नदियों, झीलों, झरनों, स्रोतों, चश्मों, जलप्रपातों एवं कुंडों से भरपूर हिमाचल प्रदेश नंदन कानन कश्मीर से सटा हुआ एक अनूठा पर्वतीय प्रदेश है। समुद्रतल से सात हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी है। कालका से शिमला तक पहुंचने का रेलमार्ग चमत्कृत कार्य है। शिमला से बस द्वारा नाहन होते हुए दराहू से दो फर्लांग पर रेणुका तीर्थ है। जमदग्नि पर्वत के पार्श्व में ये मनोहारी रेणुका झील समुद्र तल से 22,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित तीन कि.मी. लंबी, आधा कि.मी. चौड़ी है तथा मीठे जल से लबालब भरी है। इस झील के चारों ओर घने वृक्ष, लता गुल्म, घास की हरियाली से बिछी हरी चादर, रंग-बिरंगे फूलों के पौधे हैं। इस झील के पास ही गिरि नदी है। रेणुका झील मानव जैसे आकार की है।
यह झील पौराणिक है। इससे कई आख्यान जुड़े हैं। परशुराम की माता रेणुका देवी के नाम पर इसका नामकरण हुआ है। कहा जाता है कि एक बार वे नदी से स्नान कर लौट रही थीं कि उनकी निगाह जलकिल्लोल करते राजा चित्ररथ पर पड़ी। एक क्षण के लिए वे राजा के सौंदर्य को देखकर मुग्ध हो गयीं। दूसरे ही क्षण वे वापस आश्रम लौट चलीं। महर्षि जमदग्नि ने अपने योगबल से उनका भाव जाना और पुत्र परशुराम को आज्ञा दी कि वह अपनी माता का वध कर दे। आज्ञाकारी पुत्र ने तुरंत माता रेणुका का सिर काट दिया। पुत्र से प्रसन्न ऋषि ने पुत्र से वर मांगने के लिए कहा तो तुरंत परशुराम ने माता का जीवन मांगा। पुत्र को वर दिया था इसलिए उन्हें जीवित तो करना ही था इसलिए उन्हें जल रूप में परिवर्तित कर दिया। उसी स्थान पर एक विशाल झील बन गई। वही झील रेणुका झील कहलाती है। हर वर्ष यहां मेला लगाया जाता है उसमें माता-पुत्र के लम्बे जीवन की कामना की जाती है।
एक अन्य पौराणिक प्रसंग के अनुसार सहस्त्रबाहु नामक अत्याचारी राजा ने महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी और रेणुका देवी के पीछे भागा। उससे बचने के लिए रेणुका माता पर्वत की तलहटी पर पहुंची। देखते-ही-देखते धरती फट गयी और रेणुका माता उसमें समा गई। उस स्थान पर पानी ही पानी हो गया। तब ही से उसे रेणुका झील कहा जाता है। पास ही में जमदग्नि पर्वत है, जहां हर नवम्बर अथवा कार्तिक में अष्टमी से पूर्णिमा तक मेला लगता है जो दीपावली से दस दिन बाद प्रारम्भ होता है। रेणुका झील में स्नान कर उस झील की परिक्रमा करते हैं तथा रेणुका माता के दर्शन करते हैं। इस झील के पास ही महर्षि परशुराम के नाम पर एक छोटी सी झील है, जिसका नाम परशुराम ताल है। यहां परशुराम मंदिर तथा अन्य कई मंदिर हैं। इस झील के किनारे एक विशाल चिड़ियाघर एवं पशु-पक्षी विहार का विकास किया गया है। रेणुका झील में पर्यटकों के लिए नौका-विहार की सुविधाएं उपलब्ध हैं। सन् 1984 से ‘श्री रेणुका विकास बोर्ड’ द्वारा राज्य सरकार इस पावन क्षेत्र के विकास में संलग्न है।
यह झील पौराणिक है। इससे कई आख्यान जुड़े हैं। परशुराम की माता रेणुका देवी के नाम पर इसका नामकरण हुआ है। कहा जाता है कि एक बार वे नदी से स्नान कर लौट रही थीं कि उनकी निगाह जलकिल्लोल करते राजा चित्ररथ पर पड़ी। एक क्षण के लिए वे राजा के सौंदर्य को देखकर मुग्ध हो गयीं। दूसरे ही क्षण वे वापस आश्रम लौट चलीं। महर्षि जमदग्नि ने अपने योगबल से उनका भाव जाना और पुत्र परशुराम को आज्ञा दी कि वह अपनी माता का वध कर दे। आज्ञाकारी पुत्र ने तुरंत माता रेणुका का सिर काट दिया। पुत्र से प्रसन्न ऋषि ने पुत्र से वर मांगने के लिए कहा तो तुरंत परशुराम ने माता का जीवन मांगा। पुत्र को वर दिया था इसलिए उन्हें जीवित तो करना ही था इसलिए उन्हें जल रूप में परिवर्तित कर दिया। उसी स्थान पर एक विशाल झील बन गई। वही झील रेणुका झील कहलाती है। हर वर्ष यहां मेला लगाया जाता है उसमें माता-पुत्र के लम्बे जीवन की कामना की जाती है।
एक अन्य पौराणिक प्रसंग के अनुसार सहस्त्रबाहु नामक अत्याचारी राजा ने महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी और रेणुका देवी के पीछे भागा। उससे बचने के लिए रेणुका माता पर्वत की तलहटी पर पहुंची। देखते-ही-देखते धरती फट गयी और रेणुका माता उसमें समा गई। उस स्थान पर पानी ही पानी हो गया। तब ही से उसे रेणुका झील कहा जाता है। पास ही में जमदग्नि पर्वत है, जहां हर नवम्बर अथवा कार्तिक में अष्टमी से पूर्णिमा तक मेला लगता है जो दीपावली से दस दिन बाद प्रारम्भ होता है। रेणुका झील में स्नान कर उस झील की परिक्रमा करते हैं तथा रेणुका माता के दर्शन करते हैं। इस झील के पास ही महर्षि परशुराम के नाम पर एक छोटी सी झील है, जिसका नाम परशुराम ताल है। यहां परशुराम मंदिर तथा अन्य कई मंदिर हैं। इस झील के किनारे एक विशाल चिड़ियाघर एवं पशु-पक्षी विहार का विकास किया गया है। रेणुका झील में पर्यटकों के लिए नौका-विहार की सुविधाएं उपलब्ध हैं। सन् 1984 से ‘श्री रेणुका विकास बोर्ड’ द्वारा राज्य सरकार इस पावन क्षेत्र के विकास में संलग्न है।
Hindi Title
रेणुका झील
अन्य स्रोतों से
रेणुका लेक (लाइव हिन्दुस्तान से)
प्राकृतिक खूबसूरती व आस्था का संगम
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित रेणुका लेक भी आस्थाओं से जुड़ी है। यह एक पर्यटक स्थल के रूप में तो काफी लोकप्रिय हो ही चुकी है, यह मुख्य रूप से धर्म स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है। यहां के मुख्य मंदिर, जिसे मठ कहा जाता है, में प्रमुख रूप से देवी रेणुका की प्रतिमा अवस्थित है। कहते हैं भगवान परशुराम ने यहां अपनी मां रेणुका को मार दिया था। इस लेक का आकार भी किसी सोई हुई महिला की तरह है। यहां एक छोटा-सा चिड़ियाघर भी है और 400 हेक्टेयर में फैला एक अभयारण्य भी है, जिसमें तरह-तरह की जड़ी-बूटियां तो हैं ही, चीतल, सांभर आदि जीव भी हैं। इन सबमें में पर्यटकों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय है रेणुका लेक, जो हिमाचल की सबसे बड़ी प्राकृतिक लेक भी कहलाती है।
हिमाचल टूरिज्म द्वारा पर्यटकों के लिए यहां तमाम तरह की व्यवस्था की गई है। यहां प्राकृतिक माहौल का आनन्द उठाने से लेकर लेक में बोटिंग करने आदि की व्यवस्था तो है ही, ठहरने की भी अच्छी व्यवस्था है। यहां पहुंचना भी काफी आसान है, क्योंकि दिल्ली से 315 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह लेक आसपास के भी तमाम शहरों से अच्छी तरह जुड़ी है। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन यमुनानगर 106 किमी है। चंडीगढ़ से रेणुका की दूरी 123 किमी है जबकि शिमला से 165 किमी है। आप जब भी यहां आएं, हिमाचल प्रदेश टूरिज्म से पर्याप्त जानकारी प्राप्त कर लें।