साइक्लोस्टोमाटा (Cyclostomata)

Submitted by Hindi on Sat, 08/27/2011 - 15:23
साइक्लोस्टोमाटा (Cyclostomata) जलीय जंतुओं का एक समूह है जिसमें अधिकांश समुद्री जंतु है, पर कुछ नदी और झीलों में भी पाए जाते हैं। इस समूह में निम्न स्तर के जबड़ेहीन मत्सरूपी कशेरुकी चक्रमुखी (Cyclostomes) पाए जाते हैं, जिनके साथी सिल्यूरियन या डिवोनी कल्प में लुप्त हो चुके हैं। इनके मुख्य लक्षण ये हैं: शरीर लंबा, पतला और सर्पमीन आकार का होता है, केवल मध्यवर्ती पंख (fin) होते हैं और युग्म पंख तथा जबड़ा नहीं होता, चर्म पर शुल्क भी नहीं होता, मुँह गोलाकार, चूषक और तटी कूटयुक्त होता है, करोटि (खोपड़ी), कशेरुदंड तथा पंख के कंकाल उपास्थि (cartilage) के बने होते हैं, 6 से 14 गिल, फलक ग्रसनी (pharyax) के दोनों ओर पाए जाते हैं, केवल दो ही अर्ध गोलाकार नलियाँ अंत:कर्ण में पाई जाती हैं तथा इनके जीवन में बहुधा एक लार्वा होताहै जिसको एमोसीटीज (Ammococtes) कहते हैं।

चक्रमुखी (hary) यद्यपि मत्स्यरूपी होने के कारण मत्स्य जाति ही में गिने जाते थे, तथापि ये अब कशेरुकी के निम्न वर्ग में रखे जाते हैं और इनका वर्ग, मत्स्य जलस्थलचर, सरीसृप, पक्षिवर्ग, और स्तनी वर्ग के समान एक विशेष वर्ग है।

चक्रमुखी को कशेरुकी में रखने के निम्नलिखित कई कारण हैं: (क) मेरुरज्जु (hary), जिसका अगला भाग मस्तिष्क बनाता है, खोखली और पृष्ठस्थ होती है, (ख) युग्म नेत्र और अंत:कर्ण होते हैं, (ग) कशेरु दंड बनना आरंभ होता है, जिसका अगला भाग करशेटि बन जाता है, (घ) लाल और श्वेत रुधिर केशिकाएँ मिलती हैं। परंतु चक्रमुखी अन्य कशेरुकी प्राणियों से निम्नलिखित कारणों से भिन्न हैं: (क) इनके सिर का कोई निर्णय नहीं किया जा सकता, (ख) युग्म पंख या पंख वलय नहीं होते, (ग) जबड़े नहीं होते और कशेरुदंड भी पूरा नहीं बनता है तथा (घ) जनन नली नहीं होती है।

रूसी वैज्ञानिक बर्ग ने 1940 ई. में मत्स्यों का जो नया वर्गीकरण किया है उसे आज सभी मत्स्यविज्ञानी (hary) मानते हैं। उन्होंने साइक्लोस्टोमाटा को दो वर्गों में विभाजित किया है: पेट्रोमाइज़ॉनिज़ (Petromyzones) और मिक्सिनाई (Myxini)। पेट्रोमाइज़ॉनिज़ वर्ग में एक गण पेट्रोमाइज़ॉनिज़ फ़ॉर्मीज़ (Petrcomyzoni formes) और एक ही कुल पेट्रोमाइज़ॉनटाइडी (Petromyzontidea) है। इसमें दो वंश हैं: (1) पेट्रोमाइजॉन (Petromyzon) और (2) मॉन्डेशिया (Mordacia)। पहला वंश उत्तरी गोलार्ध में तथा दूसरा वंश दक्षिणी गोलार्ध में मिलता है। समुद्री पेट्रोमाइजॉन की पेट्रोमाइजॉन मेराइनम (P. marinus) और नदी नाले वाले को पेट्रोमाइजॉन फ्लूवियाटिलिस (P. fluviatilis) कहते हैं। मिक्सिनाइ वर्ग में भी एक ही गण मिक्सिनि फ़ार्मीज़ (Myxini formes) है परंतु इसके तीन कुल (families) हैं: (1) डेलोस्टोमाटाइडी (Bdellostomatidae), जिसमें डेलोस्टोमा (Bdellostoma) वंश है, (2) पैरामिक्सिनाइडी (Paramyxinidae), जिसका उदाहरण पैरामिक्साइन (Paramyxinidae) वंश है और (3) मिक्सीनॉइडी (Myxine) वंश विख्यात है। मिक्सिनाइ के कुछ मुख्य गुण ये हैं: (क) शरीर बामी के आकार का, चर्म शल्कहीन और कंकाल अस्थिहीन होता है, (ख) गिलकंकाल अपूर्ण और कशेरु नहीं होते, मुखगुहा छोटी और एक दाँत वाली होती है, (ग) इनकी आँखें चर्मावृत होती है, जिनमें न तो चक्षु पेशी और न चक्षुनाड़ी होती है तथा (घ) दोनों अर्धगोलाकार नलियाँ सम्मिलित हो जाने से एक ही अंत:कर्ण नली दिखाई देती है।

चक्रमुखी बामी के आकार के और एक से लेकर तीन फुट तक लंबे होते हैं। इनका चर्म बहुधा श्लेष्मायुक्त होता है, और मिक्साइनी में अधिक श्लेष्मा के कारण ये बहुत ही रपटीले होते हैं। गोलाकार चूषक मुँह के चारों ओर श्रृंगी दाँत (hornyteeth) होते हैं और बीचोबीच पिस्टन (piston) सदृश आगे-पीछे चलने वाली जिह्वा होती है। इनमें आमाशय नहीं होता और ग्रसिका (oesaphagus) के दो भाग होते हैं: (1) पृष्ठस्थ आहारनाल और (2) उदरस्थ श्वसननाल। यकृत के साथ पित्त नली नहीं बनती और क्लोम का निर्णय नहीं हुआ है।

श्वसन 7 से लेकर 14 गिलों द्वारा होताहै जिनमें गिल दरारों से ही पानी गिल थैली के भीतर भी जाता है और बाहर भी (ऐसा किसी मछली में नहीं होता)। करोटी (खोपड़ी) की रचना बहुत-सी उपास्थियों (cartilages) से होती है, ऐसा अन्यान्य कशेरुकियों में नहीं पाया जाता। गिल समूह को सँभालने के लिए गिलतोरणों द्वारा एक क्लोम कड़ी (branchial basket) बन जाता है, जिसके पश्च देश में एक प्याले जैसी हृदयावरणी नामक उपास्थि हृदय को स्थित रखती है। रुधिर नलिकाओं में यकृत केशिकांतक संस्थान तो होता है, परंतु वृक्कीय केशिकांतक संस्थान नहीं हो। चक्रमुखी को सामान्य युग्म नेत्रों के अतिरिक्त शिवनेत्र जैसा मध्यवर्ती पिनियल नेत्र (pineal eye) भी होता है जो लेंस और दृष्टिपटल (retina) सहित पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इनमें पीयूष काय (Pituitary body) भी होता है, जो कशेरुकी प्राणियों के पीयूष काय के सदृश होता है। इनके एमोसीटीज में एंडोस्टाइल (Endostyle) पाया जाता है, जो ऐंफिऑक्सस (Amphioxus) और ऐसिडियन (Ascidian) के एंडोस्टाइल के सदृश होता है। पेट्रोमाइजॉनिज़ की सुषुम्ना नाड़ी में पृष्ठस्थ और उदरस्थ मूल अलग ही रह जाते हैं और अंत:कर्ण में दो ही अर्धगोलाकार नलियाँ होती हैं (जबकि और कशेरुकियों में तीन नलियाँ होती हैं), क्योंकि क्षैतिज (पट्ट) नलिका नहीं होती।

चक्रमुखी समुद्र में 900 फुट की गहराई तक पाए जाते हैं, जैसे पेट्रोमाइज़ॉन मेराइनस परंतु कुछ अपना जीवन नदी नालों के मीठे जल में बिताते हैं, जैसे पेट्रोमाइज़ॉन फ्लूवियाटिलिस। यह उत्तरी और दक्षिणी अमरीका तथा यूरोप और आस्ट्रेलिया में पाया जाता है। भारत के नदी, नालों या समुद्रों में चक्रमुखी ही नहीं पाए जाते। ये अपने चूषक मुँह से बड़ी मछलियों के शरीर पर चिपक जाते हैं और उनके रुधिर एवं मांस का आहार करते रहते हैं। इनकी छीलने वाली जिह्वा से एक छिद्र बन जाता है जिसमें चक्रमुखी अपना प्रतिस्कंद (anticoagulent) रस डाल देता है। यह रस बड़ी मछली का रुधिर जमने नहीं देता, फलत: रुधिर गिरना बंद नहीं होता और चक्रमुखी के मुँह में सदा जाता रहता है। इसके आक्रमण से बड़ी-बड़ी मछलियाँ तक मर जाती हैं। जब चक्रमुखी मछलियों पर स्थापित नहीं होते, तब अपनी शक्ति से समुद्र या नदियों में तैरते रहते हैं और प्राय: जल में डूबे पत्थरों या चट्टानों पर चिपके रहते हैं।

मिक्साइन में ऐसी भी जातियाँ हैं, जो भिन्न-भिन्न मछलियों के शरीर के भीतर प्रवेश कर रुधिर और मांस सब खा लेती हैं, केवल अस्थि और चर्म बाकी रह जाता है। ऐसा पूर्ण परजीवी किसी भी कशेरुकी में नहीं पाया जाता। परंतु हाल ही में गहरे समुद्र की एक बामी मछली का पता चला है जिसका नाम साइमेनकेलिज (Simenchelys) रखा गया है। यह मिक्साइन के सदृश बड़ी मछलियों के शरीर में छिद्र बनाकर उनके भीतर परजीवी बन जाती है।

पेट्रोमाइज़ॉन के लिंग पृथक्‌-पृथक्‌ होते हैं। नर और मादा जनन के समय बड़ी मछलियों को बाहिनी बनाकर नदियों में बहुत दूर तक चले जाते हैं। यहाँ नदी नालों के तल पर छोटे-छोटे कंकड़ों का घोंसला बनाकर उसमें मादा अंडे देती है। नर तब अपना शुक्र अंडों पर निष्कासित करता है और निषेचन होता है। अंडों से एमोसीटीज लार्वा निकलता है, जो अंग्रेजी में U की आकृति जैसे केंद्रीय नल में रहता है। यह रुधिर एवं मांस का आहार नहीं कर सकता पर अपनी ग्रसनी (pharynx) से छोटे-छोटे जल प्राणियों को ऐंफिऑक्सस या ऐंसिडियन की तरह खाता है। समुद्री पेट्रोमाइज़ॉन इन्हीं एमो सीटीज लार्वा से बनता है, क्योंकि जितने भी वयस्क पेट्रोमाइज़ॉन समुद्र से नदी में जनन क्रिया के लिए जाते हैं वे सब वहीं मर जाते हैं, और समुद्र में लौटकर नहीं आते (यह ऐंग्बिला ऐंग्बिलाईल मछली के बिलकुल विपरीत है, क्योंकि ईल नदी से समुद्र में जनन के लिए जाती हैं, और लौटकर नदियों में आतीं, वे वहीं मर जाती हैं)।

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संदर्भ
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