की जड़ें थमना तो दूर की बात है। लेकिन नहीं! इंसान का जज्बा यह कारनामा भी कर सकता है। जोधपुर के ओसियां क्षेत्र का एक गांव है, एकलखोरी। यहां के राणाराम खींचड़ यही कमाल कर रहे हैं।

बचपन में गांव से 33 किलोमीटर दूर स्कूल था। इसके लिए राणाराम पढ़ नहीं पाए। लेकिन प्रकृति की पढ़ाई सीख ली और ऐसी सीखी कि लोग इन्हें राणाराम के बजाय ‘रणजीताराम’ (रण या लड़ाई जीतने वाला) कहने लगे। अभी 71 साल के हैं, राणाराम लेकिन 40 साल पहले (करीब 30 साल की उम्र से) उन्होंने पेड़ लगाने का जो सिलसिला शुरू किया वह आज तक जारी है। उम्र के इस पड़ाव पर भी वे बीज लाकर पौधे तैयार करते हैं। खेत-खलिहान, मंदिर-स्कूल और गांव- जहां भी सही जगह मिले, पहली बारिश होते ही उन्हें रोप देते हैं। मवेशियों से बचाने के लिए उनकी बाड़ाबंदी करते हैं। तीन-तीन किलोमीटर दूर से ऊंट गाड़ी पर पानी लाकर पौधे सींचते हैं। उन्हें बच्चों सा पालते हैं। अब तक वे 25 हजार से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं।

पिछले 12 साल से वे एक पांच सौ मीटर ऊंचे और तीन बीघा क्षेत्र में फैले धोरे को हरा-भरा करने में जुटे हैं। वर्ष 1998-99 में यहां पर उन्होंने एक हजार पौधे लगाए। बारिश में पौधे लहलहाने लगे। लेकिन बाद में आंधियों में उखड़ गए। केवल 10-15 ही बच पाए। वर्ष 2007 में फिर दो सौ पौधे लगाए। आंधियों में करीब डेढ़ सौ पौधे उखड़ गए। इस बार फिर सात सौ पौधे लगाए हैं। हर रोज घर से करीब तीन किलोमीटर दूर इस धोरे पर वे रोजाना जाते हैं। पास के ट्यूबवेल से पाइप के जरिए पानी लाकर इन्हें सींचते हैं।

उन्हें यकीन है कि इस धोरे पर भी एक दिन हरियाली छाएगी। ठीक वैसे ही जैसे आसपास के एक बड़े इलाके में उनके प्रयास से छा चुकी है। वे गांव वालों को प्रेरित भी करते हैं। इसी के चलते कई ग्रामीण उनके इस काम में अब हाथ बंटाने लगे हैं या फिर अपनी तरफ से ऐसे ही काम करने लगे हैं। राणाराम के प्रयासों के लिए उन्हें वर्ष 2002 में जिला स्तर पर सम्मान भी मिल चुका है। काम कब और कहां से शुरू हुआ? इस पर वे कहते हैं, ‘ठीक से याद नहीं, लेकिन पहली बार मुकाम (बीकानेर में विश्नोई समाज का धार्मिक स्थान) गए थे। सबसे पहले वहीं पौधा लगाया। फिर यह सिलसिला चल निकला।’ उनकी आंखों में खुशी की चमक आ जाती है, जब वे कहते हैं, ‘पेड़ों की वजह से आंधियों में जगह छोड़ने वाले धोरे अब बंधने लगे हैं। रेतीली जमीन हरी-भरी हो गई है।’

मनोज शर्मा (09587655850)
 

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