साबुन

Submitted by Hindi on Sat, 08/27/2011 - 16:19
साबुन बसा अम्लों के जलविलेय लवण हैं। ऐसा वसा अम्लों में 6 से 22 कार्बन परमाणु रह सकते हैं। साधारणतया वसा अम्लों से साबुन नहीं तैयार होता। वसा अम्लों के ग्लिसराइड प्रकृति में तेल और वसा के रूप में पाए जाते हैं। इन ग्लिसराइडों से ही दाहक सोडा के साथ द्विक अपघटन से संसार का अधिकांश साबुन तैयार होता है। साबुन के निर्माण में उपजात के रूप में ग्लिसरीन प्राप्त होता है जो बड़ा उपयोगी पदार्थ है (देखें ग्लिसरीन)।

उत्कृष्ट कोटि के शुद्ध साबुन बनान के दो क्रम हैं: एक क्रम में तेल और वसा का जल अपघट होता है जिससे ग्लिसरीन और वसा अम्ल प्राप्त होते हैं। आसवन से वसा अम्लों का शोधन हो सकता है। दूसरे क्रम में वसा अम्लों को क्षारों से उदासीन करते हैं। कठोर साबुन के लिए सोडा क्षार और मुलायम साबुन के लिए पोटैश क्षार इस्तेमाल करते हैं।

साबुन के कच्चे माल- बड़ी मात्रा में साबुन बनाने में तेल और वसा इस्तेमाल होते हैं। तेलों में महुआ, गरी, मूँगफली, ताड़, ताड़ गुद्दी, बिनौले, तीसी, जैतून तथा सोयाबीन के तेल, और जांतव तैलों तथा वसा में मछली एवं ह्वेल की चरबी और हड्डी के ग्रीज (grease) अधिक महत्व के हैं। इन तेलों और वसा के अतिरिक्त रोज़िन भी इस्तेमाल होता है।

अधिकांश साबुन एक तेल से नहीं बनते, यद्यपि कुछ तेल ऐसे हैं जिनसे साबुन बन सकता है। अच्छे साबुन के लिए कई तेलों अथवा तेलों और चरबी को मिलाकर इस्तेमाल करते हैं। भिन्न-भिन्न कामों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के साबुन बनते हैं। धुलाई के लिए साबुन सस्ता होना चाहिए। नहाने वाला साबुन महंगा भी रह सकता है। तेलों के वसा अम्लों के टाइटर, तेलों के आयोडीन मान, साबुनीकरण मान और रंग महत्व के हैं (देखें तल, बसा और मोम)। टाइटर के साबुन की विलेयता का, आयोडीन मान से तेलों की असंतृप्ति का और साबुनीकरण मान से वसा अम्लों के अणुभार का पता लगता है और कुछ के लिए ऊँचे टाइटर वाला। असंतृप्त वसा अम्लों वाला साबुन रखने से साबुन में से पूतिगंध आती है। कम अणुभार वाले अम्लों के साबुन चमड़े पर मुलायम नहीं होते।

तेल के रंग पर ही साबुन का रंग निर्भर करता है। सफेद साबुन के लिए तेल और रंग की सफाई नितांत आवश्यक है। तेल की सफाई तेल में थोड़ा सोडियम हाइड्रॉक्साइट का विलयन डालकर गरम करने से होती है। तेल के रंग की सफाई तेल को वायु के बुलबुले और भाप पारित कर गरम करने से अथवा सक्रियित सरध्रं फुलर मिट्टी के साथ गरम कर छानने से होती है। साबुन में रोज़िन के अम्ल का सोडियम लवण बनता है। यह साबुन सा ही काम करता है। रोज़िन की मात्रा 25 प्रतिशत से अधिक नहीं रहनी चाहिए। सामान्य साबुन में यह मात्रा प्राय: 5 प्रतिशत रहती है। साबुन के चूर्ण में रोज़िन नहीं रहता। रोज़िन से साबुन में पूतिगंध नहीं आती। साबुन को मुलायम अथवा जल्द घुलने वाला और चिपकने वाला बनाने के लिए उसमें थोड़ा अमोनिया या ट्राइ-इथेनोलैमिन मिला देते हैं। हजामत बनाने में प्रयुक्त होने वाले साबुन में उपर्युक्त रासायनिक द्रव्यों को अवश्य डालते हैं।

साबुन का निर्माण- साबुन बनाने के लिए तेल या वसा को दाहक सोडा के विलयन के साथ मिलाकर बड़े-बड़े कड़ाहों या केतली में उबालते हैं। कड़ाहे भिन्न-भिन्न आकार के हो सकते हैं। साधारणतया 10 से 150 टन जलधारिता के ऊर्ध्वाधार सिलिंडर मृदु इस्पात के बने होते हैं। ये भापकुंडली से गरम किए जाते हैं। धारिता के केवल तृतीयांश ही तेल या वसा से भरा जाता है।

कड़ाहे में तेल और क्षार मिलाने और गरम करने के तरीके भिन्न-भिन्न कारखानों में भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। कहीं-कहीं कड़ाहे मे तेल रखकर गरम कर उसमें सोडा द्राव डालते हैं। कहीं-कहीं एक ओर से तेल ले आते और दूसरी ओर सोडा विलयन ले आकर गरम करते हैं। प्राय: 8 घंटे तक दोनों को जोरों से उबालते हैं। अधिकांश तेल साबुन बन जाता है और ग्लिसरीन उन्मुक्त होता है। अब कड़ाहें में नमक डालकर साबुन का लवणन (salting) कर निथरने को छोड़ देते हैं। साबुन ऊपरी तल पर और जलीय द्राव निचले तल पर अलग-अलग हो जाता है। निचले तल के द्राव में ग्लिसरीन को निकाल लेते हैं। साबुन में क्षार का सांद्र विलयन (8 से 12 प्रतिशत) डालकर तीन घंटे तक फिर गरम करते हैं। इसे साबुनीकरण परिपूर्ण हो जाता है। साबुन को फिर पानी से धोकर 2 से 3 घंटे उबालकर थिराने के लिए छोड़ देते हैं। 36 से 72 घंटे रखकर ऊपर के स्वच्छ चिकने साबुन को निकाल लेते हैं। ऐसे साबुन में प्राय: 33 प्रतिशत पानी रहता है। यदि साबुन का रंग कुछ हल्का करना हो, तो थोड़ा सोडियम हाइड्रोसल्फाइट डाल देते हैं।

इस प्रकार साबुन तैयार करने में 5 से 10 दिन लग सकते हैं। 24 घंटे में साबुन तैयार हो जाए ऐसी विधि भी अब मालूम है। इसमें तेल या वसा को ऊँचे ताप पर जल अपघटित कर वसा अम्ल प्राप्त करते और उसको फिर सोडियम हाइड्रॉक्साइड से उपचारित कर साबुन बनाते हैं। साबुन को जलीय विलयन से पृथक्‌ करने में अपकेंद्रित का भी उपयोग हुआ है। आज ठंडी विधि से भी थोड़ा गरम कर सोडा विलयन के साथ उपचारित कर साबुन तैयार होता है। ऐसे तेल में कुछ असाबुनीकृत तेल रह जाता है। तेल का ग्लिसरीन भी साबुन में ही रह जाता है। यह साबुन निकृष्ट कोटि का होता है। पर अपेक्षया सस्ता होता है। अर्ध-क्वथन विधि से भी प्राय: 80सें. तक गरम करके साबुन तैयार हो सकता है। मुलायम साबुन, विशेषत: हजामत बनाने के साबुन, के लिए यह विधि अच्छी समझी जाती है।

यदि कपड़ा धोने वाला साबुन बनाना है, तो उसमें थोड़ा सोडियम सिलिकेट डालकर, ठंढा कर, टिकियों में काटकर उस पर मुद्रांकण करते हैं। ऐसे साबुन में 30 प्रतिशत पानी रहता है। नहाने के साबुन में 10 प्रतिशत के लगभग पानी रहता है। पानी कम करने के लिए साबुन को पट्टवाही पर सुरंग किस्म के शोषक में सुखाते हैं।

यदि नहाने का साबुन बनाना है, तो सूखे साबुन को काटकर आवश्यक रंग और सुगंधित द्रव्य मिलाकर पीसते हैं, फिर उसे प्रेस में दबाकर छड़ बनाते और छोटा-छोटा काटकर उसको मुद्रांकित करते हैं। पारदर्शक साबुन बनाने में साबुन को ऐल्कोहॉल में घुलाकर तब टिकिया बनाते हैं।

धोने के साबुन में कभी-कभी कुछ ऐसे द्रव्य भी डालते हैं जिनसे धोने की क्षमता बढ़ जाती है। इन्हें निर्माण द्रव्य कहते हैं। ऐसे द्रव्य सोडा ऐश, ट्राइ-सोडियम फ़ास्फ़ेट, सोडियम मेटा सिलिकेट, सोडियम परबोरेट, सोडियम परकार्बोनेट, टेट्रा-सोडियम पाइरों-फ़ास्फ़ेट और सोडियम हेक्सा-मेटाफ़ॉस्फ़ेट हैं। कभी-कभी ऐसे साबुन में नीला रंग भी डालते हैं जिससे कपड़ा अधिक सफेद हो जाता है। भिन्न-भिन्न वस्त्रों, रूई, रेशम और ऊन के तथा धातुओं के लिये अलग-अलग किस्म के साबुन बने हैं। निकृष्ट कोटि के नहाने के साबुन में पूरक भी डाले जाते हैं: पूरकों के रूप में केसीन, मैदा, चीनी और डेक्सट्रिन आदि पदार्थ प्रयुक्त होते हैं।

धुलाई की प्रक्रिया- साबुन से वस्त्रों के धोने पर मैल कैसे निकलती है इस पर अनेकश् निबंध समय-समय पर प्रकाशित हुए हैं। अधिकांश मैल तेल किस्म की होती है। ऐसे तेल वाले वस्त्र को जब साबुन के साथ मिलकर छोटी-छोटी गुलिकाएँ बन जाता है, जो कचारने से वस्त्र से अलग हो जाती है। ऐसा यांत्रिक विधि से हो सकता है अथवा साबुन के विलयन में उपस्थित वायु के छोटे-छोटे बुलबुलों के कारण हो सकता है। गुलिकाएँ वस्त्र से अलग ही तल पर तैरने लगती हैं।

साबुन के पानी में घुलाने से तेल और पानी के बीच का अंत: सीमीय तनाव बहुत कम हो जाता है। इससे वस्त्र के रेशे विलयन के घनिष्ठ संस्पर्श में आ जाते हैं और मैल के निकलने में सहायता मिलती है। मैले कपड़े को साबुन के विलयन प्रविष्ट कर जाता है जिससे रेशे की कोशिओं से वायु निकलने में सहायता मिलती है।

ठीक-ठीक धुलाई के लिए यह आवश्यक है कि वस्त्रों से निकली मैल रेशे पर फिर जम न जाए। साबुन का इमलशन ऐसा होने से रोकता है। अत: इमलशन बनने का गुण बड़े महत्व का है। साबुन में जलविलेय और तेलविलेय दोनों समूह रहते हैं। ये समूह तेल बूँद की चारों ओर घेरे रहते हैं। इनका एक समूह तेल में और दूसरा जल में धुला रहता है। तेल बूँद में चारों ओर साबुन की दशा में केवल ऋणात्मक वैद्युत आवेश रहते हैं जिससे उनका सम्मिलित होना संभव नहीं होता। (फूलदेव सहाय वर्मा)

Hindi Title


विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)




अन्य स्रोतों से




संदर्भ
1 -

2 -

बाहरी कड़ियाँ
1 -
2 -
3 -