रोपड़

Submitted by Hindi on Tue, 08/23/2011 - 12:12
रोपड़ (30058 उत्तर अक्षांश, 76032 पूर्व देशांतर)  अंबाला से 97 किलोमीटर उत्तर, सतलज के बाएँ तट पर 21 मीटर ऊँचा टीला है। यहाँ सन्‌ 1953-55 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किए गए उत्खनन के फलस्वरूप, सिंधु संस्कृति (हड़प्पा संस्कृति) से आधुनिक काल के अवशेष मिले। इनका अनुक्रम छह संस्कृतिकालों में विभाजित किया गया है।

रोपड़ के प्रथम काल (लगभग 2000-1400 ई.पू.) के अवशेष सिंधु या हड़प्पा संस्कृति से संबंधित हैं। इनमें उल्लेखनीय हैं : सिंधु लिपि अंकित स्टिएटाइट की मुहर, पकी मिट्टी की मुद्रा छाप और पिष्ट, चर्ट पत्थर के चाकू, ताँबे के बर्तन व हथियार, मोती, फेएंस की चूड़ियाँ और सादे तथा चित्रित मिट्टी के बर्तन। प्रथम काल के पूर्वार्ध के मकान नदी के पत्थरों के बने थे और उत्तरार्ध के चूने के मिश्रपिंडाश्म काटकर बनाए गए थे। इसके अलावा पकी एव कच्ची ईटों का भी गृहनिर्माणार्थ प्रयोग होता था। इस युग के लोगों की शव-संस्कार-परंपरा का पता यहाँ से प्राप्त कर प्रलंबित शव समाधि से लगता है जिसमें मृतक का सिर उत्तर दिशा की ओर था तथा आसपास कुछ मिट्टी के पात्र रखे हुए थे।

अज्ञात कारणों से सिंधु संस्कृति के लोगों ने यह स्थान छोड़ दिया : कुछ साल बाद यहाँ एक नई बस्ती बसी जिसे रोपड़ के दूसरे काल (लगभग 1100-700 ई.पू.) में रखा गया है। सलेटी रंग के चित्रित मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग इस युग की विशेषता थी। इसके साथ ही उपरत्नों के बने मनके, हड्डी की सूइयाँ एवं शर और अनिश्चित आकार के मकान भी मिले।

रोपड़ के तीसरे संस्कृतिकाल (ई.पू. 600-200) से उपलब्ध मुख्य वस्तुएँ हैं : 'उत्तरी काली ओपदार कुंभकला' से संबद्ध कुंभखंड, आहत तथा ढले हुए लेखहीन सिक्के, ताँबे एवं लोहे के औजार, 'भदपालकस' लेखांकित एक हाथीदाँत की मुद्रा और एक पॉलिशदार मंडलाकार प्रस्तरखंड जिसपर मातृदेवी से संबद्ध आकृतियाँ सूक्ष्म रूप से खुदी हैं। इस प्रकार के पत्थर तक्षशिला, पटना, राजगृह, आदि से भी मौर्यकालीन स्तरों से प्राप्त हुए है। इस युग में मकान बनाने के लिए मिट्टी में बैठाए गए कंकर तथा उपलपिंड प्रयोग में लाते थे, यद्यपि कहीं कहीं मिट्टी और पकी ईटों के मकान भी मिले। एक साढ़े तीन मीटर चौड़ी पकी ईटों की धुनषाकार दीवार लगभग 76 मीटर तक पाई गई ; यह संभवत: किसी जलाशय के किनारे थी क्योंकि इस दीवार में एक प्रवेश मार्ग भी बना था जहाँ से बरसाती पानी जलाशय में प्रवेश पाता था। इस काल के ऊपरी स्तरों पर कुछ पकी मिट्टी के कूप भी मिले जो चक्राकार मंडलों को उत्तरोत्तर एक दूसरे पर रखकर बनाए गए थे।

रोपड़ का चतुर्थ संस्कृतिकाल ई.पू. 200 और 600 ईसवी में पड़ता है। इस काल के प्रथम चरण में पंजाब का कुछ भाग इंडोयूनानी शासकों के अधीन था तथा रोपड़ से प्राप्त अंतिआलकिदस (ई.पू. दूसरी शताब्दी), सोतेर मेगास उपाधिकारी राजा (लगभग 100 ई.) के सिक्के और अपोलोडोतस द्वितीय (ई.पू. प्रथम शताब्दी) की मुद्रा का मिट्टी का साँचा इसकी पुष्टि करते हैं। इन्हीं स्तरों से औदुंबर, कुणिंद और मथुरा के जनपदीय सिक्के भी प्राप्त हुए। इस काल के ऊपरी तलों से कुषाण सम्राट् वासुदेव के सिक्कों का समुदाय तथा 'चंद्रगुप्त कुमारदेवी प्रकार की एक सोने की गुप्तमुद्रा भी प्राप्त हुई। अन्य अवशेष हैं : शुंग तथा कुषाण शैली की मृण्मूर्तियाँ और गुप्तयुग के कुछ चाँदी के पात्र एवं मिट्टी की मूर्तियाँ। ऊपरी तहों में पाँचवीं छठी शताब्दियों के अक्षरों से अंकित कुछ मुद्राछापें भी मिलीं साधारण मृत्पात्रों के अतिरिक्त ठप्पे से दाबकर तथा उत्कीर्ण अभिप्रायांकित लाल रंग के मिट्टी के बर्तन इस काल में मिले हैं।

रोपड़ का पाँचवाँ सांस्कृतिक का लईसा की नवीं शताब्दी और बारहवीं शताब्दी के बीच में पड़ता है। अंतिम सांस्कृतिक काल की बस्ती कुछ काल के अंतर के बाद मुस्लिम सिक्के, काचित भांड और लखौरी ईटें इसके उदाहरण हैं।

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