51 वर्षीय रवींद्र पाठक भले ही गया के एक कालेज में प्राध्यापक हैं, लेकिन उन्होंने अपनी जिंदगी पर्यावरण संरक्षण के नाम कर दी है। पूरे दक्षिण बिहार में रवींद्र पाठक की तालाबों के जीर्णोद्धार के लिए चलाई गई मुहिम अब रंग दिखाने लगी है। अपने प्रयासों से गया में उन्होंने आठ से ज्यादा तालाबों को नई जिंदगी दी है। खास तौर पर गया और उसके आसपास के इलाकों में वे इन दिनों किसानों की सिंचाई समस्या का निदान कर रहे हैं।
सिंचाई की पुरानी प्रणाली 'आहर पइन' को भी उन्होंने नई जिंदगी दी है। पानी की कमी देखते हुए उन्होंने सबसे पहले परंपरागत जलस्रोत तालाबों और बावडियों के जीर्णोद्धार के लिए मानस बनाया। उन्होंने इसके लिए किसानों और फिर स्थानीय जनप्रतिनिधियों को अपने काम में शामिल किया। प्रशासन का भी सहयोग लिया और जुट गए तालाबों को नई जिंदगी देने में। भूमिगत जल को रिचार्ज करने के लिए भी उन्होंने आमजन को जागरूक किया। पानी का महत्व समझाया।
फिलहाल रवींद्र पाठक और उनके साथी फलगू नदी की प्रवाह क्षमता बढाने के लिए काम कर रहे हैं। इसके लिए नदी के किनारे सघन वृक्षारोपण के काम को वे आगे बढा रहे हैं। तालाबों के जीर्णोद्धार के अलावा उनकी सार-संभाल के लिए भी वे हमेशा तैयार रहते हैं। वाटर मैनेजमेंट पर उन्होंने 'मगध की जल व्यवस्था' नाम से एक किताब भी लिखी है।
सिंचाई की पुरानी प्रणाली 'आहर पइन' को भी उन्होंने नई जिंदगी दी है। पानी की कमी देखते हुए उन्होंने सबसे पहले परंपरागत जलस्रोत तालाबों और बावडियों के जीर्णोद्धार के लिए मानस बनाया। उन्होंने इसके लिए किसानों और फिर स्थानीय जनप्रतिनिधियों को अपने काम में शामिल किया। प्रशासन का भी सहयोग लिया और जुट गए तालाबों को नई जिंदगी देने में। भूमिगत जल को रिचार्ज करने के लिए भी उन्होंने आमजन को जागरूक किया। पानी का महत्व समझाया।
फिलहाल रवींद्र पाठक और उनके साथी फलगू नदी की प्रवाह क्षमता बढाने के लिए काम कर रहे हैं। इसके लिए नदी के किनारे सघन वृक्षारोपण के काम को वे आगे बढा रहे हैं। तालाबों के जीर्णोद्धार के अलावा उनकी सार-संभाल के लिए भी वे हमेशा तैयार रहते हैं। वाटर मैनेजमेंट पर उन्होंने 'मगध की जल व्यवस्था' नाम से एक किताब भी लिखी है।