रुड़की विश्वविद्यालय

Submitted by Hindi on Tue, 08/23/2011 - 09:33
रुड़की विश्वविद्यालय गंगा नहर के निर्माण में प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की आवश्यकता को पूरा करने के लिए 19 अक्टूबर, 1847 ई. को रुड़की कॉलेज की स्थापना हुई। सन्‌ 1852 से 1856 के काल में भवन-निर्माण-कार्य पूरा हुआ। प्रारंभ में तीन विभाग खोले गए। सन्‌ 1870 में ये (1) इंजीनियर, (2) अपर सबॅर्डिनेट तथा (3) लोअर सबॉर्डिनेट क्लास कहे जाते थे। उस समय तक विद्यार्थियों की संख्या 281 हो गई थी। पहले 20 वर्षों तक प्रथम दो विभागों में केवल अंग्रेज लिए जाते थे, किंतु सन्‌ 1870 से तीनों विभागों में भारतीय लिए जाने लगे।

सन्‌ 1882 से कॉलेज संयुक्त प्रांत (आधुनिक उत्तर प्रदेश) के शिक्षा विभाग के संरक्षण में आ गया। सन्‌ 1896 में यांत्रिक तथा एक वर्ष बाद विद्युत्‌ इंजीनियरी की कक्षाएँ खोली गई। एक औद्योगिक कक्षा, जिसमें मुद्रणकला, फोटोग्राफी तथा विविध हस्तकलाएँ सिखाई जाती थीं, पहले खोली गई, जिसे सन्‌ 1910 में शिल्पविज्ञान विभाग का रूप दे दिया गया। बीसवीं शताब्दी के आरंभ में यह कॉलेज संसार के अग्रगण्य इंजीनियरी शिक्षाकेंद्रों में था।

सन्‌ 1939 में सरकार द्वारा नियुक्त पुन:संगठन समिति ने इस, टॉमसन कॉलेज ऑव इंजीनियरिंग को विश्वविद्यालय का रूप देने का सुझाव दिया, किंतु द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण यह उस समय न हो सका। यह कार्य सन्‌ 1948 में, भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात्‌, पूरा हुआ। इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य संपूर्ण आधुनिक इंजीनियरी तथा तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्र में उच्च शिक्षण और अनुसंधान है। उत्तर प्रदेश के रुड़की नगर में, गंगा नहर के तट पर, समुद्रतलसे 880 फुट की ऊँचाई पर, 365 एकड़ भूमि में यह बसा है। स्वस्थ जलवायु तथा प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भारत के कुछ ही शिक्षाकेंद्र इतनी सुंदर स्थिति में है। हिमाच्छादित हिमालयशृंग शीत ऋतु में विश्वविद्यालय के प्रांगण पर पहरा देते से जान पड़ते हैं।

संगठन तथा शिक्षण- उत्तर प्रदेश के राज्यपाल इस विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त होते हैं तथा उपकुलपति संस्था के उच्चतम वैतनिक अधिकारी हैं। शासकीय समिति सिनेट (Senate) तथा कार्यकारिणी समिति सिंडिकेट (Syndicate) कहलाती है।

सन्‌ 1964 से विश्वविद्यालय में निम्नलिखित 11 शिक्षण विभाग हैं : (1) सिविल इंजीनियरी, (2) विद्युत्‌ इंजीनियरी, (3) यांत्रिक इंजीनियरी, (4) दूरसंचार इंजीनियरी, (5) रासायनिक इंजीनियरी, (6) धातुकर्म इंजीनियरी, (7) वास्तु शिल्प, (8) गणित, (9) भौतिकी, (10) रसायन विज्ञान तथा (11) भूविज्ञान।

इनके अंतर्गत निम्नलिखित पाठ्य्‌क्रम हैं :
(1) बी. ई. (B. E.), इंजीनियरी स्नातक परीक्षा। चार वर्ष का पाठ्‌यक्रम है तथा पूर्वस्नातक (undergraduates) जो गणित, भौतिकी तथा रसायन विज्ञान सहित परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हों, प्रवेश पाते हैं। बी. एससी. में उत्तीर्ण विद्यार्थियों के लिए सिविल तथा दूससंचार (tele-communication) पाठ्यक्रमों में दूसरे वर्ष भी कुछ स्थान सुरक्षित रखे जाते हैं, जो एक प्रवेश परीक्षा के आधार पर भरे जाते हैं।

(2) बी. आर्क. (B. Arch.), वास्तुशिल्प स्नातक। पाठ्यक्रम पाँच वर्ष का है और गणित के सहित उत्तीर्ण पूर्वस्नातक भरती किए जाते हैं।

(3) एम. ई. (M. E.), मास्टर ऑव इंजीनियरिंग। दो वर्ष की अवधि का उत्तर-स्नातक पाठ्यक्रम है।

(4) पी-एच.डी. (Ph. D.)। सब विभागों में अन्वेषण तथा अनसुंधान की सुविधाएँ हैं। परीक्षा के उपरांत यह उपाधि दी जाती है।

ऊपर लिखे 11 शिक्षण विभागों के अतिरिक्त निम्नलिखित विशेष विभाग भी हैं : (1) भूकंप इंजीनियरी अनुसंधान विद्यालय, (इस विषय की भारत में एकमात्र तथा अन्य देशों में केवल दो  जापान में एक तथा कैलिफॉर्निया, अमरीका, में एक  संस्थाएँ है); (2) जल-साधन-विकास प्रशिक्षण केंद्र तथा (3) इंजीनियरी सेवाओं के लिए नवीकर (Refresher) प्रशिक्षण, जिनकी अवधि प्राय: तीन महीने की होती है।

एशिया तथा अफ्रीका महाद्वीपों के अनेक देशों से विद्यार्थी इस विश्वविद्यालय में शिक्षा पाने के लिए आते हैं। इस संस्था ने इंजीनियरी तथा प्रविधि शिक्षणकी अग्रगण्य संस्थाओं में अपना स्थान सुरक्षित बना रखा है। (धनानंद पांडे)

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संदर्भ
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