सार्वजनिक जल का सशक्तीकरण-कुछ तरीके

Submitted by Hindi on Fri, 02/18/2011 - 12:24
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इंडियन सोशल एक्शन फोरम (इंसाफ)
निजीकृत जलापूर्ति और अपर्याप्त, राज्य संचालित जल सेवा दोनों के व्यावहारिक विकल्प साफ तौर पर मौजूद हैं। इसलिए सवाल यह नहीं है कि सार्वजनिक जल काम कर पाता है या नहीं, सवाल यह है कि क्या किया जाये कि वह काम करे। पिछले दशक में निजी क्षेत्र के संवर्धन के साथ विचारधारात्मक रूप से गहरा लगाव होने के कारण इस सवाल पर नीति विषयक चर्चाओं और निर्णय प्रक्रिया में जितना ध्यान दिया जाना चाहिए था उसका शतांश भी नहीं दिया गया। जैसा कि परिचयात्मक अध्याय में बताया गया है, अनेक बड़े नामों वाले और बड़ी छवि वाले निजीकरण के प्रयासों के विफल होने, विकासशील देशों से पानी की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हटने तथा निजीकरण के प्रचारकों और समर्थकों के बीच भी यह स्वीकार लिये जाने के परिणामस्वरूप कि निजी निवेश से गरीबों का कोई भला न होगा, अब एक एकदम बुनियादी तौर पर नई स्थिति सामने आई है। सार्वजनिक सेवाओं के काम को और उनके कार्यक्षेत्र को बहुत बढ़ाने पर ध्यान पुनः केंद्रित किये जाने की आवश्यकता अब स्पष्ट है। इस पुस्तक का उद्देश्य इस काम में योगदान देना है, हालांकि यह काम बहुत पहले ही किया जाना चाहिए था।

सार्वजनिक जल के ये जनकेंद्रित समाधान भिन्न-भिन्न सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिस्थितियों के तहत हुए हैं। इनके उदाहरणों में पोर्टो अलेग्रे (ब्राजील), सांता क्रुज (बोलीविया) और पेनांग (मलेशिया) में सार्वजनिक सेवाओं और सहकारिताओं की उपलब्धियां, काराकास (वेनेजुएला), हैरीस्मिथ (दक्षिण अफ्रीका) और ब्यूनोज़ आयर्स प्रांत (अर्जेटीना) के प्रयोगधर्मी सार्वजनिक माडलों द्वारा प्राप्त किये गये संशोधन, तथा ओलावन्ना (केरल, भारत) और सावेलुगु (घाना) में समुदाय द्वारा जल प्रबंधन की उपलब्धियां शामिल हैं। इन सभी विविध सार्वजनिक रुखों ने जलापूर्ति को सुधारने के काम की अपनी सामर्थ्य सिद्ध की है। इससे निर्धनतम लोग भी लाभान्वित हुए हैं।यहां अनेक अध्यायों में इस बात का वर्णन किया गया है कि साफ पानी और स्वच्छता तक पहुंच में सार्वजनिक जल प्रबंधन के विविध रूपों ने किस तरह महत्वपूर्ण सुधार किये हैं। सार्वजनिक जल के ये जनकेंद्रित समाधान भिन्न-भिन्न सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिस्थितियों के तहत हुए हैं। इनके उदाहरणों में पोर्टो अलेग्रे (ब्राजील), सांता क्रुज (बोलीविया) और पेनांग (मलेशिया) में सार्वजनिक सेवाओं और सहकारिताओं की उपलब्धियां, काराकास (वेनेजुएला), हैरीस्मिथ (दक्षिण अफ्रीका) और ब्यूनोज़ आयर्स प्रांत (अर्जेटीना) के प्रयोगधर्मी सार्वजनिक माडलों द्वारा प्राप्त किये गये संशोधन, तथा ओलावन्ना (केरल, भारत) और सावेलुगु (घाना) में समुदाय द्वारा जल प्रबंधन की उपलब्धियां शामिल हैं। इन सभी विविध सार्वजनिक रुखों ने जलापूर्ति को सुधारने के काम की अपनी सामर्थ्य सिद्ध की है। इससे निर्धनतम लोग भी लाभान्वित हुए हैं।

लेकिन, लगभग इन सभी उदाहरणों में ये उपलब्धियां अनेक विपरीत स्थितियों का मुकाबला करके हासिल की गई हैं क्योंकि सार्वजनिक और समुदाय नियंत्रित जलापूर्ति को सुधारने की राह में आने वाली बाधाएं अनेक प्रकार की हैं। इनमें सबसे खराब हैं सार्वजनिक पानी के प्रति अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं (आई.एफ.आई.) का व्यवस्थित दुराग्रह तथा उत्तरी सरकारों द्वारा प्रस्तावित विकास सहायता की घटती राशियों के साथ जुड़ी निजीकरण की शर्तें।

राजनीतिक, वित्तीय तथा अन्य वे बाधाएं जो सार्वजनिक जल प्रबंधन द्वारा अपनी पूरी क्षमता के अनुरूप उपलब्धियां प्राप्त करने में आड़े आती हैं कम से कम ऐसी नहीं हैं कि उन्हें पार न किया जा सके। वस्तुतः इस काम में जो चीज़ जरूरी है वह है अधिक अनुकूल माहौल तैयार करने की राजनीतिक इच्छा। इस अध्याय में प्रगतिशील नीति विकल्पों की एक व्यापक श्रृंखला की रूपरेखा दी गई है। यह अध्याय यह भी निष्कर्ष निकालता है कि जल सेवाओं के लोकतांत्रिक, सार्वजनिक चरित्र को मजबूत करना बुनियादी तौर पर वैश्वीकरण के मौजूदा प्रभुत्वपूर्ण नवउदारवादी मॉडल से मेल नहीं खाता। यह मॉडल जीवन के और क्षेत्रों को भी वैश्विक बाजारों के कठोर तर्को के अधीन कर देता है।

इस पुस्तक में दिये गये दुनिया भर के अनुभवों के आधार पर यह अंतिम अध्याय कुछ उन महत्वपूर्ण मुद्दों की पड़ताल करता है जिन पर आगामी वर्षों में कहीं अधिक गंभीरता के साथ चर्चा किये जाने की जरूरत है।

 स्थायित्व, न्याय और सबकी पहुंच की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए सार्वजनिक जल और स्वच्छता सेवाओं के सुधार और विस्तार के क्या विकल्प हैं?

 नागरिक/उपयोगकर्ता भागीदारी तथा लोकतांत्रीकरण के अन्य रूपों की क्या संभावना है?

 जनकेंद्रित सार्वजनिक सेवा सुधार काम करे इसके लिए कौन सी दशाएं जरूरी हैं?

 सार्वजनिक क्षेत्र के जल कार्य संचालन का वाणिज्यीकरण कैसी समस्याएं खड़ी करता है?

 बहुत जरूरी सुधारों के लिए वित्त जुटाने की राह में आने वाली बाधा को कैसे पार किया जाये? इस विषय में कौन से सबक सीखे जा सकते हैं?

 सफल सार्वजनिक जल विकसित करने में किस तरह की राजनीतिक प्रक्रियाएं शामिल होती हैं?

 शहरी जल और स्वच्छता के लिए सार्वजनिक सेवाओं के विस्तार, सशक्तीकरण और अमल के लिए स्थानीय से वैश्विक स्तर तक क्या किये जाने की जरूरत है?

भागीदारी तथा जनतांत्रीकरण के अन्य रूप


इस पुस्तक में उल्लिखित अनेक नगरों में जल सुविधा की प्रभावशीलता, जवाबदेही और सामाजिक उपलब्धियों में सुधार के पीछे एक मूल कारक रहा है नागरिक और उपयोगकर्ता की विविध रूपों में भागीदारी।

भागीदारी और लोकतांत्रीकरण अनेक रूप ले सकते हैं। बोलीविया और अर्जेंटीना की जल सहकारिताएं उपयोगकर्ताओं को (इनमें से सभी सदस्य हैं और उन्हें मताधिकार प्राप्त है) निर्णय करने प्रक्रिया को सीधे प्रभावित करने की अनुमति देती हैं। उदाहरण के लिए, चुनाव द्वारा सेवाओं के संचालक मंडल का चयन। यह उपयोगकर्ताओं को इस बात का अवसर देता है कि वे इन सेवाओं को उनके उपयोगकर्ताओं की सेवा के मुनाफे के लिए नहीं, मिशन के प्रति जवाबदेह बनाये रहें।

पोर्टो अलेग्रे और अन्य ब्राजीली नगरों की बढ़ती संख्या में नागरिक समाज की संलग्नता प्रयोगधर्मी जनतांत्रिक सुधारों जैसे कि सहभागिता बजट बनाने के साथ जुड़ गई है। यह ऐसा मॉडल है जिसे प्रायः ‘सामाजिक नियंत्रण’ के रूप में वर्णित किया जाता है। पोर्टो अलेग्रे में सार्वजनिक जीवन के अनेक अन्य क्षेत्रों की तरह लोग अपनी जल सुविधा की बजट प्राथमिकताएं सीधे तय करते हैं। जनसभाओं की प्रक्रिया के माध्यम से हर नागरिक यह बता सकता है कि कौन से नये निवेशों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पोर्टो अलेग्रे में सहभागिता बजट ने यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है कि 99.5 प्रतिशत आबादी को, जिनमें सीमांतों पर रहने वाले अधिक गरीब समुदाय शामिल हैं, आज स्वच्छ पानी सुलभ है। नागरिकों के अनूठे ज्ञान पर आधारित सक्रिय जानकारी प्राप्त करना सेवा के लिए अपने आप में एक निधि है। स्वामित्व की बढ़ती भावना शुल्क का भुगतान करने की इच्छा में योगदान करती है और इस प्रकार नया निवेश और सेवा का बेहतर रख रखाव संभव होता है। पारदर्शिता की स्थिति बेहतर हुई है। इससे भ्रष्टाचार का खतरा कम होने की संभावना बनती है।

पोर्टो अलेग्रे ब्राजील के अधिक संपन्न नगरों में से एक है जो साफ पानी तक पहुंच को सुलभ बनाने के काम में लाभ की स्थिति में है, लेकिन इससे सहभागितापूर्ण जनतंत्र के जरिये संभव हुई उपलब्धियों का महत्व कम नहीं होता। ब्राजील के अन्य स्थानों की तरह इस शहर में भी अमीर और गरीब के बीच बड़ी खाई है और लोकतांत्रिक सुधारों के शुरू होने के पहले आबादी के एक बड़े हिस्से को साफ पानी उपलब्ध नहीं था। कम आय वाले लोगों की बहुत बड़ी संख्या वाले उत्तर-पूर्वी शहर रिसाइफ ने अपने यहां लोकतांत्रिक और सहभागी जल प्रबंधन लागू किया है। आगामी दशकों में पानी तक पहुंच में बहुत ठोस सुधार कर पाना उसका लक्ष्य है। सात माह लंबी सहभागिता परामर्शी प्रक्रिया के साथ यह योजना 2001 में शुरू की गई। इस प्रक्रिया की शुरुआत समुदाय के साथ बैठकों की एक श्रृंखला के साथ हुई थी। इन बैठकों में चुने गये लगभग 400 प्रतिनिधियों ने विचार-विमर्श के लिए हुए एक सम्मेलन में हिस्सा लिया जहां रिसाइफ में पानी और सफाई के भविष्य के बारे में कम से कम 160 फैसले लिये गये। सम्मेलन ने निजीकरण के विरुद्ध और सार्वजनिक जलापूर्ति की व्यवस्था का सुधार और विस्तार करने के लिए एक सांस्थानिक संरचना के पक्ष में फैसला किया। सार्वजनिक जलापूर्ति के मामले में नगर के मलिन बस्ती क्षेत्रों को प्राथमिकता देने का भी निर्णय हुआ। ब्राजील में पोर्टो अलेग्रे शैली के सहभागी जल प्रबंधन के अन्य उदाहरण रियो ग्रांदे दो सुल राज्य के कैक्सियस दो सुल शहर और साओ पाउलो राज्य के सांतो आंद्रे, जकारेई और पिरासिकाबा जैसे शहरों में देखे जा सकते हैं।

ब्राजील के अनुभवों से यह बात स्पष्ट होती है कि शहरों का बड़ा होना सहभागी जल प्रबंधन की राह में अनिवार्य रूप से बाधक नहीं होता। पोर्टो अलेग्रे और रिसाइफ दोनों शहरों की आबादी दस लाख से ज्यादा है और इसी तरह के मॉडल कई अन्य बड़े शहरों में भी सफल सिद्ध हुए हैं।

काराकस (वेनेजुएला) में सहभागी जल प्रबंधन का मॉडल सुधरी जलापूर्ति की जरूरत वाले क्षेत्रों के लोगों को निर्णय करने और निर्माण और रखरखाव के काम दोनों में बहुत गहन ढंग से शामिल करता है। जरूरतों और सुधारों के लिए प्राथमिकताओं को चिह्नित करने, उपलब्ध कोषों के आवंटन और संयुक्त कार्ययोजनाएं विकसित करने के काम में स्थानीय समुदाय, जल सेवा तथा निर्वाचित अधिकारी सामुदायिक जल परिषदों में सहयोग करते हैं। उपयोगकर्ता अपनी सुविधाओं पर जनतांत्रिक नियंत्रण रखते हैं।काराकस (वेनेजुएला) में सहभागी जल प्रबंधन का मॉडल सुधरी जलापूर्ति की जरूरत वाले क्षेत्रों के लोगों को निर्णय करने और निर्माण और रखरखाव के काम दोनों में बहुत गहन ढंग से शामिल करता है। जरूरतों और सुधारों के लिए प्राथमिकताओं को चिह्नित करने, उपलब्ध कोषों के आवंटन और संयुक्त कार्ययोजनाएं विकसित करने के काम में स्थानीय समुदाय, जल सेवा तथा निर्वाचित अधिकारी सामुदायिक जल परिषदों में सहयोग करते हैं। उपयोगकर्ता अपनी सुविधाओं पर जनतांत्रिक नियंत्रण रखते हैं, उदाहरण के लिए कार्ययोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए उन्हें जवाबदेह बनाकर। समुदाय की संलग्नता और सशक्तीकरण के माध्यम से पिछले पांच वर्षों में नल वाले पानी तक पहुंच में महत्वपूर्ण सुधार कर लिये गये हैं।

केरल (भारत) के ओलवन्ना तथा अन्य समुदायों में भी सहभागी जल प्रबंधन ने अद्भुत काम किया है। केरल सरकार की ‘जन योजना’ नीति (जो सार्वजनिक वित्त के प्रमुख हिस्सों से संबंधित निर्णय प्रक्रिया को विकेंद्रित करती है के परिणामस्वरूप स्थानीय जनता पीने के पानी तक पहुंच की स्थिति में सुधार लाने के लिए सार्वजनिक कोषों के आवंटन का निर्णय कर सकी थी। इन सार्वजनिक कोषों के साथ समुदायों ने स्वयं भी वित्तीय योगदान दिया था। स्थानीय जनता की सहभागिता केवल योजना बनाने के स्तर पर ही नहीं, बल्कि निर्माण, प्रबंधन और रखरखाव में भी होती है। उपयुक्त तकनीक का इस्तेमाल करने और बाहरी ठेकेदारों और विशेषज्ञों पर निर्भर रहने से बचने के कारण लागतों में कमी आती है। समुदाय के भीतर उभरता हुआ स्वामित्व का भाव निगरानी करने और रखरखाव करने में योगदान करता है और इस तरह सुधारों का कायम रहना सुनिश्चित करता है। यह बात महत्वपूर्ण है कि सार्वजनिक कोषों के आवंटन और प्रबंधन संबंधी निर्णय मौजूदा सामुदायिक संरचनाओं के भीतर ही लिये जाते हैं।

इसी तरह सावेलुगु (घाना) में स्थानीय समुदाय की संलग्नता और जनतांत्रिक सशक्तीकरण से लागतें घटी हैं और रिसावों पर काबू पाने में मदद मिली है और इस प्रकार इन्होंने सबको स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने में योगदान दिया है। सावेलुगु में समुदाय नियंत्रित जल प्रबंधन तंत्र को सार्वजनिक-समुदाय भागीदारी कहा जाता है। यह उस तथ्य की ओर संकेत करता है कि राष्ट्रीय सार्वजनिक जल सेवा समुदाय को बड़ी मात्रा में पानी देती है और बदले में समुदाय जलापूर्ति व्यवस्था के सभी चरणों का ध्यान रखता है जिसमें उपयोगकर्ताओं को बिल भेजना, सेवा का रखरखाव तथा नये कनेक्शन देना शामिल है। बहुत अधिक विकेंद्रीकृत इस व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि हर इलाके में एक जल प्रबंधन समिति है। रिसावों को घटाकर न्यूनतम कर दिये जाने के पीछे के तमाम कारणों में एक यह समिति भी है। शुल्कों का निर्धारण शहर का सामुदायिक जल बोर्ड करता है। शुल्क इस प्रकार निर्धारित किये जाते हैं कि पानी का सबकी पहुंच में होना सुनिश्चित हो। काराकस और ओलवन्ना के विपरीत सावेलुगु मॉडल सरकार के सक्रिय समर्थन के बिना विकसित किया गया था, लेकिन यूनीसेफ और कई उत्तरी गैरसरकारी संगठनों से मिली वित्तीय सहायता से ही वहां सुधार संभव हुए।

कोचाबांबा (बोलीविया) में सार्वजनिक-सामूहिक भागीदारी शब्द का इस्तेमाल नगरीय स्वामित्व, भागीदारी और जनतांत्रिक नियंत्रण के उस मॉडल के लिए किया जाता है जो बेक्टेल द्वारा किये गये आपदामूलक निजीकरण के बाद सामने आ रहा है। यह निजीकरण अप्रैल 2002 के जलयुद्ध के द्वारा खत्म कर दिया गया था। जल सुविधा सेमापा (एस.ई.एम.ए.पी.ए.) को अब नागरिकों, विशेषकर निर्धनतम नागरिकों की सेवा के लिए पुनर्गठित किया जा रहा है। अप्रैल 2002 के चुनावों में बोर्ड के सात सदस्यों में से तीन शहर के दक्षिणी, मध्य और उत्तरी क्षेत्रों के निवासियों द्वारा चुने गये थे। इसी के साथ, सेमापा नगर के दक्षिणी मंडल में पानी के कनेक्शन से वंचित गरीब समुदायों को पानी की आपूर्ति करने वाली पहले से मौजूद जल समितियों के साथ एक सहप्रबंधन मॉडल बन रही है। इन उपशहरी क्षेत्रों में नल का पानी पहुंचाने के लिए सेमापा जल समितियों के साथ सहयोग करती है। इस काम के लिए जल समितियों की उनके स्थानीय समुदायों में सेवा प्रदान करने की क्षमताओं का इस्तेमाल किया जाता है और सेमापा बड़ी मात्रा में पानी की आपूर्ति करती है। यद्यपि, इस सहयोग के सफल परिणामों को खतरे में डालने वाले अनेक कारक अब भी मौजूद हैं, फिर भी सार्वजनिक-सामूहिक साझेदारी एक नया और प्रयोगशील रूप है जो सेवाओं में केंद्रीयतावादी प्रवृत्तियों पर काबू पाने में मदद करता है और उपशहरी क्षेत्रों में पानी पहुंचाने की समस्याओं को हल करता है।

सहभागिता प्रबंधन का एक अलग रूप है ब्यूनोज आयर्स (अर्जेंटीना) प्रांत की जल सेवा का, जिसे 2002 से जलकर्मी और उनके श्रम संघ चला रहे हैं। यह जल सेवा लगभग 30 लाख लोगों को पानी मुहैया कराती है। कर्मचारियों ने आपातकाल की स्थिति में उस पर अधिकार कर लिया था। यह स्थिति तब उत्पन्न हुई थी जब निजी रियायत प्राप्त अजूरिक्स (एनरॉन की सहायक कंपनी) वहां से हट गई थी क्योंकि प्रांतीय सरकार ने अमेरिकी निगम द्वारा दी जा रही सेवाओं के लिए मूल्य वृद्धि पर सहमति देने से इनकार कर दिया था। यहां यह उल्लेखनीय है कि निजी रियायत प्राप्त एक कंपनी और एक स्थानीय सार्वजनिक जल सेवा के बीच बुनियादी अंतर यही है कि निजी रियायत प्राप्त कंपनी बीच में काम छोड़ सकती है जबकि सार्वजनिक कंपनी के पास यह विकल्प उपलब्ध नहीं है। उपयोक्ता प्रतिनिधियों, जो प्रबंधन में भागीदारी करते हैं और उस पर निगाह रखते हैं, के सहयोग के साथ कर्मचारी अजूरिक्स द्वारा किये गये जबर्दस्त कुप्रबंधन के वर्षों के बाद सेवा (अगुआस बोनाएर्नेसेस एस.ए.) को पटरी पर लाने में सफल रहे हैं। कर्मचारियों की ऐसी ही एक सहकारिता ने बांग्लादेश की राजधानी ढाका के दो हिस्सों में जल रियायत का प्रबंधन सफलतापूर्वक किया है।1

ऐसे भी तमाम उदाहरण हैं जहां उपयोगकर्ताओं द्वारा कोई प्रमुख भूमिका निभाये बिना ही प्रभावशाली और न्यायपूर्ण सार्वजनिक जल उपलब्ध करा दिया गया - जैसे इसी पुस्तक में वर्णित पेनांग (मलेशिया) की जलसेवा पी.बी.ए.। पी.बी.ए. की उपलब्धियों के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारक है सार्वजनिक सेवा की उत्कृष्टता और जनता के प्रति जल सेवा प्रबंधन और कर्मचारियों की प्रबल प्रतिबद्धता। यह सेवा कार्य संचालन की दृष्टि से राज्य सरकार से स्वतंत्र, स्वायत्त है। इससे बेवजह के हस्तक्षेप पर रोक लगती है। दूसरी ओर, सेवा की कार्यकुशलता, पारदर्शिता और जवाबदेही राज्य में राजनीति की गतिशीलता से ताकत पाती है। इसमें प्रतिस्पर्धत्मक राजनीतिक दलों की ओर से निरंतर निगरानी करना शामिल है।ऐसे भी तमाम उदाहरण हैं जहां उपयोगकर्ताओं द्वारा कोई प्रमुख भूमिका निभाये बिना ही प्रभावशाली और न्यायपूर्ण सार्वजनिक जल उपलब्ध करा दिया गया - जैसे इसी पुस्तक में वर्णित पेनांग (मलेशिया) की जलसेवा पी.बी.ए.। पी.बी.ए. की उपलब्धियों के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारक है सार्वजनिक सेवा की उत्कृष्टता और जनता के प्रति जल सेवा प्रबंधन और कर्मचारियों की प्रबल प्रतिबद्धता। यह सेवा कार्य संचालन की दृष्टि से राज्य सरकार से स्वतंत्र, स्वायत्त है। इससे बेवजह के हस्तक्षेप पर रोक लगती है। दूसरी ओर, सेवा की कार्यकुशलता, पारदर्शिता और जवाबदेही राज्य में राजनीति की गतिशीलता से ताकत पाती है। इसमें प्रतिस्पर्धत्मक राजनीतिक दलों की ओर से निरंतर निगरानी करना शामिल है। अन्य तमाम महत्वपूर्ण उदाहरण भी हैं, दक्षिण में भी, जैसे नोम पेन्ह (कंबोडिया) जहां उन घरों की संख्या जहां नल से पानी आता है, पिछले दस वर्षों में 25 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 80 प्रतिशत हो गई है। पब्लिक सर्विसेज इंटरनेशनल रिसर्च यूनिट (पी.एस.आईआर.यू.) ने ऐसे और अनेक उदाहरण दर्ज किये हैं।

हालांकि, इसे कोई ऐसा रामबाण नहीं समझना चाहिए जिसे हर स्थिति में लागू किया जा सकता है। कुछ स्थितियों में यह व्यावहारिक नहीं भी हो सकता है लेकिन अपने बहुविध रूपों में भागीदारी और लोकतांत्रीकरण अधिकतम स्थितियों में सकारात्मक परिवर्तन का एक सशक्त औजार बन सकते हैं। इसमें निर्णय करने और प्रबंधन की गुणवत्ता, प्रभावशीलता और जवाबदेही की गुणवत्ता को बेहतर बनाने की सामान्य क्षमता है और इस प्रकार यह बेहतर सेवाओं के प्रावधान में अपना योगदान देता है। दक्षिण के नगरों में शहरी जलापूर्ति पर निर्णय करने की प्रक्रिया प्रायः गहन राजनीतिक रणभूमि होती है जहां राजनीतिक और आर्थिक अभिजनों के हित निर्धनतम लोगों के हितों से टकराते हैं। जब लोकतांत्रीकरण का अर्थ होता है हाशिये पर धकेले गये लोगों और गरीब लोगों का ज्यादा बढ़ा हुआ राजनीतिक नियंत्रण, तो यह इस संभावना को बल देता है कि उनकी जरूरतें पूरी होंगी।

इस पुस्तक के अध्यायों में भागीदारी का जिस तरह वर्णन किया गया है वह विश्व बैंक और अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय दानदाताओं द्वारा इस शब्द का जिस तरह इस्तेमाल किया जाता है उससे बहुत भिन्न है। इन ताकतवर संस्थाओं के लिए भागीदारी उस उपकरण से बस थोड़ा ही ज्यादा है जिससे वे निजीकरण और वाणिज्यीकरण का रास्ता साफ करते हैं। उदाहरण के लिए, सेवा स्तरों और शुल्क संबंधी फैसले लेने में एक निजी निवेशक की सहायता करने के लिए भुगतान करने की इच्छा का अनुमान लगाने में परामर्शदाताओं का इस्तेमाल।

विश्व जल मंच प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले नवउदारवादी थिंक-टैंक विश्व जल परिषद, जिसकी बहुत आलोचना होती है, ने भी हाल ही में एक नया विमर्श अपनाया है जिसमें ‘सार्वजनिक भागीदारी’ तथा अन्य अच्छे लगने वाले शब्दों की भरमार है। लेकिन उसमें ऐसा कोई संकेत नहीं है कि विश्व जल परिषद अपने उस कॉरपोरेट एजेंडे से दूर हटी है जिसे उसने पिछले विश्व जल मंच के कार्यक्रमों में आगे बढ़ाया था। इस पुस्तक के पृष्ठों में वर्णित सहभागी सार्वजनिक जल प्रबंधन में निर्णय प्रक्रिया के दूरगामी लोकतंत्रीकरण में सेवा की आपूर्ति व्यवस्था बदलने के लिए जनता का सशक्तीकरण निहित है। भागीदारी सहमति हासिल करने का उपकरण नहीं है, बल्कि उसका लक्ष्य है मुक्ति।

माहौल को अनुकूल बनाना


माहौल (स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर) अनुकूल कैसे बनता है, जिसमें विविध जनकेंद्रित सार्वजनिक जल संबंधी दृष्टिकोणों के सफल होने की गुंजाइश होती है? इसके सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारकों में है जल संसाधनों की स्थानीय स्तर पर उपलब्धता, सेवाएं प्रदान करने की सार्वजनिक प्रशासकों की क्षमता और राज्य, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं, सरकारों और राजनीतिक दलों का राजनीतिक समर्थन।

1990 के दशक से अर्जेंटीना में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सरकारों ने विचारधारागत कारणों से सहकारिताओं और सार्वजनिक सुविधाओं के प्रायः बहुत बढ़िया काम के बावजूद उनके और आगे विकास को सक्रिय ढंग से अवरुद्ध किया है। हालांकि, ऐसी अपेक्षा करने के अनेक कारण हैं कि निजी जल निगमों के मुकाबले सहकारिताएं अनेक अन्य और अधिक बड़े नगरों में अधिक प्रभावशाली ढंग से और अधिक सामाजिक जवाबदेही के साथ पानी की आपूर्ति कर सकती हैं, फिर भी नवउदारवादी राजनीतिक अभिजन इस विकल्प को आजमाने की इजाजत देना नहीं चाहता। इसी तरह, सार्वजनिक सुविधा सुधारों को विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) द्वारा आगे बढ़ाये जा रहे निजीकरण कार्यक्रम का संभावित विकल्प नहीं माना गया। दुर्भाग्यवश, पूरी दुनिया के अनेक देशों में सोच का यही नमूना देखने को मिलता है।

कोचाबांबा (बोलीविया) में स्थानीय तथा राष्ट्रीय सरकारें सहभागी सार्वजनिक जल प्रबंधन की ओर बढ़ने के प्रयासों के प्रति शत्रुतापूर्ण है। इसका अर्थ है कोचाबांबा में जनतांत्रिक नियंत्रण को आगे बढ़ाने वाले लोगों के लिए बहुत कठिन परिस्थितियां और सीमित राजनीतिक स्थान। जल प्रबंधन का जो मॉडल अब सामने आ रहा है उसमें तो नागरिक समाज जितना चाहेगा उसके मुकाबले जनतंत्र, पारदर्शिता और जवाबदेही कहीं कम है और इसमें लगातार जारी सत्ता संघर्ष प्रतिबिंबित होता है। जो सुधार हुए हैं वे जमीनी स्तर पर चले जल आंदोलन द्वारा निर्मित ताकत के परिणामस्वरूप हुए हैं। यद्यपि, कोचाबांबा में सार्वजनिक-जन साझेदारी के पीछे की दृष्टि की तुलना पोर्टो अलेग्रे या केरल के सहभागी नियोजन व्यवस्थाओं से की जा सकती है, लेकिन कोचाबांबा में जनता के लिए कोई धन नहीं है जिसके बारे में वे कोई निर्णय ले सकें। स्पष्ट है कि संसाधनों का यह अभाव ही सक्रिय भागीदारी को हतोत्साहित करता है।

बोलीविया के ही एक अन्य शहर सांताक्रूज में जल सहकारिता की सफलता के पीछे एक महत्वपूर्ण कारक है दलगत राजनीति से इसका मुक्त होना और यह तथ्य कि यह शहर और इसकी जल सुविधा राष्ट्रीय सरकार द्वारा उपेक्षित तो रही है, लेकिन राष्ट्रीय सरकार ने इसकी राह में अड़ंगे नहीं लगाये। इस सुविधा को 1979 में सहकारिता में रूपांतरित किया गया। यह वह समय था जब नवउदारवादी विचारधारा अभी तक जनकेंद्रित जल दृष्टिकोणों के लिए बाधक तत्व के रूप में नहीं उभरी थी। सहकारिता के दर्जे (जल युद्ध और विनिजीकरण के बाद के कोचाबांबा की तुलना में कम प्रचारित यथार्थ) ने वह स्वायत्तता प्रदान की जो राजनीतिक हस्तक्षेप, नौकरशाही, चापलूसी-चमचागीरी और भ्रष्टाचार से मुक्त होकर काम कर पाने के लिए जरूरी है।

सांताक्रूज और कोचाबांबा पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। यह समस्या दुनिया के अनेक हिस्सों की समस्या है जो बढ़ती जा रही है। औद्योगीकरण, शहरीकरण, गहन कृषि के द्रुत गति से विस्तार (प्रायः निर्यात उद्देश्यों के लिए तथा आर्थिक वैश्वीकरण से संबंधित अन्य प्रवृत्तियों के कारण पानी की मांग जैसे-जैसे बढ़ रही है वैसे-वैसे जल संसाधनों को लेकर संघर्ष गहरा रहे हैं। लगातार पानी की उपलब्धता सुरक्षित करने के लिए बेहतर जल संसाधन प्रबंधन दुनिया भर में शहरी क्षेत्रों के सामने एक मुख्य चुनौती हैं। किसी भी प्रगतिशील शहरी जलापूर्ति मॉडल के लिए जरूरी है कि उसमें जल संसाधनों के प्रति एक स्थाई रवैया हो और शहरों तथा गांवों की पानी की जरूरतों के बीच संतुलन हो।

कोचाबांबा का अनुभव दिखाता है कि किसी ठप सुविधा को बदलने में काफी समय लगता है, विशेषकर तब जब स्थानीय अभिजन ऐसे बदलाव में बाधा डाल रहा हो। प्रभावी सार्वजनिक प्रशासन की परंपरा की एक अधिक सामान्य अनुपस्थिति का अर्थ यह है कि काम कर रही सार्वजनिक सेवाओं को विकसित करने का काम यदि लगभग शून्य से नहीं तो निश्चय ही एक बहुत कठिन प्रारंभबिंदु से होना है। उदाहरण के लिए, कोचाबांबा में पुनः नगरपालिकाकरण की कठिन दशाओं की तुलना फ्रांसीसी शहर ग्रिनोबिल की स्थिति से करना प्रासंगिक होगा।

ग्रिनोबिल में एक प्रभावपूर्ण स्थानीय सार्वजनिक प्रशासन का पहले से अस्तित्व, व्यापक रूप से फैली गरीबी की अनुपस्थिति, और आल्प्स से प्रचुर ताजे पानी के संसाधनों की उपलब्धता सफल सार्वजनिक जलापूर्ति के लिए कहीं अधिक अनुकूल माहौल प्रदान करते हैं। दूसरे शब्दों में, कोचाबांबा की उपलब्धियां प्रतिकूल परिस्थितियों का मुकाबला कर प्राप्त की गई हैं। सफलता की कोई गारंटी नहीं होती, विशेषकर तब यदि जलापूर्ति में ठोस सुधार न लाये जाने की स्थिति में स्थानीय आबादी धैर्य खो दे। कोचाबांबा में सुधरी जलापूर्ति के सामने खड़ी बाधाओं को जीतने के लिए अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता की बेहद जरूरत है।

सार्वजनिक सेवाएं सुलभ कराने के लिए स्थानीय सार्वजनिक क्षेत्र की प्रशासनिक क्षमता महत्वपूर्ण कारक है। परिचयात्मक अध्याय में बताये गये विविध कारणों के चलते विशेषकर विकासशील देशों में सार्वजनिक प्रशासनों के पास प्रायः पर्याप्त संसाधन नहीं होते अथवा वे बड़े संजाल वाले बुनियादी ढांचों और मांग को पूरा करने में समर्थ साफ्ट स्किल पर निर्भर सार्वजनिक सेवा प्रदान नहीं कर पाते। इस यथार्थ का दुरुपयोग प्रायः निजीकरण के पक्ष में तर्क देने के लिए किया गया है, जबकि निजीकरण कोई समाधन सिद्ध नहीं हुआ है, विशेषकर ऐसे शहरों में जहां बड़ी आबादी निम्न आय वाले लोगों की है। यह स्पष्ट है कि सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने की क्षमता जनतांत्रिक समाजों का एक महत्वपूर्ण अंग है और पानी के अधिकार को लागू करने के लिए जरूरी है।

कमजोर स्थानीय सार्वजनिक प्रशासन क्षमता को सुधारने का एक तरीका सार्वजनिक-सार्वजनिक साझेदारियां हैं। दक्षिण अफ्रीका में हैरीस्मिथ शहर की स्थानीय सरकार और देश की किसी और जगह की बड़ी सार्वजनिक जल सेवा के बीच सार्वजनिक-सार्वजनिक साझीदारी के अच्छे परिणाम मिले हैं। तीन साल के प्रयोग ने दिखाया कि प्रबंधन और तकनीकी कौशल की साझेदारी तथा आशाजनक ढंग से और बेहतर होता हस्तांतरण सार्वजनिक जलापूर्ति के क्षेत्र में तेजी से सुधार लाने में योगदान दे सकते हैं। वार्ड स्तर पर सहभागिता और व्यापक परामर्श भी सार्वजनिक-सार्वजनिक की वित्तीय तथा अन्य तरह की सापेक्ष सफलता में एक महत्वपूर्ण कारक था। इन सलाह-मशविरों से सीखे गये सबकों, सामाजिक शुल्क के पक्षधर रवैये, और समुदायों से मिले समर्थन से हैरीस्मिथ को भुगतान न करने वालों की बहुत बड़ी संख्या नहीं झेलनी पड़ती है, जो दक्षिण अफ्रीका में निजीकृत रियायतों की एक खास बीमारी है। यह प्रयोग निर्धन वर्ग के लिए सरकार द्वारा प्रायोजित वित्तीय सहायताओं के साथ ही संभव था। इन सहायताओं का प्रबंधन साझेदारी के जरिये प्रशासनिक स्तर पर बहुत अच्छी तरह किया गया था।

सार्वजनिक-सार्वजनिक साझेदारी परियोजना के कारण ठोस सुधार हुए हैं, लेकिन यह साझेदारी हैरीस्मिथ के गरीब कस्बाई समुदायों में मौजूद साफ पानी तक पहुंच के रास्ते में पहले से पड़े तमाम अधूरे कामों की समस्या का समाधन करने में सफल नहीं हुई है। यह देख पाना कठिन है कि गरीबी से लड़ने और स्थानीय तथा राष्ट्रव्यापी स्तर पर संपत्ति के पुनर्वितरण की कहीं अधिक महत्वाकांक्षी नीतियों के बिना सबके लिए पानी का लक्ष्य कैसे हासिल किया जा सकता है। विनाशकारी सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के परिणामस्वरूप हैरीस्मिथ के इंतबाज़्वे कस्बे में अगस्त 2004 में दंगे भड़क उठे थे। स्थानीय जनता ने सरकार से आवास के लिए आर्थिक सहायता, पानी और बिजली की बेहतर सेवाओं, रोजगार के अवसरों और सामान्य सामाजिक विकास की मांग की। 17 अगस्त को पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां दागी जिसमें 17 वर्षीय टेबोगो मोलोइस की मृत्यु हो गई और दर्जनों अन्य घायल हुए।

घाना (सावेलुगु) में सार्वजनिक-समुदाय साझीदारी द्वारा हासिल की गई उपलब्धियां इस तथ्य के कारण खतरे में पड़ गई हैं कि घाना वाटर कंपनी (जी.डब्ल्यू.सी.एल.) समुदाय को पर्याप्त पानी दे पाने में असमर्थ है। जी.डब्ल्यू.सी.एल. के गहराते संकट का कारण, काफी हद तक, धन की कमी है। कंपनी को निजीकरण के लिए तैयार करने के केंद्रीय सरकार और विश्व बैंक के संयुक्त प्रयासों से भी यह संकट गहराया है। यह उन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों के महत्व को रेखांकित करता है जो सहभागिता और अन्य सार्वजनिक जल समाधनों की राह अवरुद्ध करने के बजाय सुगम बनाती हैं।

ब्राजील के पोर्टो अलेग्रे और रिसाइफ जैसे शहरों में ही नहीं, केरल (भारत) और वेनेजुएला के काराकस में राष्ट्रीय और स्थानीय सरकारों तथा राजनीतिक दलों को एक भूमिका प्रदान करने और उसे सशक्त बनाने के कारण सुधार संभव हो पाये। केरल में, वाम जनतांत्रिक मोर्चे के नियंत्रण वाली राज्य सरकार ने विकेंद्रीकृत सहभागिता बजट की शुरुआत की और उसे मजबूत बनाया। ब्राजील के रेसाइफ और पोर्टो अलेग्रे जैसे शहरों में श्रमिक दल (पी.टी.) के स्थानीय नगर पार्षदों और नगर प्रमुखों की दूरगामी प्रतिबद्धता के कारण सुधार हुए। चुनावी विजयों और परिणामस्वरूप मिले राजनीतिक नियंत्रण के बाद श्रमिक दल ने सहभागिता वाला बजट बनाना शुरू किया और उसका संस्थानीकरण कर दिया। काराकस में भी सहभागी जल प्रबंधन यदि सरकार के जबर्दस्त समर्थन से प्रेरित नहीं था तो कम से कम उसके विकास में तो उसकी भूमिका है ही। वेनेजुएला की राजनीति के बहुत गहरे तक ध्रुवीकृत यथार्थ में इसका अर्थ यह है कि शावेज सरकार का विरोध करने वाले कुछ क्षेत्र सामुदायिक जल प्रबंधन को भी अस्वीकार करते हैं। इससे निश्चय ही यह सवाल उठता है कि यदि कभी विपक्ष की सत्ता में आने की कोशिश सफल हो गई तो क्या सहभागी जल प्रबंधन की व्यवस्था बनी रह सकेगी। इसी तरह, क्या अक्टूबर 2004 के नगरपालिका चुनावों में श्रमिक दल की पराजय के बाद पोर्टो अलेग्रे में सहभागी जल प्रबंधन (और अधिक सामान्य रूप से कहें तो सहभागी जनतंत्र) बच पायेगा? उत्साहजनक बात यह है कि श्रमिक दल के बाद सत्ता में आने वाले बहुदलीय गठबंधन ने सहभागी बजट निर्माण की व्यवस्था यथावत बनाये रखने का वादा किया है। यदि सहभागी जनतंत्र के भविष्य पर कोई गंभीर खतरा आता है तो माना जा सकता है कि उग्र सुधारवादी जनतंत्र के 16 वर्षों ने जनता में इतना विश्वास तो भर ही दिया है कि वह उसकी उपलब्धियों और अपने अधिकारों की रक्षा कर सके।

सार्वजनिक सेवा के नये लोकाचार


यह एक सच्चाई है कि दक्षिण में अनेक जल सेवाएं नौकरशाहीकरण से ग्रस्त हैं और निर्धनतम लोगों तक सेवा पहुंचाने में अक्सर विफल रहती हैं। फिर भी इस पुस्तक में राज्य के नेतृत्व वाले, या कर्मचारियों के नेतृत्व वाले या फिर नागरिक समाज के नेतृत्व वाले सार्वजनिक प्रशासन की क्षमता बढ़ाने के विविध प्रयासों का वर्णन किया गया है। सार्वजनिक सेवा और सार्वजनिकता (सार्वजनिक होने और समुदाय होने का गुण) के अर्थ की एक सुधारवादी पुनर्परिभाषा और इनके पुनः आविष्कार का काम इसके साथ जुड़ा होता है। पुस्तक में वर्णित अधिकतर सफल सेवाओं ने सार्वजनिक सेवा की ऐसी दृष्टि के माध्यम से पानी और सफाई की दशा सुधारी है जो समाज के अधिक व्यापक लक्ष्यों के लिए काम करती है। इन लक्ष्यों में लोकतंत्र, पर्यावरणीय स्थायित्व और मानव सुरक्षा शामिल हैं।

वास्तव में, इन सुधरी हुई सार्वजनिक जल सेवाओं की एक विशेषता, जिसमें सबका साझा है, सार्वजनिक सेवा के एक नये लोकाचार का विकास है। सार्वजनिकता की पुनर्परिभाषा एक ऐसी चीज़ के रूप में की गई है जो महज सार्वजनिक स्वामित्व अथवा सार्वजनिक कर्मचारियों द्वारा प्रबंधन की बात से कहीं आगे जाती है। अनेक मामलों में जनता की जरूरतों के लिए काम करने के दर्शन को आत्मसात करने और मजबूत करने में नागरिकों की सीधी सहभागिता तथा उपयोगकर्ताओं के साथ अंतःक्रिया के अन्य रूपों ने मदद की। शहरी सीमांतों के हाशिये पर धकेले गये समूहों के लिए साफ पानी सुलभ कराने और अधिक सामान्य रूप से, लगातार बढ़ते शहरों के लिए एक स्थाई संसाधन प्रबंधन जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए यह प्रगतिशील सार्वजनिकता बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। वास्तव में, इन सुधरी हुई सार्वजनिक जल सेवाओं की एक विशेषता, जिसमें सबका साझा है, सार्वजनिक सेवा के एक नये लोकाचार का विकास है। सार्वजनिकता की पुनर्परिभाषा एक ऐसी चीज़ के रूप में की गई है जो महज सार्वजनिक स्वामित्व अथवा सार्वजनिक कर्मचारियों द्वारा प्रबंधन की बात से कहीं आगे जाती है। अनेक मामलों में जनता की जरूरतों के लिए काम करने के दर्शन को आत्मसात करने और मजबूत करने में नागरिकों की सीधी सहभागिता तथा उपयोगकर्ताओं के साथ अंतःक्रिया के अन्य रूपों ने मदद की। शहरी सीमांतों के हाशिये पर धकेले गये समूहों के लिए साफ पानी सुलभ कराने और अधिक सामान्य रूप से, लगातार बढ़ते शहरों के लिए एक स्थाई संसाधन प्रबंधन जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए यह प्रगतिशील सार्वजनिकता बहुत अधिक महत्वपूर्ण है।

सहकारिता से लेकर नगरपालिका सेवाओं तक, बिना मुनाफे वाले जल प्रबंधन के विभिन्न रूपों की श्रृंखला के तहत और सार्वजनिक नियंत्रण वाली निगमीकृत सेवाओं के तहत भी सार्वजनिक सेवा के एक नये लोकाचार का उदय हुआ। पेनांग (मलेशिया) की जल सेवा, अंशतः जिसमें कर्मचारी और उपयोगकर्ता भी अंशधारी हैं, ने एक ऐसा उच्चस्तरीय सार्वजनिक लोकाचार विकसित किया है जिसने उसे पहुंच के भीतर के मूल्य पर सबको उच्च गुणवत्ता वाला पानी प्रदान करने में सक्षम बनाया है।

वाणिज्यीकरण संबंधी चिंताएं


इस पुस्तक के अनेक अध्याय सार्वजनिक जल सेवाओं की भविष्य में संभव कुछ परस्पर-विरोधी प्रवृत्तियों की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हैं। पहले तो, नवउदारवादी विचारधारा के परिणामस्वरूप सार्वजनिक और निजीकृत सेवाओं के व्यवहारों में बहुत समस्यामूलक समानता दिखाई पड़ती है। नवउदारवादी व्यवसाय और प्रबंधन माडलों (इनका उल्लेख प्रायः नवसार्वजनिक प्रबंधन-एन.पी.एम.-के रूप में किया जाता है) के लागू होने से वाणिज्यीकरण के ऐसे रूप सामने आये हैं जो ऊपर बताये गये सार्वजनिक सेवा लोकाचारों के गंभीर रूप से विपरीत होते हैं। उदाहरण के लिए, बगोटा (कोलंबिया) में ई.ए.ए.बी. के क्रियाकलापों में यह प्रवृत्ति स्पष्ट दिखाई देती है। महत्वपूर्ण कामों को निजी ठेकेदारों से बाहर से कराना (आउटसोर्सिंग) और “लचीली” श्रम शर्तें लागू करना एक कारपोरेट बिजनेस मॉडल को अपनाने के उदाहरण हैं।

इससे जुड़ी एक प्रवृत्ति यह है कि ई.ए.ए.बी. जैसी सार्वजनिक सेवाएं ही नहीं, बल्कि दक्षिण अफ्रीका की रैंड वाटर और मलेशिया की पी.बी.ए. भी अपने कामकाज का विदेशों में विस्तार कर रही हैं। ये कंपनियां अपने घरेलू कामकाज में सार्वजनिक सेवा के लोकाचारों को बनाये रखते हुए विदेशों में वाणिज्यिक जल प्रदाता के रूप में काम करने का इरादा रखती हैं।

सार्वजनिक जल के लिए धन जुटाना


सबके लिए पानी सुनिश्चित करने की इच्छा करने वाले हर समुदाय के सामने मुख्य चुनौती धन जुटाने की होती है। किसी जल सेवा के हर दिन संचालन की एक लागत होती है और पानी तक पहुंच का विस्तार करने के लिए महत्वपूर्ण अग्रिम निवेशों की जरूरत होती है। सार्वजनिक जलापूर्ति के लिए भुगतान के अनिवार्यतया दो तरीके होते हैं: कर, अथवा उपयोगकर्ता शुल्क।

इस पुस्तक में प्रस्तुत सफल सार्वजनिक जलापूर्ति वाले कुछ शहरों में पानी का पूरा भुगतान उपयोगकर्ता शुल्कों (लागत की पूरी वापसी) द्वारा किया जाता है, लेकिन यह काम सोपानबद्ध क्रमिक शुल्कों के जरिये ‘क्रास सब्सिडी’ देकर किया जाता है ताकि बड़े उपभोक्ता आनुपातिक रूप से अधिक भुगतान करें। व्यवस्थाओं के विस्तार और विकास के लिए धन जुटाने और जल शुल्कों के जरिये उपयोगकर्ताओं पर जो बोझ पड़ता है, उसे कम करने के उद्देश्य से आर्थिक सहायता देने के लिए भी सामान्य रूप से कराधान का इस्तेमाल किया जाता है। जब सरकारें या नगरपालिकाएं निवेश का धन जुटाने के लिए पैसा उधर लेती हैं या बांड जारी करती हैं तब ऋणों की लागत सामान्य रूप से करों द्वारा वहन की जाती है। आयरलैंड जैसे कुछ देशों में जल सेवाओं के लिए भुगतान लगभग पूरी तरह से केंद्रीय सरकार के कराधान द्वारा किया जाता है। इस पुस्तक में वर्णित कुछ सार्वजनिक जल सेवाओं ने जल सेवा के विस्तार को सामाजिक शुल्क संरचना के साथ जोड़ दिया है और इस प्रकार उन्होंने सभी नागरिकों को, जिनमें निर्धनतम लोग शामिल हैं, अपनी सामर्थ्य के भीतर ही पानी प्राप्त करने में समर्थ बनाया है। उदाहरण के लिए, पोर्टो अलेग्रे में डी.एम.ए.ई. अपने संपन्न उपयोगकर्ताओं द्वारा अधिक शुल्क का भुगतान करने के परिणामस्वरूप मिलने वाले अधिशेष को एक ऐसे निवेश कोष में भेज देता है जो जरूरतमंदों के लिए पानी और सफाई के नये बुनियादी ढांचों के लिए धन मुहैया कराता है।

दक्षिण अफ्रीका तथा विश्व के अन्य अनेक देशों में नवउदारवादी लागत-वसूली नीतियों (क्रॉस-सब्सिडी बगैर) के कारण ये सेवाएं प्राप्त करने में अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं और लाखों गरीब लोग जलापूर्ति से वंचित कर दिये गये हैं। दक्षिण अफ्रीका में अनेक गरीब समुदायों में लगाये गये पूर्व भुगतान (प्रीपेड) वाले मीटर जल पर मानव के अधिकार का खुला उल्लंघन हैं। दक्षिण अफ्रीका का संविधान प्रति परिवार 6,000 लीटर निःशुल्क पानी की गारंटी देता है लेकिन पानी के इस अधिकार को प्रभावशाली ढंग से लागू नहीं किया गया है। इसके अतिरिक्त प्रति परिवार 6,000 लीटर निःशुल्क पानी निर्धनतम परिवारों के प्रायः बड़े आकार के चलते नाकाफी भी सिद्ध हुआ है। सबकी पहुंच पानी तक हो, यह सच्चे अर्थों में सुनिश्चित करने के लिए संविधान में दी गई निःशुल्क पानी की मात्रा को कम से कम दोगुना किये जाने की जरूरत है और इसके साथ निम्न आय वाले लोगों के लिए क्रास-सब्सिडी वाले निम्न शुल्कों की व्यवस्था भी जरूरी होगी।

जलापूर्ति के विस्तार के रास्ते में आने वाली वित्तीय बाधाओं को संचालन लागतें कम कर और कार्य क्षमता बढ़ाकर भी दूर किया जा सकता है। दृढ़ संकल्प के साथ रिसावों को खत्म करके और बिलिंग में सुधार लाकर राजस्वमुक्त पानी (एन.आर.डब्ल्यू.) के निम्नतर अंश हासिल किये जा सकते हैं और सेवा की वित्तीय सामर्थ्य बढ़ाई जा सकती है।

पेनांग (मलेशिया) में राजस्वमुक्त पानी (एन.आर.डब्ल्यू.) की बहुत नीची दरों के कारण ही इस सेवा का पानी देश में सबसे सस्ता है। ब्राजील के मटाओ नगर की कंगाल सरकार को निजीकरण ही एकमात्र विकल्प प्रतीत हुआ। उसे अपनी तेजी से बढ़ती आबादी के लिए पानी के कनेक्शनों के विस्तार हेतु निवेश करना था। एक सार्वजनिक सलाह-मशविरे की प्रक्रिया के बाद सेवा का पुनर्गठन किया गया जिसके तहत उसकी शुल्क संरचना बदल दी गई थी और रिसाव व बरबादी कम करने के लिए प्रोत्साहन देने की व्यवस्था थी। इससे सेवा का वित्तीय स्वास्थ्य सुधर गया और जल संसाधन की समस्या हल हो गई। स्पष्टतः यह टिकाऊपन का मामला भी है : रिसावों को कम करने से पानी की कमी के खतरों पर काबू पाने में भी मदद मिल सकती है और यह नये बांधों में बड़े निवेशों को गैर जरूरी बना सकता है।

नागरिकों की सहभागिता जल सेवा का वित्तीय स्वास्थ्य सुधार सकती है जैसा कि पोर्टो अलेग्रे में हुआ है। सरकार ने नागरिकों को सार्वजनिक कोषों के आवंटन में प्राथमिकता तय करने की ही शक्ति नहीं दी है, बल्कि वे फैसलों और परियोजनाओं के अमल की निगरानी भी करते हैं। जिन क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का निर्माण होता है, वहां की स्थानीय जनता उन आयोगों में भागीदार होती है जो निर्माण कार्य के दौरान ठेकेदारों की निगरानी करते हैं। इसका अर्थ है जल सेवा की और बाहरी ठेकेदारों की लगातार जांच-परख। इससे नई निर्माण परियोजनाओं की लागतें घटाने में मदद मिली है। नागरिकों की सहभागिता जल सेवा का वित्तीय स्वास्थ्य सुधार सकती है जैसा कि पोर्टो अलेग्रे में हुआ है। सरकार ने नागरिकों को सार्वजनिक कोषों के आवंटन में प्राथमिकता तय करने की ही शक्ति नहीं दी है, बल्कि वे फैसलों और परियोजनाओं के अमल की निगरानी भी करते हैं। जिन क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का निर्माण होता है, वहां की स्थानीय जनता उन आयोगों में भागीदार होती है जो निर्माण कार्य के दौरान ठेकेदारों की निगरानी करते हैं। इसका अर्थ है जल सेवा की और बाहरी ठेकेदारों की लगातार जांच-परख। इससे नई निर्माण परियोजनाओं की लागतें घटाने में मदद मिली है।

दक्षिण के अधिकतम शहरों में जलापूर्ति के विस्तार और सुधार के लिए जरूरी निवेशों के लिए धन जुटा पाना एक समस्या है। उत्तरी घाना में सावेलुगु मॉडल यूनीसेफ और अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों द्वारा दी गई आर्थिक सहायता से संभव हुआ था, लेकिन ऐसे ही मॉडल लागू करने की इच्छा वाले अन्य समुदाय किसी की दया या उपकार के भरोसे बैठे नहीं रह सकते। दरिद्र बनाये गये समुदायों के लिए बड़े और अग्रिम निवेशों के लिए बाहरी आर्थिक सहायता की जरूरत है। यह राष्ट्रीय सरकारों की महत्वपूर्ण भूमिका और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहायता व ऋणों की उपलब्धता की ओर संकेत करता है।

जलापूर्ति के प्रति दक्षिणी सरकारों के रवैये में ऐसा बहुत कुछ है जिसे सुधारा जा सकता है। अनेक देशों में निर्धनतम लोगों की पानी तक पहुंच के प्रश्न को अब भी पूरी प्राथमिकता नहीं दी गई है और राजनीतिक प्रक्रिया में स्थानीय अभिजन के बीच प्रायः नवउदारवादी प्रवृत्तियां हावी रहती हैं। केरल (भारत) में सरकारी अनुदानों पर निर्णय प्रक्रिया के विकेंद्रीकरण के जनतांत्रिक सशक्तीकरण के ठीक विपरीत अनेक दक्षिणी देशों में पिछले दशकों में विकेंद्रीकरण का एक बहुत भिन्न रूप सामने आया है। आई.एफ.आई. की सलाह का अनुसरण करते हुए सरकारों ने अपनी जिम्मेदारियां तो स्थानीय नगरपालिकाओं को सौंप दी हैं लेकिन इसके साथ ही उन्हें अपने नये दायित्वों को पूरा करने के लिए जरूरी धनराशि से वंचित रखा गया है। जाहिर है कि अनिवार्य सेवाओं की आपूर्ति के लिए इसके नकारात्मक परिणाम हुए और इसके कारण प्रायः उनके सामने निजीकरण अपनाने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं रह गया।

इसके साथ ही, नवउदारवादी भूमंडलीकरण का मौजूदा संदर्भ जनकेंद्रित सार्वजनिक जल व्यवस्थाओं के सुधार और विस्तार के अनुकूल वातावरण तैयार करने के बिल्कुल विपरीत है। दक्षिण की आबादियों के बड़े हिस्सों के लिए और मध्य तथा पूर्वी यूरोप के देशों के लिए भी व्यापार के उदारीकरण और अन्य नवउदारवादी सुधारों ने बेरोजगारी और आर्थिक बदहाली को जन्म दिया है। कर से प्राप्त आमदनियों के लगातार कम होते जाने, और प्रायः बहुत बड़े पैमाने पर ऋण की अदायगी करने के कारण सरकारें लगातार घाटे के बजटों का सामना कर रही हैं। इसमें आई.एफ.आई., विकास सहायता एजेंसियों और व्यापार की शर्तें तय करने वाले बिचौलियों की ओर से उदारीकरण और निजीकरण करने के लिए डाला जा रहा दबाव भी जुड़ गया है। इन नवउदारवादी नीतियों का कुल मिलाकर होने वाला प्रभाव अनिवार्य सेवाओं के सार्वजनिक प्रावधन के विकास में बुनियादी रोड़ा है। ऐसा लगता है कि स्थाई समाधन तभी संभव है यदि विकास के इस मॉडल की जगह वैश्वीकरण का कोई ऐसा भिन्न मॉडल लाया जाये जो प्रगतिशील सार्वजनिक समाधनों की राह रोकने के बजाय सुगम बनाता हो।

अन्यायपूर्ण वैश्विक आर्थिक व्यवस्था और अपंग बना देने वाले ऋणों से प्रायः दरिद्र बना दी गई दक्षिणी सरकारों के लिए फिलहाल अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से मिलने वाला ऋण ही उन अनेक उपायों में से एक है जिनसे सरकारें और नगरपालिकाएं पानी तक पहुंच का विस्तार करने के लिए जरूरी निवेशों के लिए बाहरी कोष जुटा सकती हैं। दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता यह है कि अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं अड़ियल ढंग से निजीकरण की पैरोकार हैं और वे ऋण लेने वालों पर निजीकरण थोपने के लिए विविध कमोबेश चालाकी भरे दबावों का इस्तेमाल करती हैं।

उत्तरी सरकारें और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं दक्षिण की सरकारों को नवउदारवादी सुधार अपनाने पर मजबूर करने के लिए वित्त को एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करती हैं। यूरोपीय संघ और विभिन्न यूरोपीय सरकारें निजीकरण को प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक सहायता का इस्तेमाल करने की सक्रिय पहल करती हैं। गैर निजी क्षेत्र के विकल्पों को वित्तीय सहायता देने की उनकी इच्छा अत्यंत सीमित बनी हुई है।

इसके अपवाद भी हैं, जैसे कि अर्जेंटीना और बोलीविया में सहकारी संस्थाओं के लिए आई.बी.आर.डी. द्वारा दिये गये ऋण। सांताक्रूज (बोलीविया) की सहकारिता को और अधिक ऋण देने पर प्रतिबंध लगाये गये हैं। इसका कारण यह नहीं है कि उसकी अपनी वित्तीय हालत ठीक नहीं है, वह तो बहुत स्वस्थ है। इसका कारण है राष्ट्रीय सरकार का कर्ज में डूबा होना। पोर्टो अलेग्रे और रिसाइफ बहुत लम्बी बातचीत के बाद ही अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान से ऋण पा सके थे। इस बातचीत में विश्व बैंक का जोर इस बात पर था कि वे निजीकरण की राह पर चलें। सेवाओं की जनतांत्रिक वैधता और नगर प्रमुखों द्वारा दिये गये प्रबल राजनीतिक समर्थन की मदद से ही इन दबावों का प्रतिरोध किया जा सका था और सहभागिता वाले माडलों के मूल रूप को नुकसान पहुंचाने वाली शर्तों के बिना कर्ज पाया जा सका था।

कोचाबांबा में आई.ए.डी.बी. ने नई सेमापा को ऋण देने का प्रस्ताव जरूर किया था, लेकिन उसकी शर्तें ऐसी थीं जो सेवा के रूपांतरण में बाधा डालतीं और वास्तव में जलापूर्ति में प्रत्यक्ष देखे जा सकने वाले सुधार करने में इतनी देरी कर देती कि जनता का समर्थन खतरे में पड़ जाता। इंडोनेशिया में पिछले दशक से अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान से मिले ऋणों के बाद अधिकतर जल सुविधाएं ऋण संकट में फंस गई हैं। वे कर्ज के जिस जाल में फंसी हैं वह सुविधाओं की क्षमता को नुकसान पहुंचाता है और व्यवहार में निजीकरण का मार्ग प्रशस्त करता है। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा विदेशी मुद्रा में दिये गये कर्जों की ब्याज दरें मुद्रा अवमूल्यन के खतरों और मुद्रा संकट के कारण प्रायः बहुत ज्यादा होती हैं। यह निष्कर्ष निकालने के बाद कि आई.एफ.आई. से मिलने वाले ऋण लाभ कम, नुकसान ज्यादा करते हैं, तमाम नागरिक समाज समूह विश्व बैंक और अन्य अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को दक्षिण से पूरी तरह हटाने के लिए जुबिली साउथ संजाल अभियान के तहत एकजुट हुए।

आर्थिक सहायता देने वाली ऐसी व्यवस्थाओं की गंभीर जरूरत है जिनके साथ कोई राजनीतिक शर्तें न जुड़ी हों और आर्थिक तथा विचारधारात्मक लक्ष्यों के बजाय जिनका झुकाव समाज की बेहतरी के लक्ष्यों को पाने की ओर हो। कराधान और क्रॉस सब्सिडी वाले जल शुल्कों के माध्यम से अत्यंत महत्वपूर्ण प्रगतिशील पुनर्वितरण के अतिरिक्त स्थानीय और राष्ट्रीय वित्तीय विकल्पों का एक व्यापक क्षेत्र है जिसमें नगरीय बांडों का जारी किया जाना शामिल है। निर्धनतम लोगों की पहुंच पानी के क्षेत्र तक और व्यापक बनाने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय वित्त प्रवाह को प्रोत्साहन देने के लिए उत्तरी सरकारों के विकास सहायता बजट में बढ़ोतरी एक सीधा सादा विकल्प है। स्पष्टतः इसके साथ निजीकरण की मौजूदा शर्तों और दबावों का खात्मा जुड़ा है। यहां यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि मौजूदा सैन्य खर्च का एक छोटा सा हिस्सा पृथ्वी पर हर एक के लिए स्वच्छ पानी का खर्च निकालने के लिए पर्याप्त होगा। यूरोप में मिनरल वाटर की बोतलों पर एक छोटे से कर का प्रस्ताव किया गया है। ऐसे कर से अरबों यूरो मिल सकते हैं लेकिन यह राशि उस प्रभूत राशि की तुलना में फिर भी बहुत कम होगी जो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन के सट्टा बाजार पर एक “टोबिन” कर द्वारा उगाही जा सकती है।

आंदोलन, संघर्ष और सार्वजनिक पानी के समाधन


जैसा कि इस पुस्तक के अनेक अध्यायों में दिखाया गया है, पूरी दुनिया में पानी और स्वच्छता सेवाओं के सार्वजनिक स्वरूप को बनाये रखने और उसे बेहतर बनाने में सामाजिक आंदोलन बहुत सक्रियता के साथ अपना योगदान देते हैं। सरकारों और सुविधाओं पर इस बात का दबाव डालने के कारण कि वे स्वच्छ जल तक पहुंच में परिवर्तन और सुधार करें, ऐसे आंदोलनों की सबको स्थायी रूप से पानी उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अनेक देशों में राजनीतिक और आर्थिक अभिजनों द्वारा आगे बढ़ाई गई नवउदारवादी नीतियों के विरुद्ध हाशिये पर धकेले गये लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए सामाजिक आंदोलन संगठित हो रहे हैं। सामाजिक न्याय और जल प्रबंधन संबंधी निर्णयों का लोकतांत्रीकरण अभिन्न रूप से एक-दूसरे से जुड़ा है।

इस पुस्तक में कोचाबांबा तथा अन्य अनेक नगरों के उदाहरण यह दिखाते हैं कि किस तरह सार्वजनिक जल वितरण के मॉडल काफी हद तक अपने पूर्ववर्ती राजनीतिक संघर्षों द्वारा गढ़े जाते हैं। सार्वजनिक सुविधा में सुधार लाने का काम कराने की राजनीतिक प्रक्रिया तथा निजीकरण के विकल्प इस बात को परिभाषित करते हैं कि सार्वजनिक जल प्रबंधन का चरित्र क्या है। इसलिए ये राजनीतिक संघर्ष जल वितरण के भविष्य को समझने के लिए मूलभूत तत्व हैं।

जैसा कि इस पुस्तक के अंतिम अध्याय दिखाते हैं, दुनिया भर के देशों में निजीकरण विरोधी अभियानों के गठबंधन केवल प्रतिरोध ही नहीं करते, उससे आगे जाते हैं। इन आंदोलनों ने आंदोलनकारियों की एक व्यापक श्रृंखला - पर्यावरणवादियों, नारी समूहों और जमीन से जुड़े सामुदायिक कार्यकर्ताओं से लेकर ट्रेड यूनियन, राजनीतिक दल और सार्वजनिक सुविधा प्रबंधकों तक - को एकजुट किया है। इन आंदोलनों की दृष्टि प्रायः बहुत व्यापक होती है और सार्वजनिक क्षेत्र के विकल्पों के लिए उनके पास ठोस प्रस्ताव होते हैं।

उरुग्वे में निश्चय ही यही स्थिति थी जहां अक्टूबर 2004 में हुए राष्ट्रीय जनमत संग्रह में एक बड़े बहुमत ने उन संवैधानिक संशोधनों का समर्थन किया जो पानी को एक मानवाधिकार के रूप में परिभाषित करेंगे और निजीकरण का विरोध करेंगे। आंदोलनों के एक गठबंधन द्वारा समर्थित संवैधानिक संशोधन जल प्रबंधन और संस्थाओं के हर एक चरण में उपभोक्ताओं, समुदायों और नागरिक समाज की सहभागिता के लिए एक केंद्रीय भूमिका परिभाषित करता है। सार्वजनिक जल सुविधाओं के प्रबंधन को और बेहतर बनाने के लिए प्रभावी सार्वजनिक सहभागिता की कल्पना की गई है। हालांकि, ये सामान्यतया बहुत प्रभावी ढंग से काम करते हैं, फिर भी सुधार की गुंजाइश तो रहती ही है, जैसे कि असफल राजनीतिज्ञों द्वारा अवकाशप्राप्ति के बाद एक मोटी पगार वाले विकल्प के रूप में सुविधा के दुरुपयोग की गलत परंपरा को रोकना।

उरुग्वे में मिली विजय से प्रेरित होकर अर्जेंटीना के नागरिक समाज समूहों ने भी पानी तक पहुंच को एक बुनियादी मानव अधिकार के रूप में मान्यता दिलाने और पानी को निजीकरण से मुक्त सार्वजनिक संपत्ति घोषित करवाने के उद्देश्य से जनमत संग्रह कराने के लिए एक अभियान छेड़ा है। गैर-सरकारी संगठनों का एक विकासमान वैश्विक गठबंधन यह मांग कर रहा है कि सरकारें स्वयं पानी के अधिकार पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाने के लिए प्रतिबद्ध हों। यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र के ढांचे के भीतर होगा। ऐसा सम्मेलन सबको स्वच्छ पानी के अधिकार की गारंटी देने और यह सुनिश्चित करने के लिए एक शक्तिशाली कानूनी उपकरण प्रदान करेगा कि पानी को उपभोक्ता वस्तु न माना जाये।

उक्रेन में मामा-86 जैसे गैर-सरकारी संगठन निजीकरण के विरुद्ध संघर्षरत हैं लेकिन वे सार्वजनिक जल वितरण को बेहतर बनाने के लिए भी कड़ी मेहनत कर रहे हैं। यह एक ऐसे राज्य में हो रहा है जो साम्यवादी व्यवस्था खत्म होने के बाद संकट के दौर से गुजर रहा है और अपने नागरिकों को अनिवार्य सेवाएं प्रदान करने की अपनी जिम्मेदारी से धीरे-धीरे हाथ खींच रहा है। मामा-86 जल वितरण की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए स्कूलों, अस्पतालों और अन्य सार्वजनिक संस्थानों के साथ मिलकर काम कर रहा है। वह सार्वजनिक सूचना अभियानों के जरिये पानी के मीटरों का और पानी की बर्बादी रोकने का प्रचार ही नहीं करता, बल्कि सार्वजनिक जल वितरण व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए जल सुविधाओं के साथ घनिष्ठ रूप से मिलकर काम करता है, जिसका उदाहरण सोलेदार नगर है।

फिलीपींस में सार्वजनिक क्षेत्र में जल वितरण का रिकॉर्ड इतना खराब था कि जनता को 1997 के निजीकरण को लेकर कोई चिंता नहीं थी। निजीकरण की विनाशकारी असफलता के बाद सार्वजनिक पानी की 1997 से पहले की सच्चाई कोई विकल्प नहीं है। पानी सतर्कता संजाल ऐसे ठोस उपायों का समर्थन करता है जिनमें सार्वजनिक समाधन अफसरशाहीकरण, अक्षमता और निर्धनतम लोगों की जरूरतों के प्रति संवदेनशीलता के अभाव जैसे खतरों पर विजय पाने में सहायक हो सकते हैं। नागरिक समाज गठबंधन ने कुछ अपेक्षाएं सुनिश्चित की हैं। सार्वजनिक क्षेत्र विकल्प को ये अपेक्षाएं पूरी करनी होंगी। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं : वित्तीय संसाधन, सांस्थानिक क्षमता, एक स्वतंत्र विनियामक व्यवस्था, पारदर्शिता, जवाबदेही और सामाजिक शुल्क व्यवस्थाएं। पश्चिम क्षेत्र में जल वितरण करने वाली एक सार्वजनिक जल सुविधा को न केवल अनुबंध के वितरण लक्ष्यों को पूरा करना पड़ेगा, बल्कि उसे नगर के पूर्वी आधे हिस्से में काम करने वाली निजी सुविधा के साथ तुलनात्मक परीक्षण का सामना भी करना पड़ेगा। ये मिले-जुले दबाव संभवतः सार्वजनिक सुविधा के काम और जवाबदेही में सुधार लायेंगे। एक और विचारणीय विकल्प यह है कि महानगर मनीला में दोनों सेवाओं के बीच का अंतर स्पष्ट किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त नगर के बाहरी हिस्सों में वर्तमान सहकारी संस्थाएं समाधन का अंग हैं।

अनेक देशों में निजीकरण विरोधी आंदोलन सार्वजनिक-सार्वजनिक साझीदारियों तथा अन्य मॉडलों की वकालत करता है जिनमें बीमार सुविधाएं सफल सुविधाओं के काम करने के तरीकों और प्रबंधन संरचनाओं से सीखती हैं, जैसा कि इंडोनेशिया, मलेशिया, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका संबंधी अध्यायों में दिखाया गया है। उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया में नागरिक समाज सरकार के अतिरंजित विचारधारात्मक पूर्वग्रहों को अस्वीकार करता है और देश के भीतर ही सार्वजनिक जल वितरण की सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था के उदाहरणों, ठोस रूप में देखें तो सोलो नगर की जल सुविधा की ओर संकेत करता है।

लेकिन निजीकरण विरोधी सभी गठबंधन सार्वजनिक जल समाधनों के लिए अपनी दृष्टि के केंद्रीय हिस्से के रूप में सहभागी जनतंत्र के उग्रसुधारवादी रूपों को आगे नहीं बढ़ाते। लेकिन उपयोगकर्ताओं की सहभागिता को लगभग सभी जगह आगे बढ़ाया गया है। मैक्सिको में, जहां पांचवां विश्व जल मंच मार्च 2006 में होगा, सरकार सार्वजनिक सेवाओं पर फैसले लेने में सार्वजनिक सहभागिता को भी हिस्सा लेने देना नहीं चाहती। इसके बजाय वह कानकुन, साल्टीलो और अगुआ स्केलिएंटिस जैसे शहरों में निजी जल निगमों के खराब कामकाज और इस तथ्य के बावजूद कि सार्वजनिक जल-सुविधाएं जलापूर्ति क्षेत्र का विस्तार करने, पानी के नुकसान को कम करने और अपनी आर्थिक व्यवहार्यता को बेहतर बनाने में सक्षम सिद्ध हुई हैं, निजीकरण प्रक्रिया को जारी रखने पर जोर देती है।

पारदर्शिता और सूचना तक जनता की पहुंच के लिए संघर्ष बार-बार अनेक अभियानों का मुद्दा बनता है। यह संयोग नहीं है कि पारदर्शिता इस पुस्तक में वर्णित लगभग सभी सफल, जनकेंद्रित सार्वजनिक सुविधाओं की बुनियादी विशेषता है। पारदर्शिता की संभावना के कारण सार्वजनिक सुविधा निजीकृत जलापूर्ति के मुकाबले-जहां महत्वपूर्ण सूचना वाणिज्यिक गोपनीयता के कारणों से पहुंच के बाहर मानी जाती है-अनिवार्य रूप से लाभ की स्थिति में रहती है। लेकिन स्लोवाकिया जैसे पूर्व साम्यवादी देश में पारदर्शिता और नागरिक भागीदारी एक प्रमुख लड़ाई है। सार्वजनिक सुविधा प्रबंधक और नगरीय अधिकारी नागरिकों के जुड़ाव को प्रायः अवांछित हस्तक्षेप मानते हैं। निजीकरण विरोधी अभियान चलाने वालों को सार्वजनिक जल के आपरेटरों को इस बात का भरोसा देने की चुनौती का सामना करना पड़ता है कि नागरिकों की भागीदारी और जनतांत्रिक नियंत्रण सार्वजनिक सेवाओं की प्रभावशीलता को बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं।

अभियान रणनीतियां स्पष्टतः स्थानीय और राष्ट्रीय संदर्भ में बनाई जाती हैं। इसमें समस्याओं की गहनता और राजनीतिक अवसर भी शामिल होते हैं। जर्मनी जैसे देश में, जहां पानी सस्ता है, सुरक्षित है और प्रचुर मात्रा में है, निजीकरण के विरोध में और बेहतर सार्वजनिक सेवाओं के लिए चलाये जाने वाले अभियान निश्चय ही घाना या दक्षिण अफ्रीका जैसे स्थानों से, जहां आबादी के बड़े हिस्सों के लिए पानी पाना हर दिन लड़ी जाने वाली लड़ाई है, भिन्न रूप लेगा। इसके अतिरिक्त, पानी की लड़ाइयां हमेशा अधिक व्यापक राजनीतिक माहौल पर निर्भर होती हैं। उदाहरण के लिए, उरुग्वे में पानी का आंदोलन सफल हुआ क्योंकि वह ऐसे समय हुआ जब प्रमुख राजनीतिक परिवर्तन हो रहे थे और राजनीतिक झुकाव वामपंथ की ओर था। फिर भी, सार्वजनिक पानी के लिए चलाये गये अभियानों से मिले शिक्षाप्रद अनुभव सीमा पार देशों और महाद्वीपों के लिए मूल्यवान हो सकते हैं।

जहां 1990 के दशक में निजीकरण की लहरें दक्षिण को अपने बहाव में बहा ले गईं, वहीं अब अमेरिका, कनाडा, जापान और विशेषकर (पश्चिमी) यूरोप के अब भी जबर्दस्त ढंग से सार्वजनिक नियंत्रण वाले जल क्षेत्रों पर दबाव बढ़ रहा है। इसका अर्थ है उत्तर के नागरिक समाजों के लिए एक बड़ी चुनौती। सौभाग्य से दक्षिण में शक्तिशाली बने निजीकरण विरोधी अभियानों से ही नहीं, बल्कि जल प्रबंधन के उन प्रयोगात्मक रूपों से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है जिन्होंने पिछले दशक के दौरान दक्षिण के अनेक नगरों में सार्वजनिक सेवाओं का पुनः आविष्कार किया। उत्तर में भी, निजीकरण विरोधी संघर्ष महज यथास्थिति का बचाव करने के लिए नहीं हो सकते। नागरिकों की सहभागिता उत्तर में कहां तक सार्वजनिक जल वितरण को बेहतर बनाने के कार्यक्रम का हिस्सा बनेगी, यह अभी देखा जाना है। अमेरिका में (जहां 85 प्रतिशत आबादी को जन सुविधाएं प्राप्त हैं) सुविधाओं के काम को विनियमित करने और बेहतर बनाने के लिए विविध लोकतांत्रिक और सहभागिता तंत्र विकसित किये गये हैं। इसका और अधिक विस्तार कर इन्हें जल क्षेत्र में लाया जा सकता है। इटली में हाल के वर्षों में अनेक नगरपालिकाओं के जल प्रबंधन में नागरिक सहभागिता के नये रूप शामिल किये गये हैं।

फ्रांसीसी नगर ग्रिनोबिल जनतंत्र द्वारा जल सुविधा को पुनर्जीवन दिये जाने का एक उदाहरण है। ग्रिनोबिल दिखाता है कि उपभोक्ताओं, पर्यावरणवादियों, ट्रेड यूनियनों और राजनीतिक दलों को जोड़ने वाले एक व्यापक गठबंधन की दीर्घकालीन प्रतिबद्धता के साथ विनिजीकरण के लिए एक सफल अभियान चलाना संभव है। नगरपालिका की पुर्नस्थापना के बाद से बढ़ी हुई जनतांत्रिक जवाबदेही और सार्वजनिक शासन के परिणामस्वरूप रखरखाव में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं, बुनियादी ढांचे का नवीकरण हुआ है, पानी का इस्तेमाल घटा है और शुल्क कम हुए हैं। नगरपालिका की पुर्नस्थापना के संघर्ष से जुड़े लोगों ने सुविधा के सुधार के क्रियान्वयन में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं।

सबके लिए पानी, सबके लिए सार्वजनिक सेवाएं


सार्वजनिक सेवा प्रबंधकों और जल विशेषज्ञों, नागरिक समाज, श्रम संघों, सामाजिक आंदोलनों और सरकारों के बीच सामूहिक रूप से सीखने की प्रक्रिया बाधाओं को जीतने के लिए आवश्यक उपकरण है और इस प्रक्रिया को तेज करने की जरूरत है। हाल के वर्षों में प्रगतिशील ताकतों के बीच अनुभवों के आदान-प्रदान और विचार-विमर्श की एक वैश्विक प्रक्रिया की शुरुआत हुई है। वास्तव में यह पुस्तक इस प्रक्रिया का ही परिणाम है और आशा है कि इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में यह अपना योगदान देगी। यह पुस्तक शहरों की जल समस्याओं के समाधन में नागरिकों की सहभागिता और नागरिक समाज के आंदोलनों की भूमिका पर रोशनी डालते हुए निजीकरण और अपर्याप्त सार्वजनिक जलापूर्ति के विकल्पों की एक व्यापक श्रृंखला प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक सेवाएं प्रदान करने में सार्वजनिक प्रशासनों और संस्थाओं की क्षमता को सबल बनाने की जरूरत को रेखांकित करती है और इनमें सुधार लाने की दिशा में बदलाव की रणनीतियों की रूपरेखा प्रदान करती है।

इस बात का कोई एक उपाय नहीं है कि सार्वजनिक जल सुविधाओं को सबको स्वच्छ पानी और ऐसा पानी जो सबकी सामर्थ्य के भीतर हो, प्रदान करने में सक्षम कैसे बनाया जाये। लेकिन इस पुस्तक में दिये गये नगरीय सुविधाओं, उपयोगकर्ताओं की सहकारिताओं, श्रमिकों की सहकारिताओं, समुदाय-सुविधा साझेदारियों और सार्वजनिक-सार्वजनिक साझेदारियों के विभिन्न उदाहरण बहुमूल्य जानकारी, सुझाव और सीखने लायक सबक प्रदान करते हैं।

अंत में, किसी जगह के लिए सर्वाधिक उपयुक्त प्रबंधन मॉडल क्या होगा, उपयोगकर्ता/नागरिक सहभागिता किस हद तक हो, शुल्कों की सामाजिक संरचना कैसी हो, ये सारे फैसले वहां की स्थानीय जनता द्वारा जनतांत्रिक बहसों में लिये जाने हैं। इसी से तय होगा कि विशिष्ट स्थानीय परिस्थितियों के लिए सबसे उपयुक्त क्या है। लेकिन जबकि स्थानीय समुदायों को यह चुनने का अधिकार होना चाहिए कि उनके पानी की आपूर्ति कैसे हो, वहीं वस्तुस्थिति यह है कि चुने जाने लायक विकल्पों का दायरा बड़े नाटकीय ढंग से ऐसे कारकों द्वारा लगातार संकुचित किया जा रहा है जो उनके नियंत्रण से बाहर हैं। दक्षिणी और उत्तरी क्षेत्रों की सरकारों तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के सोच में बदलाव की प्रक्रिया को तेज किया जाना बहुत जरूरी है ताकि सार्वजनिक जल समाधनों को आवश्यक राजनीतिक समर्थन मिल सके। दुनिया भर में सार्वजनिक जल व्यवस्था को बेहतर बनाने और उसका क्षेत्र व्यापक बनाने की राह में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए जरूरी साहसपूर्ण रवैये में निश्चय ही अपंग बना देने वाले ऋण को निरस्त किया जाना, सहायता प्रवाहों को वेगवान बनाना और नवउदारवादी व्यापार नीतियों से दूर हटना शामिल है।

विश्व व्यापार संगठन के सेवा समझौते (गैट्स-जी.ए.टी.एस.) में पानी की आपूर्ति को भी शामिल करने का विनाशकारी प्रस्ताव इसका एक उदाहरण है। गैट्स वार्ताओं के जारी दौर में यूरोपीय संघ ने उदारीकरण के लिए विश्व व्यापार संगठन के 72 अन्य सदस्य देशों के जल क्षेत्रों पर निशाना साधा है। इन देशों में विकासशील और न्यूनतम विकसित देश शामिल हैं। पानी के मामले में गैट्स प्रतिबद्धताओं को स्वीकार करने वाला देश भविष्य के लिए निजीकरण के मौजूदा स्तरों में बंध जायेगा और फिर उसके लिए इस रास्ते को बदल पाना और सार्वजनिक जल रणनीतियों को अपना पाना वस्तुतः असंभव हो जायेगा। पानी को नवउदारवादी व्यापार नियमों के क्षेत्र से पूरी तरह बाहर बने रहना चाहिए और उस पर द्विपक्षीय निवेश संधियां (बी.आई.टी.) भी लागू नहीं होनी चाहिए। इस पुस्तक के अनेक अध्यायों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा असफल निजीकरण के बाद बहुत ज्यादा और अनुचित मुआवजा पाने के लिए द्विपक्षीय निवेश संधियों का इस्तेमाल करने के प्रयासों पर रोशनी डाली गयी है। इंटरनेशनल सेंटर फार सेटलमेंट आफ इन्वेस्टमेंट डिस्प्यूट्स (आई.सी.एस.आई. डी.) के तहत अब भी विचाराधीन मामलों में अमेरिका की बेक्टेल और आजूरिक्स तथा पानी की फ्रांसीसी महाकाय कंपनी स्वेज बोलीविया और अर्जेंटीना की कर्ज में गहरे डूबी सरकारों से अरबों डालर ‘मुआवजा’ मांग रही हैं।

इस संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों आदि में व्याप्त अनेक बड़े मुख्य विचारधारात्मक पूर्वग्रहों पर विजय पाना जरूरी है। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और सहायता एजेंसियों दोनों को इस बात पर मजबूर किया जाना चाहिए कि वे सरकारों को निजीकरण की ओर धकेलना बंद करें और सार्वजनिक जल सुविधाओं तथा जनतांत्रिक सुविधा सुधार लागू करने वाले समुदायों के प्रति अपना अड़ंगा डालने वाला रवैया खत्म करें। सार्वजनिक क्षेत्र के समाधनों के लिए वित्त और समुचित तकनीकी सहायता देने में उनकी लगातार जारी अनिच्छा एक ऐसी संरचनात्मक बाधा है जिसका तत्काल हल निकालने की जरूरत है। सार्वजनिक सेवाओं के फलने-फूलने के लिए अनुकूल माहौल मिले, इसके लिए जरूरी है कि वैश्विक जल आंदोलन आक्रामक बने रहें और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और सरकारों से अपनी नीतियों में ठोस सार्थक परिवर्तन लाने की मांग करें। जनकेंद्रित आपूर्ति मॉडलों के लिए स्थान के बजाय हमें इस बात पर जोर देना चाहिए कि सरकारें इन माडलों को राजनीतिक, तकनीकी, वित्तीय और अन्य तरीकों से समर्थन देने के लिए जो कुछ भी कर सकती हैं, करें।

दक्षिण में पानी के प्रति यूरोपीय संघ के रवैये पर एक अबाध्यकारी प्रस्ताव (सितंबर 2003) में यूरोपीय संसद में स्थानीय सार्वजनिक प्राधिकरणों के सार्वजनिक जल प्रबंधन की एक ऐसी प्रयोगात्मक, सहभागिता वाली जनतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना करने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों को समर्थन दिये जाने की जरूरत पर “बहुमत से जोर दिया गया” जो कार्यकुशल, पारदर्शी और विनियमित हो तथा जनता की जरूरतों को पूरा करने के लिए टिकाऊ विकास के लक्ष्यों का सम्मान करती हो।

नवउदारवादी नीतियों से राष्ट्रीय सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के स्तर पर होने वाले प्रस्थान में लंबा समय लग सकता है। इस बीच, राजनीतिक सत्ता और वित्त के केन्द्रों से बहुत दूर स्थानीय सुविधा ऑपरेटर, जमीनी आंदोलन, ट्रेड यूनियन और गैर सरकारी संगठन आगे की राह दिखाने और विपरीत स्थितियों के विरुद्ध सार्वजनिक जल समाधनों का सृजन करने का काम जारी रखेंगे।

संपादकीय टोली