साहारा मरुस्थल

Submitted by Hindi on Mon, 08/29/2011 - 09:53
साहारा मरुस्थल संसार का सबसे बड़ा मरुस्थल है जो अफ्रीका महाद्वीपों के उत्तरी भाग में स्थित है। इस प्रदेश में वर्षा बहुत कम होती है। यहाँ कई सूखी नदियाँ हैं जिन्हें 'वाडिया' कहते हैं। इनमें पानी केवल वर्षा के समय ही कुछ दिनों तक रहता है अन्यथा ये सूखी रहती हैं। यहाँ की जलवायु बहुत विषम है। दिन में अत्यधिक गर्मी होती है और रात में काफी जाड़ा पड़ता है।

इस प्रदेश का अधिकतर भाग रेतीला है। यहाँ वर्षा न होने के कारण वनस्पतियों का प्राय: अभाव है। कहीं-कहीं कुछ बबूल, कीकर तथा कँटीली झाड़ियाँ मिल जाती हैं। इनकी जड़ें काफी लंबी और गहराई तक होती हैं तथा पत्तियाँ काँटेदार और छाल मोटी होती है ताकि नमी का अभाव न हो। जहाँ पानी की थोड़ी सुविधा होती है वहाँ मरुस्थल पाए जाते हैं जिनके निकट खजूर होते हैं और गेहूं, जौ, बाजरा तथा मक्के की खेती होती है। इन्हीं मरुद्यानों के निकट कुछ लोग रहते हैं जो भेड़, बकरी तथा ऊँट पालते हैं। घास समाप्त होने पर ये अपने जानवरों के साथ अन्य चरागाहों की खोज में घूमते फिरते हैं ये यायावर या बद्दू बंजारे कहलाते हैं। ये झगड़ालू भी होते हैं।

साहारा मरुस्थल में यातायात की बड़ी कठिनाई है। यहाँ के मरुद्यान तथा ऊँटों ने यात्रा को बहुत कुछ संभव और सुलभ बनाया है। मरुद्यानों से होते हुए कारवाँ मार्ग जाते हैं। आजकल पश्चिमी एवं उत्तरी साहारा के कई स्थानों में खनिजों के प्राप्त हो जाने से उनके केंद्रों तक मोटर लारियाँ, ऊँट और रेलें तीनों ही जाती हैं। यहाँ के रहने वाले कारवाँ के व्यापारियों को खजूर, चटाइयाँ, कंबल तथा चमड़े के थैले, पेटी आदि देकर बदले में चीनी, कपड़ा आदि कई लाभदायक वस्तुएँ प्राप्त करते हैं। (रामसहाय खरे)

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