एक्सपर्टस् कहते हैं कि किसी भरी-पूरी नदी से थोड़ी बहुत रेत निकाली जाए तो ज्यादा समस्या की बात नहीं है क्योंकि नदी अपने साथ खुद बालू लाती है, लेकिन यमुना की कहानी अलग है। एनजीओ 'यमुना जिए अभियान' के मनोज मिश्रा कहते हैं कि यह नदी पहले ही सूख चुकी है और पानी भी पर्याप्त नहीं आ रहा है। मशीनरी से खुदाई करने पर नदी की नैचरल टोपोग्राफी पर असर पड़ सकता है। गहरी खुदाई से नदी के अंदर झील बन जाएगी और जब ज्यादा पानी आएगा तो यमुना अपना रास्ता ही बदल देगी।
नेहा लालचंदानी,19 दिस. 2009, नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली
सिर्फ पलूशन ही यमुना को बर्बाद नहीं कर रहा है। दिल्ली में आकर नाले में तब्दील होने से पहले यमुना यूपी बॉर्डर पर वजीराबाद तक अपने पूरे बहाव से बहती थी। लेकिन अब रेत माफिया यहां इसका रास्ता बदलने में जुटा है। पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे यमुना की रेत लूटी जा रही है। यह रेत महंगी बिकती है और इसका इस्तेमाल बिल्डिंग बनाने में होता है।
पल्ला इलाके में यमुना को वजीराबाद कैनाल में मिलाया जाता है। इससे ठीक पहले रेत माफिया ने बीच नदी में ज्यादा रेत खोदने के लिए एक टापूनुमा जगह ऐसी बना दी है कि जिससे यमुना का रुख बॉर्डर की तरफ हो गया है। कुछ दिन पहले पुलिस ने छापा मारकर गैरकानूनी खुदाई के आरोप में चार लोगों को गिरफ्तार किया था।
इसके बाद हमारी टीम ने इलाके का दौरा किया तो दिखा कि वहां रेत की खुदाई बेरोकटोक जारी है। यहां दो बड़ी क्रेन की मदद से रेत निकाली जा रही थी जिसे लेकर ट्रक यूपी की तरफ को जा रहे थे। मौके पर पुलिस भी मौजूद थी, लेकिन माफिया के काम में कोई दखल नहीं दे रहा था। पुलिस कर्मचारियों का कहना था कि यह काम यूपी की तरफ से किया जा रहा है इसलिए वे कुछ नहीं कर सकते।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि कई बार जब रेत माफिया के कर्मचारी देखते हैं कि पुलिस आ रही है तो वे लोग अपनी क्रेन और गाड़ियां यूपी की तरफ ले जाते हैं। तकनीकी तौर पर नदी दिल्ली के अधीन है लेकिन पुलिस तभी कुछ कर सकती है जब संबंधित विभाग हमसे शिकायत करे। हमने इस बारे में बाढ़ नियंत्रण विभाग से कई बार शिकायत भी की है।
बताया जाता है कि रोज सैकड़ों ट्रक रेत निकाली जाती है और इस काम में आसपास गांवों के लोग शामिल हैं। हर ट्रक का माल 800 रुपये में बिकता है, जिसे कंस्ट्रक्शन के काम में इस्तेमाल किया जाता है। पुलिस के उलट गांव वालों का कहना है कि रेत निकालने वाले लोग दिल्ली से आते हैं। प्रताप चंद नाम के स्थानीय किसान के मुताबिक हमने उन्हें एकाध बार पकड़ा भी लेकिन उन्होंने हमारी फसल खराब कर दी। इलाके के एसडीएम आशीष मोहन का कहना था कि खुदाई करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
एक्सर्पट्स कहते हैं कि किसी भरी-पूरी नदी से थोड़ी बहुत रेत निकाली जाए तो ज्यादा समस्या की बात नहीं है क्योंकि नदी अपने साथ खुद बालू लाती है, लेकिन यमुना की कहानी अलग है। एनजीओ 'यमुना जिए अभियान' के मनोज मिश्रा कहते हैं कि यह नदी पहले ही सूख चुकी है और पानी भी पर्याप्त नहीं आ रहा है। मशीनरी से खुदाई करने पर नदी की नैचरल टोपोग्राफी पर असर पड़ सकता है। गहरी खुदाई से नदी के अंदर झील बन जाएगी और जब ज्यादा पानी आएगा तो यमुना अपना रास्ता ही बदल देगी। शहर के इन्फ्रास्ट्रक्चर को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।
नेहा लालचंदानी,19 दिस. 2009, नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली
सिर्फ पलूशन ही यमुना को बर्बाद नहीं कर रहा है। दिल्ली में आकर नाले में तब्दील होने से पहले यमुना यूपी बॉर्डर पर वजीराबाद तक अपने पूरे बहाव से बहती थी। लेकिन अब रेत माफिया यहां इसका रास्ता बदलने में जुटा है। पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे यमुना की रेत लूटी जा रही है। यह रेत महंगी बिकती है और इसका इस्तेमाल बिल्डिंग बनाने में होता है।
पल्ला इलाके में यमुना को वजीराबाद कैनाल में मिलाया जाता है। इससे ठीक पहले रेत माफिया ने बीच नदी में ज्यादा रेत खोदने के लिए एक टापूनुमा जगह ऐसी बना दी है कि जिससे यमुना का रुख बॉर्डर की तरफ हो गया है। कुछ दिन पहले पुलिस ने छापा मारकर गैरकानूनी खुदाई के आरोप में चार लोगों को गिरफ्तार किया था।
इसके बाद हमारी टीम ने इलाके का दौरा किया तो दिखा कि वहां रेत की खुदाई बेरोकटोक जारी है। यहां दो बड़ी क्रेन की मदद से रेत निकाली जा रही थी जिसे लेकर ट्रक यूपी की तरफ को जा रहे थे। मौके पर पुलिस भी मौजूद थी, लेकिन माफिया के काम में कोई दखल नहीं दे रहा था। पुलिस कर्मचारियों का कहना था कि यह काम यूपी की तरफ से किया जा रहा है इसलिए वे कुछ नहीं कर सकते।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि कई बार जब रेत माफिया के कर्मचारी देखते हैं कि पुलिस आ रही है तो वे लोग अपनी क्रेन और गाड़ियां यूपी की तरफ ले जाते हैं। तकनीकी तौर पर नदी दिल्ली के अधीन है लेकिन पुलिस तभी कुछ कर सकती है जब संबंधित विभाग हमसे शिकायत करे। हमने इस बारे में बाढ़ नियंत्रण विभाग से कई बार शिकायत भी की है।
बताया जाता है कि रोज सैकड़ों ट्रक रेत निकाली जाती है और इस काम में आसपास गांवों के लोग शामिल हैं। हर ट्रक का माल 800 रुपये में बिकता है, जिसे कंस्ट्रक्शन के काम में इस्तेमाल किया जाता है। पुलिस के उलट गांव वालों का कहना है कि रेत निकालने वाले लोग दिल्ली से आते हैं। प्रताप चंद नाम के स्थानीय किसान के मुताबिक हमने उन्हें एकाध बार पकड़ा भी लेकिन उन्होंने हमारी फसल खराब कर दी। इलाके के एसडीएम आशीष मोहन का कहना था कि खुदाई करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
एक्सर्पट्स कहते हैं कि किसी भरी-पूरी नदी से थोड़ी बहुत रेत निकाली जाए तो ज्यादा समस्या की बात नहीं है क्योंकि नदी अपने साथ खुद बालू लाती है, लेकिन यमुना की कहानी अलग है। एनजीओ 'यमुना जिए अभियान' के मनोज मिश्रा कहते हैं कि यह नदी पहले ही सूख चुकी है और पानी भी पर्याप्त नहीं आ रहा है। मशीनरी से खुदाई करने पर नदी की नैचरल टोपोग्राफी पर असर पड़ सकता है। गहरी खुदाई से नदी के अंदर झील बन जाएगी और जब ज्यादा पानी आएगा तो यमुना अपना रास्ता ही बदल देगी। शहर के इन्फ्रास्ट्रक्चर को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।